देश को मिलेगी 10 नई वंदे भारत ट्रेनों की सौगात

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पीएम मोदी मंगलवार को राजस्थान और गुजरात के दौरे पर जाएंगे। इस दौरान वह पोकरण में भारतीय सेनाओं के प्रदर्शन को देखेंगे। इसके अलावा अहमदाबाद से 10 नई वंदे भारत ट्रेनों को हरी झंडी दिखाएंगे। साबरमती में पीएम गांधी आश्रम स्मारक के मास्टर प्लान का भी शुभारंभ करेंगे।

दरअसल, पीएम अपने दौरे के दौरान पहले राजस्थान के पोखरण में तीनों सेनाओं के लाइव फायर एवं युद्धाभ्यास के रूप में स्वदेशी रक्षा क्षमताओं के समन्वित प्रदर्शन का अवलोकन करेंगे। रेलवे के बुनियादी ढांचे और संपर्क को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री अहमदाबाद में डीएफसी के संचालन नियंत्रण केंद्र का दौरा करेंगे और 85 हजार करोड़ रुपये से अधिक लागत की कई रेलवे परियोजनाओं की आधारशिला रखेंगे और उन्हें समर्पित करेंगे।

पीएम अहमदाबाद-मुंबई सेंट्रल, सिकंदराबाद-विशाखापत्तनम, मैसूर-डॉ. एमजीआर सेंट्रल (चेन्नई), पटना-लखनऊ, न्यू जलपाईगुड़ी-पटना, पुरी-विशाखापत्तनम, लखनऊ-देहरादून, कलबुर्गी-सर एम विश्वेश्वरैया टर्मिनल बेंगलुरु, रांची-वाराणसी, खजुराहो-दिल्ली (निजामुद्दीन) के बीच दस नई वंदे भारत ट्रेनों को भी हरी झंडी दिखाएंगे।

पीएम चार वंदे भारत ट्रेनों के विस्तार को भी हरी झंडी दिखाएंगे। अहमदाबाद-जामनगर वंदे भारत को द्वारका तक, अजमेर-दिल्ली सराय रोहिल्ला वंदे भारत को चंडीगढ़ तक, गोरखपुर-लखनऊ वंदे भारत को प्रयागराज और तिरुवनंतपुरम-कासरगोड वंदे भारत को मंगलुरु तक बढ़ाया जा रहा है; और आसनसोल और हटिया तथा तिरुपति और कोल्लम स्टेशनों के बीच दो नई यात्री ट्रेनें भी चलाई जाएंगी।

समग्र व्यक्तित्व के पर्याय थे अज्ञेय

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प्रो. पुनीत बिसारिया

आज 07 मार्च को बहुमुखी प्रतिभा के धनी आधुनिक हिंदी साहित्य के युग प्रवर्तक साहित्यकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय की 113वीं जयंती है। भारतेंदु हरिश्चन्द्र के बाद सर्जनात्मक बहुलता एवं साहित्य को नयी दिशा की ओर उन्मुख करने हेतु जिसका नाम आता है, वह अज्ञेय ही हैं। अज्ञेय हिंदी साहित्य के वह दैदीप्यमान नक्षत्र हैं, जिन्होंने हिंदी साहित्य का परिचय समकालीनता से सफलतापूर्वक कराने का महती कार्य किया। प्रयोगवाद तथा नई कविता जैसे आंदोलनों के माध्यम से उन्होंने हिंदी को नए पथ पर अग्रसर करते हुए उसे पारंपरिक जड़ता से मुक्त किया। कहानियों एवं उपन्यासों के द्वारा वे भारतीय माध्यम वर्ग की भावनाओं के संवाहक बने तो जापानी हाइकु विशेषकर मात्सुओ बाशो के हाइकुओं का हिंदी में अनुवाद कर इस विधा को भारतीय साहित्य में लाने का कार्य किया। प्रतीक, सैनिक, दिनमान, नवभारत टाइम्स आदि हिंदी समाचार पत्रों एवं वाक् तथा एवरी मैन जैसे अंग्रेजी पत्र पत्रिकाओं का सफल सम्पादन करके उन्होंने पत्रकारिता को नए आयाम प्रदान किये। उन्होंने तार सप्तकों का सम्पादन करके हिंदी साहित्य जगत की धारा ही मोड़ दी तो शेखर:एक जीवनी, अपने अपने अजनबी और नदी के द्वीप जैसे उपन्यासों से गद्य साहित्य में आधुनिकता का प्रवेश संभव कराया तथा द्वंद्व एवं कुंठा जैसी आधुनिक प्रवृत्तियों से हिंदी साहित्य को परिचित कराया। शेखर एक जीवनी के शेखर और शशि के सम्बन्ध तथा द्वंद्व वास्तव में भारतीय मध्यम वर्ग के द्वंद्व थे, जिन्हें साहित्य में पाकर मध्यम वर्ग निहाल हो गया। अरे यायावर रहेगा याद और एक बूँद सहसा उछली सरीखे यात्रा वृत्तांतों से उन्होंने इस विधा को भी साहित्य जगत में प्रतिष्ठित किया। नयी कविता से उन्होंने लघु मानव, गद्य से मध्यम वर्ग तथा अंग्रेजी पत्रों के सम्पादन, अंग्रेजी कविताओं एवं यात्रा वृत्तांतों से उच्च वर्ग की भावनाओं को अभिव्यक्ति प्रदान की। उन्होंने निबन्ध लिखे, समालोचना की, नाटक लिखे, अनुवाद किए, डायरी लिखी, ब्रिटिश फ़ौज में काम किया, स्वाधीनता आन्दोलन में जेल गए, आल इंडिया रेडियो में नौकरी की, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी तथा जोधपुर विश्वविद्यालय में पढ़ाया, फोटोग्राफी तथा पर्यटन के शौक पाले। सन 1964 में आंगन के पार द्वार कविता संग्रह पर उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया तो सन 1978 में कितनी नावों में कितनी बार कविता संग्रह के लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया। एक व्यक्ति एक छोटे से जीवन को कैसे समग्रता में जी सकता है, यह अज्ञेय के जीवन से सीखा जा सकता है। वे वास्तव में समग्र व्यक्ति की अवधारणा के जीते जागते उदाहरण थे। वे स्वयं कहा करते थे कि जूते सीने और पंक्चर जोड़ने से लेकर साहित्य सृजन तक मुझे जीने हेतु अक्सर काम आने वाले सभी कार्य मैं सफलतापूर्वक कर सकता हूँ। हिंदी साहित्य और संस्कृति के प्रचार प्रसार हेतु उन्होंने वत्सलनिधि नाम से सन 1980 में एक ट्रस्ट की स्थापना की। ऐसे बहु आयामी व्यक्तित्व ने 4 अप्रैल सन 1987 को हमसे विदा ले ली। प्रस्तुत है उनकी सर्वाधिक चर्चित लम्बी कविता असाध्यवीणा और प्रेम एवं संवेदनाओं को मुखरित करती कविता मैंने आहुति बनकर देखा, जो मेरी पसंदीदा कविताएँ हैं———

