आखिर हिंदु ही क्यों

2020_8image_04_01_318734032000.jpg

गौतम कुमार सिंह

बांग्लादेश की पहली सरकारी जनगणना वर्ष 1974 में हुई, जिसके अनसुार देश की कुल जनसख्ंया 7.6598 करोड़ थी जिसमें से हिंदू जनसख्ंया मात्र 10.313 लाख अर्थात् जनसख्ंया का कुल 13.5 प्रतिशत रह गई जबकि मुस्लिम जनसंख्या का 85.4 प्रतिशत हो गये। 2011की जनगणना में हिन्दु कुल जनसख्ंया का मात्र 8.5 प्रतिशत रह गये। अर्थात् बांग्लादेश में हिदंओुं की कुल सख्ंया मात्र 12.7 लाख रह गई।इसकाअभिप्राय यह है कि मात्र 50 वर्ष में बांग्ला देश से 75 लाख हिन्दु ग़ायब हो गए। 2022 की जनगणना के अनसुार बांग्लादेश में मुस्लिमों की संख्या लगभग 15.036 करोड़ है, जो की जनसंख्या का 91.04% है वहीं हिन्दु कुल जनसख्ंया का मात्र 7.95 प्रतिशत।जनसख्ंया का अध्ययन करने वाले इसे‘ *Missing Hindu Population*’कहतेहैं। प्रत्येक 10 वर्ष में बांग्लादेश में15लाख हिन्दु कम हो गये।

क्यों कम होती जा रही है बांग्लादेश से हिन्दू जनसख्ंया?

कट्टरपन्थी इस्लामिक शक्तियों के प्रभाव के बढ़ने से लोकतंत्र,धर्मनिर्पेक्षता और हिन्दु जनसंख्या तीनों का ह्रास हुआ।

बांग्ला देश एक इस्लामिक राष्ट्र है।अलग अलग समय में अलग अलग राजनतिैक दलों के सत्ता में आने पर बांग्लादेश के सविंधान में Secularism शब्द को जोड़ा निकाला जाता रहा है।राज्य की अनेक नीतियाँ हिदंओुं की प्रतिकूल हैं या कहें हिन्दु विरोधी हैं।

The Vested Property Act बांग्लादेश का ऐसा क़ाननू है जिसकेअतंर्गतर्ग सरकार को यदि कोई भी व्यक्ति राज्य का शत्रु लगे तो उसकी सपंत्ति को सरकारअपने नियत्रंण में ले सकतीहै।अनेक हिन्दु इस क़ाननू के कारण अपनी सपंत्ति से वचिंचित हुए हैं।

बांग्लादेश स्थित प्रमुख कट्टरवादी इस्लामी समूह जिसमें जमात ए इस्लामी पार्टी कहते हैं दूसरी जो है वह टेररिस्ट ग्रुप जिसमें अंसारुल इस्लाम, जमात उल मुजाहिदीन, हरकत उल जिहाद कहा जाता है।

बांग्लादेश में हर तीसरा शख्स था हिंदू

अगर आजादी से पहले की बात करें तो अविभाजित भारत में 1901 में हुई जनगणना में बांग्लादेश में कुल 33 फीसदी हिंदू आबादी रहती थी. जो दिखाता है कि हिंदुओं की आबादी में लगाातर गिरावट आती जा रही है. बांग्लादेश की पहली जनगणना में हिंदुओं की आबादी जहां 9,673,048 थी और इस लिहाज से अगले 5 दशकों में यह संख्या बढ़कर 2 करोड़ के पार यानी 20,219,000 तक हो जानी चाहिए थी, लेकिन इनकी संख्या में गिरावट आती चली गई और इनकी संख्या महज 12,730,650 तक सिमट कर रह गई. तब 13.5 फीसदी थी और यह 8.5 फीसदी पर आ गई है. कहा जा रहा है कि इस दौरान देश में हिंदुओं की आबादी करीब 75 लाख कम हुई है.

