लोकसभा चुनावों में विपक्ष को झटके पर झटके

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दिल्ली। लोकसभा चुनाव- 2024 में जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग गठबंधन पूरी ताकत के साथ आगे बढ़ता जा रहा है वहीं दूसरी ओर कांग्रेस व अन्य विपक्षी दल अपनी रणनीति को ही अंतिम रूप नहीं दे पा रहे हैं। सभी विरोधी दलों में इतना अधिक भ्रम पैदा हो गया है कि संपूर्ण भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण और दक्षिण से लेकर पूर्वोत्तर तक सभी राज्यों में जिला स्तर तक पार्टियों के कद्दावर नेता व प्रवक्ता पार्टी छोड़ रहे हैं और अपनी ही पार्टी की असलियत उजागर कर रहे हैं। प्रमुख विरोधी दल कांग्रेस की स्थिति तो इतनी अधिक दयनीय हो चुकी है कि उसके पास स्टार प्रचारक और समर्थ प्रत्याशी तक नहीं उपलब्ध हो पा रहे हैं।

एक समय ऐसा था कि पूरा का पूरा फिल्म जगत कांग्रेस के सामने नतमस्तक रहता था। कांग्रेस ने भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को हराने के लिए फिल्म स्टार राजेश खन्ना को चुनावी मैदान में उतार कर चुनावी लड़ाई को रोचक बना दिया था वहींअब एक समय कांग्रेस के सांसद रहे फिल्म अभिनेता गोविंदा शिवसेना शिंदे गुट में शामिल हो चुके हैं और संभव है शिवसेना उन्हें टिकट भी दे दे।

जम्मू कश्मीर के कद्दावर नेता गुलाम नबी आजाद के कांग्रेस छोड़ने के बाद कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टिकरण करने के लिए अयोध्या में दिव्य- भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह बहिष्कार कर दिया लेकिन उसके बाद से कांग्रेस के हालात और खराब हो गये। कांग्रेस के ऐसे -ऐसे नेता पार्टी छोड़ रहे हैं कि विश्वास नहीं होता। वहीं कुछ नेता ऐसे हैं जो फिलहाल तो कांग्रेस में ही हैं किंतु अपने पत्रों / सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से कांग्रेस के मुद्दों की हवा निकाल कर पार्टी को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं की सूची हर दिन लंबी होती जा रही है । जिसका असर राज्यसभा चुनावों में दिखा था और हिमांचल की सरकार गिरते -गिरते बाल बाल बची है।

महाराष्ट्र के एक दिग्गज नेता अशोक चव्हाण भाजपा में शामिल होकर राज्यसभा पहुंच गये हैं। महाराष्ट्र के ही युवा नेता मिलिंद देवड़ा और पूर्व गृहमंत्री शिवराज पाटिल की बहू अर्चना भी भाजपा में शामिल हो गई हैं। महा विकास अघाड़ी में जिस प्रकार का तनाव है उससे लग रहा है कि वहां के अभी कई और नेता भाजपा के नेतृतव वाले गठबंधन में शामिल हो सकते हैं। उधर एक अन्य दिग्गज कांग्रेसी नेता संजय निरुपम भी पार्टी से निकाले जा चुके हैं। ऐसा लगता है पार्टी इससे चिंतित नहीं है क्योंकि जब मिलिंद देवड़ा ने कांग्रेस छोड़ी थी तब राहुल गांधी ने कहा था कि वह चाहते हैं कि मिलिंद जैसे नेता पार्टी छोडकर चले जाएं तो अच्छा होगा।

कांग्रेस के नेताओं के पार्टी छोड़ने के कई कारणों में से प्रमुख है कांग्रेस व इंडी गठबंधन का सनातन विरोधी हो जाना। कांग्रेस के प्रवक्ता आचार्य प्रमोद कृष्णन ने राम के नाम पर कांग्रेस छोड़ दी थी फिर गुजरात व हिमांचल के कई विधायकों, नेताओें ने राम के नाम पर व सनातन विरोध नहीं कर पाने कारण कांग्रेस छोड़ दी।