आ गये प्रियंवद ! केशकम्बली ! गुफा-गेह !
राजा ने आसन दिया। कहा :
“कृतकृत्य हुआ मैं तात ! पधारे आप।
भरोसा है अब मुझ को
साध आज मेरे जीवन की पूरी होगी !”
लघु संकेत समझ राजा का
गण दौड़े ! लाये असाध्य वीणा,
साधक के आगे रख उसको, हट गये।
सभा की उत्सुक आँखें
एक बार वीणा को लख, टिक गयीं
प्रियंवद के चेहरे पर।
“यह वीणा उत्तराखंड के गिरि-प्रान्तर से
–घने वनों में जहाँ व्रत करते हैं व्रतचारी —
बहुत समय पहले आयी थी।
पूरा तो इतिहास न जान सके हम :
किन्तु सुना है
वज्रकीर्ति ने मंत्रपूत जिस
अति प्राचीन किरीटी-तरु से इसे गढा़ था —
उसके कानों में हिम-शिखर रहस्य कहा करते थे अपने,
कंधों पर बादल सोते थे,
उसकी करि-शुंडों सी डालें
हिम-वर्षा से पूरे वन-यूथों का कर लेती थीं परित्राण,
कोटर में भालू बसते थे,
केहरि उसके वल्कल से कंधे खुजलाने आते थे।
और –सुना है– जड़ उसकी जा पँहुची थी पाताल-लोक,
उसकी गंध-प्रवण शीतलता से फण टिका नाग वासुकि सोता था।
उसी किरीटी-तरु से वज्रकीर्ति ने
सारा जीवन इसे गढा़ :
हठ-साधना यही थी उस साधक की —
वीणा पूरी हुई, साथ साधना, साथ ही जीवन-लीला।”
राजा रुके साँस लम्बी लेकर फिर बोले :
“मेरे हार गये सब जाने-माने कलावन्त,
सबकी विद्या हो गई अकारथ, दर्प चूर,
कोई ज्ञानी गुणी आज तक इसे न साध सका।
अब यह असाध्य वीणा ही ख्यात हो गयी।
पर मेरा अब भी है विश्वास
कृच्छ-तप वज्रकीर्ति का व्यर्थ नहीं था।
वीणा बोलेगी अवश्य, पर तभी।
इसे जब सच्चा स्वर-सिद्ध गोद में लेगा।
तात! प्रियंवद! लो, यह सम्मुख रही तुम्हारे
वज्रकीर्ति की वीणा,
यह मैं, यह रानी, भरी सभा यह :
सब उदग्र, पर्युत्सुक,
जन मात्र प्रतीक्षमाण !”
केश-कम्बली गुफा-गेह ने खोला कम्बल।
धरती पर चुपचाप बिछाया।
वीणा उस पर रख, पलक मूँद कर प्राण खींच,
करके प्रणाम,
अस्पर्श छुअन से छुए तार।
धीरे बोला : “राजन! पर मैं तो
कलावन्त हूँ नहीं, शिष्य, साधक हूँ–
जीवन के अनकहे सत्य का साक्षी।
वज्रकीर्ति!
प्राचीन किरीटी-तरु!
अभिमन्त्रित वीणा!
ध्यान-मात्र इनका तो गदगद कर देने वाला है।”
चुप हो गया प्रियंवद।
सभा भी मौन हो रही।
वाद्य उठा साधक ने गोद रख लिया।
धीरे-धीरे झुक उस पर, तारों पर मस्तक टेक दिया।
सभा चकित थी — अरे, प्रियंवद क्या सोता है?
केशकम्बली अथवा होकर पराभूत
झुक गया तार पर?
वीणा सचमुच क्या है असाध्य?
पर उस स्पन्दित सन्नाटे में
मौन प्रियंवद साध रहा था वीणा–
नहीं, अपने को शोध रहा था।
सघन निविड़ में वह अपने को
सौंप रहा था उसी किरीटी-तरु को
कौन प्रियंवद है कि दंभ कर
इस अभिमन्त्रित कारुवाद्य के सम्मुख आवे?
कौन बजावे
यह वीणा जो स्वंय एक जीवन-भर की साधना रही?
भूल गया था केश-कम्बली राज-सभा को :
कम्बल पर अभिमन्त्रित एक अकेलेपन में डूब गया था
जिसमें साक्षी के आगे था
जीवित रही किरीटी-तरु
जिसकी जड़ वासुकि के फण पर थी आधारित,
जिसके कन्धों पर बादल सोते थे
और कान में जिसके हिमगिरी कहते थे अपने रहस्य।
सम्बोधित कर उस तरु को, करता था
नीरव एकालाप प्रियंवद।
“ओ विशाल तरु!
शत सहस्र पल्लवन-पतझरों ने जिसका नित रूप सँवारा,
कितनी बरसातों कितने खद्योतों ने आरती उतारी,
दिन भौंरे कर गये गुंजरित,
रातों में झिल्ली ने
अनथक मंगल-गान सुनाये,
साँझ सवेरे अनगिन
अनचीन्हे खग-कुल की मोद-भरी क्रीड़ा काकलि
डाली-डाली को कँपा गयी–
ओ दीर्घकाय!
ओ पूरे झारखंड के अग्रज,
तात, सखा, गुरु, आश्रय,
त्राता महच्छाय,
ओ व्याकुल मुखरित वन-ध्वनियों के
वृन्दगान के मूर्त रूप,
मैं तुझे सुनूँ,
देखूँ, ध्याऊँ
अनिमेष, स्तब्ध, संयत, संयुत, निर्वाक :
कहाँ साहस पाऊँ
छू सकूँ तुझे !
तेरी काया को छेद, बाँध कर रची गयी वीणा को
किस स्पर्धा से
हाथ करें आघात
छीनने को तारों से
एक चोट में वह संचित संगीत जिसे रचने में
स्वंय न जाने कितनों के स्पन्दित प्राण रचे गये।
“नहीं, नहीं ! वीणा यह मेरी गोद रही है, रहे,
किन्तु मैं ही तो
तेरी गोदी बैठा मोद-भरा बालक हूँ,
तो तरु-तात ! सँभाल मुझे,
मेरी हर किलक
पुलक में डूब जाय
मैं सुनूँ,
गुनूँ,
विस्मय से भर आँकू
तेरे अनुभव का एक-एक अन्त:स्वर
