इंदुशेखर तत्पुरुष
हमारे यहाँ एक कहावत चलती है “सेंगरी का साँप करना”। लगभग उसी अर्थ में, जिसमें “तिल का ताड़ बनाना” कहा जाता है। लगता है सारा समाचार उद्योग इसी करतब पर टिका है। झूठ–साँच, उल्टा–सीधा किये बिना इनका गुजारा नहीं चलता।
संघ प्रमुख डॉ. मोहन जी भागवत के एक वक्तव्यांश को आधार बनाकर देश के नेताओं को 75 वर्ष की आयु के बाद रिटायर हो जाने की चर्चा जोरों से चल पड़ी। अपनी खबरखोजी प्रतिभा प्रदर्शित करने की हौंस के मारे लोग कह रहे हैं कि संघ प्रमुख भागवत जी ने इशारों–इशारों में वर्तमान राजनीति के लिए बहुत बड़ी बात कह दी।
सोशल मीडिया पर भी लिखने–पढ़ने वाले लोग इस भेड़चाल में ऐसे शामिल हो रहे हैं मानो उन्हें कोई गुप्त संदेश हाथ लग गया।
आश्चर्यजनक है मीडिया द्वारा सनसनी फैलाने की आपाधापी में यह अंध–बधिर पत्रकारिता। क्या आपको पक्का पता है कि भागवत जी ने क्या–क्या कहा था? और किस अवसर पर कहा था?
चलिए, जरा सम्पूर्ण घटना क्रम पर एक नजर डालते हैं।
हुआ यह कि संघ के पूज्य सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने 9 जुलाई 2025 को नागपुर के वनमती सभागृह में एक पुस्तक “Moropant Pingle : The Architect of Hindu Resurgence” का लोकार्पण किया था। Pinnacle Publications द्वारा प्रकाशित अंग्रेजी में लिखी गई यह पुस्तक मोरोपंत पिंगले के जीवन पर आधारित है। भागवत जी का लगभग 27 मिनिट का उद्बोधन आमूलाग्र मोरोपंत जी के व्यक्तित्व पर केंद्रित था। उन्होंने पूरे भाषण में एक पल भी इधर–उधर हुए बिना मोरोपंत के प्रेरक व्यक्तित्व का स्मरण किया। उनके विनोदी स्वभाव, कुशल संगठक, वीतरागी वृत्ति और आत्मविलोपी स्वभाव की चर्चा अनेक उदाहरणों के साथ की।
उन्होंने बताया कि कैसे वे गीता के सात्विक कर्ता “मुक्तसंगोऽनहंवादी…” के प्रतिरूप और कुशल संगठन कर्ता थे। गंभीर से गंभीर विषय पर भी कैसे तनावमुक्त कर योजना बनाते थे कि वह रोचक लगने लगता था। वृन्दावन की एक बैठक में उनके पिचहत्तर वर्ष पूर्ण होने पर जब शेषाद्रि जी ने उनको शॉल उढ़ाया तब भी उन्होंने वातावरण को विनोदमय बनाते हुए अपनी बात रखी थी। उन्होंने हँसते–हँसते कहा कि इसका अर्थ मैं समझता हूँ, अब आप बाजू हटिए, आपके पिचहत्तर वर्ष पूर्ण हो गए। भागवत जी द्वारा किया गया यह वर्णन पूर्णत: मोरोपंत जी की आत्मविलोपी प्रकृति और विनोदी प्रवृत्ति का एक सहज उदाहरण था, जिसमें खबरीलालों ने जाने क्या–क्या ढूँढ़ लिया, एक मोरोपंत जी को छोड़कर। इसी को कहते हैं, “Searching for a black cat in a dark room that isn’t even there.”
मानो संघ और वर्तमान सरकार से चिढ़े बैठे खबरशून्यता में डूब रहे लोगों को एक तिनका मिल गया हो।
ये तो प्रभु की कृपा है कि भाई लोगों को पूरा भाषण सुनने की फुर्सत नहीं मिली। वर्ना आसन्न बिहार चुनाव को लेकर भी कोई हैड लाइन उसमें निकल ही आती। भागवत जी ने वहाँ का भी एक किस्सा सुनाया ही था कि कैसे बिहार से एक प्रसिद्ध इतिहासकार नागपुर आए थे और ठसक के साथ पूछने लगे कि मोरोपन्त कहाँ है? मैं तीन दिन कार्यालय रुकूँगा।
वस्तुतः हर कहीं राजनैतिक अभिप्राय देखना, हर मुद्दे को सत्ता संघर्ष के रूप में गढ़ना, हर कहीं मोदी, योगी, राहुल, बीजेपी, कांग्रेस आदि ढूँढना हमारी मानसिक बीमारी बनती जा रही है। और दुर्भाग्य से मीडिया इसे अत्यधिक संक्रामक बनाकर भीषण रूप से भड़काता जा रहा है।
माना कि देश में राजनीति बहुत हावी है किन्तु समाज में आज भी बहुत कुछ राजनीति की परवाह किए बगैर घटित हो रहा है। देश में प्रतिदिन करोड़ों नागरिकों के हर्ष, विषाद, सुख, दुःख, हानि, लाभ, उत्सव, समारोह की घटनाएँ घटती हैं, जो जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। हमारी आत्मा से जुड़े कई प्रसंग होते हैं, जिनका दूर तक राजनीति से लेना–देना नहीं रहता। किन्तु हमारे पत्रकार वहाँ भी राजनीति सूँघने पहुँच जाते हैं। इसका ज्वलंत उदाहरण है यह पुस्तक लोकार्पण प्रसंग।
उचित तो यह होता कि भाई लोग इस कार्यक्रम की कुछ जानकारी भी ले लेते। कुछ मोरोपंत पिंगले के बारे में ही जान लेते कि संघ की आरम्भिक पीढ़ी के स्वयंसेवक
मोरोपंत पिंगले सन् 1941 से लेकर मृत्युपर्यंत अर्थात् 2003 तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक प्रचारक रहे। अपने तिरेसठ वर्षीय प्रचारक जीवन में मोरोपंत जी ने अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख, शारीरिक प्रमुख, प्रचारक प्रमुख और सह-सरकार्यवाह के रूप में अनेक महत्वपूर्ण दायित्व निभाए। संघ द्वारा चलाए गए एकमात्र देशव्यापी आंदोलन –राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन– के सूत्रधार मोरोपंत जी ही थे। वे श्रीराम शिलापूजन, एकात्मता रथयात्रा और आगे जो कुछ भी घटित हुआ, उसके रणनीतिकार थे। मोरोपंत जी उस टोली के सदस्य थे जिसने आपातकाल में बाहर रहकर संघ का नेतृत्व किया।
उस कार्यक्रम में भागवत जी ने कहा था कि जैसे डॉक्टर हेडगेवार जी के चरित्र को बार-बार पढ़ना चाहिए वैसे ही मोरोपंत जी का यह चरित्र पढ़ना चहिए।
अन्तिम बात यह कि भागवत जी ने पूरे उद्बोधन में प्रत्यक्ष या परोक्ष, एक शब्द भी वर्तमान राजनीति पर नहीं कहा। न अभिधा में, न लक्षणा–व्यंजना में। वस्तुत: वह पूरा आयोजन विशुद्ध आत्मीय और गैर राजनीतिक था; संघकार्य में अपना जीवन अर्पित कर देने वाले एक हुतात्मा को स्मरणांजलि का।