कांग्रेस के युवा तेजतर्रार नेता प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने कांगेस अध्यक्ष को लिखे पत्र में कहा कि जब मैं पार्टी में शामिल हुआ था तब की पार्टी और अबकी पार्टी में जमीन आसमान का अंतर आ गया है। गौरव ने कहा कि वे अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समरोह में न जाने के कांग्रेस पार्टी के स्टैंड से काफी नाराज थे। वो जन्म से हिंदू और शिक्षक हैं राम का अपमान नहीं सकते। उनका मानना है कि अब पार्टी दिशाहीन हो गयी है, वह दिन भर न तो सनातन को गाली दे सकते हैं और न ही वेल्थ क्रिएटर्स की निंदा कर सकते हैं। गौरव वल्लभ ने 2019 में पहली बार झारखंड से और फिर 2023 में राजस्थान से विधानसभा का चुनाव लड़ा था था और दोनों ही बार उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था। गौरव को बहुत पढ़ा लिखा व समझदार व्यक्ति माना जाता रहा है। गौरव अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे हैं।

महाराष्ट्र में पूर्व कांग्रेस नेता संजय निरूपम ने कहा कि वर्तमन समय में कांग्रेस की हालत बहुत अधिक खराब है क्योकि कांग्रेस में कई सेंटर बन चुके हैं जिसमें श्रीमती सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी, राहुल गांधी और फिर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का सेंटर बन चुका है। श्रीमती सोनिया गांधी केवल राहुल गांधी को ही आगे बढ़ाना चाहती हैं इस कारण वह किसी और को सुन नहीं पा रही हैं। कांग्रेस पार्टी में घोर निराशा का वातावरण है। कांग्रेस का कार्यकर्ता हताश है क्योंकि वह समझ नहीं पा रहा है कि वह अपनी बात किसके पास रखे। अब तो सोशल मीडिया में लोग यह भी कहने लगे हैं कि आने वाले समय में कांग्रेस में केवल गांधी परिवार ही बचेगा। वायनाड में राहुल गांधी जब पर्चा दाखिल कर रहे थे तब खरगे दिल्ली में थे और उन्हें कोई भाव नहीं दिया जा रहा था। संजय ने कहा कि राहुल और प्रियंका की लॉबी के चलते कई अच्छे नेताओं का सत्यानाश हो गया है।पंजाब में कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा कारण यही गुटबाजी रही। कांग्रेस छोड़ रहे नेताओं का मत है कि कांग्रेस का नेतृत्व मेहनत नहीं करना चाहता।आज की कांग्रेस जनता व कार्यकर्ता दोनों से काफी दूर जा चुकी है। वर्तमान समय में कांग्रेस पार्टी विचारधारा के मामले में भी पूरी तरह से भ्रमित है।

जिन नेताओं ने पार्टी छोड़ी या कांग्रेस से निकाले गये उनमें संजय निरूपम, बॉक्सर विजेंदर, गौरव वल्लभ तो हैं ही बिहार कांग्रेस के अनिल शर्मा सहित कई अन्य नेता भाजपा में शामिल हो रहे हैं। आम लोगों का मत है कि आज की कांग्रेस इतनी अधिक सनातन विरोधी है कि ऐसा कांग्रेसी जिसके मन में भगवान राम, काशी और मथुरा के प्रति जरा सा भी श्रद्धाभाव होगा वह कांग्रेस छोड़ देगा। पिछले दिनों हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के समय तमिलनाडु के नेता लगातार सनातन का उन्मूलन करने जैसे विकृत दे रहे थे जिसकी कांग्रेस की ओर से एक बार भी निंदा नहीं की गयी इसका असर मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में स्पष्ट दिखाई पड़ा और कांग्रेस साफ हो गयी।

