क्रांतिकारी बीनादास स्वतंत्रता के बाद गुमनाम

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रमेश शर्मा

स्वतंत्रता के जो सुनहरे दिन हम आज देख रहे हैं उसके पीछे कितने बलिदान हुये और कितने बलिदानियों की क्या गति बनीं इसका आज की पीढ़ी को होश तक नहीं ।

ऐसी ही बलिदानी हैं क्राँतिकारी बीनादास । जिन्होंने बंगाल के अत्याचारी गवर्नर स्टेनली को गोली मारी थी, पर निशाना चूक गया था । वे नौ साल कैद में रही । रिहाई के बाद भी विभिन्न आंदोलनों में जेल गयीं लेकिन स्वतंत्रता के बाद उनका जीवन भयानक कष्ट में बीता । जीवन यापन के लिये भिक्षावृत्ति तक करनी पड़ी । स्वतंत्रता के बाद किसी ने उनकी खबर नहीं ली। उन्होंने अपना पूरा जीवन स्वाधीनता संघर्ष को अर्पण कर दिया था। उन्होंने सशस्त्र संघर्ष में भी भाग लिया और अहिंसक आंदोलन में भी । किन्तु स्वतंत्रता के बाद उनके सामने अपने जीवन जीने के लिये ही नहीं रोटी तक का संकट आ गया था। पेट भरने के लिये भिक्षावृत्ति भी की और अंत में सड़क के किनारे लावारिश अवस्था में अपने प्राण त्यागे।

ऐसी जीवट क्राँतिकारी बीणादास का जन्म 24 अगस्त 1911 को बंगाल के कृष्ण नगर में हुआ। परिवार भारतीय परंपराओं और संस्कृति से जुड़ा था। पिता माधवदास शिक्षक थे माता सरला देवी भी देश सेवा में लगीं थीं। माता सरला देवी ने 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध मे हुये आँदोलन में हिस्सा लिया था । फिर वे कांग्रेस की भी सदस्य रहीं । इस प्रकार बीणादास पर बचपन से ही भारत की स्वतंत्रता का भाव प्रबल हो गया था । पर उन दिनों काँग्रेस में पूर्ण स्वतंत्रता पर मतभेद थे । एक वर्ग पूर्ण स्वाधीनता के लिये संघर्ष करने के पक्ष में था और दूसरा पक्ष पहले नागरिक अधिकार और सम्मान के आँदोलन के पक्ष में था । इससे परिवार अहिसंक आँदोलन के विचार से दूर हुआ और क्राँतिकारी आँदोलन के समीप आ गया । इस नाते बीनादास का सम्पर्क भी क्राँतिकारियों से बन गया । और वे क्राँतिकारी आंदोलन से जुड़ गयीं । उनकी बड़ी बहन कल्याणी देवी भी क्रांति कारी आंदोलन से जुड़ी थी ।
उन दिनों बंगाल में अंग्रेज गवर्नर स्टेनली जैक्सन भारतीयों पर अपनी क्रूरता के लिये जाना जाता था । विशेषकर किशोरियों के अपहरण और उस पर कार्यवाही न होने की घटनाएँ बढ़ीं। तब क्राँतिकारियों ने गवर्नर स्टैनली को मारने की योजना बनाई और यह काम बीणादास को सौंपा। वह 6 फरवरी 1932 का दिन था । गवर्नर स्टैनली जेक्सन कलकत्ता विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में आया । बीनादास अपनी डिग्री लेने मंच पर गयीं और रिवाल्वर निकालकर गोली चला दी । लेकिन निशाना चूक गया ।

