दिल्ली: केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने बुधवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के परिसर में ‘हिंदू थॉट: ए फाउंडेशन ऑफ द मॉरल लिविंग’ पुस्तक का विमोचन किया। यह पुस्तक दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. वरुण गुलाटी द्वारा लिखी गई है। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन से हुई और इसमें प्रमुख अतिथियों के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह, भारतीय शिक्षण मंडल के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री डॉ. बीआर शंकरानंद, सुरुचि प्रकाशन के अध्यक्ष राजीव तुली, डीन ऑफ कॉलेजेज़ प्रो. बलराम पाणी और रजिस्ट्रार प्रो. विकास गुप्ता उपस्थित रहे।
कार्यक्रम के दौरान गजेंद्र सिंह शेखावत ने पुस्तक की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए कहा, “यह पुस्तक प्रासंगिक और समय की आवश्यकता है। अब देश बदल रहा है और यह कार्यक्रम बदलते भारत के प्रतीक की तरह है।” उन्होंने सनातन संस्कृति के ‘सनातन’ होने के तात्त्विक बिंदुओं पर चर्चा की आवश्यकता को रेखांकित किया। साथ ही, भारतीय दर्शन की व्यापकता को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा, “भारतीय दर्शन इतना विशाल है कि कोई व्यक्ति उसमें अपने लिए कुछ ना कुछ आसानी से पा सकता है।”
उन्होंने पाश्चात्य और भारतीय दृष्टिकोणों की तुलना करते हुए कहा, “पाश्चत्य संस्कृति ‘थ्योरी ऑफ इवोल्यूशन’ की बात करती है, इसलिए उनके लिए जो नया है वही श्रेष्ठ है, जबकि भारत की संस्कृति कहती है कि चार युगों के बाद जीवन का अंतिम लक्ष्य ईश्वर का साक्षात्कार करना है। हमारा दर्शन यह मानता है कि हर जन्मा व्यक्ति ईश्वर का अंश है।” शेखावत ने कहा, “हम जिन वैज्ञानिक ताकतों के भरोसे दुनिया पर विजय करना चाहते थे, आज वही वैज्ञानिक प्रकृति के प्रकोप से सबसे ज्यादा डरे हुए हैं जबकि हमारे ऋषियों ने इन ताकतों को जीवन पद्धति से जोड़ा, और जो देता है उसे देवता के रूप में स्वीकार किया। चाहे माता-पिता, गुरु हों या पृथ्वी, नदियां, वृक्ष और गाय।”
उन्होंने आगे कहा कि 800 वर्षों की गुलामी के बावजूद भारत की संस्कृति इसलिए बची रही क्योंकि इसे ऋषियों ने जीवन पद्धति से जोड़ दिया था। जब भारत की छवि बदल रही है, तो दुनिया की दृष्टि भी भारत की ओर बदल रही है। हमें साहस के साथ अपनी संस्कृति के विचारों पर बात करनी होगी।
भारतीय शिक्षण मंडल के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री डॉ. बी.आर. शंकरानंद ने पुस्तक की गंभीरता को रेखांकित करते हुए कहा, “किसी विचार को समाज के सामने रखते समय सावधान रहना होता है। आधार के बिना एक शब्द भी नहीं लिखा जाना चाहिए। इस पुस्तक में हर शब्द और वाक्य महत्वपूर्ण है।”
उन्होंने वैदिक परंपरा और भारतीय विमर्श पद्धति की ओर इशारा करते हुए कहा, “हिंदू कोई ‘Ism’ नहीं है। यह वाद से आगे बहुत से विषयों को समेटे हुए है। भारत में वाद की लंबी परंपरा है, वाद के लिए धैर्य चाहिए। यही धैर्य वैचारिक दृढ़ता और वैज्ञानिक दृष्टि से आता है।”
