अस्पताल अगर धन से नहीं दिल से चलते, तो दुनिया का सबसे बड़ा अस्पताल होता डॉक्टर संदीप दवे का

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अनिल पुसदकर

देखते देखते 32 साल हो गए डॉ संदीप दवे की चिकित्सीय यात्रा को। बुढ़ापारा, बूढ़ा तालाब की ढलान वाली सड़क पर घर में शुरू हुआ रामकृष्ण अस्पताल अब मल्टी सुपर स्पेशलिटी हाई प्रोफाइल अस्पताल का रूप ले चुका है। वहां से रामकृष्ण अस्पताल के साथ केयर का जुड़ना और उसके बाद लगातार नए-नए लोगों का जुड़ना जारी रहा। एक भवन से शुरू होकर अस्पताल दूसरे भवन तक विस्तार के चुका है।

सफलता के रोज नए आयाम गढ़ता रहा डॉक्टर संदीप दवे। सादगी और विनम्रता की शानदार मिसाल है डॉक्टर संदीप। अहंकार तो कभी छू नहीं गया। और उसने कभी साथियों को दोस्तों को लगने भी नहीं दिया कि वह बहुत बड़ा डॉक्टर है। पर बुढ़ापारा से शुरू हुई चिकित्सा सेवा का स्वरूप समय-समय पर बदलता चला गया।

डॉ संदीप दवे और मेरा साथ होली क्रॉस बैरन बाजार स्कूल से है। बस एक बैच जूनियर डॉक्टर संदीप दवे ने न केवल स्कूल को, परिवार को,हम दोस्तों को, मोहल्ले को, शहर को, बल्कि राज्य को भी गौरवान्वित किया है।मेडिकल कॉलेज के खास दोस्तों के साथ शुरू हुई यात्रा तमाम अड़चनों को पार करते हुए आज 32 साल पूरे कर चुकी है।

डॉ संदीप के खास मित्र डॉ अजय सक्सेना डॉक्टर पंकज धाबलिया डॉक्टर जवाद नकवी, डॉ शरद चांडक डॉक्टर इनामुर रहमान डॉक्टर तामस्कर डॉ प्रफुल्ल अग्निहोत्री डॉ महेश सिन्हा, डॉ राजेश त्रिवेदी, डॉ राजेश गुप्ता,डॉ अब्बास नकवी किन-किन का नाम लिखूं समझ से परे है,इन्होंने डॉ संदीप का कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया और सफलता की रोज नहीं इबादत लिखते चले गए। फिर नए नए डॉक्टरो के जुड़ने का सिलसिला शुरू हुआ।बहुतों को तो मैं नहीं जानता, और उनका नाम भी नहीं सुना। लेकिन वे भी डॉ संदीप के साथ दिन रात मेहनत करके छत्तीसगढ़ के चिकित्सा जगत में रामकृष्ण अस्पताल का परचम फहरा रहे हैं ।

डॉ संदीप दवे के बुढ़ापारा वाले रामकृष्ण अस्पताल को हम सारे दोस्त भूलाए नहीं भूलते। वहां संदीप का अस्पताल जरूर छोटा था, लेकिन उसका दिल बहुत बड़ा था। दिल तो खैर आज भी बहुत बड़ा है, मगर ऐसा लगता है की अस्पताल की जिम्मेदारियां उससे ज्यादा बड़ी है।

संदीप यार, ये गरीब पेशेंट है। यार इसको देख लेना, बस इतना कहते थे। और मजाल कभी संदीप ने बिल की बात की हो। बहुत से गरीबों को तो फ्री में इलाज मिल जाता था संदीप के पास। पर ज्यों ज्यों संदीप का नाम बढ़ता गया, बुढ़ापारा वाला अस्पताल छोटा पड़ता गया। सीढ़ी के नीचे की जगह पर भी बेड लगाकर मरीज की सेवा करते देखा है हम लोगों ने। कभी किसी को निराश नहीं किया और ना बुढ़ापारा अस्पताल से कोई मरीज वापस गया। जैसी व्यवस्था होती थी, संदीप उनके लिए करता था।मगर अस्पताल जब छोटा पड़ने लगा तो विस्तार के पंख फड़फड़ाने लगे और वहां से शुरू हुई रामकृष्ण अस्पताल की केयर में बदलने की यात्रा,जो आज 32 साल पूरे कर चुकी है।
लिखने तो बहुत से किस्से से,मगर आज बस इतना ही।

बहुत बहुत बधाई डॉक्टर संदीप दवे।आप भी लगे तो आप भी बधाई दे सकते हैं।

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