तानाशाही बनाम सनक: ट्रम्प की टेक युद्ध नीति

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Caption: Jansatta

अनुराग पुनेठा

दिल्ली । आज, दुनिया भर में लोग डोनाल्ड ट्रम्प को पागल कह रहे हैं। लेकिन क्या वह वाकई पागल हैं? क्यों वह टेक जगत के दिग्गजों—मेटा, टेस्ला, गूगल, और अमेज़न—के खिलाफ तलवार उठा रहे हैं? क्यों वह अनधिकृत प्रवासियों को निशाना बना रहे हैं? क्यों वह एक ऐसी छवि बना रहे हैं, जो अमेरिकी राष्ट्रपतियों की परंपरागत छवि से बिल्कुल अलग है? क्या वह मूर्ख हैं, या शायद एक चतुर राजनेता, जो व्यवस्था को साफ करने, वोट जीतने, या असंभव को संभव करने के लिए सनक का सहारा ले रहे हैं? इतिहास गवाह है कि कभी-कभी असाधारण बदलाव के लिए पागलपन जरूरी है ।

याद कीजिए 20 जनवरी 2025 का दिन, जब वाशिंगटन डीसी में डोनाल्ड ट्रम्प ने 47वें अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। उनके सामने, उद्घाटन समारोह की पहली पंक्ति में, टेक जगत के सम्राट बैठे थे—एलन मस्क (टेस्ला और एक्स), मार्क ज़करबर्ग (मेटा), जेफ बेजोस (अमेज़न), टिम कुक (एप्पल), और सुंदर पिचाई (गूगल)। इन अरबपतियों ने ट्रम्प के 2024 अभियान और उद्घाटन के लिए लाखों-करोड़ों डॉलर बरसाए थे। मस्क ने 250 मिलियन डॉलर का दान दिया, ज़करबर्ग ने ट्रम्प के लिए भव्य रात्रिभोज आयोजित किया, और बेजोस, पिचाई, कुक जैसे दिग्गजों ने मार-ए-लागो में ट्रम्प की तारीफों के पुल बांधे। उनकी आँखों में उम्मीद थी—उम्मीद कि उनका धन और प्रभाव ट्रम्प को उनके अधीन कर लेगा। लेकिन शपथ के कुछ ही महीनों बाद, ट्रम्प ने इन टेक सम्राटों के खिलाफ तलवार उठा ली—टैरिफ, फंडिंग कटौती, और मेटा के खिलाफ एक ऐतिहासिक एंटीट्रस्ट मुकदमा। उपराष्ट्रपति जेडी वैन्स ने इसे समर्थन दिया, यह कहते हुए कि टेक कंपनियों की अनियंत्रित शक्ति लोकतंत्र को निगल रही है।

इतिहास गवाह है कि हर युग में तानाशाही नए रूप में जन्म लेती है। कभी यह राजा-महाराजा थे, कभी साम्राज्यवादी शक्तियां, और कभी विचारधाराओं के नाम पर सत्ताएं। 21वीं सदी में, तानाशाही का नया चेहरा हैं टेक कंपनियां। मेटा, गूगल, अमेज़न, और एक्स जैसी कंपनियां केवल व्यवसाय नहीं हैं; वे सूचना, विचार, और मानव चेतना के नियंत्रक हैं। वे तय करती हैं कि दुनिया क्या देखे, क्या सुने, और क्या सोचे। उनके पास डेटा का वह अथाह भंडार है, जो किसी भी सरकार से अधिक शक्तिशाली है।

इन टेक सम्राटों ने ट्रम्प के उद्घाटन में करोड़ों डॉलर इसलिए नहीं दिए कि वे उनके प्रशंसक थे। वे एक सौदा चाहते थे—उनका धन और प्रभाव ट्रम्प को उनके अधीन कर ले। वे चाहते थे कि ट्रम्प उनकी कंपनियों पर नियामक जांच को कम करे, एंटीट्रस्ट मुकदमों को दबाए, और उनके लिए अनुकूल नीतियां बनाए। यह मानव स्वभाव की पुरानी कमजोरी थी—धन से शक्ति खरीदने की कोशिश। लेकिन ट्रम्प ने इस सौदे को ठुकरा दिया। क्यों? क्या यह मूर्खता थी, या कुछ और?

