तेजस्वी का दावा है कि उन्होंने दिल्ली के प्रतिष्ठित डीपीएस, आरके पुरम में पढ़ाई छोड़ दी क्योंकि वे क्रिकेट में व्यस्त थे। लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह दावा उनकी शैक्षणिक असफलता को छिपाने का बहाना मात्र है। बिहार के एक प्रभावशाली यादव परिवार से होने के बावजूद, जहां उनके माता-पिता लालू प्रसाद और राबड़ी देवी दोनों मुख्यमंत्री रहे, तेजस्वी का क्रिकेट करियर भी कोई खास कमाल नहीं दिखा सका। उनकी आलोचना इस बात को लेकर भी होती है कि उन्हें बिहार की राजनीति थाली में सजाकर मिली, बिना किसी बड़े संघर्ष के। लालू प्रसाद ने अपने बेटे को ही उत्तराधिकारी चुना, जबकि आरजेडी में कई अन्य प्रतिभाशाली युवा नेता मौजूद हैं। यह परिवारवाद का स्पष्ट उदाहरण माना जाता है, जिससे पार्टी की “पिछड़ों की राजनीति” वाली छवि धूमिल होती है।
बिहार की जनता को डर है कि तेजस्वी की अनुभवहीनता और नेतृत्व में कमी राज्य के विकास को नुकसान पहुंचा सकती है। बिहार, जो पहले ही आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों से जूझ रहा है, को एक ऐसे नेता की जरूरत है जो विकास, शिक्षा, और रोजगार के क्षेत्र में ठोस कदम उठाए। लेकिन तेजस्वी के अब तक के प्रदर्शन को देखकर कई लोग संशय में हैं। उनकी रैलियों में जोश और युवा अपील तो दिखती है, लेकिन नीतिगत गहराई और दीर्घकालिक दृष्टिकोण का अभाव उनकी कमजोरी माना जाता है।
दूसरी ओर, आरजेडी के पास कई अन्य युवा नेता हैं, जो शायद अधिक प्रभावी साबित हो सकते हैं। पार्टी को चाहिए कि वह परिवारवाद से ऊपर उठकर इन नेताओं को मौका दे। तेजस्वी को पीछे कर नए चेहरों को सामने लाने से न केवल पार्टी की छवि सुधरेगी, बल्कि बिहार के विकास को भी नई गति मिल सकती है। अंततः, यह बिहार की जनता का हक है कि उन्हें ऐसा नेतृत्व मिले, जो उनके सपनों को साकार करे, न कि विकास का चक्का पंचर कर दे।