बिहार स्कैन
देखिए ना संयोग या कहें प्रयोग? जब बिहार में चुनाव था, उप्र में हिंसा हुई। अब उप्र में चुनाव है तो बिहार से हिंसा की खबर आ गई। कांग्रेसी इको सिस्टम का एक खबरिया चैनल प्राइम टाइम में छात्रों को लगातार उकसाने का काम लंबे समय से कर ही रहा है। इस चैनल ने सीएए प्रदर्शन के दौरान कथित आंदोलनकर्मियों को हांगकांग में चल रहे प्रदर्शन पर कवरेज करके समझाया कि पुलिस की कार्रवाई पर जवाबी कार्रवाई के तरीके क्या हो सकते हैं? आज भी बात ‘इको सिस्टम’ की हो तो ‘वाम—कांग्रेसी इको सिस्टम’ का कोई जवाब नहीं
अभिधा-लक्षणा—व्यंजना जैसे शब्दों से जिनका पाला पहले नहीं पड़ा है, उन्हें हिन्दी साहित्य के किसी विद्यार्थी से मदद लेनी चाहिए। वामपंथी एक्टिविस्ट के पूरे एक्टिविज्म में आपको व्यंजना नजर आएगी। मतलब चुनाव बिहार में होगा तो मुद्दा नोएडा का अखलाक बनाया जाएगा। कथित तौर पर जिसके घर से गाय का मांस बरामद हुआ।
बात 2015 की है, बिहार में चुनाव का साल था। इस मामले में स्थानीय लोगों के विरोध और हाथापाई में दादरी के अखलाक की जान चली गई थी। इस पूरे मुद्दे को इस तरह ‘वामपंथोन्मुख कांग्रेसी इको सिस्टम मीडिया’ ने चलाया जैसे भारतीय जनता पार्टी ने बिहार का चुनाव हारने के लिए उत्तर प्रदेश में अखलाक पर पहले हमला करवाया हो। जिसमें उसकी जान चली गई और इस बात का नुकसान खुद बिहार चुनाव में पार्टी ने उठा लिया। इस तरह की चूक तो कल राजनीति में आई ‘आम आदमी पार्टी’ भी नहीं करेगी।
देखिए ना संयोग या कहें प्रयोग? जब बिहार में चुनाव था, उप्र में हिंसा हुई। अब उप्र में चुनाव है तो बिहार से हिंसा की खबर आ गई। कांग्रेसी इको सिस्टम का एक खबरिया चैनल प्राइम टाइम में छात्रों को लगातार उकसाने का काम लंबे समय से कर ही रहा है। इस चैनल ने सीएए प्रदर्शन के दौरान कथित आंदोलनकर्मियों को हांगकांग में चल रहे प्रदर्शन पर कवरेज करके समझाया कि पुलिस की कार्रवाई पर जवाबी कार्रवाई के तरीके क्या हो सकते हैं? आज भी बात ‘इको सिस्टम’ की हो तो ‘वाम—कांग्रेसी इको सिस्टम’ का कोई जवाब नहीं।
इस वक्त बिहार में जदयू—भाजपा की सरकार है लेकिन बिहार वाले खूब जानते हैं कि सरकार जदयू ही चला रही है। जिले से लेकर प्रखंड, पंचायत स्तर तक जदयू के नेताओं में जबर्दस्त ‘उछाल’ है। किसी भी प्रखंड, अंचल, अनुमंडल में आपको दो—चार जदयू नेता मिल ही जाएंगे। आप बिहार के किसी भी जिले के भाजपा जिलाध्यक्ष से बात करके इसकी पुष्टी कर सकते हैं। शर्त सिर्फ इतनी है कि बातचीत आफ द रिकॉर्ड हो।
बिहार के विश्वविद्यालयों में जब आइसा के कार्यकर्ताओं की थोक में नियुक्तियां हुई। उसी वक्त मुझे संदेह था कि यह सब बिहार में भाजपा विरोधी इको सिस्टम तैयार करने के लिए किया जा रहा है। उन नियुक्तियों में जेएनयू, आइसा की वह पूर्व छात्रा भी शामिल है, जिसने देवी मां सरस्वती पर एक अश्लील तुकबंदी की थी। जिसे सदी की महान कविता बनाकर सोशल मीडिया पर वाम इकोसिस्टम ने खू्ब प्रचारित किया और उनकी तुकबंदियों पर पुरस्कार भी दिलवाया।
किसी को भी नौकरी मिलना स्वागत योग्य कदम है। सरकारों को बिल्कुल विचारधारा की जगह योग्यता देखकर नियुक्ति देनी चाहिए लेकिन जिस तरह एक खास विचारधारा के लोगों की नियुक्ति बिहार के कॉलेजों में हुई। इसलिए इस तरफ ध्यान गया। अब लाल सलाम के गढ़ रहे गया में छात्रों द्वारा हिंसा हुई तो ऐसा लगा कि संदेह की पुष्टी हो रही है। एक बार जांच कर रही टीम को पूरे मामले को इस तरह भी देखना चाहिए। एनएसयूआई का नाम जरूर सामने आ रहा है इस मामले में लेकिन उनका मार्गदर्शन कौन कर रहा था? वे छात्र हिंसा में कटपुतली थे तो उनकी डोर किन लोगों ने पकड़ रखी थी। यह सामने आना बेहद जरूरी है।
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