भारत के बंटवारे में सबसे ज्यादा नुकसान कश्मीरी, पंजाबी, सिंधी और बंगालियों को हुआ। खासकर विभाजन तो पंजाब और बंगाल का ही हुआ था। बंगाल की बात करें तो एक ऐसा दौर था जबकि अंग्रेजों द्वारा बंगाल का विभाजन किया जा रहा था तो संपूर्ण बंगालियों ने एक स्वर में इसका विरोध किया था। उनका कहना था कि धर्म के आधार पर एक राष्ट्र को विभाजित कर देना बंगालियों की एकता को खंडित करना था। सभी बंगालियों का धर्म कुछ भी हो परंतु हैं सभी बंगाली।

अविभाजित भारत में 1901 में हुई जनगणना में बांग्लादेश में कुल 33 फीसदी हिंदू आबादी रहती थी. जो दिखाता है कि 1971 में बांग्लादेश के रूप में आए नए देश में हिंदुओं की आबादी में लगाातर गिरावट आती जा रही है.

बांग्लादेश में जनसंख्या के अनुपात के उतार-चढ़ाव को अगर हम देखेंगे तो 1947 में भारत विभाजन हुआ आज का बांग्लादेश तब पूर्वी पाकिस्तान के नाम से अलग हुआ यहां पर एक बात गौर देने की है चिटगांव क्षेत्र जहां की 57.5% जनसंख्या आदिवासी बौद्ध तथा हिंदू थी पूर्व पाकिस्तान को दे दिया गया स्थानीय आदिवासी जनसंख्या इसके विरोध में खड़ी हुई किंतु पाकिस्तान फौज ने निर्ममता से उनका दमन किया। 1942 में ब्रिटिश अधीन भारत में हुई जनगणना आधार वर्ष 1941 के अनुसार पूर्वी बंगाल आज का बांग्लादेश की कुल जनसंख्या तीन बिंदु 912 करोड़ थी जिसमें से 2.75 करोड़ यानी कुल जनसंख्या का 70 पॉइंट 3% मुस्लिम थे और एक पॉइंट 095 करोड़ यानी कुल जनसंख्या का 28% हिंदू थे मात्र 10 वर्ष पश्चात पाकिस्तान सरकार द्वारा 1951 में कराई गई आधिकारिक जनगणना में हिंदू जनसंख्या 22% रहेगी यानी 6% घट गई पाकिस्तान की सेवा ने पूर्वी पाकिस्तान में कट्टरवादी कट्टरपंथी ताकतों के साथ बंगाली हिंदुओं के विरुद्ध कार्यक्रम कार्यक्रम चलाया एक अनुमान के अनुसार पाकिस्तान फौज में के भीषण अत्याचारों के परिणाम स्वरुप लगभग एक करोड़ लोग जिसमें 80% हिंदू बांग्लादेश मुक्ति अभियान के समय शरणार्थी के रूप में पाकिस्तान से भारत में आगे जिसमें से 15 से 20 लाख हिंदू स्वतंत्र बांग्लादेश के निर्माण के बाद भी कभी वापस नहीं गए बांग्लादेश बना वर्ष 1971 में और बांग्लादेश के हिंदुओं की रक्षा और बचाव के लिए अवामी लीग के शेख मुजीबुर रहमान और भारतीय प्रधानमंत्री के बीच संधि हुई थी और जिस संधि जी संधि को आप ऑन रिकॉर्ड भी देख सकते हैं।अगर ध्यान दें तो बांग्लादेश का बेसिक स्टैटिसटिक्स है बांग्लादेश बनाने का वर्ष 1971 जनसंख्या के हिसाब से लगभग 17 करोड़ और अगर डेमोग्राफी के हिसाब से देखें तो मुस्लिम 91.4% हिंदू 7.95% कल 1.31 करोड़ हिंदू 2022 का डाटा है भौगोलिक स्थिति में देखें तो बॉर्डर है बे ऑफ़ बंगाल म्यांमार और भारत के मध्य है यह बांग्लादेश राज्य तंत्र तो इस्लामी राष्ट्र है और भारत की भांति संसदीय गणतंत्र है और यहां हर एक 5 वर्ष में चुनाव होता है। मुख्य राजनीतिक दल की बात अगर करें हम तो अवामी लीग है जो शेख हसीना और उनके पिता मुजीबुर रहमान की से बांग्लादेश का संस्थापक भी कहा जाता है एक तो यह है और दूसरी दूसरी प्रमुख या यूं कहीं मुख्य राजनीतिक दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी है जिसमें कालिदाह जिया है और जो पत्नी थी जनरल जियाउर रहमान की

