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ग्यारह सालों में लालकिले के प्राचीर से कही गई महत्वपूर्ण बातें
प्रस्तुत है, बीते ग्यारह सालों में प्रधानमंत्री द्वारा लाल किले से कही गई महत्वपूर्ण बातों से प्रमुख अंश :
2024
- प्रधानमंत्री ने इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर सेकुलर सीविल कोड का जिक्र करते हुए कहा, हमारे देश में सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार UCC को लेकर चर्चा की है, अनेक बार आदेश दिए हैं। अब देश की मांग है कि देश में secular civil code हो। अपने लाल किले के भाषण में युवाओं के रोजगार, शिक्षा और महिला सुरक्षा पर भी जोर दिया।
- कृषि का जिक्र करते हुए श्री मोदी ने कहा — हमारी कृषि व्यवस्था को transform करना समय की मांग है और ये बहुत जरूरी भी है। हमारे किसानों को इसके लिए हम मदद भी दे रहे हैं।किसानों को आसान ऋण दे रहे हैं, टेक्नोलॉजी की मदद दे रहे हैं, किसान जो पैदावार करता है उसके value addition का काम भी हम कर रहे हैं।
- देशवासियों को प्रधानमंत्री ने विश्वास दिलाया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी जंग जारी रहेगी, चाहे इसके लिए उन्हें कोई भी कीमत चुकानी पड़े। इसके लिए वे पीछे नहीं हटेंगे। उन्होंने कहा— राष्ट्र से बड़ी मेरी प्रतिष्ठा नहीं हो सकती और राष्ट्र के सपनों से बड़ा मेरा सपना नहीं।
2023
- प्रधानमंत्री मोदी ने आखिरी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर कहा था कि उन्हें विश्वास है कि 2047 में जब भारत अपनी आजादी के 100 साल पूरे करेगा तो यह एक विकसित राष्ट्र होगा।
- उन्होंने जोर देकर कहा कि यह मोदी की गारंटी है कि भारत अगले पांच वर्षों में तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बन जाएगा। उन्होंनेइस दौरान भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का आह्वान करते हुए कहा था कि इसने भारत की क्षमता को बुरी तरह प्रभावित किया है और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते रहना उनकी जीवन भर की प्रतिबद्धता है।
- पीएम ने दावा किया कि पांच साल में 13.5 करोड़ से अधिक गरीब लोग गरीबी से बाहर आकर मध्यम वर्ग का हिस्सा बन गए।
2022
- केंद्र सरकार ने 2022 में आजादी की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर आजादी का अमृत महोत्सव मनाने का फैसला किया था। इसे लेकर पीएम मोदी ने लाल किले से दिए अपने भाषण में कहा था कि हर जिले में 75 अमृत सरोवर बनाने के अभियान के साथ आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है।
- उन्होंने कहा, ‘हर गांव से लोग इस अभियान से जुड़ रहे हैं और अपनी सेवाएं दे रहे हैं। लोग अपने प्रयासों से अपने-अपने गांवों में जल संरक्षण के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चला रहे हैं।’
2021
- स्वतंत्रता दिवस 2021 के मौके पर पीएम मोदी ने बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया था।
- उन्होंने इस दौरान जल्द ही राष्ट्रीय मास्टर प्लान या गति शक्ति लॉन्च करने की घोषणा की थी। उन्होंने कहा था कि 100 लाख करोड़ रुपये से अधिक की इस योजना से लाखों युवाओं के लिए रोजगार के नये अवसर उपलब्ध होंगे।
2020
- 2020 में स्वतंत्रता दिवस के वक्त पूरी दुनिया समेत भारत भी कोरोना महामारी के संकट से जूझ रहा था। इस दौरान पीएम ने अपने भाषण में कहा था कि हम एक असाधारण स्थिति से गुजर रहे हैं। आज बच्चे , भारत का उज्ज्वल भविष्य, मेरे सामने नहीं हैं। क्यों?
