NBF ने सूचना प्रसारण मंत्रालय को TV रेटिंग्स को लेकर लिखा लेटर

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‘ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल’ से न्यूज चैनल्स की रेटिंग तुरंत प्रभाव से जारी करने की मांग ‘न्यूज ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन’ ने की है। वरिष्ठ टीवी पत्रकार अरनब गोस्वामी के नेतृत्व वाले ‘न्यूज ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन’ ने इस बारे में सूचना प्रसारण मंत्रालय से हस्तक्षेप करने की मांग की है।

‘एनबीएफ’ का सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को लिखे इस पत्र में कहना है कि वे BARC के किसी भी बदलाव के लिए तैयार हैं, लेकिन पूरी तरह से रेटिंग्स की गैरमौजूदगी ने न्यूज चैनल्स की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है।  

लेटर में कहा गया है, ‘हम BARC में स्टेकहोल्डर्स हैं। डाटा मीजरमेंट हमारी ब्रॉडकास्ट इंडस्ट्री की लाइफलाइन है। पूर्व में भी डाटा में हेरफेर की घटनाएं हुई हैं, लेकिन डाटा जारी करना बंद कर देना इसका समाधान नहीं है। इसमें सुधार तभी हो सकता है, जब डाटा का प्रवाह लगातार हो। यह सुधार की एक सतत प्रक्रिया है। हम विनम्रतापूर्वक आपसे इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करने का अनुरोध कर रहे हैं।’

BARC से ‘एनबीएफ’ ने पहले भी इसी तरह की दलीलों के साथ संपर्क किया था, लेकिन अब तक कुछ भी हल नहीं हुआ है। पत्र में निम्नलिखित मांगें उठाई गई हैं:

1- BARC को न्यूज चैनल्स की रेटिंग्स को पब्लिश करना चाहिए, ताकि विभिन्न मीडिया संस्थानों में कार्यरत लोगों की आजीविका को बचाया जा सके।

2- यदि साप्ताहिक रेटिंग्स को पब्लिश करने में समस्या है तो रेटिंग्स को पब्लिश करने के लिए एक वैकल्पिक सिस्टम अपनाया जा सकता है, ताकि ताकि न्यूज जॉनर में एडवर्टाइजर्स का विश्वास बहाल हो सके।

3- हमने कोई गलत काम नहीं किया है। ऐसे में हमें अपना संचालन बंद करने के लिए मजबूर न किया जाए।

यह भी इस लेटर में कहा गया है कि इस कदम से तमाम न्यूज चैनल्स में कार्यरत लोगों की आजीविका पर सीधा असर पड़ रहा है, क्योंकि यहां कार्यरत एम्प्लॉयीज की आजीविका न्यूज चैनल्स द्वारा जुटाए गए रेवेन्यू पर निर्भर होती है और चैनल्स के रेवेन्यू का सीधा संबंध टीआरपी से है। इसलिए एनबीएफ BARC के स्टेकहोल्डर्स से आह्वान करता है कि वे तत्काल प्रभाव से न्यूज चैनल्स की रेटिंग जारी करने के लिए कदम उठाएं। ‘एनबीएफ’ से पहले टीवी9 नेटवर्क के सीईओ बरुन दास ने भी सूचना प्रसारण मंत्री को इसी तरह का एक लेटर लिखकर इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की थी।

मालूम हो कि टीआरपी से छेड़छाड़ के मामले को लेकर मचे घमासान के बीच ‘ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल’ (BARC) ने 15 अक्टूबर 2020 को 12 हफ्ते के लिए न्यूज चैनल्स की रेटिंग्‍स न जारी करने का फैसला लिया था, जिसकी समय-सीमा 15 जनवरी को समाप्त हो चुकी है। गौरतलब है कि मुंबई पुलिस द्वारा टीवी रेटिंग को लेकर किए गए खुलासे के बाद से BARC इंडिया की कार्यप्रणाली जांच के घेरे में है। ऐसे में सूचना प्रसारण मंत्रालय (MIB) तमाम कमियों को दूर करने के लिए टीवी रेटिंग्स की वर्तमान गाइडलाइंस का विश्लेषण कर रहा है। टीवी व्यूअरशिप/टीआरपी की समीक्षा के लिए सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा चार सदस्यीय समिति भी गठित की गई थी, जिसने पिछले दिनों अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है।

