न्यूजरूम में काम करने की प्रक्रिया पर मीडिया दिग्गज की राय

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तीन अप्रैल को दिल्ली के द इंपीरियल होटल में देश में टेलिविजन न्‍यूज इंडस्ट्री को आगे बढ़ाने में अपना बहुमूल्य योगदान देने वालों को सम्मानित करने के लिए ‘एक्सचेंज4मीडिया’ समूह की ओर से ‘एक्‍सचेंज4मीडिया न्‍यूज ब्रॉडकास्टिंग अवॉर्ड्स’ (enba)  2020 दिए गए। इनबा का यह 13वां एडिशन था। इस मौके पर ‘न्यूजनेक्स्ट कॉन्फ्रेंस 2021’ के तहत वर्चुअल रूप से कई पैनल डिस्कशन भी हुए। ऐसे ही एक पैनल का विषय ‘How much should algorithms control the newsrooms?’ रखा गया था।

लेखक, पत्रकार और रक्षा विशेषज्ञ अभिजीत अय्यर मित्रा, नेटवर्क18 के मैनेजिंग एडिटर (साउथ) विवेक नारायण, नेटवर्क18 के डिप्टी ग्रुप हेड (डिजिटल वीडियो) शुभजीत सेनगुप्ता और इंडिया टुडे के सीनियर एडिटर विवेक त्यागी इस पैनल डिस्कशन में शामिल हुए। इस सेशन को न्यूजएक्स के एसोसिएट एडिटर (स्पेशल प्रोजेक्ट्स) और भारत सरकार के कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के तहत आने वाले थिंक-टैंक ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स’ (IICA) के लिए गठित मॉनिटरिंग कमेटी के सदस्य तरुण नांगिया ने मॉडरेट किया।

तरुण नांगिया का कहना था, ‘यह टॉपिक काफी रोचक है और मेरे दिल के काफी करीब है कि क्या न्यूज चैनल्स के लिए लाइक्स और स्टोरी की लोकप्रियता ही उसके चुनाव का आधार होना चाहिए और उन्हें उसी के साथ आगे बढ़ना चाहिए। यह विशेष रूप से ज्यादा प्रासंगिक है, क्योंकि मैंने पिछले तीन-चार सालों में देखा है कि कंटेंट की लोकप्रियता से तय होता है कि उसे चैनल्स द्वारा लिया जाए। जब हमारे जैसे पॉलिसी जर्नलिस्ट कहते हैं कि यह क्या है और यह क्यों है तो हमें दिखाया जाता है कि बॉटम लाइन किसी भी अन्य लाइन से ज्यादा महत्वपूर्ण है और मुझे लगता है कि कुछ बिंदुओं पर हम सभी को इससे सहमत होना चाहिए, जब आर्थिक माहौल अनुकूल न हो। तमाम निर्णयों पर अर्थशास्त्र भारी पड़ता है। चूंकि हम सभी कंटेंट की तरफ से हैं, हम इस बारे में स्पष्ट हो सकते हैं।’

नारायण का कहना था कि सोशल मीडिया पर ट्रेंड होने वाली चीजों के बारे में बोलने में कुछ भी गलत नहीं है। उनका कहना था, ‘हम न्यूज के बिजनेस में हैं और यदि सोशल मीडिया से न्यूज मिल रही है तो इसमें गलत क्या है। आप बाद में यह पता कर सकते हैं कि यह गलत है या सही, लेकिन सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहे किसी विषय को उठाने में कुछ भी गलत नहीं है।’

अभिजीत अय्यर मित्रा का एल्गोरिदम, यूट्यूब न्यूज और ओपिनियन किस तरह लोकप्रिय हो गए हैं, इस पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए कहना था कि मेरे लिए यह बहुत स्पष्ट है। मीडिया हाउस खुद को कैसे देखता है? क्या यह एक वैचारिक धर्मयुद्ध है या यह एक व्यवसाय है? और यहां दूसरा मुद्दा यह है कि क्या मीडिया हाउस खुद को किसी भी तरह से सामूहिक ज्ञान से श्रेष्ठ मानते हैं, क्योंकि आप जिसे न्यूज के रूप में देखते हैं, वह उस रूप में न हो, जिसे लोग न्यूज की तरह देखना चाहते हैं। यह बहस काफी पुरानी है कि न्यूज क्या होनी चाहिए और क्या नहीं होनी चाहिए। आजकल लोगों के पास तमाम विकल्प हैं। यदि लोगों को वह न्यूज पसंद नहीं है जो आप उन्हें दे रहे हैं तो वे आगे बढ़ जाएंगे और उन स्टोरीज को सुनेंगे, जिन्हें वे सुनना चाहते हैं।

न्यूजरूम को कितने एल्गोरिदम को कंट्रोल करना चाहिए, इस बारे में शुभजीत सेनगुप्ता ने कहा, ‘डिजिटल न्यूजरूम मैनेजर के रूप में यदि मैं ये कहूं कि एल्गोरिदम हमारे काम करने के तरीकों को नियंत्रित नहीं करता है, तो यह गलत होगा। अब सवाल यह है कि लंबे समय तक ऐसा चलेगा या नहीं। सवाल यह है कि आप कितना एल्गोरिदम तय करना चाहते हैं। एल्गोरिदम के अपने फायदे और नुकसान हैं। आखिरकार दिन के अंत में न्यूजरूम को ज्यादा रीडरशिप चाहिए।’

वहीं, विवेक त्यागी के अनुसार सबकुछ भरोसे और विश्वसनीयता पर निर्भर करता है, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कितना एल्गोरिदम या आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल हो रहा है। उनका कहना है, ‘यह एक अच्छा टूल है, इससे समय की बचत होती है, लेकिन आखिर में एक मानवीय स्टोरी में विश्वसनीयता भी जुड़ी होती है। मेरा मानना है कि जहां तक ​​न्यूज की बात है, उसमें मानवीय पहलू और प्रौद्योगिकी अथवा एल्गोरिथ्म का समामेलन होना चाहिए।

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