गवर्नर तुरन्त जमीन पर लेट गया और गवर्नर के पास खड़े सोहरावर्दी ने लपक कर बीणादास को गर्दन से पकड़ कर रिवाल्वर वाला हाथ ऊपर कर दियाश। बीणादास तब तक गोलियाँ चलातीं रहीं जब तक रिवाल्वर में गोलियाँ समाप्त न हो गई। उन्होंने कुल पाँच फायर किये । बंदी बना लीं गईं जेल में भारी प्रताड़ना झेली । पर उन्होंने किसी क्राँतिकारी का न कोई नाम बताया और न कोई सुराग न दिया । उन्हे दस वर्ष सजा हुई । किन्तु द्वितीय विश्व युद्ध की पृष्ट भूमि में जो सामूहिक रिहाई हुई उसका लाभ बीणादास को भी मिला और वे नौ वर्ष में ही रिहा हो गई। जेल का जीवन यातनाओं में ही बीता । जब रिहा हुई तब शरीर बहुत कमजोर हो गया था पर उनका मनोबल कमजोर न हुआ था । उनकी रिहाई 1941 में हुई । जेल से लौटकर वे कांग्रेस की सदस्य बन गई और विभिन्न आदोलनों में हिस्सा लेने लगीं। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में वे फिर जेल गयीं । 1947 में विवाह किया पर पति की मृत्यु जल्दी हो गयी । वे ऋषिकेश चलीं गयीं । उनका परिवार उजड गया था । माता पिता दुनियाँ छोड़ चुके थे । बड़ी बहन ने भी जेल की यातनाओं में प्राण त्याग दिये थे । पति की मृत्यु के बाद पति के परिवार ने नहीं स्वीकारा। उनके पास आजीविका का संकट था । इसलिये ऋषिकेश चलीं गई। वहाँ गुमनामी में रहीं । जीवन चलाने केलिये सड़क के किनारे बैठकर भिक्षा याचना करतीं और 26 दिसम्बर 1986 को सड़क के किनारे ही गुमनामी में ही प्राण त्याग दिये । उनके शव को पहले लावारिश रूप में ही रखा गया । उनकी गठरी की तलाशी में कागज मिले । पहचान हुई उन कागजातों के सत्यापन में महीनों लगे तब पहचान मिली । तब तक लावारिश के रूप में ही उनके शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया था । जब पहचान मिली तब तक बहुत देर हो चुकी थी । और वे समाचारपत्र की एक छोटी सी खबर में सिमट गईं थीं।

आज के कलाकार उन्नति मिश्रा, कथक नृत्यांगना

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शशिप्रभा तिवारी

युवा कथक नृत्यांगना उन्नति मिश्रा को कला विरासत में अपनी मां से मिली है। कथक नृत्यांगना उर्मिला शर्मा के सानिध्य में उन्नति ने बचपन से ही कथक नृत्य सीखना आरंभ कर दिया था। वह पांच साल की उम्र से कथक नृत्य सीख रही हैं। जब कभी मौका मिला तब विभिन्न मंचों पर वह नृत्य प्रस्तुति देती रहीं हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी से बतौर बाल कलाकार कई पुरस्कार भी मिला है। बहरहाल, इनदिनों वह कथक नृत्य सीख रहीं हैं और अपनी औपचारिक शिक्षा को जारी रखी हुई हैं। वह भविष्य में एक बेहतरीन नृत्यांगना बनना चाहती हैं। प्रस्तुत है, उनसे बातचीत के कुछ अंश प्रस्तुत है-

आपने कथक नृत्य को क्यों चुना?

उन्नति-दरअसल, मेरी मम्मी कथक नृत्यांगना हैं। उन्होंने कथक सम्राट पंडित बिरजू महाराज जी से सीखा। मैंने बचपन से ही कथक नृत्य ही देखा। हमारे घर में बहुत से कलाकारों का आना-जाना भी होता रहता है। उन्हें यह नृत्य करते देखती रही हूं। मेरी मम्मी ने आधुनिक लखनऊ घराने के कथक नृत्य के जनक ईश्वरी प्रसाद जी और उनके पैतृक निवास हंडिया के संदर्भ में शोध कार्य किया है। वहां हर साल हमलोग हंडिया माटी महोत्सव का आयोजन करते हैं। इसमें देश-विदेश से कलाकार परफाॅर्मेंस देने आते हैं। शायद, उन्हीं सब से प्रभावित होकर मैं इस ओर प्रेरित होती गई।

आप कथक सम्राट पंडित बिरजू महाराज को कैसे मिलीं?

