भारत का विदेशी मुद्रा भंडार एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को छू सकता है

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भोपाल। वर्ष 1991 में भारत के पास केवल 100 करोड़ अमेरिकी डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बच गया था जो केवल 15 दिनों के आयात के लिए ही पर्याप्त था। वहीं, आज भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 65,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है एवं यह पूरे एक वर्ष भर के आयात के लिए पर्याप्त है। आज भारत विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में चीन, जापान, स्विजरलैंड के बाद विश्व का चौथा सबसे बड़ा देश बन गया है। कोरोना महामारी के बाद भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 7,100 करोड़ अमेरिकी डॉलर से कम हुआ था, परंतु वर्ष 2022 के बाद से यह अब लगातार उतनी ही तेज गति से आगे भी बढ़ रहा है। और, अब तो यह उम्मीद की जा रही है कि आगे आने वाले समय में यह एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को भी पार कर जाएगा। भारत में वित्तीय एवं बैंकिंग क्षेत्र में लागू किए गए सुधार कार्यक्रमों के बाद से पिछले 33 वर्षों में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार बढ़ता रहा है। यह वर्ष 2004 में 14,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया था, वर्ष 2014 में 32,200 करोड़ अमेरिकी डॉलर एवं वर्ष 2024 में 65,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है। भारत के पड़ौसी देशों का विदेशी मुद्रा भंडार बहुत कम है, जैसे बंगलादेश के पास 2,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है, नेपाल के पास 1,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर, पाकिस्तान के पास 800 करोड़ अमेरिकी डॉलर एवं श्रीलंका के पास 450 करोड़ अमेरिकी डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है। अतः भारत समय समय पर अपने पड़ौसी देशों (पाकिस्तान को छोड़कर) की इस संदर्भ में लाइन आफ क्रेडिट उपलब्ध कराकर मदद करता रहता है।

हाल ही के समय में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के बढ़ने के कारणों में मुख्य रूप से शामिल हैं, भारत में लगातार बढ़ता प्रत्यक्ष विदेशी निवेश। केंद्र सरकार द्वारा चालू किए गए आर्थिक सुधार कार्यक्रमों के चलते भारत में अब व्यापार करना बहुत आसान हुआ है अतः विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत में अपनी विनिर्माण इकाईयां स्थापित कर रही हैं, जिसके लिए वे भारत में भारी मात्रा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ला रही हैं। दूसरे, भारतीय मूल के नागरिक जो विदेश में जाकर बस गए हैं अथवा वे वहां पर रोजगार प्राप्त करने के उद्देश्य से गए हैं, वे इन देशों में अपनी बचत की राशि को भारत भेज रहे हैं। यह राशि पूरे विश्व में किसी भी देश में भेजने वाली राशि में सबसे अधिक है। वर्ष 2023-24 में विदेशों में बसे भारतीय मूल के नागरिकों ने 12,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि भारत में भेजी थी। दूसरे स्थान पर मेक्सिको रहा था जहां पर 6,700 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि भेजी गई थी और तीसरे स्थान पर चीन रहा था, जहां 5,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि भेजी गई थी। कितना बड़ा अंतर है प्रथम एवं द्वितीय स्थान के देशों में। तीसरा, कारण है कि अब भारत से वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात तेजी से बढ़ रहे हैं जबकि विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात कम हो रहे हैं। और, अब तो भारत रक्षा के क्षेत्र में भी हवाई जहाज एवं अन्य रक्षा सामग्री का निर्यात करने लगा है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में रक्षा के क्षेत्र में 21,083 करोड़ रुपए का निर्यात भारत द्वारा किया गया था, जो वित्तीय वर्ष 2022-23 में निर्यात की गई राशि 15,920 करोड़ रुपए से 32.5 प्रतिशत अधिक था।