कुछ दिनों पूर्व कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने कांग्रेस आलाकमान को पत्र लिखकर चेताया था कि जातिगत जनगणना का मुददा कांग्रेस पार्टी को बहुत अधिक नुकसान कर रहा है। उन्होंने अपने पत्र में लिखा था कि किस प्रकार स्वर्गीय इंदिरा गांधी और राजीव गांधी भी जातिगत जनगणना के पक्षधर नहीं थे, एक समय पार्टी का नारा था, “जात पर न पात पर मोहर लगेगी हाथ पर” । अब वही कांग्रेस हर जगह जातिगत जनगणना की बात कह रही है। इससे सिद्ध हो रहा है कि आज की कांग्रेस पूरी तरह से भ्रमित है और यही कारण है किउसके नेता दल छोड़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं।

जो बोएंगे वही पाएंगे ….

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रामगोपाल

दिल्ली। आजकल एक नया शिगूफा शुरू हुआ है कि बच्चा अपना रास्ता स्वयं चुने। यह शिगूफा एक समस्या बनता जा रहा है। बात केवल नास्तिकता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शारीरिक पहचान को भी क्षति पहुंचा रही है। बच्चे में जो संस्कार बचपन से भरे जाते हैं, वही आगे बढ़कर बृहत रूप लेते हैं। बचपन में जो बीज बोए जाएंगे वही आगे चलकर पेड़ का रूप लेंगे। अब यह आपके ऊपर है कि आप क्या बीज बोते हैं। यह भी है कि बीज आप स्वयं बोते हैं, या फिर खाली खेत छोड़ देते हैं और कोई और कुछ बोकर चला जाएगा।

प्रकृति का नियम यह है कि वह कहीं शून्य नहीं छोड़ती। यदि आपने अभीष्ट संस्कार नहीं दिए तो उस खाली जगह में आयातित संस्कार भर जाएंगे। यदि आप चाहते हैं कि आपकी संतान सही दिशा में चले तो सही दिशा आपको चुननी पड़ेगी और उस दिशा में संतान को ले जाना होगा। आपकी संतान दो तरीकों से सीखेगी। या तो उसे आप सिखा सकते हैं, या फिर वह स्वयं देखकर सीखेगा। बालमन कच्चा होता है, जरूरी नहीं कि वह आपको देखकर ही सीखे। उसकी नजर जहां तक जाएगी, वह वहां तक सीखेगा।

यदि आप अपने बच्चे को प्रारंभ से धार्मिक कथाएं सुनाते हैं, पूजा पाठ, आध्यात्म की ओर प्रेरित करते हैं तो बड़े होने पर कितना भी भटक जाए, वापस अपने रास्ते पर आ जाएगा।यदि आप बचपन से अपने बच्चे को मारपीट सिखाते हैं तो उसकी प्रवृत्ति यही रहेगी। दबना सिखाते हैं तो ताउम्र दबेगा, दाबना सिखाते हैं ताउम्र दाबेगा। यदि कुछ नहीं सिखाते हैं और यह सोचते हैं कि बड़ा होने पर अपना निर्णय स्वयं लेगा तो सादर क्षमा मांगते हुए कहता हूं कि आप गलत हैं। उसके मस्तिष्क को जो भोजन चाहिए वह लेगा ही। फिर चाहे वह आप उसे दें या कोई और। यदि बचपन में सही राह नहीं दिखाई तो राह से भटकाने का काम आप कर चुके हैं।

इसी क्रम में एक समस्या मैंने प्रत्यक्ष देखी है। अक्सर देखिएगा कि जिस व्यक्ति की केवल बेटियां होती हैं, वह एकाधिक बेटी को बेटा बनाकर पालेंगे। बचपन में तो ये बात बड़ी प्यारी लगती है। लेकिन धीरे धीरे वह शिशु यह समझ बैठता है कि वह वास्तव में लड़का है। शरीर का निर्माण भले माता के गर्भ में होता है, लेकिन विकास तो जन्म के बाद होता है। इसमें मस्तिष्क की अहम भूमिका होती है। मस्तिष्क उन रसायनों का निर्माण सुनिश्चित करता है जो विभिन्न अंगों का विकास सुनिश्चित करते हैं। संभवतः इन्हें ही हार्मोंस कहा जाता है।