तेरे दोलन की लोरी पर झूमूँ मैं तन्मय–
गा तू :
तेरी लय पर मेरी साँसें
भरें, पुरें, रीतें, विश्रान्ति पायें।
“गा तू !
यह वीणा रखी है : तेरा अंग — अपंग।
किन्तु अंगी, तू अक्षत, आत्म-भरित,
रस-विद,
तू गा :
मेरे अंधियारे अंतस में आलोक जगा
स्मृति का
श्रुति का —
तू गा, तू गा, तू गा, तू गा !
” हाँ मुझे स्मरण है :
बदली — कौंध — पत्तियों पर वर्षा बूँदों की पटापट।
घनी रात में महुए का चुपचाप टपकना।
चौंके खग-शावक की चिहुँक।
शिलाओं को दुलारते वन-झरने के
द्रुत लहरीले जल का कल-निनाद।
कुहरें में छन कर आती
पर्वती गाँव के उत्सव-ढोलक की थाप।
गड़रिये की अनमनी बाँसुरी।
कठफोड़े का ठेका। फुलसुँघनी की आतुर फुरकन :
ओस-बूँद की ढरकन-इतनी कोमल, तरल, कि झरते-झरते
मानो हरसिंगार का फूल बन गयी।
भरे शरद के ताल, लहरियों की सरसर-ध्वनि।
कूँजो की क्रेंकार। काँद लम्बी टिट्टिभ की।
पंख-युक्त सायक-सी हंस-बलाका।
चीड़-वनो में गन्ध-अन्ध उन्मद मतंग की जहाँ-तहाँ टकराहट
जल-प्रपात का प्लुत एकस्वर।
झिल्ली-दादुर, कोकिल-चातक की झंकार पुकारों की यति में
संसृति की साँय-साँय।
“हाँ मुझे स्मरण है :
दूर पहाड़ों-से काले मेघों की बाढ़
हाथियों का मानों चिंघाड़ रहा हो यूथ।
घरघराहट चढ़ती बहिया की।
रेतीले कगार का गिरना छ्प-छपाड़।
झंझा की फुफकार, तप्त,
पेड़ों का अररा कर टूट-टूट कर गिरना।
ओले की कर्री चपत।
जमे पाले-ले तनी कटारी-सी सूखी घासों की टूटन।
ऐंठी मिट्टी का स्निग्ध घास में धीरे-धीरे रिसना।
हिम-तुषार के फाहे धरती के घावों को सहलाते चुपचाप।
घाटियों में भरती
गिरती चट्टानों की गूंज —
काँपती मन्द्र — अनुगूँज — साँस खोयी-सी,
धीरे-धीरे नीरव।
“मुझे स्मरण है
हरी तलहटी में, छोटे पेडो़ की ओट ताल पर
बँधे समय वन-पशुओं की नानाबिध आतुर-तृप्त पुकारें :
गर्जन, घुर्घुर, चीख, भूख, हुक्का, चिचियाहट।
कमल-कुमुद-पत्रों पर चोर-पैर द्रुत धावित
जल-पंछी की चाप।
थाप दादुर की चकित छलांगों की।
पन्थी के घोडे़ की टाप धीर।
अचंचल धीर थाप भैंसो के भारी खुर की।
“मुझे स्मरण है
उझक क्षितिज से
किरण भोर की पहली
जब तकती है ओस-बूँद को
उस क्षण की सहसा चौंकी-सी सिहरन।
और दुपहरी में जब
घास-फूल अनदेखे खिल जाते हैं
मौमाखियाँ असंख्य झूमती करती हैं गुंजार —
उस लम्बे विलमे क्षण का तन्द्रालस ठहराव।
और साँझ को
जब तारों की तरल कँपकँपी
स्पर्शहीन झरती है —
मानो नभ में तरल नयन ठिठकी
नि:संख्य सवत्सा युवती माताओं के आशिर्वाद —
उस सन्धि-निमिष की पुलकन लीयमान।
“मुझे स्मरण है
और चित्र प्रत्येक
स्तब्ध, विजड़ित करता है मुझको।
सुनता हूँ मैं
पर हर स्वर-कम्पन लेता है मुझको मुझसे सोख —
वायु-सा नाद-भरा मैं उड़ जाता हूँ। …
मुझे स्मरण है —
पर मुझको मैं भूल गया हूँ :
सुनता हूँ मैं —
पर मैं मुझसे परे, शब्द में लीयमान।
“मैं नहीं, नहीं ! मैं कहीं नहीं !
ओ रे तरु ! ओ वन !
ओ स्वर-सँभार !
नाद-मय संसृति !
ओ रस-प्लावन !
मुझे क्षमा कर — भूल अकिंचनता को मेरी —
मुझे ओट दे — ढँक ले — छा ले —
ओ शरण्य !
मेरे गूँगेपन को तेरे सोये स्वर-सागर का ज्वार डुबा ले !
आ, मुझे भला,
तू उतर बीन के तारों में
अपने से गा
अपने को गा —
अपने खग-कुल को मुखरित कर
अपनी छाया में पले मृगों की चौकड़ियों को ताल बाँध,
अपने छायातप, वृष्टि-पवन, पल्लव-कुसुमन की लय पर
अपने जीवन-संचय को कर छंदयुक्त,
अपनी प्रज्ञा को वाणी दे !
तू गा, तू गा —
तू सन्निधि पा — तू खो
तू आ — तू हो — तू गा ! तू गा !”
राजा आगे
समाधिस्थ संगीतकार का हाथ उठा था —
काँपी थी उँगलियाँ।
अलस अँगड़ाई ले कर मानो जाग उठी थी वीणा :
किलक उठे थे स्वर-शिशु।
नीरव पद रखता जालिक मायावी
सधे करों से धीरे धीरे धीरे
डाल रहा था जाल हेम तारों-का ।
सहसा वीणा झनझना उठी —
संगीतकार की आँखों में ठंडी पिघली ज्वाला-सी झलक गयी —
रोमांच एक बिजली-सा सबके तन में दौड़ गया ।
अवतरित हुआ संगीत
स्वयम्भू
जिसमें सीत है अखंड
ब्रह्मा का मौन
अशेष प्रभामय ।
डूब गये सब एक साथ ।
सब अलग-अलग एकाकी पार तिरे ।
राजा ने अलग सुना :
“जय देवी यश:काय
वरमाल लिये
गाती थी मंगल-गीत,
