Journalist turned entrepreneur Geeta Sharma Ventures into Mexico’s Destination Wedding Market

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“Indian weddings in Mexico are an untapped market with immense potential,” Geeta Sharma observes. “While the trend of destination weddings in Mexico has been ongoing, there is a significant opportunity to cater specifically to Indian-origin couples, including North Indian, Sikh, Gujarati, and South Indian communities.”

Los Cabos, Mexico: Journalist turned entrepreneur Geeta Sharma, known for her extensive experience in entertainment journalism, is making a significant move into the booming destination wedding industry in Mexico. Having started her career with Zee News in 2000, Geeta’s journey has been marked by international travel, yoga instruction, and volunteer work with prominent figures like Sadhvi Ritambhara and Sri Sri Ravi Shankar ji. Now, she is poised to bring her unique expertise to the vibrant and culturally rich setting of Mexican weddings.

After returning to India in 2011 and resuming her role at Zee News, Geeta has continued to make waves in the entertainment industry. However, her latest venture represents a bold shift in focus. Geeta has identified Mexico as a prime location for Indian destination weddings, particularly in stunning locales like Los Cabos and Cancun, which boast crystal-clear blue waters and white sandy beaches.

“Indian weddings in Mexico are an untapped market with immense potential,” Geeta Sharma observes. “While the trend of destination weddings in Mexico has been ongoing, there is a significant opportunity to cater specifically to Indian-origin couples, including North Indian, Sikh, Gujarati, and South Indian communities.”

Geeta has noted that Indian weddings in Mexico are often organized by Spanish-speaking coordinators, but she sees a unique niche in offering services that are tailored to the cultural and emotional needs of Indian couples. She emphasizes the similarities between Indian and Mexican cultures, particularly in their shared values of family, emotional connections, and the belief in living for the moment.

Geeta’s move is greatly bolstered by her collaboration with Pradeep Agarwal, a cultural mogul who has spent the last 27 years tirelessly promoting Indian art and lifestyle in Mexico. From Indian art and artists to Ayurveda, Indian food, spices, and technology, Agarwal’s influence has been profound.

“You can take a man out of India but you cannot take India out of a man. Regardless of wherever I live, I have always taken great pride in promoting Indian culture,” rejoices Agarwal. “The country’s cultural similarities with India, such as a deep respect for family values and emotional connections, make it an ideal location.”

Geeta’s entry into the wedding industry follows her time in Mexico between 2008 and 2009, where she witnessed the rise of Indian weddings in the region. With her strong grasp of Indian culture and global entertainment, she is set to make a significant impact by offering unique wedding experiences that merge the best of both worlds. As more Indian couples seek picturesque locations for their big day, her entry into the Mexico destination wedding market is perfectly timed.

कंप्यूटर प्रोग्रामिंग हो या गणित के गूढ़ शोध संस्कृत के बिना कुछ भी संभव नहीं हैं

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आचार्य चंद्रशेखर शास्त्री

इस अवसर पर संस्कृत गीत प्रतियोगिता के बाल वर्ग में अंकित रावत प्रथम, तूलिका द्वितीय तथा प्रिया ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। संस्कृत वाचन प्रतियोगिता में देवांशी त्रिपाठी प्रथम, संस्कृति जोशी द्वितीय और वैदेही पाल ने तीसरा स्थान प्राप्त किया

गाजियाबाद। उत्तर प्रदेश शासन के भाषा विभाग के अंतर्गत उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान लखनऊ द्वारा समस्त प्रदेश में जनपदीय स्तर पर संस्कृत गीत, संस्कृत वाचन और संस्कृत सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता के अनुक्रम में जनपद गाजियाबाद में प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस अवसर पर आचार्य चंद्रशेखर शास्त्री ने कहा कि संस्कृत विश्व की एकमात्र भाषा है, जो साहित्य से विज्ञान तक प्रत्येक क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ भाषा है। कंप्यूटर की प्रोग्रामिंग हो या गणित के गूढ़ शोध, संस्कृत के बिना कुछ भी संभव नहीं हैं।