- ऐसा इसलिए है क्योंकि कोरोना ने सभी को रोक दिया है। पीएम ने कहा था कि कोरोना के इस काल में वह लाखों डॉक्टरों, नर्सें, सफाई कर्मचारी, एम्बुलेंस ड्राइवर और अनय कोरोना योद्धाओं को सलाम करते हैं। साथ ही पीएम ने लाल किले से एलान किया था कि उनकी सरकार ने 1000 दिन के अंदर गांवों को ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ने का काम पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
2019
- लोकसभा चुनाव 2019 में दोबारा सत्ता में चुनकर आने के बाद दूसरे कार्यकाल का यह पीएम मोदी का पहला भाषण था। इस दौरान उन्होंने कहा था कि नई सरकार को अभी 10 सप्ताह भी पूरे नहीं हुए हैं, लेकिन इतने कम समय में हमने हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। पीएम मोदी ने दूसरी बार पीएम बनने के बाद अपने पहले भाषण में कहा कि अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाया जाना सरदार पटेल के सपने को साकार करने की दिशा में एक कदम है।
- साथ ही पीएम ने भाषण में तीन तलाक खत्म होने की जरूरत पर भी जोर दिया था। उन्होंने कहा था कि अगर हम सती प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या और दहेज के खिलाफ कदम उठा सकते हैं तो तीन तलाक के खिलाफ क्यों नहीं। तीन तलाक खत्म होने से मुस्लिम महिलाओं को बेहतर जीवन जीने में मदद मिलेगी।
- 2019 के भाषण में पीएम ने जनसंख्या विस्फोट पर भी चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने कहा था कि एक मुद्दा है जिसे वह आज उजागर करना चाहते हैं, वह है जनसंख्या विस्फोट। उन्होंने कहा कि हमें सोचने की जरूरत है कि क्या हम अपने बच्चों की आकांक्षाओं के साथ न्याय कर सकते हैं? पीएम ने कहा कि जनसंख्या विस्फोट पर अधिक चर्चा और जागरूकता की जरूरत है।
2018
2018 के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पीएम मोदी ने जीएसटी की शुरूआत की सराहना करते हुए कहा था कि 70 वर्षों की अवधि के लिए अप्रत्यक्ष कर अधिकारी 70 लाख राजस्व जुटाने में सक्षम थे, लेकिन जीएसटी लागू करके हम एक साल के अंदर 16 लाख का राजस्व जुटाया है।
पीएम ने लाल किले की प्राचीर से बताया था कि 2013 तक प्रत्यक्ष कर दाता केवल 4 करोड़ लोग थे, जिसकी संख्या दोगुनी होकर 7.25 करोड़ हो गई है।
2017
- पीएम मोदी ने 2017 के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर काला धन के खिलाफ सरकार की कार्रवाई के बारे में बताते करते हुए कहा था कि वर्षों से बेनामी संपत्ति रखने वालों के लिए कोई कानून पारित नहीं किया गया था, लेकिन हाल ही में बेनामी अधिनियम पारित होने के बाद बहुत कम समय के भीतर सरकार ने 800 करोड़ रुपये की बेनामी संपत्ति जब्त कर ली है।
- साथ ही पीएम मोदी ने कहा था कि लोग स्थापना के पीछे प्रेरक शक्ति होंगे, न कि इसके विपरीत। उन्होंने कहा था, ‘तंत्र से लोक नहीं, लोक से तंत्र चलेगा।’ उन्होंने देश भर में बढ़ते डिजिटल लेनदेन पर बात की और नागरिकों से कम नकदी वाली अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने का आह्वान किया था
2016
- पीएम मोदी ने 2016 के भाषण में घोषणा की कि सरकार ने स्वतंत्रता सेनानियों के लिए पेंशन 20 प्रतिशत बढ़ाने का फैसला किया है।
