आज, 19 जुलाई, पद्मश्री गोपाल दास नीरज की पुण्यतिथि है। उनकी कालजयी कविता की चार पंक्तियाँ आज भी जीवन का सार सिखाती हैं:
जितना कम सामान रहेगा,
उतना सफर आसान रहेगा।
जितनी भारी गठरी होगी,
उतना तू हैरान रहेगा।।
इन पंक्तियों के साथ एक किस्सा साझा करता हूँ, जो नीरज की सीख को और गहराई देता है। साउथ इंडियन भोजन के लिए मशहूर ‘सर्वना भवन’ के संस्थापक पी. राजगोपाल (5 अगस्त 1947 – 18 जुलाई 2019) की कहानी शायद आप जानते हों। एक साधारण पृष्ठभूमि से शुरूआत कर उन्होंने अरबों का साम्राज्य खड़ा किया। लेकिन क्या इतनी संपत्ति और सफलता उनके लिए काफी थी? शायद नहीं।
नीरज की कविता शायद राजगोपाल ने कभी पढ़ी नहीं। उनकी नजर में उनका ‘सामान’ हमेशा कम था। और अधिक की चाह में वे ज्योतिषियों के चक्कर में पड़ गए। एक पंडित ने सलाह दी कि अगर वे अपनी एक शादीशुदा कर्मचारी से तीसरी शादी कर लें, तो उनका ‘भला’ होगा। सामान और बढ़ेगा, किरपा होगी। लेकिन यह रास्ता आसान नहीं था।
कर्मचारी का पति आड़े आया, जो इस शादी के खिलाफ था। फिर, राजगोपाल ने रास्ता साफ करने के लिए पति की हत्या करवा दी। पर सच छुपता कहाँ है? भांडा फूटा, और राजगोपाल को आठ अन्य आरोपियों के साथ लंबी सजा हुई। विडंबना देखिए, आज के ही दिन वे असमय दुनिया छोड़ गए।गांधी जी ने ठीक कहा था: “यह धरती हर एक की जरूरत पूरी कर सकती है, पर किसी एक के लोभ को नहीं।” धरती के सारे संसाधन भी एक व्यक्ति की हवस को संतुष्ट नहीं कर सकते।नीरज की सीख यही है-सामान कम रखो, संतुष्ट रहो।
जीवन का सफर आसान बनाओ। मेरे पास तो सफर के लिए पर्याप्त सामान है, और वह भी कम, ताकि यात्रा हल्की रहे। आपके पास कितना सामान है? पर्याप्त, या फिर आप भी किसी ज्योतिषी की तलाश में हैं?
नोट : लेख ज्योतिष को अंधविश्वास के रूप में सामान्यीकरण नहीं करता, बल्कि एक विशिष्ट घटना के संदर्भ में राजगोपाल के निर्णय और उसके परिणामों को उजागर करता है। अंत में “क्या आप भी किसी ज्योतिषी की तलाश में हैं?” वाली टिप्पणी एक व्यंग्यात्मक और विचारोत्तेजक अंदाज में पाठक को आत्ममंथन के लिए प्रेरित करती है, न कि ज्योतिष को पूरी तरह खारिज करती है।