भारत की आर्थिक प्रगति को रोकने हेतु अशांति फैलाने के हो रहे हैं प्रयास

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ग्वालियर : भारत की लगातार तेज हो रही आर्थिक प्रगति पर विश्व के कुछ देश अब ईर्ष्या करने लगे हैं एवं उन्हें यह आभास हो रहा है कि आगे आने वाले समय में इससे उनके अपने आर्थिक हितों पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। इस सूची में सबसे ऊपर चीन का नाम उभर कर सामने आ रहा है। और फिर, चीन की अपनी आर्थिक प्रगति धीमी भी होती जा रही है। दूसरे, विश्व को भी आज यह आभास होने लगा है कि विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन के मामले में केवल चीन पर निर्भर रहना बहुत जोखिम भरा कार्य है। इसका अनुभव विशेष रूप से विकसित देशों ने कोरोना महामारी के बाद से वितरण चैन में आई भारी परेशानी से किया है, जिसके चलते इन देशों में मुद्रा स्फीति की समस्या आज भी पूरे तौर पर नियंत्रण में नहीं आ पाई है। साथ ही, चीन की विस्तारवादी नीतियों के चलते उसके अपने किसी भी पड़ौसी देश से (पाकिस्तान को छोड़कर) अच्छे सम्बंध नहीं हैं। अतः कई देश अब यह सोचने पर मजबूर हुए हैं कि चीन+1 की नीति का अनुपालन ही उनके हित में होगा। अर्थात, यदि किसी उद्योगपति ने चीन में अपनी एक विनिर्माण इकाई स्थापित की है तो आवश्यकता पड़ने पर उसके द्वारा अब दूसरी विनिर्माण इकाई चीन में स्थापित न करते हुए इसे अब किसी अन्य देश में स्थापित किया जाना चाहिए। यह दूसरा देश भारत भी हो सकता क्योंकि भारत अब न केवल “ईज आफ डूइंग बिजनेस” के क्षेत्र में अतुलनीय सुधार करता हुआ दिखाई दे रहा है बल्कि भारत में बुनियादी ढांचा के विस्तार में भी अतुलनीय प्रगति दृष्टिगोचर है।

केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक क्षेत्र में लागू की गई कई नीतियों के चलते भारत आज विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था तो बन ही गया है और अब यह तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है। अर्थ के कई क्षेत्रों में तो भारत विश्व में प्रथम पायदान पर आ भी चुका है। इससे अब चीन के साथ अमेरिका को भी आने वाले समय में वैश्विक स्तर पर अपने प्रभाव में कमी आने की चिंता सताने लगी है। अतः विश्व के कई देशों में अब भारत की आर्थिक प्रगति को लेकर ईर्ष्या की भावना विकसित होती दिखाई दे रही है। इस ईर्ष्या की भावना के कारण वे भारत के लिए कई प्रकार की समस्याएं खड़ी करने का प्रयास करते दिखाई देने लगे हैं। यह समस्याएं केवल आर्थिक क्षेत्र में खड़ी नहीं की जा रही हैं बल्कि सामाजिक, राजनैतिक एवं आध्यात्मिक आदि क्षेत्रों में भी खड़ी करने के प्रयास हो रहे हैं।