- साथ ही पीएम ने कहा कि गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों के लिए सरकार प्रति वर्ष 1 लाख रुपये तक का खर्च वहन करेगी, ताकि उनकी स्वास्थ्य देखभाल की जरूरतों का ध्यान रखा जा सके।
2015
- पीएम ने 2015 में अपने दूसरे स्वतंत्रता दिवस के भाषण में कई इलाकों में बिजली न होने की बात कही थी और कहा कि उनकी सरकार अगले 1000 दिनों में उन 18,500 गांवों में बिजली पहुंचाएगी, जहां बिजली नहीं है।
- साथ ही पीएम ने बताया था कि काले धन और विदेशी संपत्ति कानून की अनुपालन खिड़की के तहत 6500 करोड़ रुपये का खुलासा किया गया था।
2014
- साल 2014 में पहली बार प्रधान मंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद स्वतंत्रता दिवस के अपने पहले संबोधन में पीएम मोदी ने खुद को देश का प्रधान सेवक बताया था।
- उन्होंने कहा था कि देश का हर व्यक्ति अगर एक कदम आगे बढ़ाएगा तो पूरा देश मिलकर 140 करोड़ कदम आगे बढ़ाएगा।
- पीएम ने अपने पहले ही भाषण में जन-धन योजना शुरू करने की घोषणा की थी, जिसके तहत प्रत्येक नागरिकों को बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ने के लिए उनके बैंक खाते खुलवाए जाने थे।
परीक्षाओं में अंक हासिल करने की जानलेवा होड़ के बीच सरकारी स्कूल का समाधान को लेकर अनूठा पोस्टर
जालोर (राजस्थान) : ”हमारा यह नवाचार राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की दिशा में एक कदम है । राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बालकों के सर्वांगीण विकास को लक्ष्य माना है एवं 360 डिग्री मूल्यांकन की भी बात कही है। हमारे प्राचीन गुरुकुलों में छात्रों को सिर्फ पुस्तक नहीं पढ़ाई जाती थी बल्कि उसके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास किया जाता था। हर विद्यार्थी महत्वपूर्ण एवं प्रतिभावान हैं। उनकी प्रतिभाओं को महत्व देना एवं फलने फूलने का अवसर देना, समाज एवं शिक्षक दोनों की जिम्मेदारी है।”
ऐसा कहना है, राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, रेवत, जालोर(राजस्थान) के शिक्षक संदीप जोशी का। प्रदेश में नामी-गिरामी शिक्षण संस्थानों के बीच जहां हर वर्ष नए शैक्षणिक सत्र में एडमिशन के लिए लुभाने के लिए उच्च प्राप्तांको वाली मार्कशीट को दर्शाते होर्डिंग – पोस्टर का वार दिखाई देता है, वहीं जालोर के एक सरकारी स्कूल ने बच्चों पर प्राप्तांको के मानसिक तनाव को कम करने वाली अभिनव पहल की है जो अभिभावकों और शिक्षा क्षेत्र में बहुत सराही जा रही है।
असल में प्रतिभाएं आमतौर पर सिर्फ प्राप्तांको (%) के आधार पर ही तय होती हैं लेकिन जालोर जिले के रेवत ग्राम स्थित इस विद्यालय में प्राप्तांको के अलावा विविध क्षेत्र की अपनी प्रतिभाओं का भी परिचय दिया है। नतीजे इस स्कूल के भी बहुत अच्छे हैं लेकिन साथ-साथ विद्यालय ने अपने प्रवेशोत्सव पोस्टर नृत्य प्रतिभाएं, खेल प्रतिभाएं, सुंदर लेखन प्रतिभाएं, चित्रकला प्रतिभाएं, गायन कला प्रतिभा, सिलाई कला प्रतिभा, काव्य प्रतिभा और क्राफ्ट प्रतिभा के अलावा सोशल मीडिया प्रतिभा तक का परिचय दिया है।
इस सरकारी विद्यालय ने श्रेष्ठ अंकों वाले विद्यार्थियों के साथ ही विभिन्न बहुआयामी प्रतिभाओं के होर्डिंग और पोस्टर लगाकर नई मार्केटिंग और ब्रांडिंग कर करने की पहल की है। जिसमें अंकों की मेरिट के साथ ही स्पोर्टस, डांस, सिंगिंग, पेंटिंग्स, बेस्ट राईटिंग, पॉइम्म, स्पीच आदि गतिविधियों को भी शामिल कर विविध टेलेंटेड प्रतिभाओं के होर्डिंग्स और पोस्टर लगवाकर सर्वांगीण विकास का मैसेज दिया है। होर्डिंग्स में बच्चों के फोटो पर लिखा है , एक नई शुरुआत है।
