हिन्दुओं के मुद्दे और मुसलमानों का तुष्टीकरण

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डा. चन्द्र प्रकाश सिंह

इतिहास साक्षी है कि हिन्दुओं के वोट पर खड़े हुए दल हिन्दुओं के लिए सबसे अधिक घातक बन जाते हैं। स्वराज के पूर्व भारत का हिन्दू समाज कांग्रेस को अपना मान कर कांग्रेस के साथ खड़ा हुआ, लेकिन इसकी बहुत बड़ी कीमत उसे चुकानी पड़ी, क्योंकि कांग्रेस आत्मकुंठा की शिकार हो गई और उसका यह निरन्तर प्रयत्न रहा कि हिन्दुओं का वोट तो उसे मिलता रहे लेकिन उसकी छवि सेक्युलर बनी रहे।

आज पुनः इतिहास की पुनरावृत्ति हो रही है। हिन्दुओं के वोट से जीतने वाला दल हिन्दुओं की प्रताड़ना पर एकदम संवेदन शून्य हो जाता है। बात चाहे पालघर में संन्यासियों की हत्या की हो या तिरंगा यात्रा निकालने वाले चंदन गुप्ता की हत्या की हो या कन्हैया लाल की हत्या की हो या मणिपुर में मारे जा रहे मैतेयी वैष्णवों की हो या पश्चिम बंगाल में अनवरत चल रहे हिंसा के ताण्डव की सरकार में बैठे लोग कुछ करने के बदले केवल प्रतिक्षा करो और देखो की नीति पर चलना ही अपना कर्त्तव्य समझ लिए हैं।

फिल्म और खेल जगत की छोटी-छोटी बातों पर ट्विट करने वाले सरकार के मुखिया हिन्दू से जुड़े किसी विषय पर ऐसे मौन हो जाते हैं कि मौनमोहन सिंह भी शर्मा जाएं।

हज से लेकर वक्फ बोर्ड तक ऐसी राजनीति की जा रही है जैसे सम्पूर्ण हिन्दू समाज मूर्ख हो। वक्फ़ एक्ट 2013 में संशोधित हुआ और उसके पश्चात उसने छह लाख एकड़ से बढ़ाकर अपनी नौ लाख एकड़ कर लिया लेकिन दस वर्षों तक स्पष्ट बहुमत की सरकार चुप रही, परन्तु जब अल्पमत की सरकार आयी तब संशोधन लाकर विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति को दे दिया गया। पिछले डेढ़ वर्षों से हिंसाग्रस्त मणिपुर जाने का समय नहीं मिला, जबकि यह मानव द्वारा उत्पन्न की गई विभीषिका है जिसको रोकना सरकार का दायित्व है, लेकिन वायनाड के प्राकृतिक आपदा में जाने के लिए तुरन्त समय मिल गया।

बांग्लादेश के हिन्दुओं के लिए कोई कठोर कदम उठाने की बात छोड़िए, अपनी ही सीमा में पश्चिम बंगाल में पिछले दस वर्षों से अनवरत हिंसा और बलात्कार के शिकार हिन्दुओं के लिए भी कुछ नहीं किया जा सका।
आज देश की सबसे बड़ी समस्या जनसंख्या नियंत्रण और घुसपैठ की है। पिछले दस वर्षों में महानगरों से लेकर छोटे-छोटे कस्बों तक में रोहिंग्या और बांग्लादेशियों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है। इन पर भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सका।

हिन्दुओं के कर से सूफी सर्किट बनाने और सूफिज्म को भारत की पहचान के रूप में प्रतिष्ठित करने का स्वप्न देखने वाले लोगों का इस समय मौन रह कर बचाव करने वाले लोगों से आने वाला भविष्य वैसा ही प्रश्न करेगा जैसा गांधी-नेहरू और कांग्रेस से किया जा रहा है।