सबसे पहिले तो कुछ देश प्रयास कर रहे हैं कि भारत में किस प्रकार सामाजिक अशांति फैलायी जाए। इसके लिए भारत की कुटुंब प्रणाली को तोड़ने के प्रयास किए जा रहे हैं। देश में विभिन्न टी वी चैनल पर इस प्रकार के सीरियल दिखाए जा रहे हैं जिससे परिवार के विभिन्न सदस्यों के बीच आपस में छोटी छोटी बातों में लड़ने को बढ़ावा मिल रहा है। इन सीरियल में सास को बहू से, ननद को देवरानी से, छोटी बहिन को बड़ी बहिन से, एक पड़ौसी को दूसरे पड़ौसी से, संघर्ष करते हुए दिखाया जा रहा है। इन सीरियल के माध्यम से भारत में भी पूंजीवाद की तर्ज पर व्यक्तिवाद को हावी होते हुए दिखाया जा रहा है। जबकि भारतीय हिंदू सनातन संस्कृति हमें संयुक्त परिवार में आपस में मिलजुल कर रहना सिखाती है, त्याग एवं तपस्या की भावना जागृत करती है एवं परिवार के छोटे सदस्यों द्वारा अपने बड़े सदस्यों का आदर करना सिखाती है। इसके ठीक विपरीत पश्चिमी सभ्यता के अंतर्गत संयुक्त परिवार दिखाई ही नहीं देते हैं वे तो व्यक्तिगत स्तर पर केवल अपने आर्थिक हित साधते हुए नजर आते है। पश्चिमी देशों के इन प्रयासों से आज कुछ हद्द तक भारतीय समाज भी पश्चिमी सभ्यता की ओर आकर्षित होता हुआ दिखाई देने लगा है। आज विकसित देशों के परिवारों में बेटे के 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने के पश्चात वह परिवार से अलग होकर अपना परिवार बसा लेता है। अपने बूढ़े माता पिता की देखभाल भी नहीं कर पाता है। इसके चलते इन देशों में सरकारों को अपने प्रौढ़ वर्ग के नागरिकों के देखरेख करनी होती है और इनके लिए सरकार के स्तर पर कई योजनाएं चलानी पड़ती है। आज इन देशों में प्रौढ़ नागरिकों की संख्या के लगातार बढ़ते जाने से सरकार के बजट पर अत्यधिक विपरीत प्रभाव पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। जबकि भारत में संयुक्त परिवार की प्रथा के कारण ही इस प्रकार की कोई समस्या दिखाई नहीं दे रही है। अतः पश्चिमी देशों द्वारा भारत की कुटुंब प्रणाली को अपनाए जाने के स्थान पर इसे भारत में भी नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है।

दूसरे, कई देश अब भारत में सामाजिक समरसता के तानेबाने को भी विपरीत रूप से प्रभावित करने के प्रयास करते हुए दिखाई दे रहे हैं। विशेष रूप से हिंदू समाज में विभिन्न मत, पंथ मानने वाले नागरिकों को आपस में लड़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि इन्हें आपस में बांटा जा सके और भारत में अशांति फैलायी जा सके तथा जिससे देश की आर्थिक प्रगति विपरीत रूप से प्रभावित हो सके। भारत के इतिहास पर नजर डालने पर ध्यान में आता है कि भारत में जब जब सामाजिक समरसता का अभाव दिखाई दिया है तब तब विदेशी आक्रांताओं एवं अंग्रेजों को भारत में अपना शासन स्थापित करने में आसानी हुई है। उन्होंने “बांटो एवं राज करो” की नीति के अनुपालन से ही भारत के कुछ भू भाग पर अपनी सत्ता स्थापित की थी। अब एक बार पुनः इसी आजमाए हुए नुस्खे को पुनः आजमाने का प्रयास किया जा रहा है। चाहे वह जातिगत जनगणना करने के नाम पर हो अथवा समाज के विभिन्न वर्गों को दी जाने वाली सुविधाओं को लेकर किये जाने वाले आंदोलनों की बात हो।

तीसरे, कई देशों द्वारा भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य देशों में भी अस्थिरता फैलाने के प्रयास किए जा रहे हैं। सबसे ताजा उदाहरण बांग्लादेश का लिया जा सकता है जहां हाल ही में सत्ता परिवर्तन हुआ है। अब बांग्लादेश में अतिवादी दलों के हाथों में सत्ता की कमान जाती हुई दिखाई दे रही है इससे अब बांग्लादेश में भी आर्थिक प्रगति विपरीत रूप से प्रभावित होगी। मालदीव में पूर्व में ही भारत विरोध के नाम पर अतिवादी दलों ने सत्ता हथिया ली है, जो वहां भारत “गो बैक” के नारे लगाते हुए दिखाई दे रहे हैं एवं चीन के साथ अपने राजनैतिक रिश्ते स्थापित कर रहे हैं। नेपाल में भी हाल ही में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद वे चीन के करीब जाते हुए दिखाई दे रहे हैं। श्रीलंका पूर्व में ही राजनैतिक अस्थिरता के दौर से गुजर चुका है। पाकिस्तान तो घोषित रूप से अपने आप को भारत का दुश्मन देश कहलाता है। अफगानिस्तान में भी तालिबान की सत्ता स्थापित हो चुकी है, हालांकि अफगानिस्तान ने भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है।