बांग्लादेश की पहली सरकारी जनगणना वर्ष 1974 में हुई जिसके अनुसार देश की कुल जनसंख्या 7.6598 करोड़ थी जिसमें से हिंदू जनसंख्या मात्र 10 पॉइंट 313 लाख अर्थात जनसंख्या का कुल 13.5% रह गए जबकि मुस्लिम जनसंख्या का 85.4% हो गए 2011 की जनगणना में हिंदू कुल जनसंख्या का मात्र 8.5% रह गए अर्थात बांग्लादेश में हिंदुओं की कुल जनसंख्या मात्रा 12.7 लाख रह गई इसका अभिप्राय है की मात्रा 50 वर्ष में बांग्लादेश से 75 लाख हिंदू गायब हो गए ऐसा कैसे हुआ 2022 की जनगणना के की बात करें या 2022 की जनगणना जनगणना के अनुसार बांग्लादेश में मुसलमानों की संख्या लगभग 15.036 करोड़ है जो कि जो की जनसंख्या का 91.91.04% है वही हिंदू कुल जनसंख्या का मंत्र 7.95% है जनसंख्या का अध्ययन करने वाले इस मिसिंग हिंदू पापुलेशन कहते हैं प्रत्येक 10 वर्ष में बांग्लादेश में 15 लाख हिंदू काम हो गए हैं।

अब दिमाग में एक प्रश्न उठता है क्यों कम होती जा रही है बांग्लादेश से हिंदू जनसंख्या उसके पीछे कुछ करने पहला कारण कट्टरपंथी इस्लामी शक्तियों के प्रभाव से बढ़ने से लोकतंत्र धर्मनिरपेक्षता और हिंदू जनसंख्या तीनों का रस हुआ है बांग्लादेश एक इस्लामी राष्ट्र है अलग-अलग समय में अलग-अलग राजनीतिक दलों के सत्ता में आने पर बांग्लादेश के संविधान में सेकुलरिज्म शब्द को जोड़ा निकाला जाता रहा है राज्य मानिक नीतियां हिंदू के प्रतिकूल है या कहीं हिंदू विरोधी हैं जिसका सबसे ज्यादा बड़ा उदाहरण the वेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट बांग्लादेश का एक ऐसा कानून है जिसके अंतर्गत सरकार को यदि कोई भी व्यक्ति राज का शत्रु लगे तो उसकी संपत्ति को सरकार अपने नियंत्रण में ले सकती है अनेक हिंदू इस कानून के कारण अपनी संपत्ति से वंचित हुए हैं बांग्लादेश में रहने वाले हिंदुओं के सिर पर इस निंदा की भयानक तलवार सदा लटक लटकी रहती है अनेक हिंदू इस आरोप में भयानक हिंसा का शिकार हुए हैं तो यह भी एक कारण देखा जा सकता है जिसके कारण बांग्लादेश में हिंदू की जनसंख्या कम होती जा रही है और यह जो स्पष्ट तौर से दिख भी रहा है।

