Groundbreaking Book “Musaliar King” Exposes Colonial Atrocities and Hidden Agenda in Malabar

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New Delhi – A century of skewed narratives is being challenged with the release of Dr. Abbas Panakkal’s latest book, Musaliar King, a bold, decolonial account of Malabar’s resistance against colonial rule. This seminal work reinterprets historical events, shedding light on the resilience of the region’s marginalized communities and confronting long-standing misrepresentations in colonial historiography.

Dr. Abbas Panakkal, the esteemed author of Musaliar King, asserts: “My book seeks to reclaim the history of Malabar’s resistance, challenging the colonial narrative that has been perpetuated for far too long. It’s time to uncover the truth and give voice to the marginalized communities who fought against colonial oppression.”

The book’s launch was marked by a thought-provoking discussion at the India International Centre, chaired by Ambassador KP Fabian, former Indian Ambassador and Professor at Symbiosis University. Ambassador Fabian praised Dr. Panakkal’s scholarship, stating: “I have read the book. It is a fine example of historiography based on evidence collected through industrious research. Dr. Abbas Panakkal has unmasked the imperialist plot to project a false account of what happened. His account of Mahatma Gandhi’s visit to Calicut in August 1920 with Maulana Shaukat Ali is indeed valuable for all those interested in history.”

A distinguished panel of scholars engaged in a stimulating discussion about the book’s themes and historical revelations. The panel featured Prof. Syed Iqbal Hasnain, Former Vice Chancellor of Calicut University; Prof. Sayyid Juffri, Former Head of the History Department at Delhi University; Prof. Saleena Basheer, Dean of the Law Department at Hamdard University; and Prof. Pallavi Raghavan from Ashoka University.

Musaliar King meticulously uncovers the colonial atrocities and hidden agendas that shaped Malabar’s history. The book delves into how colonial powers systematically exploited the region’s resources, perpetuated socio-economic inequalities, and manipulated narratives to vilify the indigenous resistance. Dr. Panakkal particularly highlights how the colonial regime’s economic and ecological exploitation mirrored patterns seen in the Amazon rainforest.

Another striking dimension of the book is its focus on the feminist contributions to Malabar’s resistance, bringing long-overlooked stories of courageous women to the forefront of historical discourse.

The impact of Musaliar King is already resonating beyond academia, garnering global recognition and praise from distinguished scholars worldwide. In an exciting development, an American-based film producer has expressed interest in adapting the book into a feature film, potentially bringing Malabar’s untold story to an international audience.

With its groundbreaking research and powerful narrative, Musaliar King is a must-read for historians, scholars, and anyone seeking a deeper understanding of colonialism, resistance, and the true history of Malabar.

आगरा में यातायात की लगातार बढ़ती अव्यवस्था: उदासीनता से घुटता शहर

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ताजमहल का शहर आगरा भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है और हर साल लाखों पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। फिर भी, इसके भव्य मुखौटे के नीचे एक ऐसा शहर है जो एक पुरानी और बदतर होती समस्या से जूझ रहा है: यातायात की भीड़।

आगरा की सड़कों पर रोजाना जाम लगना सिर्फ़ एक असुविधा नहीं है; यह व्यवस्थागत विफलताओं, प्रशासनिक उदासीनता और नागरिक जिम्मेदारी की कमी का लक्षण है। स्थिति एक टूटने के बिंदु पर पहुंच गई है, शहर का बुनियादी ढांचा अनियंत्रित वाहन वृद्धि, वीआईपी संस्कृति और उदासीन राजनीतिक वर्ग के बोझ तले दब गया है।

