MASSIVE 15-FOOT-LONG PYTHON RESCUED IN AGRA AFTER INTENSE OPERATION BY WILDLIFE SOS!

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In a dramatic and challenging rescue, a 15-foot-long Indian rock python (Python molurus) was safely extricated from beneath a sewage slab in Kanan Van Residency, Kalindi Vihar in Agra. The Wildlife SOS Rapid Response Unit, responding swiftly to distress calls from local residents, managed to safely relocate the snake, despite the presence of an overwhelming crowd of nearly 200 onlookers.

Wildlife SOS received multiple calls from Kanan Van Residency, Kalindi Vihar in Agra on the 24×7 emergency helpline (+91 9917109666) from concerned citizens reporting sightings of a massive 15-foot-long Indian rock python. A two-member rescue team, well-equipped, immediately reached the location. Upon arrival, they discovered the snake trapped beneath a sewage slab. The sheer size of the python made the rescue both complex and delicate.

The gathered crowd complicated the situation, making it difficult for the team to proceed without risking the safety of the snake. Thanks to prompt support from Agra Police and crowd management efforts by the Wildlife SOS team, the situation was brought under control, allowing the rescuers to focus on their task. After several hours of careful manoeuvring, the python was successfully extricated and later released into a forested area, ensuring the reptile was returned to its natural habitat unharmed.

Additionally, an 8-foot-long Indian rock python was rescued near Shahpur Farah, Mathura, after being spotted by farmers working by the roadside. A similar rescue occurred the following day, when a python was spotted near the boundary wall of a Bitumen Drum Filling facility in Dhana Teja. Both pythons were successfully rescued and released in a nearby forest area.

Kartick Satyanarayan, Co-founder and CEO of Wildlife SOS, remarked, “Rescuing such a huge snake in a crowded urban space is never easy. We are thankful for the cooperation from the local authorities and the police, which ensured that the rescue went smoothly.”

Baiju Raj M.V, Director- Conservation Projects of Wildlife SOS, emphasised, “The large crowd posed significant challenges to the operation but our team worked quickly under difficult conditions. We are glad the python could be returned to the wild safely.”

दुनिया मेरे आगे

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हिन्दी में होने वाली परिचर्चाएं और व्यानमालाओं में शामिल होने की इच्छा इसलिए नहीं होती क्योंकि बड़े से बड़े नाम वाले आयोजनों में भी हिन्दी के वक्ता तैयारी करके नहीं आते। दूसरी बात, वहां नए नाम तलाशने मुश्किल होते हैं। वही, वही नाम बार बार दुहराएं जाते हैं, जिनके पास कहने के लिए अब कुछ नया नहीं बचा है।

कई बार चर्चा टीवी फॉरमैट पर होने की वजह से तू तू, मैं मैं की स्थिति आ जाती है। वक्ताओं की संख्या अधिक होती है। सत्र का समय कम होता है। अर्थात वक्ता के पास कहने के लिए बहुत कुछ है लेकिन संचालक के पास देने के लिए समय नहीं है। हाल में ही वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी के संचालन में चल रही चर्चा से इसलिए निराश हुआ क्योंकि वहां जिस तरह के वक्ता थे और जैसा विषय रखा गया था। उसके हिसाब से उनके सत्र को अन्य सत्रों से अधिक समय दिया जाना चाहिए था। आयोजकों को ऐसी परिचर्चाओं की योजना कुछ इस तरह से बनानी चाहिए, जिसमें विषय पर वक्ता की राय स्पष्ट हो सके। टीवी डिबेट की तरह बहस होगी तो रटी हुई बात सामने आएगी। यदि सामने बैठकर दिल से दिल की बात होगी तो दिल की बात सामने आएगी। इसके लिए वक्ताओं को पर्याप्त समय देना होगा।

स्वतंत्र पत्रकार अवधेश कुमारजी की पत्नी कंचनाजी की सितम्बर 2003 में एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। उनकी याद में वे दिल्ली में कंचना स्मृति व्याख्यानमाला करते थे। उस व्याख्यानमाला का इंतजार होता था। वहां आने वाला वक्ता पूरी तैयारी के साथा आता था। वहां श्रवण गर्गजी, राधा भट्टजी, शांति भूषणजी, नीरजा चौधरीजी को सुनने का अवसर मिला। कितनी तैयारी होती थी वक्ताओं की, वह इसलिए क्योंकि अवधेशजी बहुत परख कर एक एक वक्ता का चयन करते थे। आने से पहले वक्ताओं से लंबी बातचीत करते थे। व्याख्यानमाला के हर एक पक्ष पर उनकी चौकस नजर होती थी।