प्रतियोगिता में गाजियाबाद जनपद के 35 विद्यालयों के 250 विद्यार्थियों ने भाग लिया। कैमकुस कॉलेज ऑफ लॉ में आयोजित इस प्रतियोगिता का शुभारंभ, निर्णायक मंडल सदस्य आचार्य चंद्रशेखर शास्त्री, मुख्य अतिथि बी एल बत्रा, विशिष्ट अतिथि संस्कृत भारती के दिल्ली प्रांत के संघटन मंत्री विवेक कौशिक ने दीप प्रज्वलित करके किया।

इस अवसर पर संस्कृत गीत प्रतियोगिता के बाल वर्ग में अंकित रावत प्रथम, तूलिका द्वितीय तथा प्रिया ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। संस्कृत वाचन प्रतियोगिता में देवांशी त्रिपाठी प्रथम, संस्कृति जोशी द्वितीय और वैदेही पाल ने तीसरा स्थान प्राप्त किया। संस्कृत सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता में मृणालिनी शर्मा ने प्रथम, दीप्ति यादव ने द्वितीय तथा ईशान गर्ग ने तृतीय स्थान प्राप्त किया।

कैमकुस कॉलेज ऑफ लॉ के निदेशक करूणाकर शुक्ल ने सभी प्रतियोगी विद्यालयों का आभार व्यक्त किया और प्रतियोगिता में सम्मिलित विद्यार्थियों को प्रेरित किया। डॉ सीमा सिंह, डॉ जयप्रकाश मिश्र, नीतू मनकोटिया, नीलिमा, ऊषा त्यागी, इंदू शर्मा, अरुण मौर्य, अभय श्रीवास्तव, इंदू शर्मा, निवेदिता शर्मा आदि उपस्थित रहें। प्रतियोगिता के संयोजक दीपक मिश्र रहे और मंच संचालन कंचन ने किया।

26 अगस्त 1303 : सोलह हजार क्षत्राणियों और बच्चों के साथ चित्तौड़ में रानी पद्मावती का जौहर

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रानी पद्मावती सिंहल द्वीप की राजकुमारी थीं। उनका मूल नाम पद्मिनी था जो विवाह के बाद पद्मावती हुआ । सिंहलद्वीप का नाम अब श्रीलंका है। उनके पिता राजा चन्द्रसेन सिंहलद्वीप के शासक थे । उन्होंने अपनी बेटी पद्मिनी के विवाह के लिये स्वयंवर का आयोजन किया । यह समाचार पूरे भारत में आया । चित्तौड़ के राजा रतन सिंह भी स्वयंवर में भाग लेने सिंहलद्वीप पहुँचे। वहाँ पद्मिनी से विवाह के इच्छुक राजाओं की बल बुद्धि और कौशल की परीक्षा के लिये वन में आखेट की एक स्पर्धा आयोजित की गई थी

जयपुर: अपने स्वत्व और स्वाभिमान रक्षा के लिये क्षत्राणियों की अगुवाई में स्त्री बच्चों द्वारा स्वयं को अग्नि में समर्पित कर देने का इतिहास केवल भारत में मिलता है । इनमें सबसे अधिक शौर्य और मार्मिक प्रसंग है चित्तौड़ की रानी पद्मावती के जौहर का । जिसका उल्लेख प्रत्येक इतिहासकार ने किया है । इस इतिहास प्रसिद्ध जौहर पर सीरियल भी बने और फिल्में भी बनीं। राजस्थान की लोक गाथाओं में सर्वाधिक उल्लेख इसी जौहर का है ।
जौहर के विवरण भारत की अधिकांश रियासतों के इतिहास में मिलता है । जौहर की स्थिति तब बनती थी जब पराजय और समर्पण के अतिरिक्त सारे मार्ग बंद हो जाते थे । जौहर के सर्वाधिक प्रसंग राजस्थान के हैं । वहाँ कोई भी ऐसी रियासत नहीं जहाँ जौहर न हुआ हो । चित्तौड़ में सबसे पहला और सबसे बड़ा जौहर रानी पद्मावती का ही माना जाता है ।