कुल मिलाकर भारत की आर्थिक प्रगति को रोकने हेतु कुछ देशों द्वारा भरपूर प्रयास किए जा रहे हैं। भारत में अशांति फैलाकर ये देश प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को भारत में आने से रोकने के प्रयास कर रहे हैं ताकि विदेशी कम्पनियां भारत में विनिर्माण इकाईयों को स्थापित करने के प्रति हत्तोत्साहित हों और देश में बेरोजगारी की समस्या विकराल रूप धारण कर ले। इस प्रकार के माहौल में आज भारत के आम नागरिकों में देश प्रेम का भाव जगाने की सबसे अधिक आवश्यकता है एवं विभिन्न समाजों एवं मत पंथ को मानने वाले नागरिकों के बीच आपस में भाई चारा स्थापित करने की भी महती आवश्यकता है। अन्यथा, एक बार पुनः विदेशी ताकतें भारत की आम जनता को आपस में लड़ा कर इस देश पर अपना शासन स्थापित करने में सफल हो सकती हैं। परंतु, हर्ष का विषय है कि भारत में कई सांस्कृतिक संगठन अब कुछ देशों की इन कुटिल चालों से भारत की आम जनता को अवगत कराने के प्रयास करने लगे हैं एवं समाज की सज्जन शक्ति भी अब इन बातों को जनता के बीच ले जाकर उन्हें इस प्रकार के कुत्सित प्रयासों के परिणामों से अवगत कराने लगी हैं और कुछ हद्द तक इसका आभास अब आम जनता को होने भी लगा है।

बजट के माध्यम से भारत में रोजगार के नए अवसर निर्मित करने का प्रयास

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ग्वालियर : हाल ही में लोकसभा के लिए सम्पन्न हुए चुनाव में भारतीय नागरिकों ने लगातार तीसरी बार एनडीए की अगुवाई में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को सत्ता की चाबी आगामी पांच वर्षों के लिए इस उम्मीद के साथ पुनः सौंपी है कि आगे आने वाले पांच वर्षों में केंद्र सरकार द्वारा देश में आर्थिक विकास को और अधिक गति देने के प्रयास जारी रखे जाएंगे। भारत की वित्तमंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन ने 23 जुलाई 2024 को मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट भारतीय संसद में पेश किया है। इस बजट के माध्यम से भारत की आर्थिक विकास दर को उच्च स्तर पर ले जाने का प्रयास किया गया है।

केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए 9 प्राथमिकताएं तय की है। कृषि क्षेत्र में उत्पादकता को बढ़ाना, युवाओं के लिए रोजगार के अधिकतम अवसर निर्मित करना एवं उनके कौशल को विकसित करना, गरीब नागरिकों को भी विकास में हिस्सेदारी देना एवं उन्हें सामाजिक न्याय देना, विनिर्माण इकाईयों को बढ़ावा देना, शहरी क्षेत्रों को विकसित करना, ऊर्जा की उपलब्धता सुनिश्चित करना, आधारभूत ढांचा विकसित करना, नवाचार, शोध एवं विकास करना तथा नई पीढ़ी के सुधार कार्यक्रमों को लागू करना।

केंद्र सरकार एवं कुछ राज्य सरकारों द्वारा पूंजीगत खर्चों में लगातार की जा रही वृद्धि के चलते भारत की आर्थिक विकास दर को पंख लगते दिखाई दे रहे हैं। वर्ष 2022-23 के बजट में केंद्र सरकार द्वारा 7.5 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्चों का प्रावधान किया गया था, वित्तीय वर्ष 2023-24 में इसमें 33 प्रतिशत की भारी भरकम वृद्धि करते हुए इसे बढ़ाकर 10 लाख करोड़ रुपए का कर दिया गया था। अब वित्तीय वर्ष 2024-45 के लिए इसे और आगे बढ़कर 11.11 लाख करोड़ रुपए का कर दिया गया है, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 3.4 प्रतिशत है। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था में न केवल स्थिरता दिखाई देने लगी है बल्कि यह लगातार तेज गति से आगे बढ़ रही है। आज पूरे विश्व में केवल भारतीय अर्थव्यवस्था ही एक चमकते सितारे के रूप में दिखाई दे रही है।