उन्नति-यह हमारा सौभाग्य है कि हमारे घर महाराज जी का कई बार आना हुआ। मम्मी ने प्रयाग में कथक केंद्र की स्थापना की है। वहां बच्चों से मिलने के लिए भी महाराज जी आए। जब हमलोग दिल्ली जाते थे, तब मेरी गुरु व मम्मी हमें उनसे मिलाने के लिए जरूर ले जाती थीं। मुझे याद है कि हमारी पहली घंुघरू को खरीदने के लिए उन्होंने आशीर्वाद स्वरूप मम्मी को कुछ पैसे भी दिए थे। अंतिम बार हमलोग 2021 में दिल्ली में उनके निवास पर मिलने गए थे। उस समय उन्होंने मेरे डांस का वीडियो देखकर बोला था कि मेरा आशीर्वाद है, तुम अच्छी कलाकार बनोगी। हमलोग को देखकर महाराज जी बहुत खुश होते थे। क्या पता था कि यह उनसे अंतिम बार मुलाकात हो रही है।

आप ने किन कथक कलाकारों की प्रस्तुतियों को देखा है?

उन्नति-मैं दिल्ली और लखनऊ में महाराज जी को नृत्य करते देखीं हूं। आज भी जब भी मन करता है या कुछ देखना-समझना होता है तब यूट्यूब में उनके वीडियो देखती हूं। उनका नृत्य देखकर आश्चर्य होता है कि ऐसी तिहाइयां, अनूठे तोड़े-टुकड़े वह बना कर चले गए। उनको देखते रहिए और रोज सीखते रहिए। उसका कोई अंत ही नहीं है। मम्मी का नृत्य भी मुझे बहुत अपील करता है। वह जब नृत्य करती हैं, तो लगता है बस उनको देखती रहूं। उन्होंने बहुत मेहनत किया है। वह बताती हैं कि दिल्ली कथक केंद्र में वह सीखतीं थीं, उनदिनों छह-सात घंटे लगातार रियाज करती थीं। वैसे पंडित राममोहन महाराज जी का कथक नृत्य मुझे अच्छा लगता है। रूद्र शंकर, सौरव-गौरव बंधु, आकांक्षा श्रीवास्तव और अनुकृति विश्वकर्मा से भी मैंने बहुत कुछ सीखा है।

आपका यादगार परफाॅर्मेंंस कौन सा है?

उन्नति-मैं अपनी मम्मी के ग्रुप के साथ ही नृत्य करती हूं। कई बार मैं सोलो डंास करती हूं। मम्मी इसके लिए बहुत पें्ररित करती हैं। उन्ही के ग्रुप के साथ समुद्र मंथन, रामोत्सव, शिव सती, कृष्ण लीला, निझर्णि महोत्सव आदि में नृत्य किया है। दूरदर्शन के लिए भी काम किया है। हमें कुंभ जैसे आयोजन में कथक नृत्य करने का अवसर मिला। हाल ही में, द्रौपदी नृत्य नाटिका में मैंने द्रौपदी की भूमिका को निभाया। इसमें डांस, अभिनय और संवाद सब कुछ करना था। नृत्य करते हुए, द्रौपदी की भावनाओं को अपने भीतर महसूस की। उसके दर्द, उदासी, हताशा, निराशा को समझते हुए, नृत्य करते हुए, मेरे आंसू बहने लगे। जब मंच से उतरी तो सबने मेरी तारीफ की। मेरी को-डांसर्स ने मुझे गले से लगा लिया। वह दिन मुझे कभी भूलता नहीं।

क्या अमेरिकी षडयंत्र का शिकार हुआ बांग्लादेश?