विद्यालय के प्राचार्य छगनपुरी गोस्वामी ने बताया कि व्याख्याता संदीप जोशी ने साथी शिक्षकों के साथ मिलकर रेवत स्कूल में यह नई पहल की है। शिक्षक जोशी के मुताबिक कोचिंग एवं ट्यूशन के दबाव, अंको की जानलेवा प्रतिस्पर्धा, सफलता का प्रेशर और असफलता का डर आदि से बच्चे और अभिभावक भारी तनाव में जी रहे हैं। इस माहौल के परिणाम अत्यंत भयावह एवं चिंतनीय बाल आत्महत्याओं के रूप में हमारे सामने आने लगे है। अंको का दबाव विद्यार्थियों ही नही अभिभावकों और शिक्षण संस्थान पर भी होता है और वहीँ प्रेशर बच्चों पर भी आता है। संदीप जोशी के अनुसार इस सब वातावरण से मुक्ति का एक बड़ा मार्ग है बालकों की पढ़ाई के साथ ही अन्य विविध प्रतिभाओं को भी स्वीकारना, समान महत्व देना और उन्हें उभारना। परीक्षा में बहुत अच्छे अंक प्राप्त करना एक सफलता है, और सभी की यह इच्छा भी रहती है। इसके साथ ही प्रतिभाओं के अन्य भी बहुत सारे क्षेत्र हैं। परीक्षा में अंक प्राप्त करने की होड़ के समानांतर एक लाइन बहुआयामी प्रतिभाओं की भी खड़ी करनी होगी। ज्यादा अच्छा है कि यह दूसरी लाइन और भी बड़ी हो।
समस्या से समाधान की ओर :-रेवत के सरकारी स्कूल ने इस दिशा में एक कदम बढ़ाया है। समस्या से समाधान की ओर। इस बार प्रवेश उत्सव के दौरान 12वीं बोर्ड कक्षा में सर्वोच्च 95.20% अंक प्राप्त करने वाली विद्यार्थी के साथ-साथ विद्यालय की अन्य विभिन्न प्रकार की प्रतिभाओं के भी चित्र होर्डिंग्स, पोस्टर इत्यादि पर लगाए है। जिनमे खेल प्रतिभा, पेंटिंग प्रतिभा,नृत्य प्रतिभा, सुंदर हैंडराइटिंग वाले विद्यार्थी, अच्छा क्राफ्ट करने वाले विद्यार्थी, गायन प्रतिभा, सुंदर कविता पाठ करने वाले विद्यार्थी के भी नाम और फोटो प्रकाशित किए हैं।
देश विदेश के शिक्षाविदों ने सराहना की। विद्यालय की इस पहल की अभिभावकों और शिक्षकों द्वारा सराहना हुई ही, साथ ही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के शिक्षाविदों ने भी इस पहल को अत्यंत महत्वपूर्ण एवं अनुकरणीय बताया है।
एनसीईआरटी के संयुक्त निदेशक प्रो श्रीधर श्रीवास्तव ने विद्यालय को शुभकामनाएं देते हुए लिखा कि यह बहुत सुंदर विचार है। हर तरह की प्रतिभाओं को स्थान एवं सम्मान मिलना चाहिए। यह NEP 2020 के प्रथम सिद्धांत का परिपालन है। विद्यालय को बधाई।
अमरीका में कार्यरत भारतीय मूल के वैज्ञानिक डॉ तेज पारीक ने विद्यालय के इस नवाचार की प्रशंसा करते हुए लिखा कि अमेरिका के विद्यालयों में लगभग यही व्यवस्था है। यहाँ विद्यार्थियों की सर्वांगीण प्रतिभाओं का आकलन कर उन्हें समान रूप से प्रोत्साहित किया जाता है ना की विभेदित। अंतर सिर्फ़ इतना है कि यहाँ के समाज में आगे चलकर इन बहुमुखी प्रतिभाओं के सदुपयोग की व्यवस्था भी है। वर्तमान भारतीय समाज में इस और अधिक काम किये जाने की प्रचुर सम्भावनाएँ हैं। आपका ये भागीरथी प्रयास इस दिशा में मील का पत्थर साबित हो और यह शैक्षणिक नीति का अभिन्न हिस्सा बने यही शुभकामना है।