दुन्दुभी दूर कहीं बजती थी,
राज-मुकुट सहसा हलका हो आया था, मानो हो फल सिरिस का
ईर्ष्या, महदाकांक्षा, द्वेष, चाटुता
सभी पुराने लुगड़े-से झड़ गये, निखर आया था जीवन-कांचन
धर्म-भाव से जिसे निछावर वह कर देगा ।
रानी ने अलग सुना :
छँटती बदली में एक कौंध कह गयी —
तुम्हारे ये मणि-माणिक, कंठहार, पट-वस्त्र,
मेखला किंकिणि —
सब अंधकार के कण हैं ये ! आलोक एक है
प्यार अनन्य ! उसी की
विद्युल्लता घेरती रहती है रस-भार मेघ को,
थिरक उसी की छाती पर उसमें छिपकर सो जाती है
आश्वस्त, सहज विश्वास भरी ।
रानी
उस एक प्यार को साधेगी ।
सबने भी अलग-अलग संगीत सुना ।
इसको
वह कृपा-वाक्य था प्रभुओं का —
उसकी
आतंक-मुक्ति का आश्वासन :
इसको
वह भरी तिजोरी में सोने की खनक —
उसे
बटुली में बहुत दिनों के बाद अन्न की सोंधी खुशबू ।
किसी एक को नयी वधू की सहमी-सी पायल-ध्वनि ।
किसी दूसरे को शिशु की किलकारी ।
एक किसी को जाल-फँसी मछली की तड़पन —
एक अपर को चहक मुक्त नभ में उड़ती चिड़िया की ।
एक तीसरे को मंडी की ठेलमेल, गाहकों की अस्पर्धा-भरी बोलियाँ
चौथे को मन्दिर मी ताल-युक्त घंटा-ध्वनि ।
और पाँचवें को लोहे पर सधे हथौड़े की सम चोटें
और छठें को लंगर पर कसमसा रही नौका पर लहरों की अविराम थपक ।
बटिया पर चमरौधे की रूँधी चाप सातवें के लिये —
और आठवें को कुलिया की कटी मेंड़ से बहते जल की छुल-छुल
इसे गमक नट्टिन की एड़ी के घुँघरू की
उसे युद्ध का ढाल :
इसे सझा-गोधूली की लघु टुन-टुन —
उसे प्रलय का डमरू-नाद ।
इसको जीवन की पहली अँगड़ाई
पर उसको महाजृम्भ विकराल काल !
सब डूबे, तिरे, झिपे, जागे —
ओ रहे वशंवद, स्तब्ध :
इयत्ता सबकी अलग-अलग जागी,
संघीत हुई,
पा गयी विलय ।
वीणा फिर मूक हो गयी ।
साधु ! साधु ! ”
उसने
राजा सिंहासन से उतरे —
“रानी ने अर्पित की सतलड़ी माल,
हे स्वरजित ! धन्य ! धन्य ! ”
संगीतकार
वीणा को धीरे से नीचे रख, ढँक — मानो
गोदी में सोये शिशु को पालने डाल कर मुग्धा माँ
हट जाय, दीठ से दुलारती —
उठ खड़ा हुआ ।
बढ़ते राजा का हाथ उठा करता आवर्जन,
बोला :
“श्रेय नहीं कुछ मेरा :
मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में
वीणा के माध्यम से अपने को मैंने
सब कुछ को सौंप दिया था —
सुना आपने जो वह मेरा नहीं,
न वीणा का था :
वह तो सब कुछ की तथता थी
महाशून्य
वह महामौन
अविभाज्य, अनाप्त, अद्रवित, अप्रमेय
जो शब्दहीन
सबमें गाता है ।”
नमस्कार कर मुड़ा प्रियंवद केशकम्बली। लेकर कम्बल गेह-गुफा को चला गया ।
उठ गयी सभा । सब अपने-अपने काम लगे ।
युग पलट गया ।
प्रिय पाठक ! यों मेरी वाणी भी
मौन हुई ।
X. X. X. X.
मैं कब कहता हूँ जग मेरी दुर्धर गति के अनुकूल बने,
मैं कब कहता हूँ जीवन-मरू नंदन-कानन का फूल बने ?
काँटा कठोर है, तीखा है, उसमें उसकी मर्यादा है,
मैं कब कहता हूँ वह घटकर प्रांतर का ओछा फूल बने ?
मैं कब कहता हूँ मुझे युद्ध में कहीं न तीखी चोट मिले ?
मैं कब कहता हूँ प्यार करूँ तो मुझे प्राप्ति की ओट मिले ?
मैं कब कहता हूँ विजय करूँ मेरा ऊँचा प्रासाद बने ?
या पात्र जगत की श्रद्धा की मेरी धुंधली-सी याद बने ?
पथ मेरा रहे प्रशस्त सदा क्यों विकल करे यह चाह मुझे ?
नेतृत्व न मेरा छिन जावे क्यों इसकी हो परवाह मुझे ?
मैं प्रस्तुत हूँ चाहे मेरी मिट्टी जनपद की धूल बने-
फिर उस धूली का कण-कण भी मेरा गति-रोधक शूल बने !
अपने जीवन का रस देकर जिसको यत्नों से पाला है-
क्या वह केवल अवसाद-मलिन झरते आँसू की माला है ?
वे रोगी होंगे प्रेम जिन्हें अनुभव-रस का कटु प्याला है-
वे मुर्दे होंगे प्रेम जिन्हें सम्मोहन कारी हाला है
मैंने विदग्ध हो जान लिया, अन्तिम रहस्य पहचान लिया-
मैंने आहुति बन कर देखा यह प्रेम यज्ञ की ज्वाला है !
मैं कहता हूँ, मैं बढ़ता हूँ, मैं नभ की चोटी चढ़ता हूँ
कुचला जाकर भी धूली-सा आंधी सा और उमड़ता हूँ
मेरा जीवन ललकार बने, असफलता ही असि-धार बने
इस निर्मम रण में पग-पग का रुकना ही मेरा वार बने !
भव सारा तुझपर है स्वाहा सब कुछ तप कर अंगार बने-
तेरी पुकार सा दुर्निवार मेरा यह नीरव प्यार बने।

