सुरेंद्र किशोर
1.-कर्पूरी ठाकुर
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सत्तर के दशक की बात है।
मैं समाजवादी कार्यकर्ता था और सारण जिला संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का कार्यालय सचिव था।
सारण जिले के विधायक सभापति सिंह और रामबहादुर सिंह ने बारी- बारी से मुझसे कहा कि आप पटना जाइए।कर्पूरी जी आपको अपना निजी सचिव बनाना चाहते हैं।
मैं जब पटना नहीं गया तो एक दिन अचानक कर्पूरी जी छपरा हमारे आॅफिस में पहुंच गये।उन्होंने मुझसे कहा कि ‘‘मुझे तेज मिलते हैं तो ईमानदार नहीं और ईमानदार मिलते हैं तो तेज नहीं।चूंकि आप दोनों हैं,इसलिए मैं चाहता हूं कि आप मेरे निजी सचिव बनें।’’
एक समाजवादी कार्यकर्ता के लिए इससे बड़ी बात भला क्या हो सकती थी।मैं पटना आया और करीब डेढ़ साल तक उनका निजी सचिव रहा।
मुझे आमंत्रित करते समय कर्पूरी जी ने न तो जाति का ध्यान रखा और न ही किसी और बात का।सिर्फ समाजवादी आंदोलन का व्यापक हित देखा।उनकी चाह थी कि उनके आसपास के लोग ईमानदार हों।
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रामानंद तिवारी
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जब मैं कर्पूरी जी का साथ छोड़ कर पत्रकारिता करने लगा तो रामानंद तिवारी ने मुझे बुलवाया।वे ‘‘जनता’’ साप्ताहिक निकालना चाहते थे।तिवारी जी ने मुझे जनता का, जिसकी शुरूआत रामवृक्ष बेनीपुरी के संपादकत्व में जेपी ने की थी,सहायक संपादक बना दिया।
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अब आइए—
4 नवंबर 1974 की घटना पर
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उस दिन जेपी के नेतृत्व में पटना में जुलूस निकला था।
जेपी जीप पर सवार थे।जुलूस में अन्य अनेक महिलाओं के साथ मेरी पत्नी रीता भी शामिल थी।आयकर गोलंबर के पास रीता जेपी की जीप के पास खड़ी थी तो अश्रु गैस का एक गोला रीता के सिर पर गिरा।वह बुरी तरह झुलस गई।बेहोश हो गई।
भगदड़ मच गई।अर्ध सैनिक बल के जवान बेहोश रीता को पास के नाले में फेंकने ही वाले थे कि आंदोलनकारी गिरिजा देवी (बिहारी साव लेन की)ने उनसे विनती की कि मेरी बेटी है,इसे छोड़ दो।इस तरह उसकी जान बची।लंबे समय तक पी.एम.सी.एच.के राजेंद्र सर्जिकल वार्ड में थी।जेपी उसे देखने अस्पताल गये थे।जेपी ने डाक्टरों से कहा था कि इसके इलाज में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए।
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सन 1977 में जब बिहार विधान सभा का टिकट बंटने लगा तो उम्मीदवारों के आवेदन जेपी के यहां भी दिये जाने लगे।उनकी एक सूची जेपी के कदम कुआं स्थित आवास ‘‘चरखा समिति’’ में भी बन रही थी।जेपी ने आवेदन पत्र लेने वालों से पूछा–क्या उस लड़की का आवदेन पत्र आया है या नहीं जिसके सिर 4 नवंबर को अश्रु गैस का गोला गिरा था ?
उन लोगों ने कहा कि ‘‘ नहीं आया है।’’
कई साल बाद तारा सिन्हा ने मेरी पत्नी को बताया था कि दादाजी (यानी जेपी) तुमको विधान सभा का टिकट देना चाहते थे।तारा सिन्हा डा.राजेंद्र प्रसाद की पोती हैं और इन दिनों चरखा समिति की देखभाल करती हैं।
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जेपी ने जात पात पर विचार किए बिना मेरी पत्नी के बारे में
तय किया था। क्योंकि उन्हें लगता था कि समाज के लिए जो अपनी जान न्योछावर करने को तैयार हो,उसे सम्मान मिलना चाहिए,उसका सशक्तीकरण होना चाहिए।(आज तो बाहुबलियों,धन पतियों और जातीय भावनाएं उभार वोट बंटोरने वालों का सशक्तीकरण हो रहा है–अपवादों की बात और है।
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आज की पीढ़ी के समाजवादी नेता
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व्यक्तिगत बात लिखना ठीक तो नहीं लगता, किंतु
यह लिखना जरूरी है ताकि अगली पीढ़ी के लिए रिकाॅर्ड रहे।
1.–एक शीर्ष समाजवादी सत्ताधारी नेता ने मुझे संदेश भिजवाया–मेरी जीवनी लिख देंगे तो एम.एल.सी.बनवा दूंगा।
मैंने जवाब दिया-‘‘मैं जीवित नेता की जीवनी लिखने का पक्षधर नहीं हूं।’’
ऐसा नहीं है कि मैं एम.एल.सी.नहीं बनना चाहता था।किंतु
तभी बनना चाहता था जब बनाने वाले यह समझें कि मेरा एम.एल.सी.बनने से समाज को मेरा कुछ सकारात्मक योगदान हो सकता है।
सिर्फ किसी नेता को फायदा पहुंचा कर कुछ मिले तो वैसे में तो मुझे स्वर्ग भी मंजूर नहीं।
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2.–एक दूसरे शीर्ष समाजवादी सत्ताधारी ने मेरे एक स्वजातीय बाहुबली से कहा कि सुरेंद्र किशोर को ले आओ,उसे एम.एल.सी.बना दूंगा।उस नेता की शर्त थी कि मेरे खिलाफ वह लिखना बंद कर दे।
वह बाहुबली मुझसे किसी अन्य प्रयोजन से पहले मिल चुका था।मैंने उससे साफ-साफ कह दिया था कि आपकी कार्य शैली से राजपूतों का भी भला नहीं हो रहा है।
इसलिए वह एम.एल.सी.का आॅफर लेकर मेरे पास क्यों आता ?