विचार करके देखिए कि आपके घर में तोता पलता है जिसे अन्न चाहिए, लेकिन आप समझ रहे हैं कि आपने खरगोश पाल रखा है। ऐसे में क्या होगा? आप घास की मात्रा बढ़ा देंगे और अन्न एकदम नगण्य कर देंगे। आपका तोता कमजोर हो जाएगा। घास खाकर जिंदा तो रहेगा, लेकिन किसी काम का नहीं रहेगा। खरगोश तो बनने से रहा। यह असंभव ही है। यही शरीर करता है। जो हार्मोंस चाहिए वह बनेंगे नहीं, और जो नहीं चाहिए वह बनने लगेंगे। इसके विपरीत प्रभाव पड़ेंगे। शरीर के विभिन्न अंगों का जो विकास होना चाहिए वह नहीं होगा। शरीर तो छोड़िए, मानसिक अवस्था भी ऐसी हो जाएगी कि वह बच्ची स्वयं को आगे चलकर स्त्री नहीं मान पाएगी। स्त्री शरीर में फंसा हुआ एक पुरुष मिलेगा।

इसका उल्टा भी हो सकता है। पुरुष शरीर में फंसी हुई स्त्री भी हो सकती है। लेकिन ऐसे मामले कम आते हैं। कई मामले देखे हैं मैंने जहां विवाह की अवस्था होने पर अभिभावक चाहते हैं कि उनका ‘बेटा’ बेटी बन जाए। लेकिन यह हो नहीं पाता। ऐसे में या तो वह लड़की शादी ही नहीं करती, या फिर कर भी ले तो दांपत्य जीवन समस्याओं से भर उठता है। पति को स्त्री चाहिए होती है, लेकिन शरीर से आधी और मन से पूरा पुरुष उसे प्राप्त हो जाता है।

खैर! मेरा मानना यह है कि लड़की को आप तमाम शक्तियां दें। उसे स्वाबलंबी बनाएं, आत्मनिर्भर बनाएं, स्वतंत्र बनाएं, लेकिन पुरुष न बनाएं। ऐसा कुछ भी नहीं जो एक लड़की होते हुए नहीं पाया जा सकता है।

एक स्कूल ऐसा, जहां अभिभावकों को मिला होम वर्क

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चेन्नई के एक स्कूल ने अपने बच्चों को छुट्टियों का जो एसाइनमेंट दिया वो पूरी दुनिया में वायरल हो रहा है.

वजह बस इतनी कि उसे बेहद सोच समझकर बनाया गया है. इसे पढ़कर अहसास होता है कि हम वास्तव में कहां आ पहुंचे हैं और अपने बच्चों को क्या दे रहे हैं. अन्नाई वायलेट मैट्रीकुलेशन एंड हायर सेकेंडरी स्कूल ने बच्चों के लिए नहीं बल्कि पेरेंट्स के लिए होमवर्क दिया है, जिसे हर एक पेरेंट को पढ़ना चाहिए.

उन्होंने लिखा-
पिछले 10 महीने आपके बच्चों की देखभाल करने में हमें अच्छा लगा.आपने गौर किया होगा कि उन्हें स्कूल आना बहुत अच्छा लगता है. अगले दो महीने उनके प्राकृतिक संरक्षक यानी आप उनके साथ छुट्टियां बिताएंगे. हम आपको कुछ टिप्स दे रहे हैं जिससे ये समय उनके लिए उपयोगी और खुशनुमा साबित हो.

– अपने बच्चों के साथ कम से कम दो बार खाना जरूर खाएं. उन्हें किसानों के महत्व और उनके कठिन परिश्रम के बारे में बताएं. और उन्हें बताएं कि अपना खाना बेकार न करें.

– खाने के बाद उन्हें अपनी प्लेटें खुद धोने दें. इस तरह के कामों से बच्चे मेहनत की कीमत समझेंगे.

