इसमें वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव पर दूरदर्शन स्टूडियो में कांग्रेस के गुंडों द्वारा हुए हमले को भी शामिल कर लीजिए। कांग्रेस नेता उदित राज तो इसके गवाह हैं। ऑपइंडियाकी नुपूर शर्मा को बंगाल पुलिस द्वारा लगातार परेशान किया जाता रहा। गैर वामपंथी पत्रकार ना प्रताड़ना के इन मुद्दों पर कभी एक हो पाए और ना यह अपने देश में चर्चा औरविमर्श का विषय बन पाया। मानों ‘कहने की आजादी का अधिकार‘ देश में विचारधारा विशेष के लोगों के लिए ही सुरक्षित है…
इन दिनों प्रेस कांफ्रेंस में कांग्रेस के बड़े नेता पवन खेड़ा धमकाने की भाषा इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन यह बात किसी चैनल की पैनल चर्चा में नहीं सुनाई पड़ती। खेड़ा जांच अधिकारियों को धमका देते हैं किएक-एक की फाइल खुलवाएंगे, हद्द तो तब हो गई जब प्रेस कांफ्रेंस में वे मीडिया को धमका रहे थे कि कांग्रेस सत्ता में आएगी तो उनकी मर्जी की खबर जिन्होंने नहीं चलवाई, उन पत्रकारों को मीडिया संस्थान सेआजाद करा देंगे। पवन खेड़ा की धमकियों का असर कुछ मीडिया संस्थान और एंकरों पर दिखाई भी देने लगा है। यह तय है कि कांग्रेस सरकार में नहीं आ रही लेकिन उसने धमकी और आक्रामक भाषा का इस्तेमालकरके एक भय का माहौल तो बना दिया है।
कांग्रेस अपने इतिहास के सबसे कमजोर दौर से गुजर रही है लेकिन वह अजीत अंजुम, आरफा खानम, राजदीप सरदेसाई, रवीश कुमार पांडेय, पुण्य प्रसून वाजपेयी, दीपक शर्मा, अभिसार शर्मा, साक्षी जोशी जैसेसमर्थकों के साथ मजबूती से खड़ी है। विश्लेषकों में आशुतोष गुप्ता, अभय दुबे, विनोद शर्मा, राहुल देव, प्रभु चावला, पंकज शर्मा जैसे विश्लेषक किसी हद्द तक जाकर यूं ही कांग्रेस को डिफेंड नहीं कर रहे हैं। कांग्रेसनेता और पूर्व पत्रकार सुप्रिया श्रीनेत जो इन दिनों कांग्रेस पार्टी में हैं, वह कांग्रेस में शामिल होने से पहले किस तरह की पत्रकार थीं, इस पर किसी छात्र को अध्ययन करना चाहिए। सुप्रिया का परिवार पुराना कांग्रेसीहै। फिर उनकी कांग्रेसोन्मुख पकत्रारिता ‘चरण चुंबक’ सिर्फ इसलिए नहीं कही जाएगी क्योंकि परिवार पहले से ही पार्टी की चरणों में बिछा हुआ था? इसका जवाब क्या सुप्रिया देंगी? सवाल और भी हैं, जैसेराजदीप और तृणमूल कांग्रेस से राज्यसभा सदस्य बनी सागरिका घोष की पत्रकारिता। प्रणॉय राय, बरखा दत्त और करण थापर की पत्रकारिता? क्या यही लोग थे भारत के प्रारंभिक गोदी मीडिया?