एम जी रोड हो या यमुना किनारा रोड, घटिया का चौराहा हो या रुई की मंडी का फाटक, हर जगह, हर दिन, नागरिकों के कई घंटे बर्बाद हो रहे हैं। सिकंदरा रोड हो या वजीरपुरा रोड, ट्रैफिक पुलिस को शहर का मोबिलिटी सिस्टम चलाने में खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। सड़क किनारे अतिक्रमण हट नहीं रहे हैं, दिल्ली गेट से मडिया कटरा चौराहे तक वाहनों की पार्किंग ने हालात खराब कर रखे हैं, संजय प्लेस में पार्किंग संकट बरकरार है।
असल में, आगरा की यातायात समस्याओं का मूल कारण सड़कों पर वाहनों की भारी संख्या है। पिछले कुछ वर्षों में, शहर में निजी वाहनों, जिनमें कार, मोटरसाइकिल और ऑटो-रिक्शा शामिल हैं, की संख्या में नाटकीय वृद्धि देखी गई है, जबकि बुनियादी ढांचे में कोई सुधार नहीं हुआ है। संकरी सड़कें, खराब तरीके से नियोजित चौराहे और अपर्याप्त पार्किंग सुविधाओं ने शहर को अराजकता के चक्रव्यूह में बदल दिया है। एक मजबूत सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की अनुपस्थिति समस्या को और बढ़ा देती है, जिससे निवासियों को निजी वाहनों पर निर्भर रहना पड़ता है। जबकि वाहनों की संख्या आसमान छू रही है, अधिकारी यातायात प्रबंधन को सुव्यवस्थित करने या चौड़ी सड़कें, फ्लाईओवर या कुशल जन परिवहन प्रणाली जैसे स्थायी समाधानों में निवेश करने में विफल रहे हैं।

यातायात पुलिस, जिन्हें भीड़भाड़ के खिलाफ़ रक्षा की पहली पंक्ति माना जाता है, अपने कर्तव्य में काफी हद तक विफल रही है। यातायात नियमों को लागू करने और सुचारू आवागमन सुनिश्चित करने के बजाय, उन्हें अक्सर अराजकता के निष्क्रिय दर्शक के रूप में देखा जाता है। ट्रैफ़िक सिग्नल को अक्सर अनदेखा किया जाता है, और लेन अनुशासन लगभग न के बराबर है। उल्लंघन करने वालों को दंडित करने या पीक-ऑवर ट्रैफ़िक को प्रबंधित करने में पुलिस की अक्षमता ने लापरवाह ड्राइवरों को बढ़ावा दिया है, जिससे सड़कों पर सभी के लिए खुली छूट हो गई है। इसके अलावा, ट्रैफ़िक कर्मियों के लिए आधुनिक उपकरणों और प्रशिक्षण की कमी उनकी प्रभावशीलता को और बाधित करती है। इसका परिणाम एक ऐसी प्रणाली है जो सक्रिय होने के बजाय प्रतिक्रियात्मक है, जिससे समस्या बढ़ती जा रही है।

अराजकता में वीआईपी संस्कृति भी शामिल है जो आगरा को परेशान करती है, जैसा कि कई अन्य भारतीय शहरों में है। राजनेताओं, नौकरशाहों और अन्य गणमान्य व्यक्तियों के काफिले अक्सर यातायात को ठप्प कर देते हैं, जिससे उनके गुजरने के लिए सड़कें अवरुद्ध हो जाती हैं। इससे न केवल वाहनों का आवागमन बाधित होता है, बल्कि यह संदेश भी जाता है कि नियम शक्तिशाली लोगों पर लागू नहीं होते। आम नागरिक, जो पहले से ही दैनिक कामों के बोझ तले दबा हुआ है, को इस अधिकार का खामियाजा भुगतना पड़ता है। वीआईपी संस्कृति एक गहरी बीमारी को रेखांकित करती है: आम नागरिकों की दुर्दशा के प्रति राजनीतिक वर्ग की उदासीनता। ट्रैफिक जाम के कारण होने वाली व्यापक पीड़ा के बावजूद, इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए बहुत कम राजनीतिक इच्छाशक्ति है। बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में देरी हो रही है, धन का कुप्रबंधन हो रहा है और वादे अधूरे रह गए हैं। राजनीतिक वर्ग दीर्घकालिक समाधानों की तुलना में अल्पकालिक लाभों में अधिक रुचि रखता है।

