महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के नाम पर मराठी मानुस का गौरव और स्वाभिमान बढ़ाने का दावा करने वाली पार्टी आज एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार वजह उसका मराठी अस्मिता का झंडा नहीं, बल्कि एक शर्मनाक घटना है। मनसे के राज्य उपाध्यक्ष जावेद शेख के बेटे राहिल जावेद शेख ने मुंबई के अंधेरी में एक ऐसी हरकत की, जिसने न केवल मनसे की छवि को धक्का पहुंचाया, बल्कि यह सवाल भी उठाया कि क्या ऐसी हरकतों के बावजूद राज ठाकरे मराठी मानुस का दिल जीत पाएंगे? यह घटना न सिर्फ एक सड़क हादसे की कहानी है, बल्कि सत्ता के दुरुपयोग, नशे में धुत अहंकार और मराठी अस्मिता के नाम पर चल रही राजनीति की पोल खोलती है।
घटना का विवरण: नशे में धुत, अर्धनग्न और अभद्र व्यवहार
7 जुलाई 2025 की देर रात, मुंबई के अंधेरी पश्चिम में वीरा देसाई रोड पर एक सफेद इनोवा कार ने नेल आर्टिस्ट और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर राजश्री मोरे की कार में जोरदार टक्कर मारी। यह टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि राजश्री की कार क्षतिग्रस्त हो गई। लेकिन यह हादसा केवल गाड़ी की टक्कर तक सीमित नहीं रहा। टक्कर मारने वाला शख्स, जो मनसे नेता जावेद शेख का बेटा राहिल जावेद शेख निकला, नशे में धुत और अर्धनग्न अवस्था में था।
राजश्री ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर इस घटना का वीडियो शेयर किया, जिसमें राहिल न केवल अभद्र भाषा का इस्तेमाल करता दिखा, बल्कि उसने अपने पिता के रसूख का हवाला देते हुए राजश्री को धमकाया।
वीडियो में राहिल कहता सुनाई देता है, “भ**चोद पैसा ले,” और “जा, पुलिस को बता कि मैं जावेद शेख का बेटा हूं, फिर देख क्या होता है।”
राजश्री, जो राखी सावंत की पूर्व मित्र रही हैं, ने इस घटना को न केवल एक सड़क हादसे के रूप में देखा, बल्कि इसे राजनीतिक प्रतिशोध का मामला भी बताया। उन्होंने कहा कि कुछ समय पहले उन्होंने मराठी भाषा के जबरन थोपने के खिलाफ आवाज उठाई थी, जिसके बाद मनसे कार्यकर्ताओं ने उन्हें ऑनलाइन निशाना बनाया था। राजश्री ने अपने बयान में कहा, “मुझे निशाना बनाया गया क्योंकि मैंने महाराष्ट्र में अलग-अलग पृष्ठभूमि से आए लोगों के लिए आवाज उठाई थी। मैंने कहा था कि उन्हें काम करने की आजादी दी जाए, लेकिन मुझे ‘विभीषण’ कहा गया।”
पुलिस की कार्रवाई और मनसे का रवैया
घटना के बाद राजश्री ने अंबोली पुलिस स्टेशन में राहिल के खिलाफ प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज की। एफआईआर में शराब के नशे में गाड़ी चलाने, महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने और लापरवाही से वाहन चलाने जैसे आरोप शामिल हैं। पुलिस ने जांच शुरू की और राहिल को हिरासत में लिया गया, हालांकि कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, उसे जल्द ही नोटिस देकर रिहा कर दिया गया। मनसे ने इस घटना से खुद को अलग करते हुए बयान जारी किया कि “यह घटना पार्टी से संबंधित नहीं है। यह जावेद शेख के बेटे का व्यक्तिगत मामला है, और पुलिस को उचित कार्रवाई करनी चाहिए।”
