ममता, लेफ्ट, कांग्रेस और संदेशखाली

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संदेशखाली का सच क्या है? संदेशखाली की सैकड़ों महिलाएं सड़कों पर हैं और लगातार विरोध-प्रदर्शन कर रही हैं। वर्षों से सुनियोजित उत्पीड़न सह रही महिलाओं ने अब ठान लिया है कि अब वह आगे इसे बर्दाश्त नहीं करेंगी। मामले की गहराई में जाने पर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। अपनी आपबीती सुनाते हुए महिलाओं ने बताया है कि उन्हें रात भर तृणमूल कांग्रेस के कार्यालय में रखा जाता और सुबह छोड़ा जाता। इस दौरान कुछ महिलाओं का यौन शोषण होता और कुछ से खाना बनाने जैसे काम करवाए जाते। यह सिलसिला पिछले 10-12 वर्षों से जारी है और पुलिस-प्रशासन अपराधियों के आगे नतमस्तक है। महिलाओं के सुनियोजित बलात्कार, सेक्स गुलामी, बंधुआ मजदूरी, हिंसा और भयदोहन के आरोपों का एक सच यह है कि पश्चिम बंगाल में हुए इस वीभत्स मामले पर तृणमूल कांग्रेस, लेफ्ट और कांग्रेस पार्टी सभी खामोश हैं। बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन प्रदेश में ममता बनर्जी को तानाशाह बताते हैं वहीं पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कहते हैं कि ऐसी चीज़ें होती रहती हैं। लेफ्ट पार्टियां देश और राज्य दोनों ही जगहों पर चुप हैं। अब प्रश्न यह है कि विरोधी पार्टी पर हमलावर होने की जगह आखिर इस चुप्पी की वजह क्या है।

इस सामूहिक चुप्पी की वजह है कि पश्चिम बंगाल में सत्तर के दशक से जारी हिंसा में इन तीनों दलों की हिस्सेदारी है। पश्चिम बंगाल में सत्तर के दशक में कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों की झड़पों से राजनीतिक हिंसा की शुरुआत हुई। 1977 में सीपीआई-एम ने प्रदेश में सरकार बनाने के बाद इस हिंसा को सुनियोजित रूप दिया। 1979 में पुलिस फायरिंग में बच्चों-महिलाओं सहित बंगाली दलित शरणार्थियों की मौत, 1982 में कोलकाता के आनंद मार्ग में 17 हिंदू संतों की पेट्रोल-केरोसिन से जलाकर निर्मम हत्या और फिर नंदीग्राम में जमीन अधिग्रहण का विरोध करने पर 50 से अधिक लोगों की मौत लेफ्ट सरकार में हिंसा के कुख्यात उदाहरण हैं। इन सब घटनाओं से लोगों का लेफ्ट के प्रति मोहभंग हो गया। नंदीग्राम के बाद जनता में तृणमूल कांग्रेस के प्रति उम्मीद जगी। लोगों ने लेफ्ट को हटाकर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को चुना लेकिन बंगाल के हिस्से निराशा ही आई। 2011 में तृणमूल की सरकार बनने के बाद बंगाल में हालात और तौर-तरीके नहीं बदले, बस हिंसा करने वाले लोग बदले। इसके बाद हरेक चुनाव के बाद तृणमूल की हिंसा का ग्राफ बढ़ता गया। पश्चिम बंगाल की राजनीति में तृणमूल के आतंक का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि पंचायत चुनावों में सत्ताधारी पार्टी के अलावा अन्य पार्टियों के उम्मीदवार अपना नामांकन नहीं भर पाते और चुनावों के बाद हिंसा बेहद आम बात है।

अब संदेशखाली में महिलाएं शोषण करने वाले गुंडों के खिलाफ सड़कों पर हैं। एक के बाद एक उत्पीड़न-शोषण के ऐसे मामले सामने आ रहे हैं कि मानो आईएसआईएस जैसा आतंक दोहराने की कोशिश की गई हो। इस पूरे घटनाक्रम का मुख्य आरोपी शाहजहां इतने बवाल के बाद भी पचास से ज्यादा दिन तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर रहा। उसकी गिरफ्तारी को भी कई लोग पुलिस और अपराधी की सेटिंग बता चुके हैं। कांग्रेस नेता अधीर ने ही इसे महज नौटंकी बताया है। फिर भी भाजपा के अलावा प्रदेश की सभी पार्टियां चुप हैं। अधीर बंगाल में बयान देकर विरोध की खानापूर्ति करते हैं लेकिन पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व चुप है।

यह चुप्पी बेवजह नहीं है। दरअसल पश्चिम बंगाल की राजनीतिक हिंसा में इन तीनों पार्टियों की हिस्सेदारी है और तीनों ही इसकी गुनहगार हैं। इन पार्टियों की मिलीभगत से बंगाल में आज सुनियोजित हिंसा, मुस्लिम मतों के लिए तुष्टिकरण और कट मनी का ऐसा ढांचा है जिसमें शाहजहां जैसे आरोपी बेखौफ हैं। उसकी गिरफ्तारी बेशक हो गई है लेकिन उसे सजा और पीड़ितों को न्याय दिलवाना बेहद मुश्किल है। शाहजहां की गिरफ्तारी भी सवालों के घेरे में है। अधीर रंजन का ही कहना है कि शाहजहां पहले फरार था, अब पुलिस की सुरक्षा में है।

क्या संदेशखाली को न्याय मिलेगा? इस प्रश्न का उत्तर भविष्य के गर्भ में है। बंगाल की पुलिस की अब तक की कारगुजारी से न्याय की उम्मीद नहीं जगती। फिर भी उत्तर प्रदेश और बिहार के उदाहरण अंधेरे में आशा की किरण जगाते हैं। बिहार कभी अपहरण उद्योग, चुनावी हिंसा, भ्रष्टाचार और जंगलराज का कुख्यात उदाहरण था लेकिन 2005 में नीतिश सरकार आने से हालात बदले और बिहार विकास के पायदान में भले ही देश से पीछे हो लेकिन कानून-व्यवस्था में बड़ा सुधार आया है। इसी तरह उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने माफिया राज और गुंडागर्दी को सख्ती से खत्म किया है। संदेशखाली को भी ममता और लेफ्ट के जंगलराज के बजाय सुशासन का इंतजार है।

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प्रेरणा कुमारी

प्रेरणा कुमारी

(प्रेरणा कुमारी, डीआरडीओ में काम कर चुकी हैं। वर्तमान में वह रक्षा राजनीति एवं समसामयिक विषयों पर लेख लिखती हैं। पिछले 5 वर्षों से वह प्रिंट और डिजिटल के लिए लेख, फीचर, साक्षात्कार और रिपोर्टिंग जैसे अलग-अलग भूमिकाओं में कार्य कर रही हैं। प्रेरणा जागरण न्यू मीडिया, नई दुनिया, पांचजन्य और वन इंडिया जैसे संस्थाओं के साथ जुड़ी रहीं हैं)

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