विश्व में अब विभिन्न देश अपने विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने के उद्देश्य से अपने के पास स्वर्ण के भंडार भी बढ़ाते जा रहे हैं। आज पूरे विश्व में अमेरिका के पास सबसे अधिक 8133 मेट्रिक टन स्वर्ण के भंडार है, इस संदर्भ में जर्मनी, 3352 मेट्रिक टन स्वर्ण भंडार के साथ, दूसरे स्थान पर एवं इटली 2451 मेट्रिक टन स्वर्ण भंडार के साथ तीसरे स्थान पर है। फ्रान्स (2437 मेट्रिक टन), रूस (2329 मेट्रिक टन), चीन (2245 मेट्रिक टन), स्विजरलैंड (1040 मेट्रिक टन) एवं जापान (846 मेट्रिक टन) के बाद भारत, 812 मेट्रिक टन स्वर्ण भंडार के साथ विश्व में 9वें स्थान पर है। भारत ने हाल ही के समय में अपने स्वर्ण भंडार में वृद्धि करना प्रारम्भ किया है एवं यूनाइटेड अरब अमीरात से 200 मेट्रिक टन स्वर्ण भारतीय रुपए में खरीदा था।

दरअसल किसी भी देश में विदेशी मुद्रा भंडार के अधिक होने के चलते उस देश में विदेशी व्यापार करने का आत्मविश्वास जागता है क्योंकि अन्य देशों से किये गए व्यापार के एवज में विदेशी मुद्रा में भुगतान करने में कोई कठिनाई नहीं होती है। साथ ही, विदेशी निवेशकों में भी विश्वास जागता है कि जिस देश में वे निवेश कर रहे हैं उस देश की अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत है और उनका उस देश में विदेशी मुद्रा में निवेश किया गया पैसा सुरक्षित है एवं उन्हें उनका निवेश वापिस मिलने में कोई परेशानी नहीं आएगी। विदेशी मुद्रा भंडार उच्च स्तर पर होने से कोई भी विदेशी संस्थान ऋण उपलब्ध कराने में नहीं हिचकता है, क्योंकि उसे भरोसा रहता है कि ऋण का पुनर्भुगतान होने में आसानी रहेगी। विदेशी मुद्रा भंडार के उच्च स्तर पर रहने से उस देश की मुद्रा की कीमत को अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरने से बचाया जा सकता है। जैसे भारत में भारतीय रिजर्व बैंक ने कोरोना महामारी के दौरान एवं इसके बाद अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपए की कीमत को अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरने से रोकने में सफलता पाई है। जब कभी अंतरराष्ट्रीय बाजार में अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपए की कीमत पर दबाव दिखाई दिया है, भारतीय रिजर्व बैंक ने अमेरिकी डॉलर को बाजार में बेचकर रुपए की कीमत को स्थिर बनाये रखा है। इस प्रकार, पिछले लगभग दो वर्षों के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपए की कीमत को स्थिर बनाए रखा जा सका है।

अब तो भारत लगातार यह भी प्रयास कर रहा है कि जिन देशों से विभिन्न वस्तुओं का आयात भारत द्वारा किया जा रहा हैं उन्हें इसके एवज में अमेरिकी डॉलर के स्थान पर भारतीय रुपए में भुगतान किया जाए। 32 से अधिक देशों ने इस संदर्भ में अपनी स्वीकृति भारत सरकार को दे दी है एवं कई देशों ने तो भारतीय रिजर्व बैंक के साथ अपना नोस्ट्रो खाता भी खुलवा लिया है ताकि उन्हें भारत को निर्यात किए गए सामान की राशि भारतीय रुपए में भुगतान लेने में आसानी हो सके। यदि भारत और अन्य देशों के बीच इस प्रकार की व्यवस्था सफल होती है तो इन देशों में बीच अमेरिकी डॉलर की मांग कम होगी और अमेरिकी डॉलर की तुलना में अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपए की कीमत स्थिर रखने में और भी आसानी होगी, जो कि भारत के विदेशी व्यापार को गति देने में सहायक होगी।

जिस तेज गति से भारत की अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है, भारत से विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात बढ़ रहे हैं एवं आयात कम हो रहे हैं, भारत में विदेशी निवेश बढ़ रहे हैं, भारतीय मूल के नागरिकों द्वारा भारत में विदेशी मुद्रा में भारी मात्रा में राशि भेजी जा रही है, इससे अब यह विश्वास दृढ़ होता जा रहा है कि आगे आने वाले समय में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को भी पार कर जाएगा।