हाल के वर्षों में इस निंदा के आरोप में बांग्लादेश में रहने वाले हिंदुओं के विरुद्ध हुई घटनाएं हुई है 2013 में जमाते इस्लामी के नेता दिलवर शहीदी को इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल द्वारा वर क्राइम्स का दोषी ठहराए जाने पर हिंदू विरोधी दंगे भड़काए गए 2016 में मीडिया पर फैल इस निंदा के ज्वर से ब्लैक दिवाली नाम से हिंदू विरोधी दंगे हुए 2021 में दुर्गा पूजा में हुई हिंसा की घटनाएं के पश्चात पूरे बांग्लादेश में हिंदू युवतियों पर हिंदुओं के घरों पर और हिंदू मंदिरों पर हमले हुए यहां भी सोशल मीडिया का रोल हिंदू विरोधी दंगे भड़काने में प्रभावित रहा जमाती इस्लामी बांग्लादेश का एक प्रमुख राजनीतिक दल है जो बांग्लादेश में इस्लामी राज्य के लिए प्रतिबद्ध है इस दल में कार्यकर्ताओं ने बीएनपी के साथ मिलकर वर्ष 2023 से छात्र आंदोलन का मुखौटा पहनकर आम समाज में प्रोटेस्ट की श्रृंखला चलाई जिसका परिणाम वर्तमान सत्ता परिवर्तन के रूप में सामने आया 2024 में हाल में बांग्लादेश में हुए सरकार विरोधी प्रोटेस्ट की आड़ में भी बांग्लादेश के 64 में से 45 जिलों में हिंदुओं से लूटपाट हिंदुओं के घरों और मंदिरों को निशाना बनाने से लेकर हिंदुओं के प्रति व्यक्तिगत हिंसाएं की घटनाएं बड़े पैमाने पर हुई जिसके कारण अनेक हिंदू परिवारों ने भारत में आने का प्रयास किया।

बांग्लादेश का नवीनतम घटनाक्रम

शेख हसीना के नेतृत्व में यहां स्वामी लीग का चौथा कार्यकाल था अगर अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण बांग्लादेश अमेरिका चीन एवं रूस जैसे अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के लिए सामरिक महत्व का क्षेत्र है अगर कहीं तो बांग्लादेश का स्वतंत्रता प्राप्ति का एक वर्ष पश्चात ही सरकारी नौकरियों में विशेष वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान हुआ था जैसे की स्वतंत्रता सेनानी एवं उनके वंशज के लिए 30% महिलाओं के लिए 10% पिछले जिले के नागरिकों के लिए 10% अल्पसंख्यक मूल निवासियों के लिए 5% का 5% एवं विकलांगों के लिए एक प्रतिशत, अक्टूबर 2018 में आरक्षण में सुधार को लेकर हुए छात्र आंदोलन के परिणाम स्वरुप आरक्षण को पूर्णता हटा दिया गया मामला बांग्लादेश के उच्च न्यायालय पहुंच गया और हाल ही में उच्च न्यायालय ने स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए पूर्वोत्तर 30% 30% आरक्षण को पुन बहाल करने का आदेश दे दिया, जुलाई माह के पहले सप्ताह में न्यायालय की ऐसी आदेश के विरोध में छात्रों और युवाओं के विरोध प्रदर्शनप्रारंभ हुए 18 जुलाई से इन विरोध प्रदर्शनी प्रदर्शनों को का उग्र स्वरूप प्रारंभ हुआ जिसके परिणाम स्वरुप शेख हसीना को देश छोड़ना पड़ा और सट्टा सेवा के हाथ आगे इसके साथ ही बांग्लादेश में विशेष रूप से अल्पसंख्यक हिंदुओं के प्रति बड़े पैमाने पर हिंसा प्रारंभ हो गई अंतराष्ट्रीय शक्तियों ने भी बांग्लादेशी समाज के व्याप्त फॉल्ट लाइंस का फायदा उठाते हुए विपक्षी दलों विद्यार्थियों किसने आदि को मोहरा बनाकर बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन का सफल प्रयोग किया बांग्लादेश का सर्वोच्च न्यायालय भी एक जजमेंट के द्वारा हिंसा और अवस्था बढ़ाने का माध्यम बन गया, अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी एक नेगेटिव बनाया कि शेख हसीना और डेमोक्रेटिक है और बांग्लादेश में सी को भी एक औजार की भांति प्रयोग किया गया अंतरराष्ट्रीय और बांग्लादेश की मीडिया ने हिंदुओं के प्रति हिंसा को राजनीतिक प्रतिशोध के रूप में प्रस्तुत किया और ढाका, खुलना सहित बांग्लादेश के लगभग सभी जिलों में हिंदुओं के प्रति हिंसा की घटनाएं ध्यान में आई हैं जमाई और बीएमपी के कार्यकर्ताओं ने हिंदू बहुत गांव पर संगठित हमले किया किया हम लोगों में से गांव के मुसलमानों के साथ बाहरी तत्व शामिल रहे हिंदुओं के घर और मंदिरों पर हमले हुए उन्होंने तोड़ा और जलाया गया हिंदुओं पर हमले हुए यदि इनमें से कोई अवामी लीग का समर्थन था तो हिंसा कई गुना अधिक हुई उनसे भारी रकम भी वसूली गई,