बजट का गहराई से अध्ययन करने पर ध्यान में आता है कि केंद्र सरकार ने अब भारत में रोजगार के अधिकतम अवसर निर्मित करने की ठान ली है। भारत के युवाओं एवं महिलाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने एवं कौशल विकसित करने की दृष्टि से 2 लाख करोड़ रुपए की 5 योजनाओं के एक पैकेज की घोषणा की है। शिक्षा, रोजगार एवं कौशल विकास के लिए 1.48 लाख करोड़ रुपए की राशि इस बजट में आबंटित भी कर दी गई है। प्रधानमंत्री पैकेज के अंतर्गत EPFO के प्रथम बार सदस्य बनने पर औपचारिक क्षेत्र के कर्मचारियों के EPFO खातों में एक माह का वेतन जमा किया जाएगा। इन कर्मचारियों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण योजना के अंतर्गत एक माह का वेतन (15000 रुपए की अधिकतम राशि तक) तीन किश्तों में उनके खातों में जमा किया जाएगा। इस योजना के अंतर्गत एक माह में एक लाख रुपए तक का वेतन पाने वाली कर्मचारी ही पात्र होंगे। इससे 2.1 करोड़ युवाओं को लाभ होने की सम्भावना बजट में व्यक्त की गई है।

ऐसे भी कई निर्णय लिए जा रहे हैं जिनसे आने वाले समय में धरातल पर युवाओं को लाभ होता दिखाई देगा। एक करोड़ युवाओं को आगामी 5 वर्षों के दौरान इंटर्नशिप योजना के अंतर्गत काम दिया जाएगा। ताकि ये युवा वर्ग के नागरिक रोजगार प्राप्त करने हेतु सक्षम हो सकें। इन युवाओं को प्रति माह 6,000 रुपए तक का वाजीफा सम्बंधित कम्पनियों द्वारा अदा किया जाएगा। वजीफे की इस राशि को कम्पनियों के लिए लागू निगमित सामाजिक दायित्व योजना के अंतर्गत किया गया खर्च माना जाएगा। भारत की सबसे बड़ी 500 कम्पनियों को इस योजना के अंतर्गत युवाओं को इंटर्नशिप की सुविधा देनी होगी। साथ ही, केंद्र सरकार द्वारा भी इन युवाओं को प्रतिमाह 5000 रुपए अदा किए जाएंगे। यह केंद्र सरकार का एक सूझबूझ भरा निर्णय कहा जा सकता हैं। साथ ही, विनिर्माण के क्षेत्र के रोजगार के नए अवसर निर्मित करने की पहल भी की जा रही है। नए कर्मचारियों के EPFO खाते में जमा होने वाली राशि को आगामी 4 वर्षों तक केंद्र सरकार द्वारा वहन किया जाएगा, इससे कर्मचारी एवं नियोक्ता दोनों को ही लाभ होगा। इस योजना का लाभ 30 लाख युवाओं को होने जा रहा है। एक अन्य योजना के अंतर्गत नियोक्ता को अपने नए कर्मचारियों के EPFO खातों में जमा की जाने वाली राशि की प्रतिपूर्ति आगामी 2 वर्षों तक केंद्र सरकार द्वारा की जाएगी। इससे रोजगार के 50 लाख नए अवसर निर्मित होने की सम्भावना है।