प्रधानमंत्री मोदी का विकसित भारत का रोडमैप और मिशन 400 का लक्ष्य पाने का आत्मविश्वास

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आगामी लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया प्रारम्भ होने में अब गिनती के दिन बचे हैं,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विकसित भारत के रोडमैप के साथ पूरी तरह चुनावी मोड में हैं।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरी तरह आश्वस्त हैं कि उनके पिछले दो कार्यकाल की उपलब्धियों को देखते हुए एक बार फिर भी मोदी सरकार का आना तय है और यही कारण है कि उनके नेतृत्व में मंत्रिपरिषद की अंतिम बैठक में 2047 तक विकसित भारत बनाने के विजन पर चर्चा की गयी।

इस बैठक में न सिर्फ वर्ष 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने के दृष्टिपत्र पर चर्चा की गयी अपितु मई 2024 में गठित होने वाली नई सरकार के कार्यकाल के पहले सौ दिन के एजेंडे पर भी विचार विमर्श हुआ। कैबिनेट बैठक में प्रधानमंत्री ने जहाँ फिर से सरकार बनने का विश्वास जताया वहीं उन्होंने यह भी कहा कि मोदी सरकार के पहले 100 दिन का समय हनीमून पीरियड नही होता अपितु ठोस कार्य करने का समय होता है। प्रधानमंत्री ने बैठक में अपने सभी मंत्रियों को विवादित बयानबाजी न करने और डीपफेक वीडियो से बचने की सलाह दी और कहा कि बोलते समय केवल अपनी सरकारी योजनाओं और उपलब्धियों पर ही फोकस रखें।