रानी पद्मावती सिंहल द्वीप की राजकुमारी थीं। उनका मूल नाम पद्मिनी था जो विवाह के बाद पद्मावती हुआ । सिंहलद्वीप का नाम अब श्रीलंका है। उनके पिता राजा चन्द्रसेन सिंहलद्वीप के शासक थे । उन्होंने अपनी बेटी पद्मिनी के विवाह के लिये स्वयंवर का आयोजन किया । यह समाचार पूरे भारत में आया । चित्तौड़ के राजा रतन सिंह भी स्वयंवर में भाग लेने सिंहलद्वीप पहुँचे। वहाँ पद्मिनी से विवाह के इच्छुक राजाओं की बल बुद्धि और कौशल की परीक्षा के लिये वन में आखेट की एक स्पर्धा आयोजित की गई थी । जो राजा रतन सिंह ने जीती और राजकुमारी पद्मिनी से उनका विवाह हुआ । राजकुमारी पद्मिनी महारानी पद्मावती बनकर चितौड़ आ गईं।
उनके रूप गुण और राजा रतनसिंह के कौशल की चर्चा दूर दूर तक हुई यह दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी तक भी पहुँची। दिल्ली सल्तनत के दो हमले चित्तौड़ पर हो चुके थे । पर सफलता नहीं मिली थी । बल्कि गुजरात जाती दिल्ली सल्तनत की फौज से अपने क्षेत्र से होकर निकलने के लिये कर भी वसूला था । किन्तु गागरौन की सहायता के लिये चित्तौड़ की सेना गई थी जिससे शक्ति में कुछ गिरावट आई और दिल्ली ने तोपखाने की वृद्धि कर अपनी शक्ति बढ़ा ली थी । स्थिति का आकलन करके दिल्ली की फौजों ने चित्तौड़ पर हमला बोला । लगभग एक माह तक घेरा पड़ा रहा । किन्तु सफलता नहीं मिली ।

अंततः अलाउद्दीन खिलजी ने एक कुटिल चाल चली । कुछ भेंट के साथ समझौता प्रस्ताव भेजा और आग्रह किया कि रानी पद्मावती का चेहरा एक बार देखकर लौट जायेगा । राजा ने प्रस्ताव मान लिया । सुल्तान अपने कुछ विश्वस्त सहयोगियों के साथ भोजन पर आया । उसने आइने में रानी को देखा और चलने लगा । राजा शिष्टाचार वस किले के द्वार तक छोड़ने आये । सुल्तान अलाउद्दीन बहुत कुटिल था । वह किले में भीतर जाते समय द्वार पर कुछ सुरक्षा सैनिक छोड़ गया था । उसके इरादों की किसी को भनक तक न थी । जैसे ही राजा द्वार पर आये उनपर हमला हुआ और बंदी बना लिये गये । बंदी बनाकर सुल्तान अपने शिविर में ले आया । और रानी को समर्पण करने का प्रस्ताव भेजा । रानी ने सभासदों से परामर्श किया । गोरा और बादल जो रिश्ते में राजा भतीजे थे ने संघर्ष का बीड़ा उठाया । राजा को मुक्त कराने की योजना बनी । योजनानुसार सुल्तान को समाचार भेजा कि रानी अपनी सखी सहेलियों और सेविकाओं के साथ समर्पण करने आना चाहतीं हैं। रानी पद्मावती को प्राप्त करने को आतुर अलाउद्दीन ने सहमति दे दी । तैयारी की सूचना भी सुल्तान को मिली । और रानी की ओर से यह आग्रह भी किया गया कि वह अंतिम बार राजा से मिलना चाहतीं है अतएव राजा के बंदी शिविर से होकर सुल्तान के दरबार में हाजिर होंगी। यह सहमति भी मिल गई। चित्तौड़ में दो सौ डोले तैयार हुये । कहीं कहीं डोलों की यह संख्या 800 भी लिखी है । कुछ में तो दिखावे के विये महालाएँ थीं पर अधिकांश में लड़ाके नौजवान थे जो अपने राजा को कैद से छुड़ाने का संकल्प लेकर जा रहे थे ।