इस आयोजन में वे सिर्फ मंच पर नहीं होते थे बाकि हर तरफ अवधेशजी ही अवधेशजी होते थे। एक दिन यह व्याख्यानमाला अवधेशजी को स्वास्थ संबंधी वजह से बंद करनी पड़ी।

दिल्ली में गांधी शांति प्रतिष्ठान दो अक्टूबर को एक व्याख्यान कराता था। जो अब भी होता है। लेकिन प्रशांतजी के आने के बाद प्रतिष्ठान की दशा और दिशा दोनों बदल गई है। गांधी शांति प्रतिष्ठान में लगा गांधी, मोहन दास का गांधी ना होकर राहुलजी में लगा गांधी प्रतीत होने लगा है। अब यह सब प्रतिष्ठान के दैनिक गतिविधियों से भी समझ में आता है। अब इसके दो अक्टुबर के व्याख्यान में पहले वाली बात नहीं रही। ना ‘गांधी मार्ग’ को ही गांधी शांति प्रतिष्ठान बचा पाया। जैसे राजेन्द्र यादव के जाने के बाद एक ठेकेदार के हाथ में आकर ‘हंस’ खत्म हो गया, उसी तरह अनुपम मिश्र के जाने के बाद दूसरे ठेकेदार के हाथ में ‘गांधी मार्ग’ का सत्यानाश हुआ।

आज जब यह सब लिख रहा हूं, हिन्दी की कोई एक व्याख्यानमाला याद नहीं कर पा रहा जिसका पूरे साल इंतजार किया जा सकता हो। जो उल्लेखनीय हो।

पिछले दिनों साहित्य अकादमी के सभागार में वरिष्ठ कवि रामदरश मिश्र केन्द्रित एक आयोजन हुआ था। उनके जीवन के सौ साल पूरे होने पर। वहां जाना और श्री मिश्र को सुनना। एक अलग तरह का अनुभव था।

इन दिनों हिन्दवी नाम के यू ट्यूब चैनल पर हिन्दी के विद्वानों से साक्षात्कारों की एक श्रृंखला जारी है। सच यह भी है कि साक्षात्कार लेते हुए साक्षात्कारकर्ता का वैचारिक पूर्वाग्रह बार बार जाहिर होता है, बावजूद इसके वह पसंद इसलिए है क्योंकि साक्षात्कार के लिए यहां अंजुम पूरी तैयारी के साथ आते हैं।।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने एंटी नक्सल ऑपेरशन पर देर रात ली उच्च-स्तरीय बैठक

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रायपुर: मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने आज देर रात यहां अपने निवास कार्यालय में नारायणपुर और दंतेवाड़ा जिलों की सीमा पर अबूझमाड़ क्षेत्र में सुरक्षाबलों और माओवादी आतंकियों के बीच हुई मुठभेड़ की घटना को लेकर उच्च-स्तरीय बैठक ली। बैठक में पुलिस महानिदेशक और मुख्यमंत्री सचिवालय के वरीष्ठ अधिकारी मौजूद रहे।

मुख्यमंत्री श्री साय ने बैठक में घटनाक्रम की विस्तार से जानकारी ली और माओवादी आतंकियों के विरुद्ध सफल ऑपेरशन पर सुरक्षाबलों के शौर्य तथा अदम्य साहस की सराहना करते हुए बड़ी कामयाबी के लिए उन्हें बधाई दी। मुख्यमंत्री ने बैठक के दौरान सुरक्षाबलों के जवानों का कुशल-क्षेम भी पूछा। उन्होंने पुलिस महानिदेशक को निर्देशित किया कि छत्तीसगढ़ में माओवादी आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई में कोई ढिलाई ना बरती जाए। साथ ही नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में जवानों के लिए आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था में कमी ना हो।