केंद्र सरकार द्वारा हाल ही के समय में भारतीय सनातन संस्कृति के संस्कारों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से धार्मिक पर्यटन को देश में बढ़ावा दिया जा रहा है। धार्मिक पर्यटन से देश में रोजगार के लाखों अवसर निर्मित हो रहे हैं एवं गरीब वर्ग की आय में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। श्री विष्णुपाद मंदिर कोरिडोर, गया, बिहार एवं श्री महाबोधि मंदिर कोरिडोर बोधगया, बिहार को विकसित किए जाने की घोषणा की गई है। इसे काशी विश्वनाथ मंदिर कोरिडोर की तर्ज पर विकसित किया जाएगा। इसी प्रकार देश में अन्य मंदिरों को भी विकसित किया जा रहा है ताकि देश में इन मंदिरों में श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा नहीं हो तथा भारत को वैश्विक पटल पर एक बहुत बड़े धार्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में दिखाया जा सके।

भारत के ग्रामों में निवास कर रहे नागरिक रोजगार प्राप्त करने के उद्देश्य से शहरों की ओर पलायन करते हैं। अतः ग्रामों में ही रोजगार के अधिकतम अवसर निर्मित करने के उद्देश्य से ग्रामीण विकास की मद पर 2.66 लाख करोड़ रुपए की राशि का प्रावधान इस बजट में किया गया है। साथ ही, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मुद्रा लोन योजना के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली ऋण राशि की सीमा को 10 लाख रुपए से बढ़ाकर 20 लाख रुपए कर दिया गया है। यह सुविधा तरुण श्रेणी के अंतर्गत प्राप्त ऋण के व्यवसाईयों को प्राप्त होगी एवं जिन्होंने पूर्व में लिए गए 10 लाख रुपए के ऋण की राशि को समय पर अदा कर दिया है। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों के लिए भी ऋण की सीमा को बढ़ाकर 100 करोड़ रुपए तक कर दिया गया है।

प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के अंतर्गत एक करोड़ आवासों का निर्माण किया जाएगा। इन एक करोड़ आवासों पर 10 लाख करोड़ रुपए की राशि का निवेश होगा, इसमें केंद्र सरकार की भागीदारी 2.2 लाख करोड़ रुपए की रहेगी। साथ ही, प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के अंतर्गत 3 करोड़ आवासों का निर्माण करने की घोषणा पूर्व में ही की जा चुकी है।

देश के आर्थिक चक्र को गति देने के उद्देश्य से नई कर प्रणाली के अंतर्गत वेतनभोगी/पेंशनधारी कर्मचारियों के लिए सामान्य छूट की सीमा को 50,000 रुपए से बढ़ाकर 75,000 रुपए कर दिया गया है। साथ ही, आय कर की दरों में कुछ इस प्रकार का संशोधन किया गया है कि 15 लाख रुपए तक की कर योग्य आय वाले कर्मचारियों को प्रतिवर्ष 17,500 रुपए का लाभ होगा। इस निर्णय से मध्यम वर्गीय नागरिकों के हाथों में कुछ अधिक राशि बचेगी और इस राशि इस इनकी क्रय शक्ति बढ़ेगी ताकि देश की अर्थव्यवस्था के चक्र में मजबूती आएगी।

वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट में कुल आय का अनुमान रुपए 31.07 लाख करोड़ रुपए का लगाया गया है, इसमें ऋण की राशि शामिल नहीं है परंतु, करों के मद से प्राप्त होने वाली 25.83 लाख करोड़ रुपए की राशि शामिल है। जबकि, कुल खर्च का अनुमान 48.21 लाख करोड़ रुपए का लगाया गया है।

कांग्रेस के नेतृत्व में इंडी गठबंधन की जाति राजनीति और बेनकाब होते राहुल गांधी

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विगत दो वर्षों से विशेषकर कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सत्ता प्राप्ति और फिर लोकसभा चुनाव में 99 सीटें जीत लेने के बाद राहुल गांधी और इंडी गठबंधन हर समय जाति जाति कर रहा है। संभवतः उन्हें लग रहा है कि जातिगत आरक्षण ही एक ऐसा बड़ा हथियार है जिसके माध्यम से जातियों में विभाजित हिंदू समाज को आपस में लड़ाकर भारतीय जनता पार्टी राजनैतिक रूप से पराजित किया जा सकता है और कांग्रेस के अच्छे दिन वापस लाये जा सकते हैं।