पत्रकारों को प्रेस नोट जारी कर नक्सलियों ने दी धमकी

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पहली बार प्रेस नोट जारी कर छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने पत्रकारों को धमकी दी है। सुत्रो के मुताबिक, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) दक्षिण सब जोनल ब्यूरो की तरफ से जारी प्रेस नोट में पत्रकारों के नाम लिखकर उनके ऊपर सरकार के साथ चलने का आरोप लगाया गया है।

जिन लोगों के नाम माओवादियों द्वारा जारी इस प्रेस नोट में लिखे गए हैं उसमें करीब 18 साल से नक्सलियों के गढ़ में पत्रकारिता कर रहे बीजापुर के गणेश मिश्रा के साथ लीलाधर राठी, पी विजय, फारुख अली, शुभ्रांशु चौधरी के नाम शामिल हैं।

खबर के अनुसार, प्रेस नोट के जरिये ये भी कहा है कि सरकार हजारों की संख्या में ग्रामीणों को बेदखल करने के लिए खदान और बांध शुरू करने के लिए समझौता कर चुकी है। नक्सलियों ने पत्र के माध्यम से कहा है की इसलिए ही सुरक्षाबलों की नई कंपनी तैनात की जा रही है, जबकि जनता इसका विरोध कर रही है। पत्रकारों और समाजसेवियों पर इस पूरे मामले पर साथ देने का आरोप लगाते हुए नक्सलियों ने जनता के जनअदालत में सजा देने की बात कही है।

पत्रकारिता छत्तीसगढ़ के बस्तर में बेहद चुनौतीपूर्ण है। सच्चाई ये भी है की जब सरकार और नक्सलियों के बीच कोई वार्ता करनी होती है तब भी बस्तर के पत्रकार ही सरकार की मदद करते हैं। बस्तर के पत्रकारों के माध्यम से ही कई बार निर्दोषों को नक्सलियों के कब्जे से छुड़ाया गया है। इतना ही नहीं बस्तर संभाग के सभी नक्सल प्रभावित जिलों के पत्रकार जब कोई बड़ा नक्सली हमला होता तो पत्रकार के रूप में नहीं बल्कि मददगार बनकर खड़े हो जाते हैं। जान जोखिम में डालकर अंदरूनी इलाकों से खबर लेकर आते हैं, जिसके बाद वही खबर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खबर बनती है।

 लंबे समय से बस्तर में काम कर रहे शुभ्रांशु चौधरी का कहना है की वो बस्तर में शांति चाहते हैं इसलिए बस्तर में ऐसे प्रयास करते रहते है जिससे इस इलाके में शांति आये। इसलिए नक्सलियों ने उनके बारे में ऐसा लिखा है। वहीं 18 साल से नक्सलियों के गढ़ से रिपोर्ट लाने वाले पत्रकार गणेश मिश्रा का कहना है कि उन्हें इस बात का बहुत दुःख है की उनके बारे में नक्सलियों ने ऐसा लिखा है। आज भी वो बीजापुर में किराए के मकान में रहते हैं। बीजापुर के अंदरूनी इलाकों से जरूरतमंदों की खबर देश और दुनिया के सामने लाते हैं। जान जोखिम में डालकर वो अपने पेशे के साथ खड़े रहते हैं उसके बाद भी उनके बारे में नक्सली इस तरह की बात लिख रहे हैं जिससे वो दुखी हैं।

छत्तीसगढ़ पुलिस ने इस पूरे मामले को गंभीरता से लिया है। बस्तर रेंज के आईजी पी.सुंदरराज ने बताया कि पुलिस इस प्रेस नोट की जांच कर रही है। पत्रकारों और समाजसेवी सहित सभी नागरिकों के सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस की है। किसे कितनी सुरक्षा दी जाएगी इस बात को हम सार्वजनिक नहीं कर सकते। वहीं कांग्रेस के प्रवक्ता आरपी सिंह का कहना है की ये नक्सलियों की बौखलाहट है जो बस्तर के उन पत्रकारों को धमका रहे हैं जो सबसे ज्यादा जोखिम लेकर पत्रकारिता कर रहे हैं। सरकार पत्रकारों के साथ है और उन्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है।