भारत विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहेगा

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वित्तीय वर्ष 2024-25 की प्रथम तिमाही (अप्रेल-जून 2024) में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर के आंकडें जारी कर दिए गए हैं एवं हर्ष का विषय है कि भारत अभी भी विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बनी हुई है। वित्तीय वर्ष 2024-25 की प्रथम तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 6.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। जबकि वित्तीय वर्ष 2023-24 की प्रथम तिमाही (अप्रेल-जून 2023) में 8.2 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज हुई थी तथा पिछली तिमाही (जनवरी मार्च 2024) में वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत की रही थी। भारतीय रिजर्व बैंक ने अप्रेल-जून 2024 तिमाही में 7.1 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान लगाया था। पिछले लगातार 5 तिमाही के दौरान भारत के सकल घरेलू उत्पाद में यह सबसे कम वृद्धि दर है। हालांकि चीन में 4.7 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज हुई है तथा विश्व की अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि दर भारत की तुलना में अभी भी बहुत कम बनी हुई है।

भारत में वित्तीय वर्ष 2024-25 की प्रथम तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में कम हुई वृद्धि दर के पीछे कुछ महत्वपूर्ण कारण बताए गए है। प्रथम तो इस तिमाही में लोक सभा चुनाव सम्पन्न हुए हैं जिसके चलते आम जनता ने अपने खर्चे को रोक रखा था। साथ ही, लोक सभा चुनाव के समय केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा कोई भी बड़ा निर्णय नहीं लिया जा सकता है जिसके चलते सरकारों को अपने खर्चों को नियंत्रण में रखना होता है, इससे देश की विकास दर पर प्रभाव पड़ता है। दूसरे, इस तिमाही के दौरान देश में अत्यधिक गर्मी के चलते पर्यटन एवं कृषि के क्षेत्र में विकास दर अत्यधिक कम हो गई है। कृषि के क्षेत्र में वित्तीय वर्ष 2024-25 की प्रथम तिमाही में वृद्धि दर केवल 2 प्रतिशत की रही है जो पिछले वर्ष की इसी तिमाही में 3.7 प्रतिशत की रही थी। परंतु, वित्तीय वर्ष 2024-25 की द्वितीय तिमाही में मानसून ने लगभग पूरे देश में तेज गति पकड़ ली है अतः विभिन्न फसलों के बुआई के क्षेत्र में अच्छी वृद्धि दर्ज हुई है इसलिए वित्तीय वर्ष 2024-25 के द्वितीय एवं तृतीय तिमाही (जुलाई-सितम्बर एवं अक्टोबर-दिसम्बर 2024) में कृषि क्षेत्र में वृद्धि दर के आकर्षक रहने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। खरीफ मौसम की फसल के साथ ही अब रबी मौसम की फसल में भी अच्छी वृद्धि दर रहने की सम्भावना है क्योंकि देश के विभिन्न जलाशयों में पानी के संचयन में भारी वृद्धि दर्ज हुई है, जिसे कृषि क्षेत्र में सिंचाई के लिए उपयोग किया जा सकेगा। इन्हीं कारणों के चलते वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेन्सी मूडीज ने वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत के आर्थिक विकास दर के अपने अनुमान को बढ़ाकर 7.2 प्रतिशत कर दिया है, मूडीज ने पहिले यह अनुमान 6.8 प्रतिशत का लगाया था।

विनिर्माण इकाईयों द्वारा किए गए उत्पादन में अप्रेल-जून 2024 की तिमाही में 7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है जबकि पिछले वर्ष की इसी तिमाही में 5.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई थी। निर्माण के क्षेत्र में 8.6 प्रतिशत एवं सेवा के क्षेत्र में 7.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। ट्रेड, ट्रान्स्पोर्ट, होटल, टेलिकॉम की ग्रोथ 5.7 प्रतिशत की रही है। विनिर्माण, निर्माण एवं कोर इंडस्ट्री को मिलाकर बनने वाले सेकेण्डरी सेक्टर में वृद्धि दर बढ़ी है। वित्तीय वर्ष 2023-24 की प्रथम तिमाही में यह 5.9 प्रतिशत की रही थी जो वित्तीय वर्ष 2024-25 की प्रथम तिमाही में बढ़कर 8.4 प्रतिशत की हो गई है। यह वृद्धि दर देश में निजी उपभोग के बढ़ने की ओर इशारा कर रही है।