अजीत अंजुम सिर्फ सफाई दे रहे हैं, अपनी बातों का प्रमाण नहीं

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सफाई पर सफाई दे रहे हैं लेकिन अपना आईटीआर सार्वजनिक नहीं कर रहे। यदि सारी कमाई यू ट्यूब से ही हो रही है तो आईटीआर सार्वजनिक कर दीजिए अजीत अंजुमजी। समाजवादी पार्टी से जुड़े एक युवा नेता ने बताया कि वे उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी के लिए दौरा कर रहे थे। उनकी रिपोर्ट से भी 2022 में लग रहा था कि वे सपा के लिए ही घूम रहे थे। युवा नेता ने कहा कि कैश—काइंड का पता नहीं। उसने यह भी कहा कि यदि मेरी बात पर विश्वास ना हो रहा हो तो उनकी रिपोर्ट गवाही दे देगी। मैने उस दौरान तीन चार रिपोर्ट देखी थी उनकी, यह देखकर दुख हुआ कि वह युवा नेता सही कह रहा था। अजीतजी पूरी तरह सपा की तरफ झुके हुए थे, जैसे रवीश कुमार अपने भाई के प्रेम कांग्रेस की तरफ बहे जा रहे हैं। इतना बह रहे हैं कि राहुलजी की चाटुकारिता के लिए उनके प्रेस कांफ्रेन्स में खुद मोबाइल हाथ में लेकर रिकॉर्डिंग करते हैं फिर भी राहुल गांधी का इंटरव्यू उन्हें नहीं मिल पाता है।

अजीत अंजुम कितनी भी सफाई दे दें लेकिन उनकी लेन देन की कहानियां दिल्ली एनसीआर में खूब सुनी—सुनाई जाती हैं। वर्तमान में अजीतजी का आईटीआर नोएडा के बड़े—बड़े संपादकों से अधिक है। इस कमाई के पीछे की बड़ी वजह भाजपा से उनकी नफरत हैं। उनकी कमाई में बड़ा योगदान उनकी ‘नफरत’ का है। उनकी रिपोर्टिंग से भी यह बात साबित होती है क्योंकि वे भारतीय जनता पार्टी के विरोध में रिपोर्ट करते हैं। ऐसा नहीं है कि उन्होंने भाजपा का विरोध करके किसी तरह की अच्छी पत्रकारिता का परिचय दिया है। वे निष्पक्ष नहीं हैं। उनकी पत्रकारिता का इतिहास है कि वे 2014 से पहले भी भाजपा से नफरत ही करते थे। इस तरह उनकी स्वाभाविक नफरत के बदले उन्हें कहीं से अच्छी रकम मिलती है तो वे क्यों कोई भी लेने से क्यों मना करेगा? अपनी पत्रकारिता के पूरे इतिहास में सोनिया गांधी की आलोचना में अजीत अंजुम और रवीश कुमार ने कोई रिपोर्टिंग की हो तो सार्वजनिक कर दें। उन्हें मिलेगा नहीं। रीढ़ का चाहे दावा कितना भी कर लें। उनकी रीढ़ पैसों की नींव पर टीकी है। जिसमें पत्रकारिता की कोई भूमिका नहीं है। वे नट और भाट की तरह पत्रकारिता के नाम पर कर्तव दिखाकर पैसे कमा रहे हैं। इसी पैसे की ताकत पर वे इतनी बड़ी बड़ी बातें कर रहे हैं।

वे अपनी सफाई में होटलों की कहानी सुना रहें हैं। देखकर भी हंसी आ रही थी। उत्तर प्रदेश के 2022 के चुनावों के दौरान यदि उन्होंने सभी होटलों में पूरे पैसे दिए हैं। वह सारा रिकॉर्ड सार्वजनिक कर दें। कहां कहा रूके। कितना बिल बना? उन्होंने आनलाइन पेमेंट की होगी। बिल की कॉपी सार्वजनिक कर दें। जिससे इस अफवाह को विराम मिले कि उनके होटलों की बुकिंग कोई और करता है। वे बता रहे हैं कि वे खुद अपने मोबाइल से पेमेंट करते हैं। यहां सवाल उठता है कि बात बात पर प्रमाण मांगने वाले अजीत अंजुम अपने मामले में प्रमाण क्यों नहीं देना चाहते?