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जिस सेंट मार्टिन द्वीप पर अमेरिका कब्जा करना चाहता है, यह द्वीप कभी भारत का ही हिस्सा हुआ करता था। जिसे बंटवारे के समय भारत ने पूर्वी पाकिस्तान को दे दिया था। दूसरी तरफ अमेरिका 1955 से ही इस द्वीप को हथियाने की कोशिश कर रहा है। 1955 से 2024 के बीच उसने बांग्लादेश से इसे लीज पर लेने के कई प्रयास किए

बांग्लादेश की निवर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना ने 05 अगस्त 2024 को इस्तीफा दे दिया, क्योंकि प्रदर्शनकारियों की बड़ी भीड़ ने उनके सरकारी आवास को घेर लिया था। वह सोमवार का दिन था, जब उनके इस्तीफे की घोषणा सेना प्रमुख वकर-उज-जमा ने की थी। उसी दिन, जब हालात नियंत्रण में दिखाई नहीं दिए, शेख हसीना एक अराजक माहौल से खुद को बचाकर भारत आईं, पहले इस यात्रा के लिए उन्होंने कार का इस्तेमाल किया, फिर हेलीकॉप्टर और अंत में विमान से वे दिल्ली के पास गाजियाबाद के हिंडन एयरपोर्ट पर उतरी।

युवा पत्रकार सुभाष यादव बताते हैं कि 05 अगस्त की ही शाम जब वे दिल्ली के रायसीना रोड़ स्थित प्रेस क्लब आफ इंडिया पहुंचे तो वहां जश्न का माहौल था। बांग्लादेश में फैली अराजकता और शेख हसीना की विदाई पर वहां विचारधारा विशेष के पत्रकार मिठाई बांट रहे थे। सुभाष को यह देखकर हैरानी हुई कि प्रेस क्लब में लगी बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीर को उस दिन अपनी जगह से हटा दिया गया था। सुभाष ने एक जागरूक पत्रकार का कर्तव्य निभाते हुए, तस्वीर हटाने से खाली हुई जगह और उस खाली जगह के नीचे लगे नेम प्लेट की तस्वीर मोबाइल में कैप्चर करके टवीट किया। उन्होंने अपने टवीट में प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, विदेश मंत्री, बांग्लादेश उच्चायोग, प्रेस क्लब आफ इंडिया, प्रेस काउंसिल आफ इंडिया जैसे तमाम संस्थाओं को टैग करके अपनी आपत्ति दर्ज कराई। उनकी आपत्ति ने काम किया और प्रेस क्लब में शेख मुजीबुर की तस्वीर फिर अपनी जगह पर लगा दी गई।

इस बात पर हर एक भारतीय को विचार करना चाहिए कि यदि बांग्लादेश का विद्रोह शेख हसीना के खिलाफ था। फिर उसे खत्म हो जाना चाहिए था। शेख हसीना तो विद्रोह के डर से देश छोड़ गईं थी। प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा भी दे दिया था। शेख हसीना इस्तीफा दे देने के बाद बांग्लादेश की प्रधानमंत्री भी नहीं थी। सत्ता की बागडोर उनके हाथों से लेकर नए हाथों में सौंप दी गई थी।

यदि हिंसा की वजह शेख हसीना नहीं, बल्कि आरक्षण का विरोध था। उस विरोध में पब्लिक बेकाबू हुई तो आरक्षण भी समाप्त हो गया था। फिर भी हिंसा नहीं रूकी। इस पूरी हिंसा के लिए बांग्लादेश के हिन्दू तो बिल्कुल जिम्मेवार नहीं थे फिर यह हिंसा अचानक हिंदुओं के खिलाफ क्यों बढ़ गई?