विश्व में बहुत लम्बे समय से चल रहे दो युद्धों के बीच भारत की उक्त आर्थिक विकास दर अच्छी विकास दर ही कही जाएगी। एक युद्ध तो रूस यूक्रेन के बीच चल रहा है एवं दूसरा इजराईल एवं हम्मास के बीच चल रहा है। इजराईल के साथ युद्ध में तो लेबनान एवं ईरान भी कूदने को तैयार बैठें हैं। साथ ही, यूरोपीयन देशों में कुछ देशों की आर्थिक विकास दर में कमी होती दिखाई दे रही है। जापान एवं अमेरिकी अर्थव्यवस्थाओं में भी विकास दर में कमी आंकी गई है। जर्मनी एवं चीन भी अपनी अपनी अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि दर को बढ़ाने हेतु संघर्ष करते हुए दिखाई दे रहे हैं। जापान एवं जर्मनी में यदि विकास की रफ्तार कम होती है एवं भारत की आर्थिक विकास दर यदि इसी रफ्तार से आगे बढ़ती है तो शीघ्र ही भारत, जापान एवं जर्मनी की अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़ते हुए विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। अभी भारत विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और जापान एवं जर्मनी ही भारतीय अर्थव्यवस्था से थोड़ा आगे बने हुए हैं।

अर्थ से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भारत सराहनीय प्रगति करता हुआ दिखाई दे रहा है। जैसे –
(1) पिछली तिमाही में भारत के निर्यात में 8.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है जबकि वैश्विक स्तर पर यह वृद्धि दर केवल एक प्रतिशत की रही है।

(2) बैंकों द्वारा प्रदान किए जा रहे ऋणों में लगातार वृद्धि दर 15 प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है, विशेष रूप से कृषि के क्षेत्र में ऋण की मांग (जुलाई 2024 में 18.1 प्रतिशत की वृद्धि दर) एवं विनिर्माण के क्षेत्र में ऋण की मांग (जुलाई 2024 में 10.2 प्रतिशत की वृद्धि दर) बनी हुई है। इससे देश की अर्थव्यवस्था के तेज गति से आगे बढ़ने के स्पष्ट संकेत दिखाई दे रहे हैं।

(3) वित्तीय वर्ष 2024-25 में जुलाई 2024 माह के अंत तक समाप्त अवधि के दौरान केंद्र सरकार की कुल आय 10.23 लाख करोड़ रुपए की रही है। यह वित्तीय वर्ष 2024-25 के आय के कुल बजट का 31.9 प्रतिशत है और इसमें 7.15 लाख करोड़ रुपए की करों की मद से आय तथा 3.01 लाख करोड़ रुपए की अन्य मदों से आय भी शामिल है।

(4) इस दौरान केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा भी नियंत्रण में रहा है एवं यह 2.77 लाख करोड़ रुपए तक सीमित रहा है जो वित्तीय वर्ष 2024-25 के कुल बजटीय घाटे का केवल 17.2 प्रतिशत ही है।

(5) इसी प्रकार विदेशी मुद्रा भंडार भी 23 अगस्त 2024 को समाप्त हुए सप्ताह में 702 करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 68,168 करोड़ अमेरिकी डॉलर के नए रिकार्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया है। पिछले सप्ताह में भी विदेशी मुद्रा भंडार 454 करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 67,466 करोड़ अमेरकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया था।

(6) जुलाई 2024 माह में 8 कोर सेक्टर (कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी प्रोडक्ट, उर्वरक, इस्पात, सिमेंट एवं बिजली उत्पादन के क्षेत्र) में वृद्धि दर 6.1 प्रतिशत की रही है जो जून 2024 माह में 5.1 प्रतिशत की रही थी।

(7) भारत में प्रत्येक 5 दिनों में एक बिलिनायर (भारतीय नागरिक जिसके पास 100 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की सम्पत्ति है) बन रहा है। 2014 में भारत में 109 बिलिनायर थे जो आज बढ़कर 334 हो गए हैं। जिनकी कुल सम्पत्ति 1.9 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की है जो सऊदी अरब के सकल घरेलू उत्पाद से भी अधिक है। इसी प्रकार, भारत के बिलिनायर की सम्पत्ति भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद के आधे से भी अधिक है। भारत की अर्थव्यवस्था तो प्रत्येक तिमाही में बढ़ रही है परंतु यदि यह सम्पत्ति केवल बिलिनायर की संख्या बढ़ाने के रूप में बढ़ रही है तो यह उचित नहीं कहा जा सकता है क्योंकि इससे तो देश में अमीरों एवं गरीबों के बीच में असमानता की खाई भी बढ़ती जा रही है और इस खाई को शीघ्र ही पाटने के प्रयास किए जाने चाहिए।

