अब वह सारी कहानियां उनके सामने खड़े होकर सवाल पूछ रहीं हैं कि बताओ अब इस कृत्य के लिए तुम्हारे ज्ञान को क्या नाम दें? कहां से इम्पोर्ट किया है इतना ज्ञान, जहां से भी आया है, उस विश्वविद्यालय को क्या नाम दिया जाए।
तुम्हारे मोनोलॉग में संवाद के लिए कोई जगह नहीं। ऐसी एकपक्षीय टिप्पणियों को पत्रकारिता कहना ठीक नहीं। फिर क्या कहें?
वास्तव में पत्रकारिता के लिए यह चिंता और चिंतन दोनों का समय है कि कुछ सालों पहले तक भारतीय मीडिया में स्तम्भ कहे जाने वाले पत्रकार जब यू ट्यूब पर आकर किसी राजनीतिक दल के आईटी सेल की तरह काम करने लगे फिर सूचना के लिए आम आदमी किस पर विश्वास करे?