वैसे सुप्रिया की तारीफ इस बात के लिए की जानी चाहिए कि उन्होंने अपने साथ कांग्रेस आईटी सेल में काम करने वाले युवाओं से दिल्ली पुलिस द्वारा की गई पूछताछ पर प्रेस कांफ्रेंस कर किया। आम तौर पर नएकार्यकर्ताओं की राजनीतिक पार्टियों में उपेक्षा ही होती है। इन्हीं बातों से कांग्रेस पोषित सोशल मीडिया को बल मिलता है। उनके यू ट्यूबर बड़े से बड़ा खतरा मोल लेते हैं क्योंकि उनका मुकदमा लड़ने के लिएकपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे काबिल वकील कांग्रेस ने अपने पास रखे हैं। दूसरी तरफ अजीत भारती हों, नुपूर जे शर्मा हों या फिर रचित कौशिक सभी को अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ती है।
बात यहां कांग्रेस पोषित यू ट्यूबर बनाम भाजपा आईटी सेल तक महदूद नहीं है। इस बात को समझना होगा कि 10 साल की सरकार के दौरान गोदी मीडिया टर्म चिपकाने वाले संगठित थे। जिन पर यह आरोपलगा, वे कभी संगठन की ताकत समझ ही नहीं पाए। उन्होंने चुप्पी ओढ़ ली। कभी पलट कर जवाब नहीं दिया। उनकी इसी चुप्पी को सहमति मान ली गई। एक दो बार जवाब आया भी तो इतनी आवाज उसकीदबी हुई थी कि किसी ने ठीक से सुनी तक नहीं।
जब चौदह पत्रकारों का बायकॉट हुआ, वे सभी पत्रकार अलग—थलग पड़ गए। उस समय भी उनके साथ खड़े होने की कोई कोशिश नहीं हुई, ना पत्रकार समाज की तरफ से और ना ही नागरिक समाज की तरफ से।
अजीत अंजुम को लेकर एक यू ट्यूबर ने यू ट्यूब पर अपनी बात कहते हुए, कुछ तथ्यात्मक गलती कर दी। रातों रात अजीत अंजुम के साथ, कितना बड़ा समूह आ गया। यह अजीत अंजुम या राजीव शुक्ला/ News 24 की नहीं, बल्कि कांग्रेस इको सिस्टम की ताकत थी।
वह हर बार गायब होता है, जब किसी अमन चोपड़ा पर एफआईआर हो जाए, कैपिटल टीवी के मनीष कुमार को जब गिरफ्तार करने की कोशिश हो, रचित कौशिक को पंजाब पुलिस जब पकड़ कर ले जाए, रोहितसरदाना की मृत्यु पर एशियन ह्यूमन राइट कमीशन का एजेंट, उनकी बिटिया पर अभद्र टिप्पणी कर दे और सोशल मीडिया पर कांग्रेस इको सिस्टम द्वारा जश्न मनाया जाए, सुधीर चौधरी जैसे सम्मानित पत्रकार कोकांग्रेस पोषित पत्रकार तिहाड़ी बोल दें, अर्णब गोस्वामी को उनके घर से किसी खतरनाक अपराधी की तरह घसीट कर ले जाया जाए, उन्हें गिरफ्तार करने के लिए एन्काउंटर स्पेशलिस्ट को घर भेजा जाए, इतना हीनहीं, रुबिका लियाकत के लिए भाषा की सारी मर्यादा लांघ ली जाए।
इसमें वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव पर दूरदर्शन स्टूडियो में कांग्रेस के गुंडों द्वारा हुए हमले को भी शामिल कर लीजिए। कांग्रेस नेता उदित राज तो इसके गवाह हैं। ऑपइंडिया की नुपूर शर्मा को बंगाल पुलिस द्वारालगातार परेशान किया जाता रहा। गैर वामपंथी पत्रकार ना प्रताड़ना के इन मुद्दों पर कभी एक हो पाए और ना यह अपने देश में चर्चा और विमर्श का विषय बन पाया। मानों ‘कहने की आजादी का अधिकार’ देश मेंविचारधारा विशेष के लोगों के लिए ही सुरक्षित है।
दूसरी तरफ इस बात से भी इंकार कैसे कर सकते हैं कि इन सबके बीच सन्नाटा पीड़ित पक्ष के बीच होता है क्योंकि यहां एक दूसरे के साथ खड़े होने का साहस जुटाने को कोई तैयार नहीं है। वे अमीश देवगन हों, सुशांत सिन्हा हों या बृजेश सिंह। जिसे कांग्रेस पोषित पत्रकारों ने गोदी मीडिया नाम दिया है, वहां सभी अकेले हैं। वे संगठित हो नहीं पाए हैं। इनमे अधिक नाम उनके हैं, जो समाज से पूरी तरह कटे हुए हैं। सबसेलिब्रिटी हैं और सभी अलग-अलग खड़े हैं। उन मौकों पर भी साथ नहीं आते, जब इनके साथ वाले पर हमला होता है। कुछ तो यह मान कर चल रहे हैं कि ना जाने कब अपना स्टैंड बदलना पड़े। ऐसे में फालतू कास्यापा कौन पाले?
इतना कुछ सिर्फ इसलिए लिख दिया है ताकि सनद रहे। यह किसी के पक्ष या किसी के विरोध में मोर्चा खोलने के भाव से नहीं लिखा गया है। इसलिए जिस भाव से लिखा है, अपेक्षा है कि आप सब उसीभाव से पढ़ें। लिखते लिखते कुछ शेष रह गया हो तो उसे जरूर जोड़िए। हमें लिख भेजिए: mediainvite2017@gmail.com