– उन्हें अपने साथ खाना बनाने में मदद करने दें. उन्हें उनके लिए सब्जी या फिर सलाद बनाने दें.

– तीन पड़ोसियों के घर जाएं. उनके बारे में और जानें और घनिष्ठता बढ़ाएं.

– दादा-दादी/ नाना-नानी के घर जाएं और उन्हें बच्चों के साथ घुलने मिलने दें. उनका प्यार और भावनात्मक सहारा आपके बच्चों के लिए बहुत जरूरी है. उनके साथ तस्वीरें लें.

– उन्हें अपने काम करने की जगह पर लेकर जाएं जिससे वो समझ सकें कि आप परिवार के लिए कितनी मेहनत करते हैं.

– किसी भी स्थानीय त्योहार या स्थानीय बाजार को मिस न करें.

– अपने बच्चों को किचन गार्डन बनाने के लिए बीज बोने के लिए प्रेरित करें. पेड़ पौधों के बारे में जानकारी होना भी आपके बच्चे के विकास के लिए जरूरी है.

– अपने बचपन और अपने परिवार के इतिहास के बारे में बच्चों को बताएं.

– अपने बच्चों का बाहर जाकर खेलने दें, चोट लगने दें, गंदा होने दें. कभी कभार गिरना और दर्द सहना उनके लिए अच्छा है. सोफे के कुशन जैसी आराम की जिंदगी आपके बच्चों को आलसी बना देगी.

– उन्हें कोई पालतू जानवर जैसे कुत्ता, बिल्ली, चिड़िया या मछली पालने दें.

– उन्हें कुछ लोक गीत सुनाएं.

– अपने बच्चों के लिए रंग बिरंगी तस्वीरों वाली कुछ कहानी की किताबें लेकर आएं.

– अपने बच्चों को टीवी, मोबाइल फोन, कंप्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से दूर रखें. इन सबके लिए तो उनका पूरा जीवन पड़ा है.

– उन्हें चॉकलेट्स, जैली, क्रीम केक, चिप्स, गैस वाले पेय पदार्थ और पफ्स जैसे बेकरी प्रोडक्ट्स और समोसे जैसे तले हुए खाद्य पदार्थ देने से बचें.

– अपने बच्चों की आंखों में देखें और ईश्वर को धन्यवाद दें कि उन्होंने इतना अच्छा तोहफा आपको दिया. अब से आने वाले कुछ सालों में वो नई ऊंचाइयों पर होंगे.

माता-पिता होने के नाते ये जरूरी है कि आप अपना समय बच्चों को दें.

अगर आप माता-पिता हैं तो इसे पढ़कर आपकी आंखें नम जरूर हुई होंगी. और आखें अगर नम हैं तो वजह साफ है कि आपके बच्चे वास्तव में इन सब चीजों से दूर हैं. इस एसाइनमेंट में लिखा एक-एक शब्द ये बता रहा है कि जब हम छोटे थे तो ये सब बातें हमारी जीवनशैली का हिस्सा थीं, जिसके साथ हम बड़े हुए हैं, लेकिन आज हमारे ही बच्चे इन सब चीजों से दूर हैं, जिसकी वजह हम खुद हैं

3 अप्रैल 1988 : सुप्रसिद्ध पुरातत्वविद् वाकणकर जी की पुण्यतिथि

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भोपाल के समीप भीमबैठका और वैदिककालीन मानव सभ्यता के प्रमाण इन्हीं ने खोजे थे

–रमेश शर्मा

डाक्टर हरिभाऊ वाकणकर की गणना संसार के प्रमुख पुरातत्वविदों में होती है । उन्होंने भारत के विभिन्न वनक्षेत्र के पुरातन जीवन और भोपाल के आसपास लाखों वर्ष पुराने मानव सभ्यता के प्रमाण खोजे । भीम बैठका उन्ही की खोज है । उनके शोध के बाद विश्व भर के पुरातत्वविद् भारत आये और डाक्टर वाकणकर से मार्गदर्शन लिया ।