राहुल गांधी अपनी तथाकथित न्याय यात्रा के दौरान हर जनसभा में जाति का मुद्दा उठाते रहे हैं यहां तक कि वो पत्रकार वार्ता में पत्रकारों और उनके मालिकों की जाति पूछते रहे हैं। राहुल गांधी सेना प्रमुखों की जाति पूछ चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी जाति के नाम पर अपमान करते रहे हैं। राहुल गांधी बहुत ही भद्दे तरीके से अपनी रैलियों में कहा करते हैं कि प्रधनमंत्री मोदी ओबीसी समाज से नहीं आते अपितु वह सामान्य वर्ग से आते हैं। जाति का नशा उनके दिमाग को इस तरह खा चुका है कि वो मर्यादा की सभी सीमाओं को तोड़ते हुए पीएमओ में कार्यरत अफसरों की जातियां पूछ रहे है, इस बार दो कदम आगे बढ़कर उन्होंने बजट सत्र के दौरान, बजट प्रस्तुत करने के पूर्व होने वाली हलवा सेरेमनी का चित्र दिखाते हुए उस प्रक्रिया में भाग लेने वाले अफसरो तक की जाति पूछ ली। जातिगत विद्वेष फैलाने में वो इतने आगे निकल गए कि कहने लगे सवर्ण किसी परीक्षा का प्रश्नपत्र बनेंगे तो और कोई पास नहीं हो पाएगा।

सांसदों की संख्या 99 होते ही राहुल गांधी अतिउत्साह में आ गये हैं और हर बात पर यही दोहरा रहे हैं कि वह जातिगत जनगणना को करा कर ही रहेंगे। राहुल गांधी बहुत ही खतरनाक व विकृत राजनीति कर रहे हैं और वस्तुतः वामपंथी एजेंडा धारी के रूप में उभर रहे हैं जिसके अंतर्गत वह हिंदू सनातन प्रतीकों को आधार बनाकर हिंदू धर्म को ही कभी हिंसक बताकर उसका अपमान कर रहे हैं और कभी अपने आप को शिवजी और अपने सभी सांसदों व सहयोगियों को शिवजी की बारात कहकर भगवान शिव और समस्त हिंदू समाज का अपमान करते हुए जातिगत जनगणना की बात करते हैं। भारत विरोधी ताकतें जो कभी नहीं चाहतीं कि भारत सशक्त होकर उभरे और विकसित राष्ट्रों में स्थान बनाए वो सभी राहुल के इस विषवमन के पीछे हैं। हिंदू समाज को जाति के आधार पर लड़ाकर देश को कमजोर करने के लिए ही जाति का मुद्दा हिंसात्मक रूप लेने की कगार तक उछाला जा रहा है जिसका नेतृत्व गांधी परिवार कर रहा है।

बात बात पर जातिगत जनगणना की मांग करने वाले राहुल गांधी के पिता स्वर्गीय राजीव गांधी, दादी इंदिरा गांधी, दादी के पिता जवाहर लाल नेहरू सभी जातिगत जनगणना के प्रबल विरोधी थे। इन सभी का मत था कि जातिगत जनगणना से भारत खंड- खंड में विभाजित होकर कमजोर हो जायेगा । अगर जातिगत जनगणना देश के लिए इतनी ही अनिवार्य थी तो 2004 से लेकर 2013 तक जब कांग्रेस की ही सरकार परोक्ष रूप से स्वयं राहुल गांधी की माँ सोनिया गांधी चला रही थीं तब उन्होंने जातिगत जनगणना क्यों नही करवाई? वर्तमान में जो कांग्रेस शासित राज्य हैं, वहां के मुख्यमंत्री जातिगत जनगणना क्यों नहीं करवा पा रहे हैं? कांग्रेस जाति के नाम पर राजनीति करती है और इसीलिए कांग्रेस के जातिगत जनगणना पर विचार भी बदलते रहते हैं। 2010 में यूपीए की सरकार के समय लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव और शरद यादव जैसे कद्दावर नेताओं ने जातिगत जनगणना का मुददा उठाया था तब के कांग्रेस के बड़े नेताओं पी चिदम्बरम, आनंद शर्मा और मुकुल वासनिक ने इसका पुरजोर विरोध किया था। आनंद शर्मा आज भी जातिगत जनगणना का विरोध कर रहे हैं।