वित्तीय वर्ष 2024-25 की प्रथम तिमाही में कम हुई आर्थिक विकास दर को बढ़ाने के उद्देश्य से क्या अब भारतीय रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कमी कर सकता है। अब यह प्रश्न अर्थशास्त्रियों के मन में उभर रहा है। इस बीच अमेरिका में भी फेड रिजर्व के अध्यक्ष ने अमेरिका में ब्याज दरों को सितम्बर 2024 माह में कम करने के स्पष्ट संकेत दिए हैं।

नहीं रहे वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय

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प्रशांत पोल

दिल्ली। ‘उमेश जी नही रहे’ यह पढा और विश्वास ही नही हुआ। उनका जाना अत्यंत दुःखदायक और धक्कादायक हैं। पिछले, लगभग बारा – तेरह वर्षों से उनसे संपर्क था। संबंध था। मित्रता थी।

सदा हसतमुख चेहरा। बेबाकी से किसी बात का या किसी योजना का विश्लेषण। हम अनेकों बैठकों मे, कार्यक्रमों मे साथ रहे हैं। उनके सुझाव अत्यंत परिपक्व रहते थे।

मै उन्हे, हमारी एक आगामी बैठक की सूचना देने के लिए आज प्रातः फोन कर रहा था। वो ‘आऊट ऑफ रेंज’ बता रहा था। तब मुझे क्या मालूम, उमेश जी हम सब की रेंज से हमेशा के लिए बाहर हो गए हैं..!

*उमेश उपाध्याय* जी JNU के पास आऊट थे। बहुत अच्छे पत्रकार थे। लगभग बीस वर्ष पहले, उनका चेहरा हम मे से अनेकों ने Zee के समाचार चैनल पर देखा होगा। बीच मे दो – तीन वर्ष रायपुर भी रहे। अभी कुछ वर्षों से रिलायंस का मीडिया सम्हाल रहे थे।

मिट्टी से जुडे हुए, ठेठ और शुध्द हिंदी मे बात करने वाले, राष्ट्र प्रहरी उमेश जी का जाना, यह हम सभी के लिए बहुत बडी हानी हैं। आज जब राष्ट्र विरोधी नरेटिव और अपप्रचार का सामना करने के लिए गुणी और योग्य व्यक्तियों की आवश्यकता हैं, ऐसे मे उमेश जी का जाना अत्यंत दुःखद हैं।

परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना हैं, की वो उमेशजी को श्रीचरणों मे स्थान दे।

मेरे लिए नृत्य साधना है-डा समीक्षा शर्मा

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शशिप्रभा तिवारी

डा समीक्षा शर्मा कथक नृत्य के क्षेत्र में जाना माना नाम है। उन्होंने युवा कथक कलाकारों की श्रेणी में अपनी साधना से एक अलग पहचान बनाई है। एक ओर वह अच्छी नृत्यांगना हैं, वहीं दूसरी ओर शास्त्र पक्ष की भी अच्छी समझ रखती हैं। उन्होंने कथक पर उज्बेक भाषा में अनुवादित एक पुस्तक लिखी है। उनके कई शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। वह भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की ओर से उज्बेकिस्तान में सांस्कृतिक दूत के पद पर कार्य कर चुकी हैं। वह दूरदर्शन और आईसीसीआर द्वारा मान्यता प्राप्त कलाकार हैं। उन्हें इंडिया एक्सलेंस अवार्ड, अंतरराष्ट्रीय महिला एसोसिएशन सम्मान, ग्वालियर रत्न और नृत्य श्रृंगार मणि मिल चुका है। उन्हें खजुराहो नृत्य समारोह, कालिदास महोत्सव, सार्क तरोना लारी, बार्सिलोना उत्सव में शिरकत कर चुकी हैं।