निष्कर्ष की बात करें तो कट्टरपंथी ताकतों ने अतीत की पुनरावृत्ति करते हुए हिंदुओं को निशाना बनाया और हिंदुओं को पहचान कर निशाना बनाया गया उनकी संपत्ति को लूट गया घरों को जलाया गया उनकी महिलाओं को शिकार बनाया गया सत्ता परिवर्तन का या बिहार रचना करने वाले अंतरराष्ट्रीय मीडिया द्वारा हिंदुओं के नरसंहार को बहुत कमतर करके दिखाया गया।

पूरे विश्व के हिंदुओं को संगठित रूप से बांग्लादेश में हिंदुओं के प्रति हो रही इन सब घटनाओं का को पूरे विश्व के समक्ष रखना चाहिए क्योंकि एक किसी जात संबंध नहीं यह एक हिंदू संबंध है और जिन पर हमलाएं हो रही हैं जिनके प्रति यह व्यवहार अपनाया जा रहा है जिनके प्रति यह कट्टरपंथी अपनाया जा रहा है वह हिंदू दलित समाज है वह हिंदू दलित एक धर्म है इसको किसी जाति विशेष के रूप में नहीं देखना है यह बांग्लादेश का पुराना इतिहास है कि जब-जब वहां सत्ता परिवर्तन या कोई सत्ता के शिखर की अभियान शुरू होती है या तख्ता पलट होता है उसमें हिंदुओं पर हमलाएं बढ़ जाती हैं।

सोचना जरूरी है, हिन्दुओं जात में बंट के वोट दें, लेकिन हिंदुओ के लिए एकजुट रहें।

योगी आदित्यनाथ जी ने भी यही कहा, माननीय ने माननीय पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने यह मुद्दा को बेखौफ बेझिझक उठाया है अगर उनको वोट की राजनीति करनी होती तो यह हिंदू वाला मुद्दा उठाते ही नहीं इसलिए कहता हूं कि ठीक है आपके और मेरे विचार अलग हो सकते हैं आईडियोलॉजी अलग हो सकती है लेकिन धर्म तो हमारा एक ही है हिंदू और जब हम संगठित नहीं होंगे तो लोग इसी तरह हम पर प्रहार करेंगे हमारा उत्पीड़न करेंगे और यह सदियों से होता आ रहा है कितनी आक्रांताओं के बावजूद हम थे हम हैं हम रहेंगे।

हरियाणा की राजनीति में बढ़ रही है निर्दलीय नेताओं की पकड़

pti04_29_2024_000157b_0_jpg_1715092735.jpg

निर्दलीय जीते सोमवीर सांगवान को कांग्रेस ने अपनी पार्टी में मिला लिया है। कांग्रेस में शामिल होते ही, उन्होंने सबसे पहले मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी पर तीन महीने पहले हमला बोलते हुए कहा था कि वे मुख्यमंत्री के काबिल नहीं हैं। विधानसभा चुनाव के बाद हरियाणा भाजपा में मचेगी भगदड़