हजारों लाखों हिन्दू बांग्लादेश में सड़क पर आने को मजबूर क्यों हुए? दुख की बात है कि बांग्लादेश के हिन्दुओं को भारतीय हिन्दूओं से कोई विशेष समर्थन नहीं मिला। आनंद बाजार पत्रिका (एबीपी) न्यूज चैनल के एंकर संदीप चौधरी ने अपने शो में उन हिन्दुओं के लिए इसलिए सहानुभूति ना रखने की अपील कर दी क्योंकि वे तो बांग्लादेशी हिन्दू हैं। उनकी इस बात में हां में हां मिलाने वाले पत्रकार दीबांग थे। ऐसा लग रहा था कि बांग्लादेश के हिन्दू अकेले छोड़ दिए गए हैं मरने के लिए। वहां हमला करने वाला उनकी जाति नहीं पूछ रहा था। उसके लिए हिन्दू होना ही हमला करने के लिए पर्याप्त कारण था।

अकेले पड़े बांग्लादेश के हिन्दुओं ने मुश्किल समय में हार नहीं मानी और वे एक जुट होकर ढाका की सड़कों पर उतरे। उन्होंने दुनिया भर के हिन्दुओं को संदेश दिया कि जातियों में बंटकर रहने से बार बार मारे जाएंगे। इसलिए अपनी पहचान सनातनी हिन्दू की होनी चाहिए। हिन्दू होना ही दुनिया भर में बसे 125 करोड़ हिन्दुओं की पहचान होनी चाहिए।

बांग्लादेश से जान बचाकर भारत की तरफ भागकर आए हजारों हिन्दू सीमा पर रोक दिए गए। वहां से भागकर आई शेख हसीना को भारत में प्रवेश मिल गया। उन्होंने बांग्लादेश के नागरिकों और अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के नाम एक कथित चिटठी लिखी है। जिसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि यदि वे अमेरिका को बांग्लादेश का सेंट मार्टिन द्वीप देने को तैयार हो जाती तो बांग्लादेश में उनकी सरकार बच जाती। उन्हें बांग्लादेश छोड़ने को मजबूर ना होना पड़ता। इस द्वीप को बांग्लादेश में कोकोनट आयलैंड कहते हैं। इस द्वीप की आबादी 7000 है। यह इतना छोटा द्वीप है कि दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के अंदर ऐसे ऐसे सात द्वीप बस सकते हैं। मतलब बांग्लादेश में जिस तख्ता पलट को स्वाभाविक दिखाने का प्रयास हो रहा था, वह क्रांति नहीं एक साजिश थी। इसके पीछे अमेरिका का हाथ था।

जिस सेंट मार्टिन द्वीप पर अमेरिका कब्जा करना चाहता है, यह द्वीप कभी भारत का ही हिस्सा हुआ करता था। जिसे बंटवारे के समय भारत ने पूर्वी पाकिस्तान को दे दिया था। दूसरी तरफ अमेरिका 1955 से ही इस द्वीप को हथियाने की कोशिश कर रहा है। 1955 से 2024 के बीच उसने बांग्लादेश से इसे लीज पर लेने के कई प्रयास किए।

अब प्रश्न है कि ऐसा क्या खास है, इस द्वीप में, जिसके लिए अमेरिका को इतनी बड़ी साजिश रचनी पड़ी। इस द्वीप से बंगाल की खाड़ी, हिंद महासागर, म्यांमार और चीन पर एक साथ निगाह रखी जा सकती है। इसलिए अमेरिका यहां अपनी नौसेना के लिए नेवल बेस बनाना चाहता है।