मुख्यमंत्री श्री साय को इस दौरान पुलिस के अधिकारियों ने बताया कि उक्त ऑपेरशन में अभी तक की सर्चिंग में 28 से ज्यादा माओवादियों के मारे जाने की सूचना मिली है। माओवादियों के खिलाफ ये देश का अब तक का सबसे सफल ऑपेरशन होगा। मुख्यमंत्री को बताया गया कि छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के सफाया के लिए एंटी नक्सल अभियान लगातार जारी है। सुरक्षाबलों के जवानों द्वारा माओवादियों का पूरे साहस के साथ डटकर मुकाबला किया जा रहा है।

मुख्यमंत्री ने बैठक में स्पष्ट तौर पर कहा कि छत्तीसगढ़ को नक्सलवाद से मुक्त करने हमारी सरकार दृढ़ संकल्पित है। आज बीजापुर में मैंने पुलिस जवानों और माओवादी आतंकवाद प्रभावित लोगों से मुलाकात की। उन सभी को अब यह विश्वास हो गया है कि इस हिंसा का अंत होने वाला है। बस्तर आज विकास और शांति की ओर तेजी से अग्रसर है। सरकार के कार्यों से बस्तर की जनता में नई आस जगी है। जनता में विश्वास बढ़ा है कि जल्द ही छत्तीसगढ़ माओवादी आतंकवाद से मुक्त होगा।

एक तरफ खूबसूरत ताज महल, दूसरी तरफ गंदा आगरा शहर

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शानदार ताजमहल के लिए प्रसिद्ध होने के बावजूद, आगरा स्वच्छता और सफाई की एक गंभीर समस्या से जूझ रहा है। डेली लगभग बारह सौ टन मलवा, घरेलू कूड़ा, औद्योगिक कचरा, धूल, पैकेजिंग मैटेरियल, आगरा शहर से निकलता है। इसका बड़ा भाग नगर निगम के ठेले उठाते हैं, बाकी नागरिक इधर उधर फैलाते हैं जो गाय, कुत्ते या सुअर और बंदरों के भरोसे पड़ा रहता है। कुछ हिस्सा यमुना नदी में पहुंचता है। अवैध स्लॉटर हाउसेस की निकली गंदगी अलग।

बाहर से आने वाले टूरिस्ट शहर की गंदगी के चौंकाने वाले विवरण साझा करते हैं, जिनमें बदसूरत कचरे से लेकर भयानक सार्वजनिक शौचालयों तक की शिकायतें शामिल हैं। जाहिर है आगरा को अपनी छवि सुधारने और पर्यटकों के लिए अपने आकर्षण को बनाए रखने के लिए सफाई की सख्त जरूरत है।

आगरा, जो कि प्रतिष्ठित ताजमहल तथा अन्य इमारतों की वजह से एक प्रमुख पर्यटन स्थल है, स्वच्छता और सफाई से संबंधित महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रहा है जो आगंतुकों के अनुभवों को नकारात्मक तरीके से प्रभावित करती हैं।

“मैंने आगरा से गंदा शहर कभी नहीं देखा। हर जगह मानव मल, गाय का गोबर या कुत्ते की गंदगी की बदबू आ रही है,” एक युवा फ्रांसीसी पर्यटक ने कहा। अमेरिका की लिंडा ने बताया कि सार्वजनिक शौचालय भयानक थे, और केवल होटल ने संतोषजनक सफाई स्तर दिखा। भिनभिनाती मक्खियां, खून चुसैया मच्छर, हर जगह पर्यटकों को परेशान करते हैं, लंदन से आए डेविस ने बताया।
कई अन्य पर्यटकों ने सर्वव्यापी गंदगी और बदबू की शिकायत की है। अधिकांश विदेशी पर्यटक शहर में प्रवेश करने से बचते हैं। गाइड उन्हें होटलों और स्मारकों तक ही सीमित रहने की सलाह देते हैं। केवल कुछ साहसी लोग ही कभी-कभी किनारी बाजार या संजय प्लेस जैसे बाजारों में देखे जा सकते हैं।

