बिना बात के विवाद खड़ा करना उनका शगल है, उनका यह शगल कभी मुल्क में अमन नहीं ला सकता। एक दूसरे की परंपराओं और विश्वास का सम्मान करके ही देश में सच्चे अर्थो में धर्म निरपेक्षत को बहाल कर सकते हैं।
एक हिन्दू लड़की का वीडियो सोशल मीडिया पर देखा जो प्रतिदिन जामा मस्जिद जाकर मुस्लिम बंधुओं को बिना किसी भेदभाव के खाना खिला रही है। कौन पठान है, कौन पसमंदा, कौन सैयद उसे फर्क नहीं पड़ता। जो इफ्तार के लिए हाथ बढ़ाता है, उसे वह खाना खिला रही है। भूखे को खाना खिलाना, सच्चे अर्थो में यही तो सनातन है।
इसी तरह सोफिया अंसारीजी का एक वीडियो मिला। जिन्होंने रंगों से खेलने के लिए अपना नाम नहीं बदला। रंगों से प्रेम करने वाली अकेली मुस्लिम बहन नहीं हैं, रंग से खेलने वाले ऐसे लाखों मुस्लिम बहने और भाई हैं, जो होली के रंगों से परहेज नहीं करते। हिन्दू मूल्यों का सम्मान करते हैं और मजे से रंग खेलते हैं। समाज में ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें रंग पसंद नहीं। यदि रंगों से एलर्जी है तो सिर्फ तीन चार घंटों के लिए होली के हुड़दंग से उन्हें खुद को दूर रखना है। इससे अधिक समय सड़कों पर हुड़दंग होता भी नहीं है। साल में परहेज के सिर्फ चार घंटे।
आप कितना भी समझाएं, दिशा निर्देश जारी करें। हजारों की भीड़ में दो चार होली के दिन ऐसे निकल ही आते हैं जो बिना रंग लगे कपड़ों को देखकर मचल जाते हैं। एक दिन के लिए ऐसे बच्चों को माफ किया जा सकता है। यदि कोई बदतमीजी पर उतर आए और धृष्टता की सारी सीमाएं लांघ जाए तो पुलिस और प्रशासन की मदद लेनी चाहिए।
बहरहाल, होली साल में एक दिन ही आती है। एक दिन आने वाले त्योहार में रंग लगाने के लिए किसी को फांसी तो नहीं दी जा सकती। इसलिए सब साथ मिलकर जितना एक दूसरे की परंपरा को सम्मान दे सकते हैं। आगे बढ़कर देना चाहिए।
अब जो लोग पिछले सात दिनों से यह अफवाह फैला रहे हैं कि इस्लाम ये हराम है और वह हराम है। उन नफरती चिन्टुओं के लिए तो यही लिखा जा सकता है कि सोफिया अंसारीजी के वीडियो को देखकर तो बिल्कुल नहीं लगता कि मुसलमान रंग से नफरत करते हैं। या उन्हें कोई रंग लगा दे तो मरने मारने वाली कोई बात हो जाएगी। बाकि पसंद नापसंद व्यक्तिगत हो सकती है। रंगों से नफरत करने वाला कोई हिन्दू भी हो सकता है और मुसलमान भी। इसलिए रंगों के इस त्योहार को हिन्दू और मुसलमान में ना बांटिए। सब मिलकर होली मनाइए। हैप्पी होली।