कैबिनेट की बैठक के बाद प्रधानमंत्री राज्यों के तूफानी चुनावी दौरों पर निकल चुके हैं और सभी प्रान्तों में हज़ारों करोड़ रुपये की परियोजनाओं का शिलान्यास व उद्घाटन करने वाले हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आक्रामक तेवर में हैं और जहाँ भी जा रहे हैं वहाँ भ्रष्टाचार परिवारवाद व घोटालों सहित अनेकानेक मुददों को उठाकर विरोधियों की धार कुंद करने व उन्हें अपने ही राज्य में घेरने का काम रहे हैं।

पश्चिम बंगाल के दौरे में अपनी चुनावी जनसभाओं में उन्होंने संदेशखाली का मुद्दा जोरदार ढंग से उठाकर ममता बनर्जी की आवाज को कमजोर करने का सफल प्रयास किया और अब ऐसा लग रहा है कि संदेशखाली बंगाल ही नहीं अपितु संपूर्ण भारत में भी विपक्ष के लिए कठिन समस्या बनने जा रहा है क्योंकि विपक्ष के एक भी नेता ने मुस्लिम वोट खिसकने के डर से संदेशखाली की घटना की निंदा तक नहीं की। संदेशखाली में हिन्दू महिलाओं के साथ हुई त्रासदी पर विपक्षी दलों के नेताओं की आपराधिक चुप्पी कोई साधारण बात नहीं है। यह वही विपक्ष है जो मणिपुर की घटना पर संसद को ठप कर देता है और हाथरस की एक आपराधिक वारदात के लिए वहां की दौड़ लगा देता है किंतु जब संदेशखाली में शाहजहां शेख व उसके गुर्गे पिछड़ी जाति की हिंदू महिलाओं के साथ निकृष्टतम अमानवीय अपराध करते हैं तब यह लोग चुप्पी साध लेते हैं क्योंकि शाहजहाँ शेख मुसलमान है और पीड़ित हिंदू महिला समाज उनका वोटबैक नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विरोधी दलों के नेताओं की इसी विकृत राजनीति को पूरे जोर से उठा रहे हैं।

