साहिब सिंह वर्मा की सादगी

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कुमार अतुल

दिल्ली : चौथे खंभे की नींव दरकाने की कोशिशें चल रही हैं। अजीत अंजुम चर्चा में हैं और सियासत भी। चलिए एक पुरानी घटना सुनाता हूं।

आज जनता की गाली खाते हिकारत के पात्र बने नेताओं के बीच कुछ अच्छे (कम से कम दिखावे के लिए ही सही) नेताओं की जमात में दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा का नाम जरूर लिया जाना चाहिए।

साहिब सिंह एक कालेज के लाइब्रेरियन थे। संघ की नजदीकियों ने उन्हें भाजपा की सीढ़ियां जल्द चढ़ा दी थीं। जब मदनलाल खुराना पर हवाला कांड की आंच आई तो साहिब सिंह को स्वाभाविक विकल्प के तौर पर देखा गया। साहिब सिंह अपनी जाट बिरादरी में बेहद लोकप्रिय थे। इसके अलावा मीडिया के लोगों के वह चहेते थे।

उनके मुख्यमंत्री बनने की खबर पाकर नई दिल्ली में उनके शालीमार बाग के मकान में शाम से ही बड़ी संख्या में लोगबाग इकट्ठे होने लगे थे। गर्मियों के दिन थे। उनके लिए टेंट लगाए गए थे।
हिमालय दर्पण में काम करने वाले हम लोगों ने भी सोचा कि साहिब सिंह को बधाई देनी चाहिए। काम खत्म करके हम लोग निकले। हमारे साथ सत्येंद्र झा, सावित्री बलूनी (अब चर्चित क्राइम एंकर शम्स ताहिर खान की पत्नी) भी थे। सावित्री साहिब सिंह के घर के आसपास ही रहती थीं। वह बधाई देकर चली गईं। साहिब सिंह ने हम लोगों से कहा जल्दी क्या है चले जाना। लोगबाग आते गए। रात हो गई। दिल्ली में अब घर पहुंचने की दुश्वारी थी।

रात दो बजे तक गहमागहमी चलती रही। इसके बाद साहिब सिंह आए और कहने लगे आप लोगों के सोने का इंतजाम करता हूं। घर पहले ही मेहमानों से भरा था। हम लोगों को ड्राइंगरूम में उन्होंने बिछे बेड पर सोने के लिए कहा। हम लोग लेटे ही थे कि कुछ देर बाद साहिब सिंह एक चटाई लेकर आए नीचे बिछाई और सो गए। जो शख्स अगले दिन दिल्ली का मुख्यमंत्री होने वाला था उसे इस तरह नीचे जमीन पर सोता देखकर अटपटा लगा। सत्येंद्र झा ने कहा कि ये क्या कर रहे हैं। ऊपर आइए। यहीं एडजस्ट कर लेंगे। नहीं सोते, बैठकर गपशप ही करेंगे।

इसके बाद साहिब सिंह ने जवाब दिया वह हमें अंदर से भिगो गया। साहिब सिंह ने कहा अब मैं पूरे दिल्ली का सेवक हो गया हूं। कायदे से मुझे नीचे ही सोना चाहिए। आप लोग लोकतंत्र के चौथे खंभे हैं। मुझे आप लोगों से नीचे ही रहना चाहिए।

बाद में साहिब सिंह को सुषमा स्वराज के लिए दिल्ली की गद्दी छोड़नी पड़ी। जाते-जाते डीटीसी बस पर सवार होकर मुख्यमंत्री निवास से फिर अपने शालीमार बाग वाले घर लौट गए। बहुतों को यह नौटंकी लगी लेकिन साहिब सिंह को जो लोग जानते थे उन्हें पता था वह ऐसे ही थे। कई बार तो वह दिल्ली घूमते घूमते भाजपा कवर करने वाले पत्रकारों के घर ही पहुंच जाते, खास तौर पर उनकी गैरहाजिरी में। घर वालों से मिलते, पानी पीते, हालचाल लेते और चले जाते। बीट रिपोर्टर को बाद में पता चलता कि उसके घर सी एम आए थे. आप इसे भी नाटक कह सकते हैं, लेकिन ऐसा नाटक भी कितने कर पाते हैं।..

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