खिदमत ए खुदा स्कूल का नाम हो और वहां श्रीमद भागवत गीता पढ़ाया जाए फिर इसे कोई भी गलत कहेगा। जब खिदमत ए खुदा में अपने बच्चे का कोई दाखिला कराएगा तो इस सोच के साथ ही कराएगा। संदीप चौधरी जैसे लोग पंचायत के फैसले के सिर माथे रख लेते हैं लेकिन अपना पतनाला वहीं से निकलने की जिद पर अड़े रहते हैं, जहां उन्होंने तय किया होता है।
समोसा बाहर से आया। यह तर्क था। सुधांशु मित्तल ने कहा कि समोसे को हमने समोसा नाम के साथ स्वीकार किया ना, उसे राम मिठाई नाम तो नहीं दे दिया।
संदीप कहते हैं कि आप बिस्मिल्लाह खान को क्यों सुनते है और आपने मिशनरी स्कूल से पढ़ाई क्यों की?
संदीप की बुद्धी में इतनी सी बात क्यों नहीं आ रही कि यही बात तो कही जा रही है कि जिसे तुम हिन्दू मुस्लिम बनाने की कोशिश कर रहे हो, उसमें हिन्दू मुस्लिम जैसा कुछ है नहीं।
बिस्मिल्लाह खान यदि घरों में बिस्मिल्लाह खान बनकर जाएंगे तो देशभर में उनके हुनर का स्वागत होगा। वे अपनी मृत्यु के अठारह साल बाद भी शादियों में सुने जाएंगे। कोई पूछेगा कि यह शहनाई किसकी है तो किसी को बताने में शर्म नहीं होगी कि यह बिस्मिल्लाह खान की शहनाई है।
चर्च के स्कूल चर्च के नाम से चल रहे हैं। उन्होंने पढ़ाई के मामले में सबका का दिल जीत लिया। सरकारी स्कूलों की पढ़ाई कांग्रेस राज में दिन प्रतिदिन खराब होती गई और अच्छी पढ़ाई का पर्यायवाची मिशनरी स्कूल बन गया। बड़ी संख्या में मिशनरी स्कूल का नाम देखकर लोगों ने वहां अपने बच्चों का दाखिला कराया। बात नाम से अधिक विश्वास अर्जित करने की है।
आज भी भजन गायन के लिए मोहम्मद सलीम को लोग बुलाते हैं। उसकी आवाज अच्छी है। उसने अपना नाम सुमित या अमित नहीं रखा फिर भी उसकी भजन मंडली लोकप्रिय है।
इसलिए नाम सार्वजनिक करने के पीछे का उद्देश्य समझ नहीं आता हो तो किसी दूसरे विषय पर कांग्रेस का प्रचार करें। बीजेपी के लिए नफरत बोएं। बीजेपी नेता को यह कर उन्होंने खुश करने की कोशिश की कि आपके यहां जैसा नाश्ता मिलता है, दिल्ली में कहीं और नहीं मिलता। लेकिन उसके बावजूद सवाल जवाब में वे अपने हिन्दू मुस्लिम के एजेन्डे से एक इंच भी दाएं बाएं नहीं हुए। चौधरी को जिस मामले में हिन्दू मुस्लिम कतई नहीं है, उस मामले में हिन्दू मुस्लिम नहीं करना चाहिए।
वे बीजेपी और आरएसएस के विरोध के लिए कुछ ठोस एजेन्डा लेकर आएं। एबीपी न्यूज पर हर शाम वे एक्सपोज ही होते हैं। पहले दिवि के प्राध्यापक संगीत रागी ने उन्हें आईना दिखाया फिर बीजेपी प्रवक्ता रमण मलिक ने। लेकिन संदीप पंचों की राय मानकर हर बार, उनकी सूई वहीं अटकी होती है जहां उन्हें बीजेपी और आरएसएस का विरोधर करने का अवसर मिले।
इंडि-गठबंधन की गोद में बैठकर जब तरक्की ठीक ठाक मिल जाए फिर आदमी पत्रकारिता क्यों करे? गोद में ही ना बैठे!