जाति जनगणना करायेंगे पर जाति नहीं बतायेंगे- राहुल गांधी व संपूर्ण विपक्ष जाति जाति की रट तो लगा रहा है किंतु कोई उनकी जाति पूछ ले तो आगबबूला हो जाता है। यह लोग जाति जनगणना तो कराना चाह रहे हैं लेकिन अपनी जाति नहीं बता पा रहे है जिससे यह भी प्रतिध्वनि निकलती है कि इनके मन में कितनी खोट है और इनका एकमात्र उद्देश्य हिंदू समाज को गली -गली में जातीय दंगों की ज्वाला में झुलसाना है ताकि ये किसी एक जाति के मसीहा बनकर अपना स्वार्थ सिद्ध कर सकें।

संसद के बजट सत्र में जाति जनगणना का मुद्दा उस समय बहुत गर्म हो गया जब लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर आपस में भिड़ गये। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने बजट चर्चा के दौरान बोलते हुए कहा कि “जिसकी जाति का पता नहीं वह जाति गणना की बात करता है” उसके बाद राहुल गांधी और अखिलेश यादव बुरी तरह से भड़क गये । राहुल गांधी को यह बात इतनी आपत्तिजनक लगी कि उन्होंने कहा कि सदन में उनका अपमान किया गया है और आगे जोड़ा कि जो लोग एससी एसटी दलित व पिछड़ो की बात करते हैं उन्हें गालियां खानी ही पड़ती हैं । सपा नेता व सांसद अखिलेश यादव तो इतने उत्तेजित हो गए कि चीखने लगे कि आप किसी से उसकी जाति कैसे पूछ सकते हैं? इस विवाद ने एक ही झटके में राहुल और अखिलेश दोनों को बेनकाब कर दिया है क्योंकि यह दोनों ही सार्वजानिक रूप से सामान्य लोगों से उनकी जाति पूछकर उनका अपमान करते रहे हैं।

यह लोग न केवल आम पत्रकारों और सरकारी अधिकारियों वरन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी जाति के आधार पर अपमानित करते रहे हैं तब न तो किसी ने इन पर मुकदमा दर्ज करवाया न ही धरना प्रदर्शन या पुतला फूंक कार्यक्रम हुआ किन्तु इसके विपरीत जब से हिमाचल के सांसद अनुराग ठाकुर ने राहुल की जाति पूछ ली है तब से ये लोग अनर्गल आरोप लगा रहे हैं कि अनुराग ठाकुर ने सदन में इनको गाली दी। सोशल मीडिया तथा टी वी चैनलों पर इनके प्रवक्ता दहाड़ मारकर रो रहे हैं । जब खुद की जाति बताने की बात आई तो अपना अपमान नजर आने लगा, यह वही बात हो गयी है कि गुड़ खाएंगे पर गुलगुले से परहेज करेंगे।

राहुल गांधी और अखिलेश यादव को यदि भारत के सामान्य गरीब व्यक्ति की जाति पूछने का अधिकार है और यह लोग उसके आधार पर कहीं पर किसी को भी अपमानित कर सकते है तो जनता को भी ये अधिकार है कि वह इनसे इनकी जाति और धर्म का ब्यौरा ले । आज भारत की जनता यह पूछना चाह रही है कि आखिर राहुल गांधी जाति क्यों छिपा रहे हैं? कहीं चोर की दाढ़ी में तिनका तो नहीं है ?