आक्रामक चुनावी तैयारियों के बीच भारतीय जनता पार्टी ने अपना 400 पार का मिशन प्राप्त करने के लिए 195 उम्मीदवारों की घोषणा करके विरोधी दलों पर एक मनावैज्ञानिक बढ़त बना ली है हालांकि बंगाल के आसनसोल से भेजपुरी गायक पवन सिंह ने टिकट वापस कर और दिल्ली में डॉ. हर्षवधन ने राजनीति से सन्यास लेकर भाजपा नेतृत्व को कुछ परेशान जरूर किया है किंतु समय रहते इस प्रकार की छुटपुट घटनाएं घटित हो जाने से फिलहाल भाजपा को मिशन 370 पार और एनडीए 400 पार का मिशन पूरा करने में कोई समस्या नहीं आने जा रही है।

भाजपा ने अपने मिशन को पूरा करने के लिए ही समय से पूर्व टिकट वितरण किया है। भाजपा की195 उम्मीदवारों की सूची जारी करने का यह कदम उसके आत्मविश्वास को दर्शाता है क्योंकि उसने उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों में कई सांसदो को दोबारा टिकट दिया है और 34 केंद्रीय मंत्रियों को भी फिर से टिकट मिला है।

उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में जहां भाजपा ने अभी केवल 51 उम्मीदवारों की ही घोषणा की है वहां रामलहर और मोदी जी की गारंटी के चलते 44 वर्तमान सांसदों को टिकट दिया गया है वहीं दूसरे दलों से आये कुछ नेताओं को भी टिकट दिया है जिसमें बसपा सांसद रितेश पांडेय का नाम प्रमुख है। भाजपा की पहली सूची में ऐसे कई सांसदों के टिकट काटे भी गये हैं जो किसी कारणवश विवादित रहे और नेतृत्व को परेशान किया। जिन सांसदों का टिकट काटा गया उसमें भोपाल की सांसद प्रज्ञा ठाकुर भी हैं जिन्होंने अपनी बयानबाजी में गोडसे को महिमामंडित करने का प्रयास किया था और विवाद बढ़ जाने के कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हस्तक्षेप करना पड़ गया था। वहीं डा. हर्षवर्धन कोविड काल में कुछ कठिन परिस्थितियों का ठीक से प्रबंधन नहीं कर पाये थे और वह राजनीतिक रूप से भी अत्यंत सक्रिय भी नहीं रहे थे। उधर गौतम गंभीर आयर जयंत सिन्हा ने चुनावी राजनीति से अलग रहने की बात कही है।

भाजपा के टिकट वितरण से यह साफ हो गया है कि अब केवल उन्ही सांसदों व विधायकों को टिकट मिलेगा जो दल की विचारधारा के प्रति पूरी तरह से समर्पित रहेंगे और सड़क से संसद तक संपूर्ण सक्रियता दिखायेंगे। जिन लोगों को टिकट नहीं मिला या नहीं मिलेगा उसमें से अधिकांश सांसदों ने कई बार पार्टी की विचारधारा के विपरीत जाकर कार्य किया है और अनुशासन तोड़ा है जिसमें उत्तर प्रदेश से श्रीमती मेनका गांधी और वरुण गांधी सहित ब्रजभूषण शरण सिंह जैसे कद्दावर सांसद शामिल हैं।

भारतीय जनता पार्टी ने पहली सूची में 28 महिलाओं, 21 अनुसूचित जाति, 18 अनुसूचित जनजाति, ओबीसी समाज को 57 और 47 युवा उममीदवारों को टिकट दिया गया है। उम्मीदवारों की सूची में दिल्ली में पूर्व विदेश मंत्री दिवंगत नेता सुषमा स्वाराज बेटी बांसुरी स्वराज को चुनाव मैदान में उतारा है जिससे आम आदमी पार्टी के नेता बौखला गये हैं और बयान दे रहे हैं कि बासुरी को टिकट देना भाजपा का परिवारवाद है जबकि वास्तविकता यह है कि बांसुरी एक बहुत ही मेहनती व कर्मठ नेता हैं और अपनी माता के निधन के बाद ही राजनीति में सक्रिय हुई हैं, वह सुप्रीम कोर्ट में काफी दिनों से वकालत कर रही हैं।

भारतीय जनता पार्टी का फैलाव अब समाज के प्रत्येक वर्ग में हो चुका है तथा पार्टी में नये प्रयोग करने का साहस भी आ चुका है। भाजपा ने जब लोकसभा चुनाव के लिए पहले दौर का सर्वे कराया था तब अनेक संसदों का टिकट कटने की आशंका व्यक्त की जा रही थी । उसके बाद मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान सहित पांच राज्यों में चुनाव में मोदी की गारंटी का नारा दिया गया जिसके अच्छे परिणाम सामने आये। राशन से लेकर आवास, सड़क से सुरक्षा और रोजगार से इलाज तक मोदी की गारंटी के नाम पर उत्तर से दक्षिण तक और पूरब से पश्चिम तक युवाओं, महिलाओं, किसानों और गरीबों को साधने का प्रयास प्रारम्भ हुआ। अयोध्या में 22 जनवरी को रामलला की भव्य प्राण प्रतिष्ठा के बाद संपूर्ण भारत में रामलहर चल रही है। तीसरे दौर में हर घर में राम लहर और मोदी की गारंटी का आभास हो गया । इसी बीच संपूर्ण भारत में विकसित भारत यात्रा हर गांव -हर शहर में चली और गांव परिक्रमा जैसे अभियानों का वृहद संचालन किया जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी इस बार हारी हुई सीटों पर लगातार मंथन कर रही है, कार्य कर रही है और प्रधानमंत्री मोदी की जनसभाएं आयोजित की जा रही है।

आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उनके नेतृत्व में संपूर्ण भाजपा एकजुट होकर सही समय में टिकट वितरण कार्य समाप्त करके अपना चुनाव अभियान तेज कर रही है और मिशन 400 पार के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हर संभव प्रयास प्रारम्भ कर चुकी है जिसमें उसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व समस्त हिंदू संगठनों का पूरा समर्थन मिल रहा है। इस बीच आया सरसंघचालक डॉ. मोहन भगवात जी का वक्तव्य इस दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है उन्होंने कहा है कि अनुकूल पस्थितियों में विश्राम करने वाला हार जाता है जबकि अपनी गति बढ़ाकर कार्य करने वाले को विजयश्री मिलती है। स्वाभाविक है ये सन्देश स्वयंसेवकों को चुनाव में सक्रिय करने के लिए है।

नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व अत्यंत विराट है : सौरभ मालवीय

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मीडिया गुरु के नाम से विख्यात डॉ. सौरभ मालवीय की नई पुस्तक ‘भारतीय राजनीति के महानायक : नरेन्द्र मोदी’ इन दिनों खूब चर्चा में है। इसे दिल्ली के मानसी पब्लिकेशन्स ने प्रकाशित किया है। इस चर्चा का एक कारण यह भी है कि यह ऐसे समय में आई है, जब लोकसभा चुनाव सिर पर हैं। पूर्व की भांति यह चुनाव भी श्री नरेंद्र मोदी के नाम पर ही लड़ा जाना तय है। इस पुस्तक में श्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व के साथ साथ उनके कृतित्व पर भी प्रकाश डाला गया है।

लेखक डॉ. सौरभ मालवीय का कहना है कि यह पुस्तक प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के विराट व्यक्तित्व से परिचय करवाती है। उनके व्यक्तित्व की भांति उनके कार्य भी बहुत ही महान हैं। वह भारत की गौरवशाली प्राचीन संस्कृति के संवाहक हैं। उनके कृतित्व में भारतीय संस्कृति के दर्शन होते हैं। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में उनकी भूमिका अत्यंत प्रशंसनीय एवं सराहनीय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने ही देश की पौराणिक नगरी अयोध्या में भूमि पूजन कर चांदी की ईंट और चांदी के फावड़े से ‘श्री राम जन्मभूमि मंदिर’ निर्माण की आधारशिला रखी थी। जिस समय वह मंदिर में पूजा-अर्चना कर रहे थे उस समय देश के करोड़ों लोग अपने घरों में टेलीविजन पर उन्हें देख रहे थे। वे इस स्वर्णिम क्षणों के साक्षी बने थे। यह पुस्तक समकालीन भारत का एक ऐतिहासिक प्रमाण है, जो भविष्य में लोगों को उनके व्यक्तित्व एवं केंद्र सरकार की योजनाओं और श्री नरेन्द्र मोदी जी के व्यक्तित्व से परिचित कराएगी।

इससे पूर्व भी डॉ. सौरभ मालवीय की पांच पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें राष्ट्रवादी पत्रकारिता के शिखर पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी, विकास के पथ पर भारत, राष्ट्रवाद और मीडिया, भारत बोध तथा अंत्योदय को साकार करता उत्तर प्रदेश सम्मिलित हैं। वह देशभर के समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं के लिए लेखन करते हैं। वह खबरिया चैनलों पर भी समसामयिक व ज्वलंत विषयों में अपने विचार रखते हुए देखे जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त वह विभिन्न कार्यक्रमों एवं गोष्ठियों में वक्ता के में रूप में बोलते हुए दिखाई देते हैं।

डॉ. सौरभ मालवीय हिन्दी पत्रकारिता के सुपरिचित हस्ताक्षर हैं। वह राष्ट्रवादी विचारों के प्रहरी हैं। उनकी लेखनी धर्म, संस्कृति, समाज, पर्यावरण, राष्ट्रबोध एवं मानवदर्शन से ओतप्रोत है। वह ईश्वर में गहरी आस्था रखते हैं, इसलिए वह अपनी प्रत्येक पुस्तक इष्टदेव के चरणों में अर्पित करते हैं। उनका कहना है कि भारत भूमि देवताओं की भूमि है। इसके कण-कण में भक्ति है। फिर वह भक्तिभाव से अछूते कैसे रह सकते हैं।
वर्तमान में वह लखनऊ विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।

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