2019 में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव के अंदर 07 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार जीते थे। हरियाणा में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं। इस बार फिर मैदान में एक दर्जन से अधिक ऐसे उम्मीदवार मैदान में उतर रहे हैं, जिनके जीतने की संभावना से इकार नहीं किया जा सकता है। यदि खुद जीत हासिल ना भी कर पाए, उसके बावजूद ये अपनी अपनी विधानसभा में चुनाव परिणाम को प्रभावित तो कर ही सकते हैं। चुनावी संघर्ष में ये मजबूती से टक्कर देंगे, इस बात में भी संदेह नहीं।

इस बात को राजनीतिक पार्टियां समझती हैं, इसलिए उन नेताओं को पार्टी सिम्बल पर लड़ाने की भी कोशिश है जो अपने दम पर जीतने का दम रखते हैं। जैसे इस बार हरियाणा जन सेवक पार्टी के अध्यक्ष बलराज कुंडू ने एक बार फिर महम से चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। कुंडू ने यह भी ऐलान किया है कि उनकी पत्नी परमजीत कुंडू जुलाना से चुनाव लड़ेंगी।

देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल के पोते और हरियाणा के कई बार मुख्यमंत्री रहे ओमप्रकाश चौटाला के बेटे रणजीत सिंह चौटाला इस साल मार्च में बीजेपी में शामिल हुए हैं। उन्होंने घोषणा कर रखी है कि वह रानियां सीट से विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। बीजेपी टिकट देगी तो उसकी टिकट पर, टिकट नहीं देगी तो निर्दलीय।

पिछले विधानसभा चुनाव में नयनपाल रावत फरीदाबाद जिले में पड़ने वाली पृथला विधानसभा से जीते थे। इस बार भी नयनपाल रावत निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर ही विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। रविंदर मछरौली 2014 में विधानसभा का चुनाव जीते थे लेकिन 2019 में उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा था। पानीपत जिले की समालखा विधानसभा सीट से वे चुनाव मैदान में होंगे।

निर्दलीय जीते सोमवीर सांगवान को कांग्रेस ने अपनी पार्टी में मिला लिया है। कांग्रेस में शामिल होते ही, उन्होंने सबसे पहले मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी पर तीन महीने पहले हमला बोलते हुए कहा था कि वे मुख्यमंत्री के काबिल नहीं हैं। विधानसभा चुनाव के बाद हरियाणा भाजपा में भगदड़ मचेगी। वे इस बार कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ेगे। यदि कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय लड़ने के दरवाजे उनके लिए खुले हुए हैं। वे बिना कांग्रेस की मदद के भी विधायक रहे हैं। वैसे भी हरियाणा में किसी भी स्तर पर कांग्रेस जाटों को नाराज करने का जोखिम मोल नहीं लेगी।

सोमवीर सांगवान के अलावा पिछली बार निर्दलीय जीते धर्मपाल गोंदर इस बार भी नीलोखेड़ी से और रणधीर गोलन पूंडरी से कांग्रेस से टिकट की आस लगाए बैठे हैं। गुरुग्राम जिले की बादशाहपुर विधानसभा सीट से पिछला चुनाव राकेश दौलताबाद जीते थे। राकेश दौलताबाद का कुछ महीने पहले निधन हो गया था और इस सीट से उनकी पत्नी कुमुदिनी राकेश दौलताबाद चुनाव लड़ रहीं हैं।

Jury Member Murtaza Ali Khan Addresses Controversy Over Mammootty’s Omission at the 70th National Film Awards

2-5-1.jpeg

New Delhi: A major controversy erupted following the announcement of the winners of the 70th National Film Awards. Despite Mammootty’s exceptional performances in several films, which many believed made him a strong contender for the Best Actor award, the legendary actor did not receive any recognition. Expectations were high that Mammootty and Rishabh Shetty would be the leading candidates for the award. While Rishabh Shetty secured the Best Actor award for ‘Kantara,’ Mammootty’s glaring omission has led to widespread speculation. Allegations have surfaced that regional committees failed to submit Mammootty’s award-worthy films for national consideration.

