संदीप चौधरी: पत्रकारिता, विवाद और छवि का संकट

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भारतीय टेलीविजन पत्रकारिता में कुछ नाम ऐसे हैं जो अपनी शैली, विवादों और छवि के कारण हमेशा चर्चा में रहते हैं। संदीप चौधरी, जो वर्तमान में एबीपी न्यूज़ के एंकर हैं और पूर्व में न्यूज़ 24 से जुड़े रहे, ऐसा ही एक नाम है।

उन्हें अक्सर लोग सुधीर चौधरी के साथ भ्रमित कर देते हैं, जो डीडी न्यूज़ के प्रधान संपादक और एक चर्चित पत्रकार हैं। इस भ्रम का कारण दोनों का साझा सरनेम ‘चौधरी’ और टीवी डिबेट की आक्रामक शैली है। हालांकि, संदीप और सुधीर के बीच न तो कोई पारिवारिक रिश्ता है और न ही कोई वैचारिक समानता। संदीप पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हैं, जबकि सुधीर हरियाणा के। फिर भी, संदीप की तुलना सुधीर से होना और उनकी छवि को लेकर होने वाली आलोचनाएं उनकी पत्रकारिता के रास्ते में एक बड़ा सवाल बनकर उभरी हैं।


संदीप चौधरी की पत्रकारिता: शोर या सार?

संदीप चौधरी की पत्रकारिता की शैली को देखें तो यह स्पष्ट होता है कि उनकी डिबेट्स में ऊंची आवाज और आक्रामकता का बोलबाला रहता है। आलोचकों का मानना है कि वे अपने शो में अक्सर बिना गहरी तैयारी के आते हैं। उनकी रिसर्च टीम की कमजोरी भी उनके शो की गुणवत्ता पर सवाल उठाती है।

कई बार उनके सवालों और तर्कों में तथ्यों की कमी साफ झलकती है, जिसे वे अपनी तेज आवाज और आक्रामक रवैये से ढकने की कोशिश करते हैं। यह शैली दर्शकों का ध्यान तो खींचती है, लेकिन क्या यह पत्रकारिता के मूल उद्देश्य—सच्चाई को सामने लाने और निष्पक्ष विश्लेषण—को पूरा करती है? यह सवाल बार-बार उठता है।संदीप के शो, जैसे न्यूज़ 24 का “सबसे बड़ा सवाल” या एबीपी न्यूज़ का “सीधा सवाल”, अपनी तेज-तर्रार बहसों के लिए जाने जाते हैं। लेकिन इन बहसों में अक्सर हिंदू-मुस्लिम जैसे संवेदनशील मुद्दों पर ज्यादा जोर दिया जाता है।

संदीप स्वयं दावा करते हैं कि वे ऐसी डिबेट्स के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन उनके शो का प्रारूप और विषय चयन कुछ और ही कहानी कहता है। यह जानबूझकर किया जाता है, क्योंकि धार्मिक या सांप्रदायिक मुद्दों पर आधारित बहसें दर्शकों को आकर्षित करती हैं और टीआरपी की गारंटी देती हैं। यह रणनीति न केवल उनकी पत्रकारिता पर सवाल उठाती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि संदीप की प्राथमिकता पत्रकारिता से ज्यादा दर्शक संख्या और चैनल की व्यावसायिक सफलता है।

कांग्रेस आईटी सेल की छवि: मिथक या हकीकत?

संदीप चौधरी की छवि को लेकर सबसे बड़ा विवाद उनकी कथित कांग्रेस आईटी सेल से नजदीकी का है। सोशल मीडिया पर कई यूजर्स और आलोचक उन्हें “कांग्रेस का एजेंडा चलाने वाला पत्रकार” कहते हैं। इस छवि का आधार उनके शो में उठाए गए मुद्दों और उनके द्वारा अपनाए गए रुख को माना जाता है। उदाहरण के लिए, कुछ समय पहले संदीप ने अपने शो में कांग्रेस के एक प्रवक्ता को बाहर निकाल दिया था, जब उन पर एक पैनलिस्ट, डॉ. सौरभ मालवीय, के साथ बदतमीजी का आरोप लगा। इस घटना ने उनकी निष्पक्षता पर और सवाल उठाए।