इसी प्रकार एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक प्रोफेसर जे एस राजपूत, विख्यात प्रबंध गुरु एन रघुरामन, देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार से जुड़े गुजरात निवासी एवं वर्तमान में अमेरिका निवासी शिक्षाविद चेलाराम जोशी सहित अनेक शिक्षाविदों, प्रशासनिक अधिकारियों ने इस पहल की सराहना की है।
बिहार की प्रस्तावित कोसी-मेची लिंक
दिनेश मिश्र
परियोजना रिपोर्ट में यह बात जरूर स्पष्ट कर दी गई है कि इस नदी जोड़ योजना से केवल खरीफ के मौसम में ही इस दोआब में सिंचाई की व्यवस्था हो सकेगी क्योंकि रब्बी और गरमा के मौसम में इस नहर में पानी मिल पायेगा या नहीं यह तय नहीं है
बिहार में बहु-चर्चित कोसी-मेची लिंक नहर एकाएक चर्चा में आ गई है क्योंकि वर्षों की प्रतीक्षा के बाद इस वर्ष के बजट में इसके निर्माण की घोषणा हो गई है। केंद्र सरकार ने तो काफी पहले 2004 से ही नदी जोड़ योजना पर गंभीरता पूर्वक विचार करना शुरू कर दिया था पर बिहार सरकार ने इस पर पहल 2006 में की और इस लिंक पर केंद्र से विचार करने के लिये अनुरोध किया। इस लिंक नहर के निर्माण से कोसी-मेची क्षेत्र में कृषि का विकास होगा। नेशनल वाटर डेवलपमेंट अथॉरिटी ने 2010 में इस परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट बिहार सरकार को दी जो अंतिम रूप में केन्द्रीय जल आयोग की नियमावली के पालन का ख्याल रखते हुए सुधार के बाद बिहार सरकार को मिली और उसे के बाद से इस योजना के क्रियान्वयन पर गंभीरतापूर्वक विचार शुरू हुआ और अब इसे स्वीकृति मिल गई है और केंद्र से धन मिलने के रास्ता भी खुल गया है। इस परियोजना के निर्माण से बाढ़ नियंत्रण के साथ-साथ कोसी-मेची के दोआब में 2.15 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर अतिरिक्त सिंचाई होने लगेगी। इस लिंक के निर्माण के बाद अररिया (69 हजार हेक्टेयर), किशनगंज (39 हजार हेक्टेयर), पूर्णिया (69 हजार हेक्टेयर) और कटिहार (35 हजार हेक्टेयर) जिलों अतिरिक्त सिंचाई मिलने लगेगी और बाढ़ की समस्या के हल होने का सपना भी देखा जाने लगा है। इस योजना के क्रियान्वयन से कृषि उपज में वृद्धि होने की आशा व्यक्त की जा रही है और रोजगार की सम्भावनायें बढ़ेंगी।
परियोजना रिपोर्ट में यह बात जरूर स्पष्ट कर दी गई है कि इस नदी जोड़ योजना से केवल खरीफ के मौसम में ही इस दोआब में सिंचाई की व्यवस्था हो सकेगी क्योंकि रब्बी और गरमा के मौसम में इस नहर में पानी मिल पायेगा या नहीं यह तय नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार पानी की निश्चित सप्लाई के लिए व्यवस्था तभी हो पायेगी जब नेपाल में बराहक्षेत्र में कोसी पर हाई डैम का निर्माण हो जायेगा। हम यहाँ जरूर याद दिलाना चाहेंगे कि नेपाल में हाई डैम बनाने का प्रस्ताव सर्वप्रथम आज से 87 साल पहले 1937 में किया गया था और तभी से यह बाँध चर्चा और अध्ययन में बना हुआ है। यह बाँध कब बनेगा इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता।
6300 करोड़ रुपये की योजना
