अंतरराष्ट्रीय मीडिया में पहलगाम की कवरेज

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Caption: नवजीवन

अमित/ मन

पिछले चौबीस घंटों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस दुर्दांत इस्लामिक आतंकी हमले की विवेचना किस प्रकार हुई है- उसका एक आंकलन पढ़िए।

हमले के दौरान अमेरिकी उप राष्ट्रपति जेडी वांस का भारतीय दौरा चल रहा है। कदाचित इसके चलते उन्होंने , राष्ट्रपति ट्रम्प ने बिना किसी शर्त के टोटल अमेरिकी सहायता देने का वायदा किया। इसके अलावा रूस, अरब, चीन आदि देशों ने भी शोक संदेश प्रेषित किए।

– सीएनएन , न्यू यॉर्क टाइम्स , वाशिंगटन पोस्ट आदि में ये नरसंहार मुख्य पेज तक नहीं आया। इन कांड को छोटे आर्टिकल के रूप में एक आम घटना की तरह समेत दिया गया। कहीं उल्लेख नहीं कि कत्लेआम धार्मिक पहचान की बिना पर किया गया था।
इस संदर्भ में वॉशिंगटन पोस्ट की दो बात अहम है। पहली- इस अखबार की “भारतीय” जर्नलिस्ट “राआना अयूब” का लेख मुख्य पेज पे है जिस में वो लिखती है कि जेडी वांस के लुभावने वायदों पर मत जाना, ट्रम्प की पालिसी भारत के विरुद्ध है। राआना अयूब का ये लेख आज के संस्करण में है। पहलगाम नरसंहार पे टोटल साइलेंस।

वॉशिंगटन पोस्ट के ही आज के संस्करण में वर्ल्ड नामक पन्ने पे इस घटना पे एक लेख है जिस में बताया गया कि कश्मीर में एक हमले में अनेक जाने चली गई और इस सब में अब्दुल वहीद नामक काशिमीरी आदमी ने बहादुरी दिखा कर अनेक जानें बचाई। लेख लिखने वाले दो लोग है: एक दीन के पाबंद और दूसरी सेक्युलरिज्म की चाशनी चखे हुए देहली की एक महिला पत्रकार ।

– पाकिस्तानी अंग्रेज़ी दैनिक डॉन चिंता व्यक्त करते लिखता है – भारत ने लाउड एंड क्लियर जवाब देने की क़सम खाई और इसलिए पाकिस्तान को सतर्क रहना चाहिए। हमारा मुल्क कॉर्नर में है। अख़बार ये भी बताता है कि ये हमला इसलिए हुआ था क्यूंकि पहलगाम में ग़ैर कश्मीरियों को बसाया जा रहा था।
– अल जज़ीरा अख़बार लिखता है कि कश्मीर में एक लोकल आज़ादी के चाहने वालों ने नया फ्रंट बनाया है जिन्होंने इस कांड को अंजाम दिया। जज़ीरा ये भी लिखता है कि मरने वाले लोग साधारण नागरिक नहीं थे- ये हाई प्रोफाइल सरकारी कर्मचारी थे जो किसी अभियान पर इधर आए थे और इसकी भनक इस लोकल फ्रंट को मिली जिसके चलते हत्याएं हुई।

नैरेटिव दुनिया में पैंठ बना चुका है कि ये एक नार्मल हमला था, एक्शन के बदले रिएक्शन था। इस नैरेटिव में धार्मिक पहचान पर मारे जाने वाला एंगल गायब है। अब भारत में भी यही नैरेटिव पकड़ बनाएगा या कहिये बना चुका है।

नरसंहार से पीड़ित हम नैरेटिव का पहला राउंड हार चुके है।

दुनिया को सच बताने का माद्दा, लोग और रिसोर्स हमारे पास नहीं है!

यही सहस्त्र वर्षों की सच्चाई है!

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