उनका पूरा नाम श्रीविष्णु श्रीधर वाकणकर था । लेकिन वे हरिभाऊ वाकणकर के नाम से प्रसिद्ध थे । उनका जन्म 4 मई 1919 को मध्यप्रदेश के नीमच नगर में हुआ । पिता श्रीधरजी वाकणकर वैदिक विद्वान थे और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे । बड़े भाई लक्ष्मण वाकणकर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से केमिकल इंजीनियर थे। उन्हे सिरेमिक कला में विशेषज्ञता प्राप्त थी । लिपियों के विकास विशेषकर देवनागरी के डिजिटलीकरण में विशेषज्ञ के रूप में उनकी ख्याति थी । हरिभाऊ जी की प्रारंभिक शिक्षा नीमच में ही हुई और उच्च शिक्षा केलिये बनारस गये । पारिवारिक पृष्ठभूमि ने उनके भीतर भारतीय संस्कृति के प्रति अटूट स्वाभिमान जाग्रत किया और राष्ट्रीय स्वयं सेवकसंघ से जुड़ने केलिये प्रेरित किया । वे बालवय में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गये थे । हरिभाऊ जी बहुत अध्ययन एवं कल्पनाशील थे, स्मरण शक्ति और स्वत्व वोध विलक्षण था । छात्र जीवन में अपनी कक्षा के साथियों और अन्य मित्रों से परस्पर चर्चा में तर्क सहित वे उन धारणाओं का खंडन करते थे जो विदेशी लेखकों ने भारतीय वाड्मय की गरिमा कम करने के लिये स्थापित की थीं। शिक्षा पूरी कर उन्होंने इसी दिशा में कदम बढ़ाये। उन्होंने भारतीय पुरातन साहित्य का विस्तृत अध्ययन किया और पुराणों कथाओं से संबंधित विवरणों के सजीव प्रमाण खोजे । और अनेक उन तथ्यों को प्रमाणित किया जिन्हे मिथक कहकर नकारा जाता रहा था । इसमें वेद वर्णित सरस्वती नदी का अस्तित्व भी है ।

वाकणकर जी ने सरस्वती नदी खोज केलिये विश्व इतिहास के इस तथ्य को आधार बनाया कि संस्कृतियों के विकास और इतिहास के प्रमाणीकरण में नदियों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है । वाकणकर जी ने वैदिक साहित्य में वर्णित सरस्वती नदी की खोज आरंभ की । उन्होंने उपग्रह छवि से प्रमाणित किया कि सरस्वती नदी का प्रवाह हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात से होकर गुजरता है । आगे चलकर इस मार्ग केलिये एक परियोजना का गठन हुआ जिसके सलाहकार मंडल कै संयोजक वाकणकर जी बनाये गये । उन्होंने सिंधु घाटी सभ्यता को भी सरस्वती नदी से जुड़े होने के प्रमाण दिये । पुरातात्विक खोज के लिये उन्होने उन्होंने पूरे देश की यात्रा की । गंगा और नर्मदा के किनारे, विन्धय एवं सतपुड़ा पर्वत क्षणियों के मैदानों में लाखों वर्ष पुराने मानव सभ्यता के चिन्ह खोजे । पर उन्हें मालवा से बहुत लगाव था । इसलिये उन्होने नीमच, रतलाम, उज्जैन, इंदौर, कायथा, शाजापुर के साथ भोपाल, रायसेन, विदिशा आदि क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया और वनक्षेत्र में पदयात्राएँ कीं। उनके जीवनवृत के अध्ययन से लगता है प्रकृति से उन्हें कोई अतिरिक्त ऊर्जा प्राप्त थी । वे पुरातात्विक और खंडित प्रतिमाओं को इतने ध्यान से देखते थे कि लगता था उनसे बातें कर रहे हो। कयी बार तो बैठे बैठे उठकर किसी विशिष्ठ स्थान की ओर चल देते थे अथवा चलती ट्रेन में अपनी यात्रा अधूरी छोड़कर जंगल में उतर जाते थे और उन्हें वहाँ कुछ न कुछ पुरातात्विक खजाना मिल ही जाता था ।