पहले इसके लागत खर्च की बात कर लेते हैं। इस योजना की लागत जो शुरू शुरू में 2,900 करोड़ रुपये थी वह बिहार रारकार को अंतिम रिपोर्ट मिलने तक 4,900 करोड़ रुपये हो गई थी और अब इसका मूल्य लगभग 6,300 करोड़ रुपये बताया जा रहा है। केंद्र का सुझाव है कि अपनी तरफ से कुल लागत का 60 प्रतिशत केंद्र वहन करेगा और 40 प्रतिशत खर्च राज्य को करना होगा। बिहार का कहना है कि केंद्र इसमें राज्य को 90 प्रतिशत राशि का सहयोग करे और राज्य 10 प्रतिशत राशि अपनी तरफ से करेगा। यह भी कहा जाता है कि केंद्र 30 प्रतिशत राशि राज्य को ऋण के तौर पर देने का सुझाव दे सकता है। यह पूरा मामला अभी विचाराधीन बताया जा रहा है। इस योजना में पूर्वी कोसी मुख्य नहर (लंबाई 41.30 कि.मी.) को 76.2 कि.मी. बढ़ा कर मेची नदी में मिला दिया जायेगा जिससे कोसी के प्रवाह को थोड़ा सा घटाने का लाभ मिलेगा। नहर के अन्त में मेची नदी में केवल 27 क्यूमेक पानी ही दिया जा सकेगा जिससे कोसी घाटी में थोड़ा बहुत बाढ़ से राहत मिल सकती है। यह रिपोर्ट मान कर चलती है कि कोसी और मेची में एक साथ बाढ़ शायद नहीं आयेगी लेकिन दुर्योग से ऐसा हुआ तो तो योजना की सार्थकता पर पर तो सवाल उठेंगे। हमें विश्वास है कि योजना बनाने वाले विद्वानों ने इस पर जरूर सोचा होगा।
केंद्र सरकार और राज्य सरकार के निवेश पर केंद्र और बिहार के बीच बहस का अभी तक कोई फैसला नहीं हो पाया है कि परियोजना रिपोर्ट साफ तौर पर कहती है कि इस योजना से गैर मानसून महीनों को छोड़ कर रब्बी और अन्य फसलों के लिये पानी तब तक नहीं दिया जा सकता है जब तक कोसी पर बीरपुर के 56 कि.मि. उत्तर नेपाल में नदी पर नेपाल में बराहक्षेत्र में 269 मीटर ऊँचे हाई डैम का निर्माण नहीं हो जाता।
यहाँ यह बताया देना सामयिक होगा कि बराहक्षेत्र बाँध का प्रस्ताव पहली बार आज से 87 साल पहले 1937 में किया गया था और इस पर अनुसंधान अभी भी जारी है। हम यहाँ याद दिलाना चाहेंगे कि 22 सितंबर, 1954 के दिन बिहार विधानसभा में अप्रोप्रिएशन बिल पर चल रही बहस में भाग लेते हुए श्री अनुग्रह नारायण सिंह ने कहा था कि, ‘अभी दो-तीन वर्षों से इसकी जाँच हो रही थी कि कोसी नदी पर एक बाँध बाँधा जाये जो 700 फुट ऊँचा होगा और इस जाँच पर बहुत सा रुपया खर्च हुआ। तब मालूम हुआ कि इसमें 26 मील (42 कि.मि.) की एक झील बनेगी जिसमे कोसी का पानी जमा होगा और पानी जमा होने से बाढ़ नहीं आयेगी…लेकिन इसके पीछे इस बात पर विचार किया गया कि अगर वह 700 फुट का बाँध फट जाये तो जो पानी उसमें जमा है उससे सारा बिहार और बंगाल बह जायेगा और सारा इलाका तबाह और बरबाद हो जायेगा।’ कुछ इसी तरह की बात लोकसभा में बराहकक्षेत्र बाँध का नाम लेकर एन.वी. गाड़गिल ने 11 सितंबर, 1954 को कही थी जिसमें उन्होनें विश्व में भूकंप से हो रहे बाँधों पर प्रभाव की चर्चा की थी। हम उम्मीद करते हैं कि सरकार ने इन बयानों का संज्ञान जरूर लिया होगा।
पूर्वी कोसी मुख्य नहर
जहाँ तक कोसी की पूर्वी मुख्य नहर का सवाल है उसकी पेटी में बालू का जमाव तभी से शुरू हो गया था जबसे नहर में 1963 में पानी छोड़ा गया और सन 2000 आते-आते नहर को बन्द करने की नौबत आ गई थी। उस समय यह नहर अपनी फुल सप्लाई डेप्थ तक बालू से भर चुकी थी और उसमें पानी देना मुश्किल हो रहा था। तब नहर के बालू की सफाई की बात उठी। यहाँ तक तो ठीक था पर इस बालू को कहाँ फेंकेंगे इसका सवाल उठा। वहाँ काम कर रहे इंजीनियरों का कहना था कि नहर से जब तक बालू नहीं हटेगा तब तक नहर बेकार बनी रहेगी और उसमें पानी नहीं दिया जा सकेगा। जैसे-तैसे 2004 के अन्त में बालू हटाने का काम शुरू हुआ जिसकी अनुमानित लागत 54 करोड़ रुपये थी। नहर सफाई का यह काम 4,000 