दि ग्रेट टूल किट और पर्यावरण के जयकारे

115-6.jpg

राजीव रंजन प्रसाद

ग्रेटा थनबर्ग का टूलकिट चर्चा में है लेकिन इसी के दृष्टिगत “वैश्विक नक्सलतंत्र” की नहीं पर्यावरण की चर्चा करनी आवश्यक है। भारत के भीतर होने वाली किसी भी अलगाववादी गतिविधि और उसके संचालन का मैकेनिज्म समझना है तो यही टूलकिट आजमायें, उदाहरण के लिये साझा किये गये दस्तावेज में किसान आंदोलन शब्द को काट कर नक्सलवाद जोड दें आपको देश-विदेश मेंउसके समर्थन में होने वाले कार्यक्रमों, अभियानों और गतिविधियों से कडियाँ जोडने मे मिनट नहीं लगेगा। बहरहाल टूलकिट और इसके भारतीय वामपंथी कलमखोरों की बात फिर कभी, ग्रेटा थनबर्ग से उसका ही प्रश्न पूछने की इच्छा है “हाउ डेयर यू?” 

ग्रेटा थनबर्ग के एन्वायरन्मेंटल एक्टिविज्म को एक सत्यकथा के आलोक में आपके सामने रखता हूँ। बात लगभग दस वर्ष पुरानी है। उन दिनों पर्यावरण के विषय “नेशनल एंवायरंवमेंट अपीलेट अथारिटी” के सम्मुख रखे जाते थे। अपने कार्य के सिलसिले में पर्यावरण कोर्ट निरंतर जाना होता था। वहीं उनसे पहली बार मुलाकात हुई थी। [ व्यक्ति का नाम इसलिये नहीं ले रहा हूँ क्योकि मैं एक लेखक हूँ मेरा काम घटना का विश्लेषण करना है उसे समाचार की तरह प्रस्तुत करना नहीं है।] शरीर पर कुर्ता, जिसमे पीछे की ओर पैबन्द लगा था। धोती मैली थी। उन्होने जो चश्मा पहना हुआ था वह एक हिस्से से फूटा हुआ था। मैं आदर से नतमस्तक हो गया। मुझे लगा कितना महान व्यक्ति है जिसे अपनी कोई परवाह नहीं; समाज के लिये जी रहा है। तकनीकी विषय पर उन्हे जिरह करने की अनुमति मिली थी और हल्के से झुकी कमर और दयनीय आवाज में “जन-जंगल-जमीन” पर एसी एसी दलीलें उन्होंने दीं कि यकीन मानिये दिल से मैं उनका भक्त हो गया था। वे कोर्ट आते थे तो साथ कुछ धोती-खादी वाले तथा कुछ ग्रामीण होते थे।

जज ने दलील सुनने के वाद विवादित स्थल को देखने की इच्छा जाहिर की। मेरा सौभाग्य कि कमीटी में मैं भी था और हम घटनास्थल पर पहुँचे। पास ही उन एक्टिविस्ट का मकान था। वहाँ पहुँच कर जैसे ही उन्हें मैने देखा मेरे बिम्ब धरे रह गये। पैंट-शर्ट पहनना कोई बुरी बात नहीं, नये फ्रेम का चश्मा भी पहना जा सकता है कोई बुराई नहीं। उनका मकान नदी के किनारे किसी रिसोर्ट की तरह था उसमें भी कोई बुराई नहीं।……लेकिन लेखक क्या करे उसे तो विषय कुरेदता है, इसलिये अपनी आदत के अनुसार शाम को जब पूरी कमेटी गेस्ट हाउस में थी मैं एक चौपाल में लगी मजलिश के बीच बैठ कर बात करने लगा। पता लगा कि जहाँ वह रिसोर्ट-नुमा मकान बना है वह जमीन एक विधवा की थी जिसे अपनी दबंगई तथा कानून की जानकारी के कारण उस एक्टिविस्ट ने अपने नाम करा लिया। विधवा और उसके बच्चे इतना सामर्थ तथा ज्ञान नहीं रखते थे कि कानून समझें या कानूनी लड़ाई लड़ सकें। सालों जमीन उसके कब्जे में रही फिर ‘एक्स-पार्टी निर्णय’ एक्टिविस्ट के पक्ष में हो गया तथा अब एक बढ़िया सा मकान नदी के किनारे….। अंत में बहुत मामूली “मुआवजा” दे कर विधवा से पिंड भी छुडा लिया था भाई साहब ने।…..। यहाँ आ कर मैने समझा कि एक्टिविज्म शब्द सुनते ही अभिभूत नहीं हो जाना चाहिये। हर इंकलाब-जिन्दाबाद चीखने वाले चेहरे के पीछे सही जुनून और सही मक्सद हो, कोई आवश्यक नहीं। इन दिनो बहुतायत के पीछे “हिडन एजेंडा” होते हैं। ये एजेंडा व्यक्ति को पूरा नाटकबाज बना देते हैं।

