दिग्गज सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक ऑस्ट्रेलिया सरकार के साथ समझौता होने के बाद वहां अपने प्लेटफॉर्म पर न्यूज देखने और शेयर करने पर लगाई रोक हटाने के लिए तैयार हो गई है। इस पूरे मामले पर फेसबुक का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया की सरकार प्रस्तावित मीडिया लॉ में संशोधन के लिए राजी हो गई है। इसके बाद उसने ये फैसला किया है।
दरअसल, जब अस्ट्रेलिया की सरकार ने देश में एक मीडिया कोड लागू करने की घोषणा की तब ये पूरा विवाद शुरू हुआ था । इस मीडिया कोड को वहां न्यूज मीडिया बार्गेनिंग कोड नाम दिया गया है। इस कोड के तहत कोई भी सोशल मीडिया कंपनी और टेक्नोलॉजी फर्म अपने प्लेटफॉर्म अगर कोई न्यूज लिंक दिखाती है या इस्तेमाल करती है, तो उसके लिए कंपनी को संबंधित मीडिया पब्लिशर को उसके लिए भुगतान करना होगा।
पिछले दिनों जब सरकार ने फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियों को इस कोड के अंतर्गत लाने का फैसला किया तब इस पर विवाद और बढ़ गया । इसके बाद ही फेसबुक ने विरोध में पिछले हफ्ते ऑस्ट्रेलिया में न्यूजफीड से समाचारों को ब्लॉक कर दिया था।
दिल्ली दंगों की बरसी पर कॉल फॉर जस्टिस की तरफ से एक दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक दिल्ली दंगे साजिश का खुलासा का विमोचन किया गया। पुस्तक में विस्तार से पिछले साल पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के बारे में लिखा गया है।
पुस्तक में बताया गया है कि किस तरह से साजिश के तहत दंगे भड़काए गए। पहले सत्र का संचालन डॉ. जसपाली चौहान ने किया। मंच पर वरिष्ठ अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा, अधिवक्ता नीरज अरोड़ा, पत्रकार आदित्य भारद्वाज मौजूद थे। कॉल फॉर जस्टिस के संयोजक नीरज अरोड़ा ने दिल्ली दंगों की प्लानिंग और उसको करने के कारणों के बारे में विस्तार से बताया। मोनिका अरोड़ा ने कार्यक्रम में बोलते हुए कहा कि जिस तरह दिल्ली दंगे भड़काए गए। उसी तरह इस साल कृषि कानूनों को लेकर भी किसानों को भड़काया जा रहा है। ग्रेटा थनबर्ग की टूलकिट यदि बाजार में नहीं आई होती तो फिर से दिल्ली दंगों जैसी स्थिति पैदा हो सकती थी। यह शुक्र है कि इस बार ऐसा नहीं हो पाया है। दिल्ली दंगों और किसान आंदोलन के बीच काफी समानता है। दोनों में एक ही तरह का नेतृत्व काम कर रहा था। इन दोनों आंदोलनों में कई चेहरे एक जैसे हैं। पत्रकार आदित्य भारद्वाज ने बताया कि वो खुद उस इलाके में रहते हैं जहां ये दंगे हुए थे। उनके मुताबिक दंगों की प्लानिंग बहुत ही बेहतर तरीके से की गई थी। दंगा उस समय शुरू किया गया, जबकि घरों में पुरूष नहीं थे। जबकि जिन दुकानों और जगहों पर हमला किया जाना था, वो पहले से ही तय किया गया था। उसके लिए सारे हथियारों को भी बंदोबस्त भी किया गया था।
पुस्तक के लेखक मनोज वर्मा ने बताया कि दिल्ली दंगों की साजिश एक अंतरराष्ट्रीय साजिश थी। जिसको कई महीनों पहले प्लान कर लिया गया था। पुस्तक के अन्य लेखक वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप महापात्रा ने बताया कि जब कोर्ट में सीएए को लेकर 150 से ज्य़ादा पिटिशन लगी हुई थी। तो उस समय योजनाबद्ध तरीके से दंगे कर कानून को प्रभावित करने की कोशिश थी।
