“शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास राष्ट्रीय शिक्षा नीति” के क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए नीति देश के लिए कैसे उपयोगी हो, इस दिशा में कार्य कर रहा है। 130 करोड़ जनसंख्या वाले देश में दूरदराज के विद्यालयों तक हम क्रियान्वयन के लिए विभिन्न आयामों पर विचारों को साझा कर रहे हैं। स्कूल लीडरशिप को कैसे प्रयोग में लाया जाए इसके लिए देश में जागरूकता की आवश्यकता है।” यह उद्गार शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की दो दिवसीय राष्ट्रीय शैक्षिक कार्यशाला का शुभारंभ करते हुए राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान परिषद एनसीईआरटी, नई दिल्ली के निदेशक प्रोफेसर श्रीधर श्रीवास्तव ने व्यक्त की।
कार्यशाला की प्रस्तावना रखते हुए शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी ने कहा कि विकट परिस्थितियों में भी न्यास का शिक्षा में सुधार का अभियान यज्ञ के रूप में रुकने वाला नहीं है। कार्यशाला में सभी प्रांतों के द्वारा विगत एक वर्ष में किए गए कार्यों की समीक्षा के साथ-साथ तीन महत्वपूर्ण सत्रों में न्यास के कार्यों, लक्ष्य, कार्यपद्धति एवं विभिन्न विषयों, आयामों तथा कार्य विभागों पर विस्तार से चर्चा हुई। कोरोना महामारी के दौरान भारत की शिक्षा-व्यवस्था में जिस वैकल्पिक व्यवस्था की आवश्यकता है, उस पर केंद्रित दो महत्वपूर्ण प्रस्तावों को चर्चा एवं विमर्श के तदुपरांत सर्व-सम्मति से पारित किया गया। कार्यशाला में 28 प्रांतों के 500 से अधिक प्रतिभागी आभासी माध्यम से जुड़े हुए हैं। प्रथम दिवस कार्यशाला का संचालन राजस्थान क्षेत्र के संयोजक डॉ. चंद्रशेखर ने किया।
“चीनी कोरोना महामारी के दौरान न्यास की कार्यशाला में भारतीय शिक्षा” विषयक प्रस्ताव में बताया गया है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की घोषणा एवं कोरोना महामारी के एक वर्ष पश्चात देश की शिक्षा व्यवस्था आकस्मिक रूप से व्यापक बदलाव से गुजर रही है। देश में शिक्षा के क्षेत्र में नए प्रयोग हुए हैं साथ ही शिक्षकों द्वारा भी नवाचार किए गए हैं। ऑनलाइन शिक्षण, पढ़ाने की प्रक्रिया, मूल्यांकन, परीक्षा प्रक्रिया आदि विषयों पर न्यास, शैक्षणिक संस्थाएँ तथा सरकार ने चुनौती को अवसर में बदलने का काम किया है। न्यास ने अपने इस प्रस्ताव में मिश्रित शिक्षा प्रणाली, पाठ्यक्रम में स्वास्थ्य एवं योग शिक्षा के समावेश करने का आग्रह किया है। सतत मूल्यांकन, 360 डिग्री मूल्यांकन की कार्य-योजना बनाने की बात कही है। तकनीक के प्रयोग हेतु शिक्षकों के प्रशिक्षण की भी मांग की गई है।
दूसरे प्रस्ताव में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की समीक्षा की बात रखी गई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बहुत सारी नई बातों एवं आयामों का समावेश किया गया है। उसके क्रियान्वयन में सरकार के साथ समाज का भी दायित्व है। देशभर के विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और विद्यालयों में क्रियान्वयन समितियों का गठन करना चाहिए, ऐसा आग्रह किया गया है। जिला स्तर की समितियाँ बनें, जो इसकी निगरानी एवं मार्गदर्शन कर सके। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन से शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन किया जा सकता है। इस हेतु सरकार के साथ-साथ समाज के बुद्धिजीवियों एवं शिक्षाविदों को साथ लेकर इस दिशा में सफलता प्राप्त की जा सकती है।