फूटा चश्मा, मैली धोती या पबंद लगा कुर्ता अगर आपको फैसिनेट करता है तो बुराई कुछ नहीं लेकिन सवाल इस वेषभूषा से उपर की चीज है। सवाल जब व्यक्ति से आगे निकलेंगे तभी जवाब मिलेंगे नहीं तो आपका जिन्दाबाद वैसा ही है जैसे निरमल बाबा के दरबार में जय-जय का घोष। इसी बात को एक अन्य उदाहरण से भी सामने रखता हूँ कि एक एक्टिविस्ट जो बहुधा घुटने तक खादी धोती और उपर भी आधी बाह का खादी कुर्ता पहना करते हैं तकनीकी विंदुओं पर एक पर्यावरण अदालत के  समक्ष बात रख रहे थे। विषय विशेषज्ञ ने बात बात दलील दी, साक्ष्य रखे, सिद्धांत बताये लेकिन मजाल है कि हॉर्न बजाने से पगुराती भैंस सडक से हट जाये? बाद में अदालत परिसर के बाहर मैंने एक्टिविस्ट महोदय का शैक्षणिक बैकग्राउंड पूछा तो जानकारी मिली हिंदी ऑनर्स ग्रेजुएट। ठीक है पर्यावरण ऐसा विषय है जिसमें नत्थू-खैरा भी विशेषज्ञ बन कर राय दे सकता है और ठस्स अपने ही तर्क पर खडा रह सकता है। यह विषय आसान लोकप्रियता की गायरंटी देता है।….इसीलिये मैं तो ग्रेटा थनबर्ग की निर्भीकता पर लहालोट था कि कोई साहस कर सकता है गंभीर पर्यावरण विषयों को वैशविक बना दे अब उसकी निर्लज्जता देख कर हतप्रभ हूँ। पर्यावरण अब एक टूल है किसी के लिये कोई संवेदनशील मसला नहीं। 

बॉम्बे HC ने BARC इंडिया के पूर्व CEO की अर्जी पर सुरक्षित रखा फैसला

116-6.jpg

बॉम्बे हाई कोर्ट ने ‘टेलिविजन रेटिंग पॉइंट्स’ से छेड़छाड़ के मामले में गिरफ्तार ‘ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल’ (BARC) इंडिया के पूर्व चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर (CEO) पार्थो दासगुप्ता की जमानत याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

मीडिया खबर के अनुसार, जस्टिस पीडी नायक की एकल पीठ ने विशेष लोक अभियोजनक शिशिर हिरेय और वरिष्ठ अधिवक्ता ऐबाद पोंडा द्वारा पेश दलीलों के बाद यह फैसला किया है।

हिरेय का अपनी दलीलों में कहना था कि हालांकि BARC में बतौर सीओओ रोमिल रामगढ़िया के पास फाइनेंस की जिम्मेदारी थी, दासगुप्ता के पास कंपनी में ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी थी, क्योंकि वह कंपनी के सीईओ और एमडी थे। लोक अभियोजक का यह भी कहना था कि वॉट्सऐप पर की गई बातचीत से स्पष्ट है कि ‘रिपब्लिक टीवी’ के एडिटर-इन-चीफ अरनब गोस्वामी से दासगुप्ता के घनिष्ठ संबंध थे।

वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता ऐबाद पोंडा और अधिवक्ता अर्जुन सिंह ठाकुर ने राज्य को तर्कों का विरोध किया और अपनी दलीलें पेश कीं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ज्वेलरी, फोटो और रिपोर्ट्स अदालत में बेवजह दाखिल की गईं और इनका जांच से कोई संबंध नहीं है। दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद हाई कोर्ट ने इस मामले में अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया है।

पत्रकार प्रिया रमानी को कोर्ट ने एमजे अकबर से जुड़े मामले में किया बरी

115.1.jpg

वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर की मानहानि के मामले में दिल्ली की एक अदालत ने पत्रकार प्रिया रमानी को बरी कर दिया है। कोर्ट में यह मामला दो साल से अधिक समय तक चला।