इतिहास बताता है कि सबसे ताकतवर शक्तियों को चुनौती देने के लिए सनक चाहिए। रोम के सम्राटों के खिलाफ स्पार्टकस का विद्रोह, फ्रांसीसी क्रांति, या गांधी का ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सत्याग्रह—ये सभी पागलपन के कृत्य थे। कोई समझदार व्यक्ति इतनी विशाल शक्ति से नहीं टकराता। लेकिन ट्रम्प, जिन्हें दुनिया एक अप्रत्याशित और अस्थिर नेता मानती है, शायद इसी सनक से प्रेरित हैं।

ट्रम्प के पास वह है, जो टेक कंपनियों के पास नहीं—मानव की वह प्राचीन भावना, जो तानाशाहों से घृणा करती है। अमेरिकी जनता, और शायद पूरी दुनिया, टेक कंपनियों की बढ़ती शक्ति से असहज है। 2025 के प्यू रिसर्च सेंटर के सर्वेक्षण दिखाते हैं कि 70% से अधिक अमेरिकी मानते हैं कि टेक कंपनियां बहुत शक्तिशाली हैं। लोग उनकी सेंसरशिप से तंग हैं, उनके डेटा चोरी से डरे हुए हैं, और उनकी एकाधिकारवादी नीतियों से क्रुद्ध हैं।

यह गुस्सा केवल टेक कंपनियों तक सीमित नहीं है। अमेरिका में अनधिकृत प्रवासियों को लेकर भी यही भावना है। स्थानीय लोग महसूस करते हैं कि उनकी नौकरियां, उनके संसाधन, और उनकी सांस्कृतिक पहचान खतरे में है। भारत में, यूरोप में, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भी यही डर है—बाहरी लोग “हमारी जगह” ले रहे हैं। पिछले 10-15 सालों में नफरत अपराधों की बढ़ती घटनाएं—चाहे वह ऑस्ट्रेलिया में हो या न्यूजीलैंड में—इस डर का प्रतीक हैं। ट्रम्प ने इस वैश्विक असंतोष को पहचाना। वह टेक तानाशाहों और अनधिकृत प्रवासियों, दोनों को निशाना बनाकर, खुद को उस विद्रोही के रूप में पेश कर रहे हैं, जो जनता की आवाज बन रहा है।

नीत्शे ने कहा था कि जो लोग दुनिया को बदलते हैं, वे अक्सर पागल कहलाते हैं। ट्रम्प का टेक दिग्गजों और प्रवासियों के खिलाफ जाना एक ऐसा ही पागलपन है। वह एक ऐसी छवि बना रहे हैं, जो किसी भी पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति से अलग है—न तो परंपरागत, न ही राजनयिक। वह जानते हैं कि लोग व्यवस्था से तंग आ चुके हैं। टेक कंपनियां, जो सूचना और शक्ति का एक केंद्र बन गई हैं, और अनधिकृत प्रवासी, जो सांस्कृतिक और आर्थिक स्थिरता को चुनौती दे रहे हैं, दोनों ही इस व्यवस्था के प्रतीक हैं।

ट्रम्प का दर्शन या कहिए पागलपन जोखिम भरा है। यह अर्थव्यवस्था को अस्थिर कर सकता है, सामाजिक तनाव बढ़ा सकता है, और ट्रम्प को उनके सबसे बड़े समर्थकों से अलग कर सकता है। लेकिन ट्रम्प शायद मानते हैं कि यह सनक ही उन्हें इतिहास में अमर कर देगी।

लेकिन इस कहानी का अंत अभी अनिश्चित है। क्या ट्रम्प की सनक टेक तानाशाहों को झुका देगी, और प्रवास के सवाल को हल कर देगी? या उनके ये कदम सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता को जन्म देंगे? क्या यह मानवता की जीत होगी, या केवल शक्ति का एक और खेल? एक बात निश्चित है—यह गाथा वाशिंगटन की गलियों, सिलिकॉन वैली के गलियारों, और विश्व भर के उन समाजों में गूंजती रहेगी, जहां लोग अपनी जगह, अपनी पहचान, और अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे हैं। यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जिसने सनक को हथियार बनाया, और यह एक ऐसी कहानी है, जो हमेशा तानाशाही के खिलाफ उठ खड़ी होती है।

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