आलोचकों का कहना है कि यह कदम उनकी छवि को सुधारने की कोशिश थी, लेकिन यह असफल रहा, क्योंकि उनकी डिबेट्स का रुख अक्सर एक खास राजनीतिक विचारधारा की ओर झुका हुआ प्रतीत होता है।सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट्स में दावा किया गया कि संदीप के शो का बीजेपी ने ‘अघोषित बहिष्कार’ किया है, क्योंकि उनके सवाल सरकार के लिए असहज होते हैं। हालांकि, यह भी सच है कि उनकी डिबेट्स में विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस, को ज्यादा तवज्जो मिलती है, जिससे उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं।

यह छवि उनके लिए एक संकट बन चुकी है, क्योंकि दर्शक और आलोचक उन्हें ‘कांग्रेस आईटी सेल का पत्रकार’ कहकर संबोधित करते हैं। यह आरोप कितना सही है, यह बहस का विषय हो सकता है, लेकिन संदीप की पत्रकारीय शैली और उनके शो के कंटेंट इस धारणा को और मजबूत करते हैं।

हिंदू-मुस्लिम डिबेट: रणनीति या मजबूरी?

संदीप चौधरी के शो में हिंदू-मुस्लिम मुद्दों पर होने वाली बहसें उनकी पत्रकारिता का एक बड़ा हिस्सा हैं। वे दावा करते हैं कि वे ऐसी डिबेट्स के खिलाफ हैं, लेकिन उनके शो का प्रारूप और मेहमानों का चयन इस दावे को खोखला करता है। धार्मिक मुद्दों पर आधारित डिबेट्स न केवल टीआरपी लाती हैं, बल्कि इन्हें तैयार करने में ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती। संदीप की यह रणनीति उनकी पत्रकारीय विश्वसनीयता पर सवाल उठाती है। क्या वे वाकई निष्पक्ष पत्रकारिता करना चाहते हैं, या उनकी प्राथमिकता केवल दर्शकों को बांधे रखना है? यह सवाल उनके करियर के लिए महत्वपूर्ण है।

संदीप बनाम सुधीर: तुलना का बोझ

संदीप चौधरी को सुधीर चौधरी के साथ तुलना ने उनकी पहचान को और जटिल बना दिया है। सुधीर चौधरी, जो अपनी तीखी पत्रकारिता और सरकार समर्थक रुख के लिए जाने जाते हैं, एक बड़ा नाम हैं। संदीप को अक्सर “गरीबों का सुधीर चौधरी” कहा जाता है, जो उनके लिए एक अपमानजनक टिप्पणी है। यह तुलना न केवल उनकी पत्रकारीय क्षमता पर सवाल उठाती है, बल्कि उनकी व्यक्तिगत कुंठा को भी उजागर करती है। कई बार उनके शो में मेहमानों द्वारा उन्हें “सुधीर” कहकर पुकारा जाना इस कुंठा को और बढ़ाता है। यह भ्रम उनके लिए एक चुनौती है, क्योंकि वे अपनी अलग पहचान बनाने में अब तक पूरी तरह सफल नहीं हो पाए हैं।

क्या संदीप बदल पाएंगे अपनी छवि?

संदीप चौधरी की पत्रकारिता एक ऐसे दौर में है, जहां निष्पक्षता और विश्वसनीयता की मांग पहले से कहीं ज्यादा है। उनकी आक्रामक शैली, कमजोर रिसर्च और हिंदू-मुस्लिम जैसे संवेदनशील मुद्दों पर ज्यादा जोर देने की रणनीति उनकी छवि को नुकसान पहुंचा रही है। कांग्रेस आईटी सेल से जुड़े होने का आरोप, चाहे वह सही हो या गलत, उनकी विश्वसनीयता को और कमजोर करता है। अगर संदीप को अपनी छवि बदलनी है, तो उन्हें अपनी पत्रकारीय शैली में सुधार, तथ्यों पर आधारित बहस और निष्पक्ष रुख अपनाने की जरूरत है।संदीप चौधरी की पत्रकारिता इस समय एक दोराहे पर खड़ी है।

एक तरफ उनके पास मौका है कि वे अपनी गलतियों से सीखें और एक विश्वसनीय पत्रकार के रूप में उभरें। दूसरी तरफ, अगर वे अपनी वर्तमान शैली और रणनीति पर कायम रहते हैं, तो उनकी छवि “कांग्रेस के पत्रकार” या “टीआरपी के लिए डिबेट करने वाले एंकर” तक सीमित रह जाएगी। यह उनके लिए आत्ममंथन का समय है—क्या वे पत्रकारिता के मूल्यों को अपनाएंगे, या फिर टीआरपी और विवादों के भंवर में फंसकर रह जाएंगे? समय ही इसका जवाब देगा।

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