हजार ट्रैक्टरों के माध्यम से जून 2005 तक चला। इसका नफा-नुकसान क्या हुआ वह तो सरकार को मालूम ही होगा लेकिन नहर के दोनों किनारों पर बालू के पहाड़ जरूर तैयार हो गये थे। नहर के इर्द-गिर्द सरकार की ही जमीन थी इसलिये उस समय तो बालू को वहीं नहर के बगल में डंप कर दिया गया पर दुबारा यह काम करना पड़ेगा तब नहर का बालू किसानों की जमीन पर डंप किया जायेगा, यह तय है। इस बालू काण्ड की जाँच बिहार विधान सभा की 50वीं और 53वीं प्राक्कलन समिति की रिपोर्ट में दर्ज हैं जिसममें सरकारी धन के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार की नामजद रिपोर्टें दर्ज थीं। 53 वीं रिपोर्ट कहती है कि, ‘… इस तरह मुख्य पूर्वी कोसी नहर के बीरपुर डिवीजन में राजकीय कोष के अपव्यय और अपहरण के कतिपय मामलों का ही उल्लेख किया गया है, यों विशेष छानबीन पर हजारों उदाहरण इस प्रमंडल में और मिलेंगे।’ हम उम्मीद करते हैं कि विस्तृत परियोजना तैयार करने वालों को इस घटना के बारे में पता जरूर होगा और आपदा में अवसर खोजने वाले लोगों पर इस बार जरूर नजर रखी जायेगी।
जमीन का ढाल और नदियों का नहर पर लम्बवत प्रवेश
बीरपुर से माखनपुर (किशनगंज) के बीच, जहाँ यह नहर मेची में मिल कर समाप्त हो जायेगी, इस 117 कि.मी.के बीच की दूरी में इस प्रस्तावित नहर को कई नदियाँ काटती हुई पार करेंगीं जिनमें परमान, टेहरी, लोहंदरा, भलुआ, बकरा, घाघी, पहरा, नोना, रतुआ, कवाल, पश्चिमी कंकई और पूर्वी कंकई आदि मुख्य हैं। छोटे-मोटे नालों की तो कोई गिनती ही नहीं है। यह सभी नदी नाले उत्तर से दक्षिण दिशा में बहते है जबकि अपने प्रस्तावित विस्तार सहित कोसी-मेची लिंक पश्चिम से पूर्व दिशा में बहेगी। पूर्वी मुख्य नहर तो लगभग पूरी की पूरी इसी दिशा में चलती है जबकि प्रस्तावित नई नहर में थोड़ी-बहुत गुंजाइश बाकी रहती है क्योंकि वह आगे चल कर कुछ दक्षिण की तरफ मुड़ जाती है। जाहिर है पानी की निकासी दिक्कतें आयेंगी। प्रस्तावित 117 कि.मि. नहर उत्तर दिशा से आ रहे पानी की राह में रोड़ा बनेगी और नहर के उत्तरी किनारे पर जल-जमाव बढ़ेगा और उस क्षेत्र की खेती पर इसका अवांछित प्रभाव पड़ेगा।
पूर्वी नहर से इस अटके और नहर तोड़ कर निकलते हुए पानी से सुपौल जिले के बसंतपुर और छातापुर और अररिया जिले के नरपतगंज प्रखण्ड के कितने गाँव बरसात के मौसम में डूबते-उतराते रहते हैं। यह पानी पश्चिम में बिशुनपुर से लेकर बलुआ (डॉ. जगन्नाथ मिश्र-भूतपूर्व मुख्य मंत्री और केन्द्रीय मन्त्री का गाँव), चैनपुर और ठुट्ठी, मधुरा से लेकर पूरब में बथनाहा तक चोट करता है और जल-जमाव की शक्ल में लम्बे समय तक बना रहता है। इस दौरान यहाँ के लोग भारी तबाही झेलते हैं।
कुछ साल पहले ठुट्ठी के पास धानुकटोली के गाँव वालों ने नहर को काट दिया था। यह लोग जानते थे कि सोमवार के दिन कटैया बिजली घर को फ्लश करने के लिये नहर बन्द रहती है और उसके पानी का कोई खतरा नहीं रहता है। इसलिये नहर काटने के लिये सोमवार का दिन सबसे उपयुक्त रहता है।
