बिपिन पांडेय
कुछ साल पहले जब कुणाल कामरा ने अर्नब गोस्वामी को प्लेन में हैकल किया था तो सारे वामपंथी लोगों ने उसका बीच – बचाव किया था। वरुण ग्रोवर ने समर्थन करते हुए कहा था – “अगर आपके घर में सांप निकल आए तो सांप – सांप चिल्लाने से अच्छा है कि सांप को मार दो, और उस दिन प्लेन में एक सांप तो बैठा ही था “।
आज संविधान की लाल कॉपी हाथ में लेकर कॉमेडी करने वाले कामरा ने कंगना रनौत के घर पर बुलडोजर चलने पर खुशी मनाई थी। शिव सेना के हारमोनियम संजय राउत के साथ संवाद में उन्होंने कहा था कि उन्हें कंगना के घर बुलडोजर चलता देख अच्छा लगा।
अर्नब और कंगना वाले मुद्दे पर बहुतेरे बुद्धिजीवियों ने उद्धव ठाकरे की बलैया लेने का और उन्हें संविधान रक्षक बनाने का काम किया था।
समय पलटा, सरकार बदली और अब कामरा की राजनैतिक कॉमेडी के चलते जब शिव सेना में से निकली शिव सेना ने कॉमेडी स्थल पर तोड़ – फोड़ की तो वही बुद्धिजीवी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पैरोकार बने घूमते दिख रहे हैं ।
वामपंथियों का पुराना शगल रहा है कि वे केवल अपनी अभिव्यक्ति को ही अभिव्यक्ति मानते हैं और बाकी की अभिव्यक्ति को मानवता के लिए खतरा । इस हिपोक्रेसी के आपको हजारों उदाहरण मिल जाएंगे।
पर क्या एक लोकतांत्रिक देश में सेलेक्टिव चुप्पी और सलेक्टिव समर्थन जायज है ?
इसका एकदम सीधा उत्तर होगा – नहीं, एकदम नहीं।
कॉमेडी करने पर, किताब लिखने पर, किसी अन्य दूसरे तरीके से अभिव्यक्त करने पर हिंसा और तोड़ – फोड़ का विरोध होना ही चाहिए।
जब भी नागरिक बनाम राज्य में किसी का पक्ष लेना हो तो हमें हमेशा नागरिक के पक्ष में खड़े दिखना चाहिए। इस आधार पर मै कुणाल कामरा के खिलाफ की गई हिंसा का विरोध करता हूं।
जहां तक कुणाल कामरा के कॉमेडी की बात है तो वह एक सस्ते और गालीबाज कॉमेडियन से ज्यादा कुछ भी नहीं हैं । हर तीसरी लाइन में गाली निकाले बिना खुद को अभिव्यक्त नहीं कर सकते।
पता नहीं किसी ने ध्यान दिया या नहीं पर विवादित वीडियो में ही एक जगह वो घोर असंवेदनशील बात कर रहे हैं।
वीडियो की शुरुआत में ही वे मुकेश अंबानी के बेटे के मोटापे, उनकी बहु के पतले शरीर और खोले गए अस्पताल को लेकर व्यंग करते हैं। सबको पता है कि अनंत अंबानी स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों से गुजर रहे हैं और चाहकर भी अपने मोटापे को कम नहीं कर सकते । ऐसे में उनके मोटापे का मजाक उड़ाया जाना कहां तक ठीक है ? निसंदेह यह घोर असंवेदनशीलता की निशानी है।
कुणाल कामरा और उनके जैसे तमाम लोग अक्सर कहते हैं कि वे सत्ता के विरोध में हैं।
पूछो कौन सी सत्ता के विरोध में हो ?
केवल केंद्र सरकार या हर राज्य सरकार ?
राज्य सरकारों के विरोध में हो तो क्या सभी राज्य सरकारों के विरोध में हो या जहां आपके पसंद की सरकार नहीं है उसके विरोध में भी हो ? ध्यान से देखने और समझने पर पता लगता है कि ये लोग उसी सत्ता का विरोध करते हैं जो कि पसंद की ना हो।
पसंद की सत्ता होने पर घर बुलडोज किए जाने पर ऑन कैमरा खुशी मनाते हैं। सांप को मार देने की बात करते हैं।
शायद इसी हिपोक्रेसी के चलते अब विभाजन रेखाएं और स्पष्ट एवं गहरी होती जा रही हैं। समय रहते चेतना होगा। अभिव्यक्ति की आजादी बचानी है, स्वतंत्रता, समानता , धर्म निरपेक्षता के लिए लड़ाई लड़नी है तो सबके लिए लड़नी होगी
खेमेबाजी से केवल और केवल नुकसान ही होगा.. बाकी जो है सो हैइये है….