न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) प्रमाेद कोहली ने भावुक होते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर से होने के नाते वह जानते हैं कि दंगा क्या होता है। बहन-बेटियों की अस्मत लूटी गई। लोगाें की हत्याएं हुईं। दिल्ली दंगा पीड़ितों की दास्तां सुन कर ऐसा लग रहा है कि इनके साथ इंसाफ नहीं हो रहा है। हम न्याय के लिए संबंधित लोगो तथा आर्थिक सहायता के लिए सरकार तक इनकी बात पहुंचाएंगे। न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एमसी गर्ग ने कहा कि अगर पीड़ित परिवार अपनी समस्याओं की रिपोर्ट “कॉल फार जस्टिस’ को भेजें तो हम उनकी लड़ाई लड़ेंगे। आईपीएस बोहरा – पीड़ित को अगर लगता है की दबाब में बयान लिया गया है तो वो अपना बयान बदल सकते हैं।
बॉम्बे हाई कोर्ट से ‘भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण’ ने समयबद्ध फैसले के लिए न्यू टैरिफ ऑर्डर-2.0 (NTO 2.0) के मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने की गुजारिश की है।
मीडिया खबर के अनुसार, ‘ट्राई’ ने न्यू टैरिफ ऑर्डर-2.0 के मामले को इसी महीने सूचीबद्ध करने के लिए कहा है, ताकि इस पर फैसला आ सके। रिपोर्ट के अनुसार, ‘ट्राई’ के चेयरमैन पीडी वाघेला उपभोक्ताओं के हितों को मद्देनजर नए टैरिफ ऑर्डर को जल्द से जल्द लागू कराना चाहते हैं।
मालूम हो कि पिछले साल जनवरी में ट्राई ने नए न्यू टैरिफ ऑर्डर (NTO 2.0) को लागू करने का आदेश दिया था, जिसके बाद ब्रॉडकास्टर्स के ग्रुप ने बॉम्बे हाई कोर्ट में ट्राई के आदेश को चुनौती दी थी। फिलहाल मामला कोर्ट में विचाराधीन है।
कल रात जब सोनी टीवी पर ‘इन्डियन आइडल’ पर संतोष आनंद नामक 81 वर्ष के बुज़ुर्ग के दर्शन हुए तो कलेजा मुंह को आ गया | रात भर नींद नहीं आई | ‘इक प्यार का नगमा है. मौजों की रवानी है, ज़िन्दगी और कुछ भी नहीं तेरी मेरी कहानी है.’. लिखने वाले संतोष आनंद की पीडादायक कहानी सुनकर आसुओं का सैलाब और पीड़ा के अनेक उफान ज्वार-भाटा की तरह जीवन को तार तार कर गया | कितनी हैरानी होती है कि फिल्मफेयर अवार्ड से सम्मानित होने वाले संतोष आनंद को हमने घनघोर पीड़ा की काल-कोठरी में धकेल दिया और उनके लिखे गीत आज भी हमारा संबल बनकर हमें मुश्किल समय में जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं | उनका एक गाना ही जीवन को उम्मीदों की डोर से बाँध देता है, और सभी गानों की बात करूं तो जीवन खुशी के आसमान में उड़ने लगता है | संगीत का ऐसा तिलिस्म रचने वाले गीतकार आज हमारे सामने ही नजर अंदाज़ हों और हमारे मन-मस्तिष्क को उन्हीं के लिखे गाने ताज़ा करे इससे बड़ी लानत और क्या हो सकती है | जब दूसरे कमरे से ‘बिग बॉस’ की नीरस बहसें सुनाई दे रही थी, उसी समय दोनो हाथ जोड़े संतोष आनंद जी पूरे देश के सामने एक याचक की तरह मानो हाथ जोड़ कर कह रहे हों, कि मैं वहीं संतोष आनंद हूँ जो फिल्म नगरी में रहकर जीवन को उमंगों तरंगों से भरने वाले गाने लिख चुका हूँ | बहुत हैरानी हुई.. जहाँ उन्हें हमें सहारा देना चाहिए, वहीं संतोष आनंद कृत्रिम वैसाखियों, और व्हील चेयर के सहारे चल रहे हैं और उनके लिखे मधुर गाने हमें उंगली पकड़ कर आशा के रास्ते पर ले जा रहे हैं |
कहाँ है हमारी सत्ता में बैठ वो लोग, जो प्रतिभा को सम्मान देने की बात करते हैं | वो प्रावधान कहाँ है जो प्रतिभा को सम्मानित करने की डींगें हांकते हैं | संतोष आनंद का थर-थर काँपता जिस्म देख कर कलेजा फटने लगा था | जब संतोष आनद का आदित्य नारायण ने स्वागत किया को संतोष के जुड़े हाथ और समर्पित आवाज़ सुनते ही जिस्म के रोम-रोम से मानो ठंडे गर्म तूफ़ान उठ रहे हों, उन्होंने कहा बहुत अच्छा लग रहा है, अरसे बाद मुम्बई आकर अच्छा लग रहा है, ‘किसी ने याद तो किया’ चार शब्दों में एक बहुत बड़ी करुणा भरी व्यथा है और मैं खुदको बेबस महसूस करता हुआ एक ऐसा असहाय व्यक्ति जो ईश्वर से यह प्रार्थना कर रहा था कि काश ! मेरे पास इतने साधन होते कि मैं संतोष आनंद के लिए कुछ कर सकता ! मेरे पास कुछ धन होता तो मैं भी उन्हें अर्पित करता |