होता यह है कि फुलकाहा थाने (नरपतगंज प्रखंड) के लक्ष्मीपुर, मिर्जापुर, मौधरा, रग्घूटोला, मिलकी डुमरिया, नवटोलिया, मंगही और संथाली टोला आदि गाँवों में नहर से अटके पानी की निकासी कजरा धार पर बने साइफन से होती है। इस साइफन की पेंदी ऊंची है इसलिये यह सारे पानी की निकासी नहीं कर पाता है। नहर के किनारे पानी लग जाने से मिर्जापुर में तो नहर अपने आप टूट गई मगर इसके बाद भी नहर के उत्तरी किनारे के किसानों की समस्या का समाधान नहीं हो पाया। उधर के लोग पानी की निकासी के लिये नहर को काटने के लिये आ गये। नहर के दक्षिण में नरपतगंज के गढ़िया, खैरा, चन्दा और धनकाही आदि गाँव पड़ते हैं। नहर कट जाने की स्थिति में यह लोग मुसीबत में पड़ते। नहर एक तरह से सीमा बन गई और दोनों तरफ कर योद्धा अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र के साथ आमने–सामने आ गये। उत्तर वाले लोग नहर काटने के लिये और दक्षिण वाले उसे रोकने के लिये। झगड़ा-झंझट बढ़ा पर नहर काट दी गई। मामला-मुकदमा हुआ, पंचायत बैठी। अफसरान आये तब जा कर कहीं समझौता हुआ और दोनों पक्षों ने आश्वासन दिया कि आगे से नहर नहीं काटेंगे। हम विश्वास करते हैं कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति अब नहीं होगी।
कुसहा तटबन्ध की दरार और मुख्य कोसी पूर्वी नहर-2008 से मिली सीख
2008 में जब कुसहा में कोसी का पूर्वी तटबन्ध टूटा था तब इस नहर का क्या हुआ था वह जानना भी दिलचस्प होगा। 18 अगस्त, 2008 के दिन कोसी का पूर्वी तटबन्ध नेपाल के कुसहा गाँव के पास टूट गया। इस स्थान पर कोसी पूर्वी तटबन्ध के काफी पास आ गई थी और उसने वहाँ के स्पर पर 5 अगस्त के दिन से ही चोट करना शुरू कर दिया था। विभागीय अकर्मण्यता के कारण उस बाँध को टूट जाने दिया गया क्योंकि बाँध के टूटने में 13 दिन का समय कम नहीं था कि तटबन्ध को बचाया न जा सके। इतना समय किसी भी दुर्घटना से निपटने के लिये कम नहीं होता। बाँध जब टूटा तो उस दरार से निकला पानी बिरपुत पॉवर होउस की ओर भी बढ़ा और उसने 13 किलोमीटर पर मुख्य पूर्वी कोसी नहर को तोड़ दिया। कोसी की 15 किलोमीटर चौड़ी एक नई धारा बन गई और वह पानी जहाँ-जहाँ से गुजरा उसे तहस-नहस करके रख दिया। चारों तरफ तबाही मची और कम से कम 25 लाख लोग इस नई धारा के पानी की चपेट में आये। इस बाढ़ की मार कटिहार तक के लोगों ने भोगी थी। हम विश्वास करते हैं कि कोसी-मेची लिंक योजना बनाने वाले तकनीकी समूह को इस घटना की जानकारी जरूर दी गई होगी और उन्होनें इसका संज्ञान लिया होगा और एहतियात बरती होगी।
कोसी-मेची लिंक नहर की परियाजना रिपोर्ट यह स्वीकार करती है कि गंगा और महानंदा के क्षेत्र में कुछ इलाका जल–जमाव से ग्रस्त है पर इसका कारण किसानों द्वारा क्षेत्र का अतिक्रमण है इसलिये पानी की निकासी में असुविधा होती है। इसलिये पानी की निकासी में कुछ असुविधा होती है पर अब लिंक नहर को पार करके पानी को उस पार पहुँचाने की व्यवस्था कर दी गई है। यही काम अगर कोसी पूर्वी मुख्य नहर के निर्माण के समय कर दिया गया होता तो आज हमें यह सब बातें कहनी नहीं पड़तीं। फिर भी हम विश्वास करते हैं कि यह काम इस बार जरूर किया जायेगा।
रिपोर्ट यह भी सुझाव देती है कि विस्थापितों का पुनर्वास प्राथमिकता के आधार पर होना चाहिये। हमें इस बात का दु:ख है कि कोसी परियोजना का काम 14 जनवरी, 1955 के दिन शुरू किया गया था और वहां के विस्थापित अभी भी अपने पुनर्वास के लिये संघर्ष कर रहे हैं। हमें विश्वास है कि इस बार विभाग अपनी बात जरूर याद रखेगा।
(लेखक बाढ़ मुक्ति अभियान के संयोजक हैं और यह आलेख उनके सोशल मीडिया से साभार लिया गया है)