नेवल बेस एक ऐसी जगह होती है, जहां युद्धपोत और अन्य नौसैनिक जलयानों के रख रखाव और ठहरने का प्रबंध होता है। यहां जलयानों की मरम्मत की व्यवस्था भी होती है। यह एक स्टेशन की तरह काम करता है। जहां इंधन भरने से लेकर आवश्यक सामान लाने तक की पूरी व्यवस्था होती है। यहां पर नौसैनिक अपने परिवार के साथ रूक सकते हैं। या फिर यात्री यहां विश्राम कर सकते हैं। मतलब अमेरिका दक्षिण एशिया के इस हिस्से में अपना एक सैनिक कैम्प बनाना चाहता है। शेख हसीना दक्षिण एशिया में अमेरिका के इस नेवल बेस के खतरे को समझते हुए, तैयार नहीं हुईं। पिछले साल जून में शेख हसीना ने अपने भाषण में भी कहा था, जब तक बांग्लादेश में उनकी सरकार है, तब तक सेंट मार्टिन्स द्वीप अमेरिका को नहीं सौंपा जाएगा। शेख हसीना को इस बात का डर था कि यदि बांग्लादेश में खालिदा जिया की सरकार आ गई तो वह इसे अमेरिका को बेच देगी। यदि अमेरिका बांग्लादेश में अपना नेवल बेस तैयार करने में कामयाब हो जाता है तो यह चीन और भारत दोनों के लिए ही खतरनाक होगा।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ शेख हसीना के आरोपों की वजह से अमेरिका पर तख्ता पलट का संदेह जाता है। बल्कि इस बात को बांग्लादेश की मीडिया ने भी रिपोर्ट किया कि चुनाव के दौरान अमेरिका के कुछ लोग आए और उन्होंने जमाते इस्लामी और खालिदा जिया से मुलाकात की। यह समय था, जब शेख हसीना अपने लोगों को बता रहीं थी कि अमेरिका एक बड़ा ही ताकतवर देश है। वह किसी भी देश की सरकार को गिरा सकता है।

दूसरी तरफ अमेरिका का कहना था कि वह बांग्लादेश के लोकतंत्र को मजबूत करना चाहता है। इसलिए उसने बांग्लादेश के विपक्ष के नेताओं से मिलने के लिए अपने बड़े अधिकारियों को भेजा था। अमेरिका की इस बात पर कैसे यकिन हो, क्योंकि जिस जमाते इस्लामी पर बांग्लादेश की सर्वोच्च अदालत ने प्रतिबंध लगाया हुआ है। उनके नेताओं से मिलकर अमेरिका के अधिकारी बांग्लादेश में कौन सा लोकतंत्र बचा रहे थे? इस प्रश्न का जवाब अमेरिका के पास नहीं है।इसलिए बांग्लादेश के तख्ता पलट को लेकर यह सवाल उठा कि क्या यह मुलाकात लोकतंत्र बचाने की जगह, बांग्लादेश के लोकतंत्र पर हमला करने की योजना बनाने के लिए हुई थी? शेख हसीना को तो यही लगा था और उनकी आशंका सच साबित भी हुई। बांग्लादेश की चुनी हुई सरकार, गिरा दी गई।

26 मई को शेख हसीना का बयान आता है कि उनकी सरकार नौसैनिक अड्डा बनाने के लिए सेंट मार्टिन द्वीप देने को तैयार नहीं है और दस दिनों के बाद ही ढाका के न्यायालय ने आरक्षण की व्यवस्था को बहाल करने का फैसला सुनाया। उसके बाद बांग्लादेश में हिंसा भड़की। तख्ता पलट के तार अमेरिका से इसलिए भी जोड़े जा रहे हैं क्योंकि अमेरिकी डिप्लोमेट डोनल्ड लू पांचवीं बार शेख हसीना के प्रधानमंत्री बनने के बाद तीन बार बांग्लादेश आए। डोनल्ड लू पर पाकिस्तान में हुए चुनाव के दौरान यह आरोप लगा था कि वे इमरान खान को वहां की सरकार से बाहर रखना चाहते हैं। शेख हसीना की तरह इमरान खान ने भी आरोप लगाया था कि उनकी सरकार अमेरिका ने गिराई है।