अंततः शिविर के कैदखाने के समीप जैसे ही ये डोले पहुँचे सभी सैनिक डोले पालकी से बाहर आये । यह छापामार लड़ाई थी जो गोरा बादल के नेतृत्व में लड़ी गई । किसी को अपने प्राणों का मोह न था वस राजा को मुक्त कराने का संकल्प था । इन सभी का बलिदान हो गया पर राजा मुक्त होकर सुरक्षित किले में पहुँच गये । यह 22 अगस्त 1303 का दिन था । राजा मुक्त होकर किले में आ तो गये थे । पर किले में राशन और सैन्य शक्ति दोनों का संकट था । सेना के अधिकांश प्रमुख सरदार राजा को मुक्त कराने की छापामार लड़ाई में बलिदान हो गये थे । इस घटना से बौखलाए अलाउद्दीन खिलजी का तोपखाना गरजने लगा । अंततः रानी द्वारा जौहरषऔर राजा रतनसिंह द्वारा शाका करने का निर्णय हुआ । 25 अगस्त 1303 से जौहर की तैयारी आरंभ हुई और रात को ज्वाला धधक उठी । पूरी रात किले के भीतर की सभी स्त्रियों ने अपने छोटे बच्चों को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश कर लिया । 26 अगस्त के सूर्योदय तक किले के भीतर सभी नारियाँ अपने छोटे बच्चों को लेकर अग्नि में समा गईं इनकी संख्या सोलह हजार बताई जाती है । 26 अगस्त को ही किले के द्वार खोल दिये गये । जितने सैनिक किले में थे वे सब राजा रतनसिंह के नेतृत्व में केशरिया पगड़ी बाँधकर निकल पड़े। भीषण युद्ध हुआ पर यह युद्ध दिन के तीसरे तक ही चल पाया । राजा रतनसिंह का बलिदान हो गया ।

इस प्रकार 26 अगस्त को राजा ने अपने स्वत्व और स्वाभिमान रक्षा केलिये अंतिम श्वाँस तक युद्ध किया वहीं रानी पद्मावती ने सोलह हजार स्त्री और बच्चों के साथ स्वयं को अग्नि में समर्पित कर दिया । इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी किले में घुसा उसे चारों ओर जल्ती अग्नि और राख के ढेर मिले । उसने किले में कत्लेआम का आदेश दिया । अलाउद्दीन खिलजी के इस अभियान का वर्णन अमीर खुसरो की रचना ‘खजाईन-उल-फुतूह’ (तारीखे अलाई) में मिलता है । इस विवरण के अनुसार खिलजी की फौज ने एक ही दिन में लगभग 30,000 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था । अलाउद्दीन खिलजी ने अपने बेटे खिज्र खाँ को चित्तौड़ का शासक नियुक्त किया और चित्तौड़ नाम ‘खिज्राबाद’ कर दिया था।

रानी पद्मावती का जौहर स्थल आज भी चित्तौड़ में स्थित है । वहाँ लोग जाते हैं। श्रृद्धा सै शीश झुकाते हैं तथा रानी को सती देवी मानकर अपनी इच्छा पूर्ति की प्रार्थना करते हैं।