आगरा अक्षम कचरा प्रबंधन प्रणालियों से जूझ रहा है, जिसके कारण सार्वजनिक स्थानों पर कूड़ा-करकट और कचरे का ढेर लग जाता है। कचरे के उचित संग्रह, पृथक्करण और निपटान की कमी के कारण एक गंदा वातावरण बनता है जो पर्यटकों को आगरा दोबारा आने से हतोत्साहित करता है। “एक बार ही काफी है,” एक इतालवी जोड़े ने कहा।

हाल के वर्षों में, गंदगी साफ करने के बजाय, अधिकारियों ने बड़े पैमाने पर दीवार पेंटिंग का सहारा लिया है, जो लंबे समय तक बदसूरत निशानों को छिपा नहीं सकती। आगरा नगर निगम द्वारा कई डंप यार्ड को सुंदरता स्थलों या सेल्फी पॉइंट में बदल दिया गया है, अधिकारी कहते हैं कचरा निरंतर उठ रहा है और सफाई भी रेगुलरली हो रही है। लेकिन नागरिकों से इंटरैक्ट करने पर ये दावा अर्ध सत्य ही लगता है।

आगरा में कचरे के निपटान और उपचार के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचे की कमी है, जिसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक क्षेत्रों में कचरे के डिब्बे और बिखरे हुए कचरे का ढेर लग जाता है। उचित सुविधाओं के बिना, स्वच्छता और स्वच्छता मानकों को बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। हालांकि नगरपालिका अधिकारी स्वीकार करते हैं कि उनके पास काम के लिए पर्याप्त संसाधन हैं, लेकिन यात्रा लंबी और कठिन है। आगरा के नगर आयुक्त अंकित खंडेलवाल ने प्रणाली को सुव्यवस्थित करने के लिए कई ठोस उपाय किए हैं।

एक प्रमुख समस्या सड़कों पर घूमने वाले आवारा जानवरों का खतरा है। बंदर कचरे को बिखेरने में योगदान करते हैं और स्वच्छता के लिए खतरा पैदा करते हैं। आगरा शहर में आवारा जानवरों, गायों और सूअरों की उपस्थिति भी अप्रिय गंध का कारण बनती है और सार्वजनिक स्थानों की समग्र स्वच्छता को खराब करती है।

आगरा की सार्वजनिक शौचालय सुविधाएं अपर्याप्त रखरखाव और सफाई से पीड़ित हैं, जिसके कारण पर्यटकों के लिए अप्रिय अनुभव होते हैं। चोक या अस्वच्छ सार्वजनिक शौचालय शहर की धारणा को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकते हैं और उन्हें फिर से आने से हतोत्साहित कर सकते हैं। कुछ ढंग से निर्मित शौचालय बंद रहते हैं , खासतौर पर महिलाओं के लिए बने इज्जतघर, जबकि अधिकांश सड़क किनारे शौचालय शायद ही कभी धोए या कीटाणुरहित किए जाते हैं।

सबसे चुनौतीपूर्ण मुद्दा शहर के निवासियों में नागरिक भावना की कमी है। “अधिकांश लोग पान, तंबाकू या गुटखा का सेवन करते हैं, जो उन्हें कहीं भी थूकने के लिए मजबूर करता है। फिर सार्वजनिक स्थानों पर शौच करने का मुद्दा है। आप लोगों को खुले में पेशाब करते हुए देख सकते हैं। विदेशी पर्यटकों के लिए बहुत ही घृणित दृश्य है ये,” स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता पद्मिनी अय्यर कहती हैं।
कई अन्य शहरों की तरह, आगरा भी निवासियों और आगंतुकों के बीच जागरूकता और नागरिक जिम्मेदारी की कमी से संबंधित मुद्दों का सामना करता है। एक स्वच्छ वातावरण बनाए रखने के लिए स्वच्छता और उचित कचरा निपटान प्रथाओं की संस्कृति आवश्यक है जो पर्यटकों को आकर्षित करे।

आगरा नगर निगम कचरा प्रबंधन प्रणालियों में सुधार करने में मदद कर सकता है, जिसमें बेहतर संग्रह, पृथक्करण, पुनर्चक्रण और निपटान विधियाँ शामिल हैं। कुशल कचरा प्रबंधन के लिए बुनियादी ढांचे और प्रौद्योगिकी में निवेश शहर को स्वच्छ और पर्यटकों के लिए सुविधाजनक बनाए रखने में मदद कर सकता है।