अमेरिकी डिप्लोमैट पीटर हास 25 जुलाई को ढाका छोड़कर अमेरिका लौट गए। जबकि 21 जुलाई को छात्र आंदोलन खत्म हो गया था। उसके बाद बांग्लादेश के हालात सामान्य होने लगे थे। फिर पीटर हास के पास ऐसी क्या खुफिया जानकारी थी, जिसके आधार पर हिंसा शुरू होने से ठीक पहले वे बांग्लादेश छोड़कर निकल गए। यह किसी से छुपी हुई बात नहीं है कि पीटर हास के रिश्ते खालिदा जिया की पार्टी के साथ बहुत मधुर हैं। जिस मोहम्मद युनूस को बांग्लादेश की सत्ता की बागडोर अभी सौंपी गई है, उन्हें भी बांग्लादेश में अमेरिकी प्रतिनिधि ही माना जाता है। 7 अगस्त 2024 को राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने मुहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का नेता नियुक्त किया। 08 अगस्त 2024 को उन्होंने शपथ ली और बांग्लादेश की सरकार के मुख्य सलाहकार के रूप में अब वे कार्य कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि बिना अमेरिकी सहयोग के उन्हें यह महत्वपूर्ण भूमिका हासिल नहीं हो सकती थी। वे अकेले बांग्लादेशी हैं, जिसे अमेरिका ने अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया है।

बहरहाल मीडिया में खबरों को देखने के साथ साथ हमें बिटवीन द लाइन्स को भी पढ़ना और समझते रहना है। आज के समय की यह आवश्यकता है।

कैसे बना बांग्लादेश

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आज जिसे हम बांग्लादेश कहकर पुकारते हैं, वह पहले पाकिस्तान का हिस्सा था। उसे पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था। पश्चिम पाकिस्तान जो अब पाकिस्तान है। वहां का सिंध और पंजाब वाला हिस्सा था, वह पाकिस्तान में हमेशा से हावी रहे। दूसरी तरफ पूर्वी पाकिस्तान में थोड़ी गरीबी थी क्योंकि उसकी हमेशा से देश में उपेक्षा होती थी। यह क्षेत्र बंगाली मुसलमान बहुल क्षेत्र था। जिन्हें सिंध और पंजाब के मुसलमान हेय दृष्टि से देखते थे। उनका प्रभुत्व पाकिस्तान पर चल रहा था। यहां उल्लेखनीय है कि पूर्वी पाकिस्तान की जनसंख्या पाकिस्तान के अंदर पश्चिमी पाकिस्तान से अधिक थी।

पूर्वी पाकिस्तान के हिस्से में उन दिनों जहां 162 सीट आती थी, वहीं पश्चिमी पाकिस्तान के हिस्से में 138। इसलिए पाकिस्तान में 1970 के ऐतिहासिक चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान के बड़े ही लोकप्रिय नेता शेख मुजीबुर रहमान की जीत हुई। शेख मुजीबुर की ही बेटी बांग्लादेश की नि-वर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना हैं। 1970 में पाकिस्तान में चुनाव जीतने के बावजूद पश्चिमी पाकिस्तान के नेताओं ने उन्हें प्रधानमंत्री मानने से इंकार कर दिया।

लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव जीतने के बाद भी जब उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया जाता तो वे पाकिस्तान में बगावत करते हैं और मुक्ति वाहिनी के नाम से अपनी एक सेना बनाते हैं। इस सेना को बनाने में उन्होंने भारत की सरकार से भी मदद ली और 1971 में पश्चिमी पाकिस्तान के तानाशाहों को धूल चटाकर उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान की जमीन को उनसे छीन लिया। इस तरह पश्चिमी पाकिस्तान से मुक्त होकर पूर्वी पाकिस्तान 1971 में एक स्वतंत्र मुल्क बांग्लादेश बना।

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