एक साथ आए सात प्रमुख अखबार

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धीरे-धीरे पिछले काफी समय से रुकी हुई भारतीय अर्थव्यवस्था गति पकड़ रही है। तमाम अन्य बिजनेस के साथ भारतीय भाषाई अखबारों की ग्रोथ भी बढ़ रही है। ऐसे में अब सात प्रमुख भाषाई अखबार अपने स्टेकहोल्डर्स के लिए एक कॉमन लेटर के जरिये एक साथ आगे आए हैं। इस लेटर में कहा गया है कि कोविड-19 से पहले की तुलना में सर्कुलेशन 80 से 90 प्रतिशत तक पहुंच गया है और 80 प्रतिशत से ज्यादा एडवर्टाइजिंग रिकवरी हो चुकी है।

लेटर में कहा गया है, ‘भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी रिकवरी कर रही है। वैक्सीन अभियान गति पकड़ रहा है और जीएसटी कलेक्शन भी अच्छी ग्रोथ दिखा रहा है। देश के टियर-दो और टियर-तीन मार्केट इस ग्रोथ में अहम भूमिका निभा रहे हैं। अखबारों का सर्कुलेशन भी बढ़ रहा है और यह जितना कोविड-19 से पहले था, उसके 80-90 प्रतिशत लेवल तक पहुंच गया है, इसके साथ ही एडवर्टाइजिंग रेवेन्यू भी कोविड-19 से पहले की तुलना में 80 प्रतिशत ग्रोथ प्राप्त कर चुका है।’

‘अमर उजाला’ के राजुल माहेश्वरी, ‘ईनाडु’ के आई वेंकट, ‘हिन्दुस्तान’ के राजीव बेओत्रा, ‘साक्षी’ के विनय माहेश्वरी, ‘दैनिक जागरण’ के शैलेष गुप्ता, ‘दैनिक भास्कर’ के गिरीश अग्रवाल और ‘मलयाला मनोरमा’ के जयंत मैमन मैथ्यू इस लेटर पर हस्ताक्षर करने वालों में शामिल हैं। ‘दैनिक भास्कर ग्रुप’ के प्रमोटर डायरेक्टर गिरीश अग्रवाल का इस रिकवरी के बारे में कहना है, ‘टियर दो और टियर तीन शहरों की ग्रोथ की वजह से भारतीय भाषाई अखबार पूरे मार्केट की ग्रोथ में अहम भूमिका निभा रहे हैं। अब जब मार्केट्स सामान्य स्थिति में पहुंचे हैं और तेजी से खुल रहे हैं, अखबारों का सर्कुलेशन स्तर भी कोविड-19 से पहले की तुलना में लगभग 85-87 प्रतिशत तक पहुंच गया है। इसके अलावा समाचार पत्रों की विश्वसनीयता और भरोसा एक प्रमुख प्लस पॉइंट के रूप में उभरा है। खासकर फेक न्यूज के माहौल के बीच जिस तरह अखबारों ने अपनी विश्वसनीयत बनाए रखी है, ऐसे में अखबारों की संपादकीय शक्ति को मार्केट्स और पाठकों द्वारा सराहा जा रहा है।’ इस लेटर में अखबारों की ग्रोथ के साथ ही उसके कारणों पर भी बात की गई है।

ED के हाथ लगी NewsClick पर छापेमारी से अहम जानकारी

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प्रवर्तन निदेशालय की रेड ऑनलाइन न्यूज पोर्ट्ल ‘न्यूज क्लिक’  पर क्या हुई, इस पर बवाल मचना शुरू हो गया है। यही नहीं, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने तुरंत ही इस रेड को मीडिया के ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’  को दबाने का प्रयास बताया।