संजय प्लेस, राजा की मंडी और हॉस्पिटल रोड जैसे व्यस्त बाजारों में शौचालय और कचरा निपटान इकाइयों जैसी सार्वजनिक सुविधाओं को अपग्रेड करना आगरा में स्वच्छता के स्तर को बढ़ा सकता है। यह सुनिश्चित करना कि सार्वजनिक स्थान अच्छी तरह से बनाए रखे गए हैं और आवश्यक सुविधाओं से सुसज्जित हैं, आगंतुकों के लिए एक अधिक सुखद अनुभव में योगदान कर सकते हैं।

आवारा जानवरों के प्रबंधन के लिए योजनाओं को लागू करने के लिए एक अच्छी तरह से समन्वित रणनीति, जैसे कि पशु आश्रय या गोद लेने के कार्यक्रम, शहर में स्वच्छता और स्वच्छंद घूमने वाले जानवरों के नकारात्मक प्रभावों को कम करने में मदद कर सकते हैं।
आगरा नगर निगम को निवासियों और पर्यटकों के बीच नागरिक जिम्मेदारी की भावना को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान चलाना चाहिए, बेहतर कचरा प्रबंधन प्रथाओं और स्वच्छता की आदतों को प्रोत्साहित करना चाहिए। स्वच्छता पहलों में स्थानीय समुदायों को शामिल करना, विशेष रूप से स्कूलों को, आगरा को स्वच्छ और अपीलिंग बनाने के लिए सामूहिक गर्व की भावना पैदा कर सकता है।
स्मार्ट सिटी मिशन परियोजनाओं के बावजूद, भारत के अधिकांश शहर स्वच्छता बनाए रखने की चुनौतियों को हल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

डॉ. हरेंद्र गुप्ता कहते हैं, “एक प्रमुख मुद्दा तेजी से शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि है, जिसके कारण नगरपालिका निकायों पर कचरा प्रबंधन जैसी बुनियादी सेवाएं प्रदान करने का भारी दबाव है। अपर्याप्त बुनियादी ढांचा, संसाधन और धन उनकी शहरों को स्वच्छ रखने के प्रयासों को और बाधित करते हैं।”

रिवर कनेक्ट अभियान के सदस्य, राहुल और दीपक राजपूत, महसूस करते हैं कि कचरा निपटान और स्वच्छता की भावना जन जन में जाग्रत करने के लिए एक सांस्कृतिक बदलाव की आवश्यकता है। समुदाय की सक्रिय भागीदारी और सहयोग के बिना, नगरपालिका निकाय सार्वजनिक क्षेत्रों में स्वच्छता बनाए रखने के लिए संघर्ष करते रहेंगे।

इसके अलावा, पर्यावरणविद् डॉ. देवाशीष भट्टाचार्य कहते हैं, “नगरपालिका निकायों के भीतर भ्रष्टाचार और जवाबदेही की कमी शहरों को स्वच्छ रखने में अक्षमता में योगदान करती है। अतीत में, स्वच्छता उद्देश्यों के लिए आवंटित धन के कुप्रबंधन के उदाहरण रहे हैं, जिससे स्वच्छता पहलों के प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न हुई है।”

आगरा में, स्वच्छता और कचरा प्रबंधन से संबंधित कानूनों और विनियमों के सख्त प्रवर्तन की आवश्यकता है। स्कूल शिक्षक डॉ. अनुभव कहते हैं, “निगम को कूड़ा-करकट, अवैध डंपिंग और सार्वजनिक स्थानों पर अतिक्रमण के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। सार्वजनिक जागरूकता अभियान और सामुदायिक जुड़ाव कार्यक्रम भी स्वच्छता की संस्कृति को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं।”
और साथ ही, जैसा कि डॉ. राजन किशोर कहते हैं, प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना भी आगरा में स्वच्छता में सुधार लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। स्मार्ट कचरा प्रबंधन प्रणालियों को लागू करना, नागरिक प्रतिक्रिया और शिकायतों के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म, और सूचित निर्णय लेने के लिए डेटा एनालिटिक्स का उपयोग स्वच्छता पहलों की दक्षता को बढ़ा सकता है।

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