संविधान को ढाल बनाती नक्सली अपील

114.1.jpg
राजीव रंजन प्रसाद

नक्सल हमले के बाद बस्तर में गृहमंत्री का आवश्यक दौरा हुआ। कार्रवाई के जो निर्देश और घोषणायें हुईं उसके बाद एक नक्सल पर्चा बाहर आया है जिसमें नृशंस हत्याओं के घिसे पिटे जस्टीफिकेशन के अतिरिक्त एक वाक्य गौर करने योग्य है। नक्सल पर्चे में लिखा है – “अमित शाह देश का गृहमंत्री होने के बावजूद बीजापुर की तेर्रेम घटना पर बदला लेने की असंवैधानिक बात कहता है।  इसका हम खण्डन करते हैं। यह उनकी बौखलाहट है और यह उनकी फासीवादी प्रवृत्ति को ही जाहिर कर रहे हैं”। बाकी पर्चे में क्या है उसे परे कीजिये इन पंक्तियों में बहुत कुछ ऐसा है जिसपर बात आवश्यक है। नक्सलियों ने तीन शब्द प्रयोग में लाये हैं पहला देश, दूसरा संविधान और तीसरा फासीवाद। क्रूर और नृशंस हत्यारे    “फासीवाद” शब्द को एसे उछालते हैं मानो वे अहिंसा की प्रतिमूर्ति हैं। बस्तर अंचल में जवानों की हत्या का जो सिलसिला है वह तो जारी है लेकिन रोज रोज मुखबिरी के नाम पर की जाने वाली ग्रामीण आदिवासियों की हत्या को फासीवाद नहीं कहते तो क्या इसे माक्सवाद-लेनिनवाद जैसे अलंकार मिले हुए है? खैर वामपंथी शब्दावली पर चर्चा मेरा उद्देश्य नहीं वे सिगरेट के छल्लों की तरह गोल गोल शब्द गढते हैं जिनके अर्थ हवा में मिल कर बदबू-बीमारी ही फैलाते हैं सार्थकता तो उनमें क्या खाक होगी। 

अब नक्सल पर्चे के दूसरे शब्द देश पर आते हैं। किसका है यह देश? नृशंश लाल-हत्यारों और उनके शहरी समर्थकों का? यह देश पारिभाषित होता है अपने संविधान से और उसी अनुसार चलेगा….अरे हाँ मैं तो भूल ही गया कि लाल-आतंकवादियों ने गृहमंत्री को संविधान के अनुसार चलने के लिये कहा है। उस संविधान के अनुसार जिसे लालकिले पर लाल निशाल लगाने का चेखचिल्ली सपना देखने वाले हत्यारे मानते ही नहीं? संविधान में देश के विरुद्ध युद्ध करने वालों के लिये कुछ व्यवस्थायें हैं, संविधान में उन नागरिकों को भी सांस लेने का अधिकार है जो हसिया हथैडा वाली मध्यकालीन सोच से तंग आ चुके हैं, संविधान के पास अपनी न्यायव्यवस्था और अदालते हैं वे राक्षसी जन-अदालत तंत्र से संचालित नहीं हैं और संविधान हथियार ले कर हत्या करने वालों को क्रांतिकारी किस पृष्ठ संख्या में मानता है? राज्य और केंद्र सरकार को एक पृष्ठ पर आ कर इन वैचारिक रक्तबीजों का मुकाबला करना ही होगा यही देश के संविधान से आम आदमी की अपेक्षा है। नक्सल और उनके शहरी तंत्र की शब्दावलियों की बारीक जांच कीजिये, इस बार “संविधान” शब्द का प्रयोग इसे न मानने वाले नक्सलियों ने अपनी ढाल बनाने के लिये किया है। 

Share this post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

scroll to top