Two committees were responsible for reviewing South Indian films this year. The first committee, chaired by Sushant Mishra, included Murtaza Ali Khan, Ravindhar, MB Padmakumar, and Santhosh Damodaran. The second committee, chaired by Balu Saluja, comprised Raj Kandukuri, Pradeep Kechanaru, Kausalya Poturi, and Anand Singh.

Addressing the controversy, film critic and National Film Award jury member Murtaza Ali Khan has clarified the situation, revealing the real reason why Mammootty and his films were not recognized.

“It’s really unfortunate that none of Mammootty sir’s films were submitted for the National Awards,” Khan stated. “Had the films been submitted, they would surely have been considered, as the selection process is conducted with the highest levels of transparency. The process involves a two-tier system, where regional juries make their recommendations, which are then scrutinized by the central panel. Additionally, the central panel can recall any film in case of omissions by the regional panels.”

In 2022, Mammootty won the state award for Best Actor for his remarkable portrayal of the central character in Lijo Jose Pellisserry’s ‘Nanpakal Nerathu Mayakkam,’ His performances in ‘Puzhu’ and ‘Rorschach’ were also highly praised. “It’s sad to see such a legendary actor’s work go unrecognized,” added Khan. “But ultimately, the jury can only make selections from the list of submitted films. As a jury member, I can confirm that the selection process was fully democratic, and we had total freedom in making our recommendations.”

Earlier, Khan’s fellow jury member, Malayalam filmmaker MB Padmakumar, also confirmed that not a single film of Mammootty’s was in competition at the 70th National Film Awards, announced on August 16. A huge fan of Mammootty himself, Padmakumar expressed his disappointment that the actor’s films were not submitted for consideration.

India International Centre Hosts Screening of ‘Sri Aurobindo: Beginning of a Spiritual Journey’ on His 152nd Birth Anniversary

2-4-1.jpeg

New Delhi: The India International Centre (IIC) recently marked the 152nd birth anniversary of Sri Aurobindo Ghose, the revered philosopher and spiritual leader, with a special screening of the film ‘Sri Aurobindo: Beginning of a Spiritual Journey.’ The event, held at the C.D. Deshmukh Auditorium, attracted a diverse audience keen to delve into the transformative phase of Sri Aurobindo’s life.

The screening was introduced by the film’s producer-director, Suraj Kumar, who shared his insights into the making of the film and the profound impact Sri Aurobindo’s spiritual journey had on his work. Kumar, known for his critically acclaimed Indo-Argentinean film ‘Thinking of Him,’ highlighted the significance of the period depicted in the film, during which Sri Aurobindo was arrested on May 5, 1908, and spent a year in Alipore Jail under trial in the ‘Alipore Bomb Case.’ This pivotal chapter, culminating in Sri Aurobindo’s acquittal and release on May 6, 1909, marked the beginning of his deep spiritual evolution.

‘Sri Aurobindo: Beginning of a Spiritual Journey’ stars Vikrant Chauhan in the role of Sri Aurobindo, offering the audience a powerful portrayal of the spiritual transformation of one of India’s most influential thinkers. The film, shot on location at the historic Alipore Jail, received an enthusiastic response from the audience, who were moved by its exploration of Sri Aurobindo’s inner awakening and its enduring relevance.

Suraj Kumar expressed his gratitude to the audience and the IIC for hosting the event, stating, “Bringing Sri Aurobindo’s journey to the screen has been an honor, and I am deeply touched by the positive reception. His life and teachings are a timeless beacon of spiritual awakening.”

The event concluded with a lively discussion among attendees, who praised the film for its insightful depiction of Sri Aurobindo’s life and the historical context of his spiritual transformation. The screening at IIC provided a unique opportunity for viewers to reconnect with the spiritual legacy of Sri Aurobindo, whose teachings continue to inspire millions across the globe.

scroll to top