अजीत अंजुम निजी टिप्पणियों पर इतने आहत हो गए हैं। उनके ही चैनल पर एक कथित किसान ने कहा था कि मोदी यदि हमारे बीच आ गया तो जिन्दा नहीं जाएगा। अजीत इस फूटेज को संपादित कर सकते थे लेकिन उन्होंने नहीं किया। आज तक इसे चलाने के लिए उन्होंने ना माफी मांगी और ना ही शर्मिन्दा हुए।

अजीत अंजुम के परिवार पर कोई टिप्पणी कर दे तो इतने नाराज हो जाते हैं कि राजेन्द्र यादव जैसे वरिष्ठ साहित्यकार के घर पहुंच जाते हैं और देश के प्रतिष्ठीत प्रकाशन संस्थान को प्रकाशित किताब के बीच से पन्ने निकालने तक को मजबूर कर देते हैं। जबकि प्रधानमंत्री मोदी के वैवाहिक जीवन पर उनके यू ट्यूब चैनल पर कोई आसानी से अनर्गल टिप्पणी करके जा सकता है। वे आलोचना तक नहीं करते। क्या अजीत अंजुम अपने वैवाहिक जीवन और परिवार के संबंध में कुछ अनर्गल बोलते हुए किसी को सुनकर सहज रह पाएंगे। यदि सामने वाला सारी बातें तथ्यात्मक तौर पर सही बोले तब भी। वे तो राजेन्द्र यादव जैसे वरिष्ठ साहित्यकार की हल्की सी टिप्पणी पर असहज हो गए थे। क्या था उन पृष्ठों में?

बिहार में प्रशंसक तो शाहबुद्दीन के भी लाखों थे। इसलिए 12,000 लोगों की टिप्पणियों के धोखे में मत आइए। वे इसे दिखाकर सहानुभूति बटोरना चाहते हैं, उनमें अधिकांश कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता ही निकलेंगे। या फिर अभिसार शर्मा, रवीश पांडेय, अशोक पांडेय जैसे मोदी से नफरत करने वाले सवर्ण यू ट्यूबर। यह देखना दिलचस्प होगा कि 12000 कमेंट करने वालों में रवीश पांडेय—अशोक पांडेय जैसे सवर्ण कितने हैं और आदिवासी, दलित और पिछड़े समाज से कितने हैं?

अजीत अंजुम जो बातें अपने दर्शकों से कह रहे हैं, उसके प्रमाण वे क्यों नहीं प्रस्तुत कर रहे। यदि उनकी यू ट्यूब के अलावा कही और से कोई आमदनी नहीं हुई है, जिस बात पर दर्शक होने के नाते उनका विश्वास भी करना चाहता हूं लेकिन इसके लिए वे अपना आईटीआर सार्वजनिक क्यों नहीं कर देते। वे तो बिना प्रमाण के किसी बात पर विश्वास नहीं करते। फिर वे क्यों चाहते हैं कि उनके दर्शक अंधविश्वासी बने और उनकी कही बातों पर बिना किसी प्रमाण के विश्वास कर लें।

रामभक्त हुए भाव विह्वल, अपने मत से करेंगे मोदी का तिलक !!

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अयोध्या। वर्ष 2024 में 500 वर्षों के पश्चात प्रभु राम के जन्मदिवस का उत्सवउनकी जन्मस्थली पर मनाया गया। इस अवसर पर सूर्यवंशी रामलला के भाल पर स्वयं सूर्यदेव ने अपनी किरणों से तिलक किया ये अद्भुत –अलौकिक क्षण हिन्दुओं के निरंतर संघर्ष और बलिदान के प्रसाद का क्षण था, जिसे देखकर संपूर्ण विश्व का हिंदू मन-मानस भाव विभोर हुआ। सूर्य तिलक का ये क्षण हमारी संस्कृति के पुनर्जागरण का प्रतीक क्षण है। अयोध्या के दिव्य, भव्य व नव्य राम मंदिर में प्रभु श्रीराम का सूर्य तिलक संपूर्ण सनातन हिंदू समाज के कल्याणकारी होने जा रहा है।