मीडिया खबर के अनुसार, अदालत ने माना कि किसी महिला को अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज बुलंद करने पर दंडित नहीं किया जाना चाहिए। अदालत का यह भी कहना था कि किसी भी महिला को दशकों बाद भी अपनी शिकायत रखने का अधिकार है। इसके साथ ही कोर्ट ने प्रिया रमानी को इस मामले में बरी कर दिया।

कोर्ट का यह भी कहना था कि यौन शोषण से गरिमा और आत्मविश्वास का काफी ठेस पहुंचती है। प्रतिष्ठा के अधिकार को गरिमा के अधिकार की कीमत पर सुरक्षित नहीं किया जा सकता है। समाज को यह समझना चाहिए कि शारीरिक उत्पीड़न और शोषण का पीड़िता पर कितना गहरा असर पड़ता है।  

मालूम हो कि #MeToo कैंपेन के तहत प्रिया रमानी ने एमजे अकबर पर तकरीबन 20 साल पहले उनके साथ यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया था। हालांकि, अकबर ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था। यौन उत्पीड़न के आरोप लगने के बाद अकबर ने प्रिया रमानी के खिलाफ दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में 15 अक्टूबर 2018 को मानहानि का मुकदमा दायर किया था।

एमजे अकबर ने 17 अक्टूबर 2018 को इसके बाद विदेश राज्य मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट रवींद्र कुमार ने अकबर और रमानी के वकीलों की दलीलें पूरी होने के बाद इस साल एक फरवरी को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सोशल मीडिया पर सक्रिय युवाओं को बंगाल फतह करने के लिए जोड़ रही है भाजपा

116-4.jpg

भाजपा ने पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए बूथ और यूथ की रणनीति पर काम तेज कर दिया है। असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में तो वह इसका लाभ लेगी ही, साथ ही वह इससे वह अगले लोकसभा चुनाव के लिए भी जमीन तैयार कर रही है। खास बात यह है कि इनका पार्टी प्लेटफार्म पर दिखना जरूरी नहीं होगा।

 बूथ और यूथ अभियान संवाद और संपर्क का काम तो करेगा साथ ही भाजपा सोशल मीडिया पर ही ज्यादा सक्रिय रहेगा और लोगों तक पार्टी की पहुंच बनाएगा। सूत्रों के अनुसार यह जरूरी नहीं है कि इस अभियान से जुड़ने वाले युवा पार्टी के साथ किसी मंच पर सामने आएं या सड़क पर संघर्ष करते नजर आएं। इनको समसामयिक घटनाओं पर पार्टी व सरकार के रुख से लगातार अपडेट रखा जाएगा। आगे वह खुद ही उन सूचनाओं को आगे बढ़ाएगा।

कॉलेज में अध्ययनरत और रोजगार में लगे युवाओं को, डिजिटल और सोशल मीडिया प्रभावी है इसलिए पार्टी अपने इस अभियान का लक्ष्य बना रही है। भाजपा ने बीते साल अपने युवा मोर्चा का अध्यक्ष बंगलुरु के सांसद तेजस्वी सूर्या को बनाया है जो डिजिटल और सोशल मीडिया के जरिए युवाओं के बीच सक्रिय हैं। उनके साथ भाजपा को अपने इस काम में संघ से जुड़े संगठनों की भी मदद मिल रही है। खासकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जिसका देश भर में अपना नेटवर्क है। विभिन्न कॉलेजों और अन्य संस्थानों में काफी बड़ी संख्या में युवा उससे जुड़े हुए हैं इनके जरिए भाजपा अन्य युवाओं तक भी पहुंच रही है और उनको प्रभावित करने की कोशिश कर रही है।

पांच राज्यों में चुनाव की तैयारी

एक प्रमुख नेता ने कहा है कि पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव की तैयारी पूरी हो चुकी है और अब उम्मीदवारों की घोषणा और मुख्य चुनाव प्रचार अभियान होना ही बाकी है। लेकिन पार्टी का यह अभियान आगे भी चलता रहेगा। दरअसल भाजपा की सोच 2024 के लोकसभा चुनावों की है। जहां उसे देश के सभी राज्यों में ऐसे युवाओं की जरूरत है जो भले ही बूथ पर खड़े दिखाई न दें लेकिन वहां के लोगों से संपर्क में रहें और उनको भाजपा के पक्ष में प्रेरित कर सकें।

scroll to top