प्रतिभा के नाम पर बिना सिर-पैर के शो में करोड़ों दान करने वाले टीवी चैनल और फिल्म उद्योग के वो लोग इतने असंवेदनशील हैं कि फिल्मनगरी को मधुर गीतों की सौगात देने वाले संतोष आनंद को दर-दर की ठोकरें खाते हुए देखें | सरकार की साहित्य अकादमियों, और सम्मान समितियों पर लानत भेजने का मन करता है | दो कौड़ी के लेखकों को बड़े बड़े सम्मानों से नवाजने वाली सरकारें असल प्रतिभा को किसी अनाथ की तरह दुखों की काल कोठरी में जीने पर विवश होने के बावजूद भी देख नहीं पा रही | अनेक सरकारी संस्थान हैं जिनका काम प्रतिभा को समानित करना और प्रतिभा को तराशना है, लेकिन अब नई प्रतिभा सिर्फ वही मानी जाती है जो राजदरबारी की तरह सरकारों की प्रशंसा में खोखले लेख लिखे और ऐसे गाने लिखे जिसमें ख्याली पुलाव पकते हों.. जिसमें सरकार की चाटुकारिता करने वाले लोगों पर लाखों की धनराशी पुरस्कार के रूप में लुटा कर ऐसा आडम्बर रचा जाता है, कि मानो देश में प्रतिभा सबसे ऊंचे पायदान पर हो | बे सिर-पैर के आयोजनों में बेशक करोड़ों रुपये लुटाने वाले चैनल फूहड़ता का भोंडा मसाला परोस कर अपना व्यापार चलाते हों, मुनाफ़ा कमाते हों, ऐसे में संतोष आनंद जैसे प्रतिभा के धनी लेखक को जीवन जीने भर भी साधन न मिले तो लानत शब्द मुंह से न निकले तो भला और क्या निकले | मेरे ज़हन में संतोष आनंद का वो क्षणिक संबोधन एक अमूल्य पूंजी है और पीडादायक अनुभव भी |
यह भी समझ आता है कि परिस्थितियाँ और भाग्य अगर आपको हाशिये पर धकेल दे तो आपके संसाधनों के दम पर आगे निकल गए लोग भी आपके साथ नहीं होंगे | ईश्वर के दर पर ठोकरें खा कर माँगा हुआ बेटा जब अच्छी नौकरी पर लग जाए और घर में एक बहु के रूप में बेटी आए, और परिस्थितियो के चलते वही बेटा और बहु आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाए ऐसे में अकेले पड़े संतोष आनंद की कोई भी सुध न ले तो यह हमारी बेचारगी का निम्न स्तर नहीं तो और क्या है | जब संतोष आनंद कहते हैं,’ मैं एक उड़ते हुए पंछी की तरह मुम्बई आता था.. रात रात को जाग कर गाने लिखता था.. मैंने अपने खून से गाने लिखे, लेकिन अब मेरे लिए दिन भी रात हो गए हैं’. और उनके गले तक आता वो ग़मों का अथाह समंदर, उस समंदर के उफान को रोकती उनकी जिजीविषा.. जहाँ वो कहते हैं कि मैं जीना चाहता हूँ | इतनी पीड़ा के बाद भी जीने का हौसला रखता वो टुकड़े-टुकड़े हुआ आदमी.. खुद को हौसलों के गोंद से जोड़े हुए है | बेचारी व्यवस्था और असंवेदनशील होती मानवता के बीच संतोष आनंद के लिखे गीतों की डोर से जीवन गाड़ी खींचते हम जब मूक दर्शक बन जाते हैं तो नेहा कक्कड़ जैसे पाक हृदय जब संतोष आनंद के माथे पर मुहब्बत भरा हाथ फेरते हैं.. तो दिल को ढाढस बंधती है कि संतोष आनंद के जीवन की पीडाएं तो शायद कम न हो लेकिन उनके जीवन का आख़िरी पड़ाव थोड़ी राहत से गुज़रे.. नेहा कक्कड़ के मुहब्बत भरे हाथों ने जब संतोष आनंद के माथे को छूआ तो ऐसा लगा कि उनके दुःख भरे घावों पर मुहब्बत का लेप लगा लिया हो | फिर संतोष आनंद अपना शेर कहते हुए विदा लेते हैं :-