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग चालीस किलोमीटर दूर

भीमबेटका के प्राचीन शिलाचित्रों की खोज वाकणकरजी ने की थी । भीमबैठका और भोजपुर के आसपास के कुछ चित्र तो लगभग पौने दो लाख वर्ष पुराने प्रमाणित हुये । इन सभी चित्रों का कार्बन-डेटिंग पद्धति से परीक्षण किया गया । इसका सत्यापन अंतराष्ट्रीय शोध कर्ताओं ने किया । इसी शोध के चलते उन्हें 1975 में पद्मश्री अलंकरण मिला ।

वाकणकर जी उज्जैन के सिंधिया ओरियंटल इंस्टीट्यूट से जुड़े थे और घंटाकार के समीप भारतीय कला मंदिर उनकी साधना स्थली था । वे न केवल पुरातत्वविद् थे अपितु अच्छे चित्रकार भी थे । उन्हे जितनी विशिष्टता पुरातात्विक अनुसंधान में प्राप्त थी वे उतने ही श्रेष्ठ संगठक थे । उनका पूरा जीवन ऋषि परंपपरानुरूप था । उन्होंने अपने शिष्यों की एक विशाल मंडली तैयार की । उनमें श्याम सुंदर सक्सेना, गोमती संकुशल, सचिदा नागदेव , मुजफ्फर कुरेशी, रहीम गुट्टीवाला आदि प्रमुख रहे । अपने शिष्यों की टोली के साथ उन्होंने चंबल और नर्मदा के बीहड़ों की खोज की और इंग्लैड तक यात्रा की । उनका शिष्य मंडल मानों परिवार था, उनके व्यक्तित्व का अंग था । वे सुनते अधिक थे बोलते कम थे । और जो बोलते मानों ब्रह्म वाक्य होता । उन्होंने जीवन में कभी विश्राम नहीं किया । उन्होंने निरंतर यात्राएँ कीं। भारत के सभी महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थानों के साथ विश्व के अनैक स्थानों की । वे कभी भी एक झोला कंधे पर टाँग कर निकल पड़ते थे । जिस प्रकार उनके जीवन का आरंभ भारतीय परंपरा, संस्कृति और श्रेष्ठा को प्रतिष्ठित करने के अभियान के साथ हुआ था । जीवन का समापन भी कर्मपथ पर ही हुआ । उन्होंने 4 मई 1988 को सिंगापुर में जीवन की अंतिम श्वाँस ली ।

यह उनके व्यक्तित्व और कार्य क्षमता और ऊर्जा की विलक्षण विशेषता थी कि पुरातात्विक अन्वेषण में अपने अतुलीय और अथक कार्य के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रकल्पों में भी उनकी सक्रियता निरन्तर रही । वे 1981 में स्थापित संस्कार भारती के संस्थापक महामंत्री रहे । वनक्षेत्र में अपने शोध कार्य के साथ उन्होने संघ की योजनानुसार सामाजिक और शैक्षणिक उत्थान कार्य भी किये ।

पुरातात्विक अनुसंधान और सामाजिक कार्यों के साथ वाकणकरजी ने सिक्कों और शिलालेखों का संग्रह भी किया । उन्होंने ईसापूर्व 5 वीं शताब्दी से लेकर अब तक के लगभग 5500 सिक्कों और संस्कृत, प्राकृत, ब्राह्मी आदि भाषाओं के लगभग 250 शिलालेखों का संग्रह किया । उनके योगदान की स्मृति को सजीव रखने केलिये संस्कार भारती ने 4 मई 2019 से 3 मई 2020 के बीच उनकी जन्म शताब्दी वर्ष का आयोजन किया था ।
उनका शरीर भले आज संसार में नहीं है पर उनके अनुसंधान सजीव है । वे पुरातात्विक अनुसंधान के मील के पत्थर थे । उनके द्वारा स्थापित मानदंड आज भी अनुसंधानकर्ताओं का मार्गदर्शन कर रहे हैं।

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