दलित हितैषी बनने का पाखंड

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महेंद्र शुक्ला

संविधान की प्रति लिऐ इस व्यक्ती का नाम राहुल गांधी जाती ब्राह्मण बताते है आज जिस बेशर्मी से ये संविधान की प्रति हाथ में ले कर खड़ा है वो इसकी पारिवारिक धूर्तता का एक उदाहरण है, ये वो लोग है जिन्होंने संविधान निर्माता बाबा साहिब को उनके जीते जी उनको सदन में प्रवेश नही करने दिया , बाबा साहिब आजाद भारत के सर्वोच्च सदन में आने की अपनी प्रबल इक्षा लिए इस दुनियां से विदा हो गए, नेहरू के धन बल और षड्यंत्रों का शिकार बने पहला चुनाव बाबा साहिब के पीए को ही खरीद लिया नेहरू ने और बाबा साहिब के खिलाफ खड़ा करा दिया और दलित समाज को खटा खट टाइप योजनाओं (फर्जी टाइप) से बरगला कर भ्रमित करने के सफल हो गए।

इसी सीट पर पुनः उप चुनाव हो गए पूरे देश की नज़र थी बाबा साहिब की जीत पर की वे जीते और उस आजाद भारत के पहले सदन की गरिमा बढ़ाए जिसका संविधान उन होने रचा पर पुनः कॉन्ग्रेस पार्टी और नेहरु ने उनको जीत से वंचित किया समाज को भ्रमित कर बाबा साहिब 15 हजार वोट से चुनाव हार गए और अपनो के बीच ! समाज खटा खट योजनाओं के लालच में फस गया जेसे आज जिसने ओबीसी समाज से आने वाले सीता राम केसरी को अध्यक्ष रहते सोनिया माता को अध्यक्षा बनाने के लिए अपमान पूर्वक कार्यलय के बाहर फिकवा दिया।

ये उस परिवार से है जिसने बाबा साहिब को इतना अपमानित किया के उनको1951 में सदन से दुखी और अपमानित हो कर इस्तीफा देना पड़ा और बेशर्मी की सीमा पार करते हुवे उनके त्याग पत्र को भी पीएमओ ऑफिस से गायब करवा दिया ताकी आने वाली पीढ़ी को अंबेडकर का दर्द तक न पता चले।

जितना अपमान हो सकता था दलित समाज से आए इस महापुरुष का नेहरू ने उनके मरते दम तक किया यही नहीं रुकी धूर्त परिवार की धूर्तता संविधान की हत्या इसी परिवार ने इमरजेंसी लागा कर की और उसकी मूल आत्मा तक को बदल डाला। ये वही लोग हैं जिन्होंने 2019 तक कश्मीर में संविधान लागू नहीं होने दिया आज आजादी की 77 साल बाद कश्मीर में त्रि स्तरीय पंचायत व्यवस्था के अंतर्गत चुनाव संपन्न होने जा रहे ये लोकतंत्र और संविधान स्थापना का एक बहुत बड़ा कार्य है जिसके आप हम गवाह बनेंगे।

और इसी व्यक्ती ने आकर फीर खुली घोषणा की है चुनाव जीते तो फीर इस संविधान को उखाड़ फेकेंगे और धारा 370 वा 35A पुनः स्थापित करेगे ताकी फिर इस देश में दो विधान और दो प्रधान और दो निशान हो सके।

दलित समाज के लिए अमानवीय व्यवस्था को आजादी के बाद 2019 तक इस परिवार ने समर्थन और ताकत दी 35A के माध्यम से जिसके तहत ~
दलित समाज का बच्चा सिर्फ कूड़ा उठाने की नौकरी ही कर सकता है दूसरे किसी विभाग में आवेदन भी नही कर सकता और आज ये पाखंडी दलित हितैषी बना है खटा खट अपमानित करने का कोई मौका जाने नही देता अभी हाल बयान दिया मिस यूनिवर्स मिस इंडिया कोइ दलित लडकी नही बनी ।

ये कह कर हीन भाव का और कुंठा का मानसिक अपमान का भाव ही पैदा कर रहा है जरूरत है इस के असली चेहरे को समझने की ये न दलित हितैषी है न देश का हितैषी ये धूर्त परिवार की परम्परा का एक संस्करण है जिसको पप्पू कहते है।

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