लेकिन यह बयान कई सवाल उठाता है। अगर मनसे मराठी मानुस की अस्मिता और संस्कृति की रक्षा का दावा करती है, तो उनके नेता के बेटे का ऐसा व्यवहार क्या इस दावे को खोखला नहीं करता? शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) के नेता संजय निरुपम ने इस घटना की कड़ी निंदा की और कहा, “मनसे के नाम पर गुंडागर्दी हो रही है। राहिल ने न केवल एक महिला के साथ दुर्व्यवहार किया, बल्कि शराब पीकर मराठी संस्कृति को भी शर्मसार किया।” निरुपम ने यह भी सवाल उठाया कि क्या मनसे अपने मुस्लिम नेताओं के इशारे पर हिंदुओं के खिलाफ अभियान चला रही है।
मराठी मानुस और मनसे की राजनीतिमनसे की स्थापना 2006 में राज ठाकरे ने मराठी अस्मिता और हिंदुत्व के आधार पर की थी। पार्टी ने हमेशा मराठी भाषा, संस्कृति और स्थानीय लोगों के हितों को प्राथमिकता देने का दावा किया। लेकिन हाल की घटनाएं, जैसे कि थाणे में एक दुकानदार को मराठी न बोलने के लिए पीटना और अब राहिल जावेद शेख का यह कृत्य, मनसे की इस छवि पर सवाल उठाते हैं। क्या मराठी मानुस का गौरव ऐसी हरकतों से बढ़ेगा? क्या राज ठाकरे की अगुवाई में मनसे वाकई मराठी लोगों के हितों की रक्षा कर रही है, या यह केवल सत्ता और रसूख की राजनीति बनकर रह गई है?
राजश्री ने अपने दर्द को व्यक्त करते हुए कहा, “मैं एक मराठी महिला हूं, फिर भी मुझे मनसे कार्यकर्ताओं द्वारा निशाना बनाया जा रहा है। मैंने केवल इतना कहा था कि महाराष्ट्र में सभी को काम करने की आजादी मिलनी चाहिए। क्या यह गलत है?” उनकी यह बात महाराष्ट्र की उस समावेशी संस्कृति की ओर इशारा करती है, जो मुंबई को देश की आर्थिक राजधानी बनाती है। लेकिन मनसे का आक्रामक रवैया और इस तरह की घटनाएं इस समावेशी छवि को धूमिल कर रही हैं।
मराठी अस्मिता या सत्ता का नशा?
राहिल जावेद शेख की इस हरकत ने एक बार फिर यह सवाल उठाया है कि क्या मनसे की राजनीति वाकई मराठी मानुस के लिए है, या यह केवल सत्ता और प्रभाव के प्रदर्शन का जरिया बन गई है? जब एक नेता का बेटा अपने पिता के रसूख का हवाला देकर कानून को चुनौती देता है, तो यह न केवल कानून-व्यवस्था की विफलता को दर्शाता है, बल्कि उस पार्टी की विचारधारा पर भी सवाल उठाता है, जो मराठी गौरव की बात करती है।शिवसेना (UBT) और मनसे के बीच हाल में आई नजदीकियों ने भी इस घटना को राजनीतिक रंग दे दिया है। कुछ समय पहले उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने हिंदी थोपने के खिलाफ एक संयुक्त रैली की थी। लेकिन क्या इस तरह की घटनाएं इस एकता को कमजोर करेंगी? क्या मराठी मानुस ऐसी हरकतों को बर्दाश्त करेगा?
मराठी मानुस का भरोसा कैसे जीतेगा मनसे?
राहिल जावेद शेख की इस शर्मनाक हरकत ने न केवल मनसे की छवि को धक्का पहुंचाया है, बल्कि यह सवाल भी उठाया है कि क्या राज ठाकरे इस तरह के नेताओं और उनके परिजनों की हरकतों के बावजूद मराठी मानुस का भरोसा जीत पाएंगे? मराठी अस्मिता का झंडा उठाने वाली मनसे को पहले अपने घर को दुरुस्त करने की जरूरत है। अगर पार्टी के नेता और उनके परिजन ही ऐसी हरकतें करेंगे, तो मराठी मानुस का दिल जीतना तो दूर, मनसे अपनी विश्वसनीयता खो देगी।