क्या बिना जाति बताये होगी जनगणना?- राहुल गांधी अपनी जाति बताने में सकपका रहे हैं क्योंकि इससे उनके परिवार का इतिहास बेपर्दा हो जायेगा। वह जाति कैसे बता सकते हैं क्योंकि उनको तो अपना धर्म भी नहीं पता, उनका धर्म चुनाव दर चुनाव बदलता रहता है, उनके नाना अपने नाम के पीछे नेहरू और आगे पंडित लगाते थे। दादी ने पारसी से विवाह किया लेकिन पिता राजीव गांधी भी अपने आप को ब्राह्मण ही बताते रहे। माँ कैथोलिक ईसाई है लेकिन राहुल गांधी ने एक बार पुष्कर यात्रा के दौरान वहां पर स्वयं को कश्मीरी कौल ब्राह्मण बताते हुए अपना गोत्र दत्तात्रेय बताया था। पार्टी प्रवक्ता ने मीडिया में आकर कहा राहुल गांधी जनेऊधारी हिन्दू हैं। अब अगर राहुल गांधी वास्तव में ब्राहमण हैं तो उन्हें स्वीकार करना चाहिए था लेकिन अगर उनका बप्तिज्मा हो चुका है तो वो भी जनता को बताना चाहिए ।

अब जाति जनगणना की मांग करने वाले राजनीतिक दलों व नेताओं को यह समझना पड़ेगा कि जिस बात को पूछने पर आप अपमानित महसूस करते हैं उस बात को बताये बिन जाति जनगणना संभव नही है। अनुराग ठाकुर के बयान पर राहुल गांधी व फिर कांग्रेस तथा अखिलेश यादव का भड़कना विचारों का द्विधाग्रस्त होने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।
जाति के नैरेटिव के कारण ही उत्तर प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में भाजपा की सीटें कम हो गईं हैं यही कारण है कि राहुल गांधी एंड कंपनी को लग रहा है कि जाति एक ऐसा मुद्दा है जिसके आधार पर भाजपा को हराया जा सकता है और वो उसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

गुजरात प्रदेश स्वावलंबी भारत अभियान के मुख्य संरक्षक के रूपमें डॉ. मयुरभाई जोशी नियुक्त

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स्वदेशी जागरण मंच के अखिल भारतीय अधिकारी सह-संगठक और प्रचारक सतीशजी एवं गुजरात प्रदेश संगठक मनोहरजी की उपस्थिति में स्वदेशी जागरण मंच के गुजरात प्रदेश के प्रशिक्षण वर्ग का आयोजन ए.एम.ए, अहमदाबाद में हुआ।

स्वदेशी जागरण मंच एक आर्थिक संगठन है, जो स्वदेशी विचार और जीवन पद्धति विकास के लिए जागरूकता फैलाता है। विकसित राष्ट्र बनाने का मार्ग उद्यमिता ही है इसी लक्ष्य से स्वावलंबी भारत अभियान देश में रोजगार और स्वरोजगार के अवसर पैदा करने हेतु ठोस कदम उठाने के लिए एक महत्वपूर्ण सामूहिक पहल है l वर्तमान समय में आत्मनिर्भरता की आवश्यकता पर युवाओं की मानसिकता बदलने और उन्हें रोजगार प्रदाता बनाने के उद्देश्य से स्वावलंबी भारत अभियान पूरे देश में चलाया जा रहा है।

इस बैठक में गुजरात और सौराष्ट्र प्रांत के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में गुजरात प्रदेश के संयोजक हसमुखभाई ठाकरने डॉ. मयुरभाई जोशी की स्वावलंबी भारत अभियान के गुजरात प्रदेश के मुख्य संरक्षक और गुजरात प्रांत के सह संयोजक मनसुखभाई पटेल और सौराष्ट्र प्रांत के संयोजक यशभाई जसाणी ने विभिन्न दायित्वों की घोषणा की गई।

स्वावलंबी भारत अभियान के मुख्य संरक्षक के रूप में डॉ. मयुरभाई जोशी गुजरात प्रदेश के गुजरात प्रांत, सौराष्ट्र प्रांत और दीव, दमन और दादरा नगर हवेली के विभिन्न दायित्ववान कार्यकर्ता के साथ मिलकर जिला स्वावलंबन केंद्रों के माध्यम से युवाओं को स्वावलंबन की ओर प्रोत्साहित करके व्यवसाय स्थापित करने और चलाने के लिए कौशल विकास तथा अन्य सहयता उपलब्ध करने हेतु विभिन्न लोगों को जोड़कर सक्रिय रूप से कार्य करेंगे।

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