पटना। बिहार की राजनीति में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) एक ऐसा नाम है, जो सत्ता और विवादों का पर्याय बन चुका है। हाल ही में पटना में वक्फ कानून के नाम पर राजद का शक्ति प्रदर्शन इस बात का जीवंत उदाहरण है कि यह पार्टी अपनी ताकत और प्रभाव को कैसे प्रदर्शित करती है। वर्षों तक सत्ता से बाहर रहने के बावजूद राजद का दबदबा बिहार के थानों और कचहरियों में आज भी कायम है। यह बिहार की एक ऐसी सच्चाई है, जिसे नजरअंदाज करना मुश्किल है।
यह पार्टी न केवल राजनीतिक मंचों पर, बल्कि सामाजिक और प्रशासनिक स्तर पर भी अपनी उपस्थिति को मजबूती से दर्ज कराती है, जिसका आधार उसकी कथित ताकत और संगठित नेटवर्क है।
राजद का नाम अक्सर विवादों और गुंडागर्दी के साथ जोड़ा जाता है। पार्टी के सोशल मीडिया हैंडल्स से लेकर प्रवक्ताओं की भाषा तक में यह आक्रामकता साफ झलकती है। पार्टी के सुप्रीम लीडर लालू प्रसाद यादव का एक पुराना बयान, जिसमें उन्होंने अपने समर्थकों, खासकर मुसलमान और यादव कार्यकर्ताओं को तेल पिलाकर गांधी मैदान में लाठी लेकर आने का आह्वान किया था, आज भी चर्चा में रहता है।
यह बयान न केवल उनकी आक्रामक शैली को दर्शाता है, बल्कि उनके कार्यकर्ताओं के बीच उनकी गहरी पैठ को भी उजागर करता है। बिहार में संगठित अपराध का नेटवर्क, विशेष रूप से इन दो समुदायों के बीच, राजद के प्रभाव का एक बड़ा हिस्सा माना जाता है। हालांकि, जदयू की सरकार में इस गुंडागर्दी पर कुछ हद तक लगाम लगी, फिर भी राजद के कार्यकर्ताओं का प्रभाव आज भी बरकरार है।
राजद को कई लोग एक राजनीतिक दल से ज्यादा एक संगठित अपराधी गिरोह के रूप में देखते हैं, जिसके नेताओं ने राजनीति का चोला ओढ़ रखा है। पार्टी के सुप्रीम लीडर लालू प्रसाद यादव का इतिहास भ्रष्टाचार के मामलों से भरा पड़ा है। चारा घोटाले में सजा काटने के बाद भी उनके खिलाफ कई मामले अभी भी चल रहे हैं।
उनके नेतृत्व में राजद ने बिहार की राजनीति को एक अलग रंग दिया, लेकिन यह रंग अक्सर विवादों और अनैतिकता से रंगा हुआ दिखाई देता है। लालू के बाद उनके पुत्र तेजस्वी यादव, जिन्हें ‘दसवीं फेल’ कहकर आलोचना की जाती है, अब पार्टी की कमान संभाल रहे हैं। जब यह जोड़ी भ्रष्टाचार को खत्म करने और शिक्षा में सुधार की बात करती है, तो बिहार के लोग इसे एक विडंबना के रूप में देखते हैं।
लालू प्रसाद के परिवार की बात करें, तो उनकी दो बेटियां एमबीबीएस डॉक्टर हैं, दोनों ही राजनीति में सक्रिय हैं। चिकित्सा के क्षेत्र से उनका कोई वास्तविक जुड़ाव नहीं दिखता। जब यादव परिवार में एमबीबीएस डिग्री को मिल रहे सम्मान को बिहार के लोग देख रहे हैं और फिर राजद प्रदेश में स्वास्थ्य सुधार की बात भी करती है, तो यह बिहारवासियों के लिए हास्यास्पद हो जाता है।
यदि राष्ट्रीय जनता दल की कहानी को बॉलीवुड के किसी निर्देशक, जैसे प्रियदर्शन, तक पहुंचाया जाए, तो शायद वे इसे ‘हेराफेरी 04’ की पटकथा के लिए प्रेरणा मान सकते हैं। मेरा सुझाव है कि यदि यह फिल्म बनती है तो लालू प्रसाद की भूमिका के लिए स्वयं उन्हें कास्ट करना एक मास्टरस्ट्रोक हो सकता है, क्योंकि बॉलीवुड फिल्म पद्मश्री लालू प्रसाद यादव में वे पहले भी अभिनय में हाथ आजमा चुके हैं।
राजद का बिहार की राजनीति में प्रभाव और विवाद दोनों ही अटल हैं। यह पार्टी भले ही राजनीतिक मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रहे, लेकिन इसके कार्यकर्ताओं और नेताओं की कार्यशैली पर सवाल उठते रहेंगे। बिहार की जनता के लिए राजद एक ऐसा ‘भयावह सपना’ है, जिसके साथ उन्हें हर दिन जूझना पड़ता है।