बी.आर. शंकरानंद ने हिंदू शब्द की उत्पत्ति पर हो रहे भ्रम को स्पष्ट करते हुए कहा, “कुछ लोग मानते हैं कि सिंधु नदी संस्कृति से ‘हिंदू’ शब्द आया। परंतु सरस्वती नदी की खोज के बाद स्पष्ट हो गया है कि यह संस्कृति सिंधु से भी प्राचीन है। कुछ मतों के अनुसार बाहर से आए लोग ‘स’ नहीं कह सकते थे, वे ‘ह’ कहते थे और वहीं से हिंदू शब्द आया। इस पर विवाद होता है।” उन्होंने बृहस्पति आगम के श्लोक का हवाला देते हुए कहा, “हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्, तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षत। से स्पष्ट होता है कि हिंदू शब्द मौजूदा अर्थ से कहीं अधिक प्राचीन है।” उन्होंने हिंदू धर्म को भारत की आत्मा बताया है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा, “हिंदू विचार पर लिखना आसान नहीं है। समाज कितना स्वीकार करेगा, यह एक बड़ा प्रश्न है। यह पुस्तक अतीत और वर्तमान के बीच एक पुल की तरह है।” उन्होंने कहा, “यह universal truth को पुनः प्रस्तुत करती है।” उन्होंने कहा कि 21वीं सदी में हमारे वैल्यू सिस्टम और विचार पर सवाल किए जाते हैं और उनकी आलोचना की जाती है, आज के समाज को देखते हुए, मॉडल लिविंग को लेकर हमारी आलोचना की जाती है। उन्होंने शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब भी हम शिक्षा और विद्या की बात करते हैं तो ज्ञान और बुद्धि की बात करते हैं। लेकिन हमारा सारा ध्यान ज्ञान पर ही है और बुद्धि को इग्नोर किया जाता रहा है। समझ की समझ को विकसित करना ही शिक्षा है। उच्च शिक्षा संस्थाओं में इस तरह की समस्याएं हैं।
साथ ही, उन्होंने कहा, “फाइनेंशियल लिटरेसी जैसे कोर्स लोकप्रिय हो रहे हैं लेकिन नैतिक-बौद्धिक पाठ्यक्रम नहीं। आतंकियों के पास ज्ञान और डिग्रियां थीं, लेकिन सही और गलत में फर्क करने की बुद्धि नहीं थी।”
उन्होंने कहा, “आज भारत में सबसे ज़्यादा कमी राष्ट्रीय चरित्र की है। देश के भीतर वो मन तैयार नहीं हुए, ये ही 800 वर्षों की गुलामी का सबसे बड़ा कारण था। राष्ट्रीय चरित्र के बिना व्यक्तिगत चरित्र घातक भी हो सकता है।” योगेश सिंह ने कहा, “धर्मो रक्षति रक्षत:, अगर आप धर्म की रक्षा नहीं करेंगे तो धर्म भी आपकी रक्षा नहीं करेगा। हिंदुओं का ज़्यादा अच्छा होना उनके लिए नुकसानदायक साबित हुआ है, हमारे वर्षों तक इसका ध्यान नहीं था और आज इस पर ध्यान किए जाने की ज़रूरत है।”
पुस्तक के लेखक डॉ. वरुण गुलाटी ने इस अवसर को अपने लिए एक भावुक क्षण बताया। उन्होंने कहा, “हिंदू विचार को समझने के लिए धैर्य चाहिए। विदेश से आए कुछ लोगों ने हमारी संस्कृति को नीचा दिखाने की कोशिश की, धर्मग्रंथों को पिछड़ा बताया और हमारी आत्मा में भ्रम पैदा किया।” डॉ. गुलाटी ने कहा, “यह पुस्तक हिंदू विचार को पुर्नजीवित करने का प्रयास है। यह किसी व्यक्ति की जीवनी नहीं, हमारी सांस्कृतिक आत्मा का पुनर्पाठ है।”
इस पुस्तक के प्रकाशक सुरुचि प्रकाशन के अध्यक्ष राजीव तुली ने संस्था की ऐतिहासिक भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शास्त्र हमारे नयन हैं और सुरुचि प्रकाशन पिछले 55 वर्षों से राष्ट्रीय साहित्य का प्रकाशन कर रहा है। उन्होंने कहा, “सुरुचि प्रकाशन उस समय से है जब छापने और पढ़ने वाले कम थे। देश की स्वतंत्रता के समय राष्ट्रीय विचारधारा को छापने वाले बहुत कम होते थे। करीब 450 टाइटल्स सुरुचि प्रकाशन ने छापे हैं।” तुली ने कहा, “हमारा उद्देश्य किताबें बेचकर पैसा कमाना नहीं है। हमने 350 से अधिक पुस्तकें ऑनलाइन निशुल्क उपलब्ध कराई हैं, जिन्हें 39 देशों के लाखों पाठक हर माह डाउनलोड कर पढ़ते हैं।”
कार्यक्रम के अंत में सुरुचि प्रकाशन के मैनेजिंग डायरेक्टर रजनीश जिंदल ने सभी अतिथियों, वक्ताओं, शिक्षाविदों और उपस्थित लोगों का हार्दिक धन्यवाद ज्ञापन किया। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक के माध्यम से हिंदू विचारधारा की गहराई को जन-जन तक पहुंचाना ही सुरुचि प्रकाशन का उद्देश्य है और भविष्य में भी ऐसे विमर्शों को आगे बढ़ाने का प्रयास लगातार जारी रहेगा।