रामनवमी का पर्व अत्यंत भव्यता और उल्लास के साथ मनाया गया। सूर्य तिलक के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने असम के नलबाड़ी में अपनी चुनावी जनसभा के बाद हेलीकाप्टर में ही अपने टैब पर सूर्य तिलक का सीधा प्रसारण देखा। श्रद्धा भाव में तल्लीन प्रधानमंत्री ने टैब पर प्रभु राम का दर्शन करते समय भी अपने जूते उतार कर रख दिए थे, इस बात पर सभी का ध्यान गया। इस अवसर पर उन्होंने अपने एक्स (ट्विटर) हैंडल पर पोस्ट किया कि, “मुझे अयोध्या में रामलला के सूर्य तिलक के अद्भुत और अप्रतिम क्षण को देखने का सौभाग्य मिला। श्रीराम जन्मभूमि का ये बहुप्रतीक्षित क्षण हर किसी के लिए परमानंद का क्षण है । ये सूर्य तिलक विकसित भारत के हर संकल्प को अपनी दिव्य ऊर्जा से इसी तरह प्रकाशित करेगा।

इसके पूर्व प्रधानमंत्री मोदी ने नलबाड़ी की जनसभा में जयश्रीराम, जय सियाराम और राम लक्ष्मण जानकी – जय बोलो हनुमान की, का उद्घोष करवा कर राम लहर को पुनः जीवंत कर दिया। सूर्य की किरणों से जब प्रभु श्रीराम का महामस्तकाभिषेक हो रहा था उस समय अयोध्या ही नहीं अपितु संपूर्ण भारत का हिंदू समाज उल्लास में डूबा हुआ था। दूर दूर से आ रहे लाखों श्रद्धालु जिनमें धनी- निर्धन, स्त्री- पुरुष,आबाल वृद्ध व समाज के सभी वर्गो के लोग थे, अत्यंत धैर्य, संयम व अनुशासन के साथ अपने प्रभु श्रीराम का दर्शन करने के लिए आतुर थे।लाखों की भीड़ आने के बावजूद किसी भी प्रकार की कोई अव्यवस्था नहीं हुई । ऐसा लग रहा था कि प्रभु राम के भक्त भी प्रभु श्रीराम की तरह मर्यादित हैं।

भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण की इस महान घटना के दिन को भी, मुस्लिम तुष्टिकरण की विकृत राजनीति से गले तक भरे हुए राजनैतिक दलों ने अपनी सियासत चमकाने व प्रभु श्रीराम सहित संपूर्ण हिंदू सनातन समाज की आस्था का उपहास करने का अवसर बना लिया। अयोध्या में कारसेवकों का नरसंहार करने वाली समाजवादी पार्टी के नेता महासचिव रामगोपाल यादव ने कहा कि,”रामनवमी को कुछ लोगों ने पेटेंट करा लिया है।ये उनकी बपौती नहीं है। देश में एक नहीं हजारों राम मंदिर हैं। वे यहीं पर नहीं रुके उन्होंने पूजा -पाठ आदि को पाखंड भी कहते हुए पूजा पाठ करने वाले हिन्दुओं को पाखंडी बता दिया। रामगोपाल यादव ने कहा कि अयोध्या में सब अशुभ हो रहा है आधे – अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हुई अब बीजेपी के नेता ढोल पीट रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि वह कभी मंदिर नहीं गये, मंदिर में पाखंडी जाते हैं। उधर शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट के नेता संजय राउत व राजद नेता मनोज झा सहित सभी मुस्लिम परस्त नेता अपने घरों से निकल आए और हिंदू समाज व राष्ट्रनायकों को उपदेश देने लगे । स्पष्ट है घमंडिया इंडी गठबंधन के लोगों को राम मंदिर से परेशानी हो रही है। श्रीराम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आने के बाद से ही घमंडिया गठबंधन किसी न किसी प्रकार से हिंदू सनातन समाज व आस्था के केन्द्रों का अपमान करता आ रहा है।

