डिजिटल मकड़जाल में फंसा भारत: रील्स, सेल्फी और अश्लीलता के नशे में बर्बाद हो रही युवा पीढ़ी!!
दुर्घटनाएं, षडयंत्र, अपराध, मौत, बिखरते रिश्ते, तनाव, और क्या क्या दे रहा है इंटरनेट क्रांति का भूत ?
स्क्रॉल, स्वाइप, रिकॉर्ड, रीप्ले—हमारी उंगलियां थमती नहीं, और नजरें स्क्रीन से हटती नहीं! रील्स और शॉर्ट्स की चकाचौंध में डूबे हम, सेल्फी के जुनून और सोशल मीडिया की लत में ढूंढ रहे मोक्ष। क्या हम डिजिटल आजादी के नाम पर अपनी संस्कृति, संवेदनाएं और समय को खो रहे हैं? यह कहानी है एक ऐसी पीढ़ी की, जो लाइक्स के पीछे अपनी पहचान भूल रही है और वायरल होने की होड़ में खतरों से खेल रही है|
चेन्नई के एन्नोर में 18 वर्षीय प्रदीप 30 जून 2025 को एक रील बनाते वक्त समंदर की तेज़ लहर से टकरा कर चट्टान पर गिर गया और अस्पताल ले जाते समय उसकी मौत हो गई।
मई 2025 में कैनरी द्वीप में एक 48 वर्षीय व्यक्ति होटल की छत की रेलिंग से सेल्फी लेने की कोशिश में 100 फीट नीचे गिर गया।
फरवरी 2025 में श्रीलंका में एक रूसी महिला पर्यटक चलती ट्रेन से सेल्फी लेते हुए चट्टान से टकरा गई और जान गंवा बैठी।
ये सब हादसे सोशल मीडिया की रील सनक (Reel Mania) के खतरनाक असर को दिखाते हैं, जिसमें कुछ सेकंड की शोहरत के लिए लोग जान की बाज़ी लगा रहे हैं। तेज़, चकाचौंध भरे, नाटकीय कंटेंट को बढ़ावा देने वाले एल्गोरिद्म लोगों को और मौत से खेलने के लिए उकसाते हैं। मगर इन “लाइक्स” और “दिल” के पीछे छिपी होती है एक त्रासदी—मौतें, उजड़े घर और सदमे में डूबी बस्तियाँ।
जब रिस्क को रोमांच की तरह पेश किया जाता है, तो हकीकत से रिश्ता टूटने लगता है। प्रदीप की मौत जैसी घटनाएँ एक दिन की खबर बन कर सोशल मीडिया फीड में दब जाती हैं।
असली रचनात्मकता जान लेवा नहीं होनी चाहिए। प्लेटफॉर्म्स को चाहिए कि वो खतरनाक कंटेंट को चिन्हित करें और उसकी पहुँच कम करें। क्रिएटर्स को भी ज़िम्मेदारी से काम लेना होगा—क्लिफ, रेलिंग, लहरों पर शूट करने से पहले एक पल रुकना ज़रूरी है। रील्स में सच्चे अनुभवों को सेलिब्रेट किया जाए, न कि बेवकूफ़ी भरे खतरे को।
आज भारत का डिजिटल परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। 2025 की शुरुआत में भारत में 806 मिलियन इंटरनेट यूज़र्स (55.3% आबादी) और 491 मिलियन सोशल मीडिया अकाउंट (33.7%) थे। सस्ता डेटा और युवा आबादी (औसत उम्र 28.8) इस क्रांति को रफ्तार दे रहे हैं।
इंस्टाग्राम रील्स और यूट्यूब शॉर्ट्स जैसे प्लेटफॉर्म्स छा गए हैं, जहां हर दिन औसतन 2 घंटे 28 मिनट भारतीय सोशल मीडिया पर बिता रहे हैं।
मगर एक सच्चाई यह भी है कि 65.5% सोशल मीडिया यूज़र्स पुरुष हैं—जो महिलाओं के लिए सांस्कृतिक और तकनीकी रुकावटों से जुड़े खतरे बढ़ाता है। ग्रामीण भारत (62.9% आबादी) अभी भी डिजिटल पहुँच से वंचित है।
भारत में कंटेंट की जंग तेज़ हो रही है। इंस्टाग्राम शहरी फैशन और ट्रेंड से चमक रहा है, वहीं यूट्यूब शॉर्ट्स धीमी लेकिन गहरी पकड़ बना रहा है, खासकर छोटे शहरों और गांवों में। मजे की बात है कि 70% नए इंटरनेट यूज़र्स हिंदी, तमिल, बांग्ला जैसी क्षेत्रीय भाषाओं में कंटेंट पसंद कर रहे हैं। देसी भाषाओं में विज्ञापन करने वाली कंपनियों को इंग्लिश-केंद्रित कंपनियों की तुलना में 40–60% ज़्यादा प्रॉफिट हो रहा है।
ShareChat, Moj, Josh जैसे प्लेटफॉर्म क्षेत्रीय क्रांति के अगुवा हैं। यूट्यूब और इंस्टा पर भी लोकल क्रिएटर्स की बाढ़ आ चुकी है। उदाहरण के लिए, Sudarshan AI Labs ने हिंदी, अवधी और भोजपुरी इंटरफेस लाकर यूज़र संतुष्टि में 40% बढ़ोतरी दर्ज की।
हाल की स्ट्डीज के मुताबिक भारत का Gen Z (1995–2009) व्यावहारिक तो है, पर तनावग्रस्त भी है। 28% को चिंता और 18% को सोशल मीडिया से तनाव होता है। 39% करियर के लिए नौकरी बदलने को तैयार हैं। 59% बचत कर रहे हैं और 46% स्टॉक्स में निवेश कर रहे हैं।
सोशल एक्टिविस्ट और कम्युनिकेशन ट्रेनर मुक्त गुप्ता के मुताबिक, “अब आ रही है Generation Beta (2025–2039):ये वो पीढ़ी है जो AI, स्मार्ट गैजेट्स और वर्चुअल रिएलिटी में जन्मेगी। यह पीढ़ी टिकाऊ विकास (sustainability) और वैश्विक सोच को प्राथमिकता देगी, जिससे ब्रांड्स को भी खुद को ढालना पड़ेगा।”
लेकिन चुनौतियाँ अभी बाकी हैं। 652 मिलियन भारतीय अब भी इंटरनेट से कटे हैं। स्वतंत्र अभिव्यक्ति और सुरक्षा में संतुलन जरूरी है। लेकिन भारत की डिजिटल क्रांति अब रुकने वाली नहीं है।लोकल भाषाओं का उभार, शॉर्ट वीडियो का बोलबाला और Gen Beta की दस्तक—ये भारत को ग्लोबल डिजिटल ट्रेंड्स का अगुवा बना सकते हैं।