पिछले कई वर्षों से शर्मा इंडिया गठबंधन की पैरवी करते दिखे हैं, जिससे कुछ लोगों को लगता है कि उनका झुकाव पत्रकारिता से ज्यादा राजनीतिक है। उनके करियर में हिंदुस्तान टाइम्स में लंबा योगदान रहा, जहां उन्होंने अपनी साख बनाई। बाद में वे विभिन्न मंचों, विशेषकर टीवी चैनलों पर सक्रिय रहे। आलोचकों का मानना है कि शर्मा के भीतर एक कारोबारी पहलू सक्रिय हो सकता है, जो उन्हें कांग्रेस की वकालत के लिए प्रेरित करता है। उनका लिंक्डइन प्रोफाइल बताता है कि वे ईटी नाउ में चीफ कॉपी एडिटर और राज्यसभा टेलीविजन में काम कर चुके हैं, जो उनके मीडिया करियर की विविधता को दर्शाता है।
शर्मा का दावा है कि इंडियन एक्सप्रेस, जो रामनाथ गोयनका की स्थापना है और आपातकाल में सेंसरशिप का विरोध कर चुका है, अब अपनी प्राथमिकताओं से भटक गया है। विपक्ष का SIR के खिलाफ प्रदर्शन, जो हाल के चुनावों में वोट रिगिंग के आरोपों से जुड़ा है, को कम कवरेज मिलना भी चर्चा का विषय बना है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि शर्मा की नाराजगी पत्रकारिता की हिफाजत हो सकती है, लेकिन उनका लगातार राजनीतिक पक्षपात इसे संदिग्ध बनाता है।
क्या शर्मा का यह रुख पत्रकारिता के सिद्धांतों की रक्षा है या व्यक्तिगत/व्यावसायिक हितों का विस्तार, यह सवाल अब गहराता जा रहा है। उनकी हिंदुस्तान टाइम्स में बिताई गई लंबी पारी और वर्तमान टीवी उपस्थिति के बीच यह तनाव उनकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर रहा है।