समाजवादी नेता अखिलेश यादव और राहुल गांधी रामनवमी के दिन गाजियावाबद में प्रेस वार्ता कर रहे थे और उन्होंने केवल एक पंक्ति में रामनवमी की शुभकामना दी और भाजपा की निंदा में लग गये। गाजियाबाद में रहते हुए भी उन्होंने नहीं बताया कि वह अयोध्या में राम मंदिर का दर्शन करने कब जाएंगे। अयोध्या में आ रही लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ राहुल गांधी के उन सभी सवालों का जवाब दे रही है जो वह अपनी न्याय यात्रा में जनता से पूछते रहते थे। राहुल गांधी हैं अपनी न्याय यात्रा में आरोप लगाते रहे कि अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह में बड़े- बड़े उद्योगपति व स्टार ही दिखलाई पड़े, वहां पर न तो कोई गरीब था न ही किसान किंतु आज उन्हें हर प्रश्न का उत्तर मिल रहा है । अयोध्या में जो लाखों श्रद्धालु भगवान राम का दर्शन करने आ रहे हैं उनमें गरीब, किसान, मजदूर, बेरोजगार, महिलाएं, दलित, पिछड़े- अतिपिछड़े कौन नहीं हैं? यहाँ तक कि मुस्लिम समाज के लोग भी दर्शन करने लिए पहुंच रहे हैं। अयोध्या आ रही सभी ट्रेनें पूरी तरह से भरी हुई हैं।

कांग्रेस, सपा, बसपा, आम अदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, वामपंथी और दक्षिण के द्रमुक सभी दलों ने मंदिर निर्माण के समय तरह तरह के आरोप लगाए। जब मंदिर निर्माण के लिए निधि समर्पण अभियान चलाया जा रहा था तब भाजपा व संघ को चंदा जीवी कहा गया। जब घर- घर अक्षत अभियान चलाया गया तब उस पर विकृत बयानबाजी की। कोर्ट में जाकर मंदिर निर्माण रोकने का प्रयास किया । आज यही सनातन विरोधी तत्व राम मंदिर बन जाने से आहत हैं क्योंकि ये इस विवाद की आड़ में मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति को चमकाये रखना चाहते थे।

कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में प्रभु श्रीराम को काल्पनिक बताया, जयश्रीराम को साम्प्रदायिक नारा बताया, पहले राम मंदिर पर निर्णय टालने और फिर भूमि पूजन समारोह को रोकने का प्रयास किया किन्तु आज यह इतने मजबूर हो गये हैं कि कहने लगे हैं कि प्रभु श्रीराम तो सबके हैं किंतु उसमें भी उनके विचारों में विकृति उभर आती है।

रामनवमी के अवसर पर सबसे अधिक असहज बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दिखाई पड़ीं । बंगाल सरकार ने दंगों का बहाना बनाकर हिन्दुओं को रामनवमी की शोभायात्रा निकालने की अनुमति नहीं दी जिससे हिंदू संगठनों को अदालत की शरण में जाना पड़ा जिसने उन्हें अनुमति दे दी। भड़की ममता ने रामनवमी के पवित्र अवसर पर अंग्रेजी में एक पंक्ति का एक्स (ट्वीट) पोस्ट किया और लिखा, ”मेन्टेन पीस।” आजकल ममता बनर्जी के मुंह से केवल एक ही शब्द निकलता है दंगा, दंगा और दंगा। नितांत आपत्तिजनक भाषण देते हुए ममता ने कहा कि वे लोग (हिन्दू) आयेंगे किंतु आप सभी (मुस्लिम) को बिल्कुल कूल- कूल रहना है। अपने भाषणों से ममता बनर्जी मुस्लिम तुष्टिकरण की पराकाष्ठा पार कर रही हैं। ममता बनर्जी की बोई नफरत का ही परिणाम था कि मुर्शिदाबाद जिले के शक्तिपुर में रामनवमी पर बम फेंके गये जिसमें 20 लोग घायल हो गये।

सनातन विरोधी दल एक झूठा नैरेटिव और भी चला रहे थे कि प्रधानमंत्री मोदी ने अयोध्या में अधूरे राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा करवा दी है उसका उन्हे दंड मिलेगा किंतु अब समय बदल चुका है इन दलों ने जिस प्रकार अयोध्या में दिव्य मंदिर का उपहास उड़ाया अब उसका सूद सहित बदला लेने का समय सनातन समाज के पास आ चुका है।