नहीं आया।
उधर शीर्ष नेता ने सोचा होगा कि एक ऊंट के जरिए एक हाथी को उपकृत करेंगे तो हाथी सदा मेरे वश में रहेगा।
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मैंने व्यक्तिगत उदाहरण इसलिए दिया ताकि लोगबाग यह समझ सकंे कि आज की राजनीति क्यों उद्योग -व्यापार का स्वरूप ग्रहण करती जा रही है चाहे जो इस बार चुनाव जीते या हारे।
क्योंकि अपवादों को छोड़कर शीर्ष नेता यह चाहते हैं कि तुम मेरा व्यक्तिगत रूप से भला करो मैं तुम्हारा सशक्तीकरण कर दूंगा।समाज का भला ठेंगे पर !!
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जेपी-कर्पूरी-तिवारी ऐसे नेता नहीं थे,इसलिए उनका मान-सम्मान आज भी है।
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और अंत में
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मैंने अपने लिए किसी से पद्म श्री सम्मान कभी मांगा नहीं था।मेरा आज भी मनना है कि ऐसे सम्मानों से न तो कोई बड़ा बनता है और सम्मान न मिलने से कोई छोटा रह जाता है।
जो जैसा होता है,वैसा ही रहता है।
यदि इस धरती पर कोई भी आपको मिले और कहे कि उससे मैंने पद्मश्री के लिए विनती की हो तो उसका नाम बता दीजिएगा।दरअसल कोई नहीं मिलेगा।
अब पूछिएगा कि मिला तो स्वीकारा क्यों ?
इसलिए कि मैंने अपने परिवार की लगातार उपेक्षा की।उस परिवार की खुशी के लिए स्वीकारा।मुझे तो फर्क नहीं पड़ता,किंतु मुझे पद्म सम्मान मिलने से मेरा परिवार बहुत खुश है।वह खुश है तो उसकी खुशी देखकर जीवन में मेरी खुशी बढ़ गई है।
एक बात और । पद्म श्री देने वाली सरकार के किसी नेता ने आजतक मुझसे यह नहीं कहा कि आपको हमने पद्मश्री दिया है आपको मेरी पार्टी के लिए कुछ करना चाहिए।
उनका ऐसा संयम सराहनीय है।
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कुछ लोग कहते हैं कि मेरा विचार इन दिनों बदला हुआ है।हां,बदला हुआ है।
देश,काल, पात्र की जरूरतों के अनुसार चीन और रूस की कम्युनिस्ट दलों ने भी विचार बदल लिया है।वे लोग समाजवाद से पूंजीवाद की ओर,अंतरराष्ट्रीयता से राष्ट्रीयता की ओर चले गये हैं।
दरअसल उसी तरह बदला हुआ है जिस तरह 1967 में डा.लोहिया और 1977 में जेपी का विचार बदला था–विचार बदलने के पीछे कोई व्यक्तिगत लाभ-लोभ न तो जेपी-लोहिया को चाहिए था न ही आज
मुझे लभ चाहिए।
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लोहिया ने समझा था कि जनसंघ और कम्युनिस्टों को एकजुट किए बिना कांग्रेस सत्ता पर एकाधिकार के जरिए देश को लूटती रहेती।
भुखमरी जारी रहेगी।
भीषण अकाल ग्रस्त बिहार को जरूरत के अनुसार अनाज देने से प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने इनकार कर दिया था।
5 नवंबर 1966 को इंदिरा गांधी ने पटना में कहा कि अनाज की बिहार सरकार की मांग हम पूरा नहीं कर सकते।क्योंकि देश में अन्न की उपलब्धता की स्थिति ठीक नहीं है।
(याद रहे कि उन्हीं दिनों बड़े बड़े घोटालों में सरकारी पैसे जा रहे थे और 100 पैसे घिसकर 15 पैसे बन रहे थे।)
1974–77 में जेपी ने समझा था कि जनसंघ-संघ की मदद लिए बिना इंदिरा गांधी की एकाधिकारवादी-तानाशाही प्रवृति से नहीं लड़ा जा सकता।
मैं समझता हूं कि आज ‘‘गजवा ए हिन्द’’ के भारी खतरे से भारत को बचाना है तो मोदी-योगी-संघ-सेना को ताकत पहुंचानी ही होगी।
जेहाद समर्थकों व मुस्लिम वोट लोलुपों का इस प्रचार में कोई दम नहीं है कि 80 प्रतिशत हिन्दू वाले देश में जेहादी कुछ नहीं कर सकते।नहीं कर सकते क्या ?
जेहादियों के प्रयास से 200 जिलों में हिन्दू अल्पमत में आ चुके हैं।
अब 80 प्रतिशत नहीं रहे हिन्दू।
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4 नवंबर 25



