सुप्रीम कोर्ट ने शिलॉन्ग टाइम्स की एडिटर और वरिष्ठ पत्रकार पैट्रिशिया मुखिम के खिलाफ फेसबुक पोस्ट को लेकर दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया है। मुखिम पर फेसबुक पोस्ट के जरिए कथित तौर पर साम्प्रदायिक वैमनस्य फैलाने का आरोप था।
हाई कोर्ट के उस फैसले को जस्टिस एल नागेश्वर राव और रविंद्र भट्ट की बेंच ने पलट दिया, जिसमें कोर्ट ने पत्रकार के खिलाफ पुलिस द्वारा दर्ज आपराधिक केस को सही ठहराया था और उनके खिलाफ प्राथमिकी रद्द करने से इनकार कर दिया था।
पीठ ने कहा, अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में मुखीम ने मेघालय में रहने वाले गैर आदिवासियों की सुरक्षा और उनकी समानता के लिए जो तर्क दिए हैं, उसे भड़काऊ भाषण नहीं माना जा सकता है। फैसला लिखने वाले जस्टिस राव ने कहा, सरकार के कामकाज से नाखुशी जाहिर करने को विभिन्न समुदायों के बीच नफरत को बढ़ावा देने के प्रयास के रूप में ब्रैंड नहीं बनाया जा सकता है।
पीठ ने कहा, भारत एक बहुसांस्कृतिक समाज है, जहां स्वतंत्रता का वादा संविधान की प्रस्तावना में दिया गया। अभिव्यक्ति की आजादी, घूमने की आजादी और भारत में कहीं भी बसने समेत हर नागरिक के अधिकारों को कई प्रावधानों में बयां किया गया है।
मालूम हो कि मीडिया खबर के अनुसार, इस केस की सुनवाई कोर्ट ने 16 फरवरी को पूरी कर ली थी, जिसका फैसला गुरुवार को सुनाया गया। पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘हमने अपील को मंजूर कर लिया है।’
यह भी पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में जब राज्य प्रशासन पीड़ितों के प्रति अपनी आंखें मूंद लेते हैं या फिर उनकी असंतोष की आवाजों को दबा देते हैं, तो यही नाराजगी बन जाती है। ऐसे में या तो इंसाफ नहीं मिलता है या फिर न्याय मिलने में देरी होती है। इस मामले में ऐसा ही प्रतीत होता है।
मुखिम की सीनियर वकील वृंदा ग्रोवर ने इससे पहले कोर्ट में दलील दी थी कि तीन जुलाई 2020 को एक जानलेवा हमले से जुड़ी घटना के संबंध में किए गए पोस्ट के जरिए वैमनस्य या संघर्ष पैदा करने का कोई इरादा नहीं था। ग्रोवर ने कोर्ट को बताया कि मुखिम की पोस्ट को एडिट किया गया और सिर्फ उनके कुछ शब्दों को पुलिस के सामने रखा गया। पूरी पोस्ट के बजाय सिर्फ एक बिंदु को देखा गया।
उल्लेखनीय है कि वरिष्ठ पत्रकार ने एक फेसबुक पोस्ट में लॉसहटून के बास्केटबॉल कोर्ट में आदिवासी और गैर-आदिवासी युवाओं के बीच झड़प का जिक्र करते हुए लिखा था कि मेघालय में गैर-आदिवासियों पर यहां लगातार हमला जारी है, जिनके हमलावरों को 1979 से कभी गिरफ्तार नहीं किया गया जिसके परिणामस्वरूप मेघालय लंबे समय तक विफल राज्य रहा।
पुलिस में इस फेसबुक पोस्ट के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई थी, जिस पर पुलिस ने कार्रवाई करते हुए पत्रकार के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर उन्हें पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन आने को कहा।
पुलिस के इस आदेश को पत्रकार ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी और इसे खारिज करने की मांग की थी, लेकिन मेघालय हाई कोर्ट के जस्टिस डब्लू डिंगडोह ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि यह पोस्ट मेघालय में आदिवासियों और गैर आदिवासियों के सौहार्दपूर्ण संबंधों के बीच दरार पैदा करने वाला है, इसलिए याचिका को रद्द किया जाता है।