पिछले दिनों इंडिया इंरनेशनल सेंटर में माॅनसून उत्सव 23 अगस्त को आयोजित था। इस समारोह में कथक नृत्यांगना समीक्षा शर्मा ने एकल नृत्य प्रस्तुत किया। इसमें उन्होंने नवाचार करते हुए, स्वरचित नृत्य रचना कृष्ण अंग बहुरंग पेश किया। इस प्रस्तुति का आरंभ उन्होंने खाटू श्याम की वंदना से किया। इसमें उन्होंने खाटू श्याम के अवतरण और उनके जीवन व वंदन की कथा की व्याख्या पेश किया। यह वंदना रचना ‘खाटू श्या मजी अरज सुनो जी‘ पर आधारित थी। इस भजन की रचना समीक्षा शर्मा ने किया था। यह राग मिश्र मांड और दीपचंदी ताल में निबद्ध था। नृत्यांगना समीक्षा शर्मा ने प्रसंग को बहुत सरलता और सहजता से पेश किया। ‘शीश के दानी‘ व ‘भंवर में नैया‘ बोल को भाव और नाव की गत व सरपण गति से मोहक अंदाज में दर्शाया।

उनकी दूसरी प्रस्तुति थी-कृष्ण अंग बहुरंग। इस की परिकल्पना उन्होंने अपने गुरु पंडित राजेंद्र गंगानी के मार्गदर्शन में किया था। इसमें सांभरी के पशु पक्ष्यिों के प्रति प्रेम और प्राकृतिक प्रेम को विशेष् तौर पर समाहित किया गया था।

इसमें ऋषि संाभ्री के मछली प्रेम को दर्शाया। इसी के अगले अंश में विष्णु अवतार कृष्ण द्वारा कालिया मर्दन प्रसंग को दिखाया। इसके लिए सूरदास के पद तांडव गति मुंडन पर नाचत गिरिधारी का चयन किया गया था। इस प्रसंग को दर्शाने के क्रम में नृत्यांगना समीक्षा शर्मा ने मृग, गज, व्याघ्र, मीन, सर्प हस्तकों के जरिए दर्शाते हुए, गतियों को प्रभावकारी अंदाज में पेश किया। नृत्य में भाव पक्ष का प्रयोग संुदर था। इसके साथ तिहाइयों, टुकड़ो और गतों को बखूबी पेश किया। नृत्य का समापन कलिया मर्दन प्रसंग के बाद बावन चक्कर को प्रस्तुत किया।

नृत्यांगना समीक्षा ने बताया कि मैं बचपन से ही नृत्य करती हूं। नृत्य करने से मुझे आत्मसंतुष्टि मिलती है। मैं समय के साथ अपना सफर करते हुए, धीरे-धीरे आगे बढ़ती रही हूं। इसके बावजूद लगता है कि अभी तो बहुत कुछ करना बाकी है।

इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के इस आयोजन के दौरान अपनी प्रस्तुति के संदर्भ में उन्होंने बताया कि नृत्य के देवता भगवान शिव यानी नटराज को माना जाता है। हमलोग कृष्ण को नटनागर मानते हैं। वह भी कालिया सर्प के फन पर खड़े होकर नृत्य करते हैं। इस प्रसंग को कथक और अन्य नृत्य शैलियों के कलाकार कालिया मर्दन प्रसंग में पेश करते हैं। मैं कृष्ण से जुडे इस प्रसंग को थोड़े अलग तरीके से पेश करना चाहती थी। इसी क्रम में मुझे स्रांभि ऋषि प्रसंग का पता चला। फिर मैं मथुरा स्थित जैत गांव में गई। वहां मैंने लोककथा सुनी। यहां कालिया सर्प के मूर्ति को देखा। वहां लोगों ने बताया कि अंग्रेजों ने कालिया सर्प की मूर्ति पऱ गोलियां चलाई थी, जिससे उनके सिर से खून निकला था और ढेर सारे सर्प बिल में से निकल कर आ गए थे। इससे मुझे एक नया विचार मिला और मैंने इसे अपने प्रस्तुति में शामिल किया।

पंडित राजेंद्र गंगानी कथक नृत्यांगना समीक्षा शर्मा के गुरु हैं। उनके संदर्भ में वह कहती हैं कि गुरु जी की सबसे बड़ी खूबी उनकी निरंतरता है। जब भी बात करिए तब वह सबसे पहले पूछते हैं कि आपने रियाज किया या नहीं। वह बिना नागा किए रोज रियाज करते हैं। उनकी यह बात मुझे बहुत प्रेरित करता है।

बहरहाल, इस समारोह में कथक नृत्यांगना समीक्षा शर्मा के साथ संगत करने वाले कलाकार थे-तबले पर निशित गंगानी, गायक शोएब हसन, पखावज पर महावीर गंगानीा, सारंगी पर अयूब खान और पढंत पर प्रवीण प्रसाद।

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