मतदान का समय आ गया है, समस्त हिंदू समाज को ठान लेना चाहिए कि अबकी बार उन्हीं को लाना है जो प्रभु श्रीराम को लेकर आए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में संपूर्ण विश्व में सनातन का डंका बज रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सांस्कृतिक उत्थान की लहर चल रही है। अयोध्या में दिव्य राम मंदिर प्रगति पर है। वाराणसी में काशी विश्वनाथ धाम सहित समस्त वाराणसी का अभूतपूर्व विकास हो रहा है। मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकाल लोक का विकास हुआ है । सभी तीर्थस्थलों को रेलवे व हवाई सेवाओ के साथ लगातार जोड़ा जा रहा है। जहां कोई सपने में भी मंदिर बनवाने की बात नहीं सोच सकता था ऐसे अबूधाबी में मोदी जी एक हिंदू मंदिर का उद्घाटन करके आये हैं। अयोध्या में प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा के पूर्व प्रधानमंत्री मोदी ने 11 दिनों का अनुष्ठान किया और रामायणकाल से जुड़े सभी मंदिरों की यात्रा की। सनातन संस्कृति के गौरव को बढ़ाने वाले अनेक संकल्प भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में रखे हैं।

हिन्दू समाज को एकजुट होकर प्रभु राम का सूर्य तिलक संभव करने वाले मोदी जी को अपने मत का तिलक लगाना चाहिए क्योंकि मोदी जी को लगाया गया हिन्दू मतों का तिलक सनातन संस्कृति को सम्पूर्ण विश्व में पुनः सूर्य के समान स्थापित करेगा ।

क्या टुकड़े गैंग का साथ दे रहा है, British Medical Journal Lancet

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राजीव मिश्रा

दुनिया किस तरह भारत के विरुद्ध मोर्चाबंदी करके बैठी है, इसकी एक झलक दिखाता हूं। और इस बार इस मोर्चेबंदी में आपको पॉलिटिशियंस, एक्टिविस्ट्स, जर्नलिस्ट ही नहीं, डॉक्टर्स भी दिखाई देंगे।

मशहूर ब्रिटिश मेडिकल जर्नल Lancet में यह एडिटोरियल छपता है 13 July को, जिसमें वे मोदी सरकार से सवाल करते हैं कि सरकार हेल्थ की स्थिति को छुपा रही है, आपके पास डेटा नहीं है।

और उसी दिन इस पोर्टल में यह आर्टिकल छपता है कि एक्सपर्ट्स लांसेट में छपे इस एडिटोरियल को सपोर्ट करते हैं।
पहला सवाल, मोदी सरकार अपना हेल्थ डेटा किसी अंग्रेजी जर्नल को बताने के लिए बाध्य है? आप आज भी दुनिया के कोतवाल बैठे हैं। आप सवाल पूछें और हम जवाब देते रहें।

दरअसल यह एक किस्म की कोलोनियल सत्ता ही है। अंग्रेजों को भारत की गर्मी बर्दाश्त नहीं हुई, वे अपना बोरिया बिस्तर समेट कर चले गए. पर इंतजाम करते गए कि सबकुछ उनके मुताबिक हो, उनसे पूछ पूछ कर हो. पिछले दस वर्षों से हो नहीं रहा तो खुजली हो रखी है। उन्होंने एक सड़ा गला एनएचएस बना रखा है जहां लोग एक मामूली से गॉल ब्लैडर सर्जरी के लिए भी नौ दस महीने इंतजार कर रहे हैं, एक गाइनेकोलॉजी आउटपेशेंट अपॉइंटमेंट के लिए 44 वीक की वेटिंग टाइम है, पूरे देश की इकोनॉमी मुफ्तखोरों को मुफ्त बिठा कर खिलाने में डूब रही है. अपना हगा पोंछ नहीं पा रहे (धोते तो यूं भी नहीं हैं), दुनिया को खेत का रास्ता बता रहे हैं। भारत सरकार पर प्रेशर बनाने का प्रयास है कि जो गंदगी हमने सजा कर रखी है, वह तुम भी अपने घर पर ले जाओ।

पर उससे भी बड़े किस्म के नमूने हैं ये एक्सपर्ट, 13 अप्रैल की लैंसेट में एडिटोरियल छपा। 13 अप्रैल को ही एक्सपर्ट्स ने पढ़ भी लिया, उस पर अपनी राय भी दे दी और एक पत्रकार ने उसपर आर्टिकल लिखकर छाप भी दिया।

दो एक दिन तो सबर कर लेते। कुछ प्रिटेंस ही कर लो कि यह सब पहले से प्लान्ड नहीं है, सचमुच आर्टिकल पढ़ कर बोल रहे हो।

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