प्रवर्तन निदेशालय से मिले सूत्रों से निकलकर सामने आनेवाली बात बहुत ही हैरानी भरी है। दरअसल, ‘न्यूज क्लिक’ पर प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) से 10 करोड़ रुपए मिले हैं। खास बात ये है कि न्यूज क्लिक के मालिक प्रवीर पुरकायस्थ को यह नहीं पता कि अमेरिका की कंपनी ने यह 10 करोड़ रुपया उन्हें क्यों दिया है।

गाड़ी, 10 करोड़ के विदेशी धन लेने के बाद भी नहीं रुकी। इस बार एक दूसरी अमेरिकी कंपनी से 20 करोड़ मिले। सूत्रों ने बताया कि न्यूज क्लिक को अमेरिका की एक दूसरी कंपनी ने Export Remittance के रूप में 20 करोड़ रुपया दिया… वह भी सिर्फ इस काम के लिए कि न्यूजक्लिक ने People’s Dispatch नाम के एक पोर्टल पर कंटेंट को अपलोड किया।

फर्जीवाड़े की कहानी यहीं खत्म नहीं होती… न्यूज क्लिक के मालिक प्रवीर पुरकायस्थ ने 1.5 करोड़ रुपए मेंटेनेंस के नाम पर ले लिए, लेकिन पता चला है कि प्रवीर पुरकायस्थ के यहां मेंटेनेंस का काम एक नौवीं पास इटेक्ट्रीशियन करता है। मेंटेनेंस का काम भी बिना किसी डॉक्यूमेंटेशन के किया गया, लिहाजा इसका कोई प्रूफ वे प्रवर्तन निदेशालय को नहीं दे पाए।

पत्रकारिता और राजनीति का रिश्ता इस पूरे घालमेल में चोली दामन का है। जरा खुद देखिए, किस प्रकार न्यूज क्लिक का रिश्ता सीपीआई से जुड़ा है। सूत्रों ने बताया, प्रवर्तन निदेशालय को जो जानकारी हाथ लगी है उसके मुताबिक, न्यूज क्लिक में काम करने वाले एक व्यक्ति को 52 लाख रुपए अमेरिकी कंपनी से मिले हैं और हां, ये व्यक्ति सीपीआई के आईटी सेल का मेंबर भी है और सीपीआई के नेताओं का ट्विटर अकाउंट भी चलाता है।

प्रवर्तन निदेशालय से जुड़े सूत्रों के अनुसार न्यूज क्लिक को अमेरिका में एक ही जगह रजिस्टर्ड अलग-अलग कंपनियों से बड़े पैमाने पर धन मिला है। इसी में एक डिफेंस सप्लायर  की कंपनी है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार, न्यूज क्लिक के मालिक प्रवीर पुरकायस्थ को गौतम नौलखा के साथ मिलकर कंपनी खोलने के लिए 20 लाख रुपए दिए हैं। ये वही गौतम नौलखा है, जो भीमा कोरेगांव दंगों का मुख्य आरोपी है और जेल में बंद है।

 सवाल उठता है कि आखिर अमेरिका डिफेंस सप्लायर कंपनी आखिर एक मीडिया संस्थान को पैसे क्यो दे रही है, वो भी उस शख्स को जो दंगों का आरोपी है और जेल में बंद है।

गौरतलब है कि बीते मंगलवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा ‘न्यूज क्लिक’ के दिल्ली स्थित कार्यालय पर छापा मारे जाने की खबर सामने आई थी। जांच एजेंसी ने ‘न्यूज क्लिक’ के एडिटर-इन-चीफ प्रबीर पुरकायस्थ के घर पर भी छापा मारा था।  ईडी अधिकारियों के हवाले से कहा गया था कि इस पोर्टल को कुछ संदिग्ध विदेशी कंपनियों से फंडिंग की गई है, जिसकी जांच की जा रही है।

मालूम हो कि इस पोर्टल को वरिष्ठ पत्रकार प्रबीर पुरकायस्थ ने वर्ष 2009 में शुरू किया था। अपनी कवरेज में मोदी सरकार के खिलाफ मुखर यह पोर्टल दिल्ली में किसानों के विरोध प्रदर्शन को कवर कर रहा है।

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