आगरा के निवासियों में नागरिक भावना की कमी भी उतनी ही परेशान करने वाली है। कई चालक बिना किसी दंड के यातायात नियमों का उल्लंघन करते हैं, चाहे वह लाल बत्ती पार करना हो, सड़क के गलत तरफ गाड़ी चलाना हो या नो-पार्किंग ज़ोन में गाड़ी चलाना हो। पैदल यात्री भी अक्सर बेतरतीब ढंग से सड़क पार करके अराजकता में योगदान देते हैं। नियमों के प्रति यह सामूहिक उपेक्षा एक गहरे सांस्कृतिक मुद्दे को दर्शाती है: सार्वजनिक स्थानों के प्रति सम्मान की कमी और समुदाय पर व्यक्तिगत कार्यों के प्रभाव को पहचानने में विफलता।

आगरा में ट्रैफ़िक जाम सिर्फ़ एक लॉजिस्टिक दुःस्वप्न नहीं है; यह संकट में फंसे शहर का प्रतिबिंब है। ट्रैफ़िक पुलिस की विफलता, वीआईपी संस्कृति, राजनीतिक वर्ग की उदासीनता और नागरिक भावना की कमी ने अव्यवस्था का एक आदर्श तूफान खड़ा कर दिया है। अगर आगरा को विश्व स्तरीय शहर के रूप में अपना दर्जा पाना है, तो उसे इन मुद्दों का सीधे तौर पर समाधान करना होगा। इसके लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है: बुनियादी ढांचे में निवेश करना, ट्रैफ़िक प्रबंधन को आधुनिक बनाना, राजनीतिक वर्ग को जवाबदेह बनाना और नागरिक ज़िम्मेदारी की संस्कृति को बढ़ावा देना। आधे-अधूरे उपायों और खोखले वादों का समय खत्म हो गया है।

धर्मरक्षक अखाडे और नागा बाबाओं का रहस्य लोक

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आचार्य श्रीहरि

महाकुंभ के दौरान अखाडों और नागाओं को लेकर उत्सुकता है, इनके कौशल और शौर्य तथा श्रृंगार व वेशभूषा को लेकर जिज्ञासा भी है और आश्चर्य भी है। कोई एक नहीं बल्कि कई प्रश्न श्रद्धालुओं के मन में उठते हैं, क्योंकि अखाडों के बारे में आमजन की जानकारी बहुत ही कम होती है और खासकर नागाओं के बारे में तो जानकारी बहुत ही सीमित या फिर नगण्य ही होती है। जैसे अखाडों की भूमिका क्या है? अखाडों की शुरूआत कब हुई थी, अखाडों का उद्देश्य क्या है, इनकी सक्रियता के तंत्र और मंत्र क्या है? अखाडे सनातन की रक्षा कैसे करते हैं? इसी तरह नागाओं के बारे में आम जन का मन में यह प्रश्न उठता है कि ये कहां रहते हैं, इनकी उपासना पद्धति क्या हैं, ये कहां से आते हैं और कहां से चले जाते हैं, ये मनुष्यता के बीच में रहते नहीं है तो फिर ये कहां छिपे होते हैं और ये सिर्फ महाकुंभ के दौरान ही क्यों उपलब्ध होते हैं, ये अपने शौर्य दिखाने में इतने निपुण कैसे होते हैं,?

अखाडों और नागा बाबाओं के प्रति ऐसी जिज्ञासा क्यों हैं? ऐसी जिज्ञासा इसलिए है कि महाकुंभ के दौरान अपनी अलोकित शक्ति से चमत्कृत कर रहे हैं। खासकर नागा बाबाओं ने अपने तप और बल तथा हट का जिस तरह से प्रदर्शन कर रहे हैं उससे महाकुंभ की कौशल और शौर्य आसमान छू रहा है और इसके अलावा सनातन की समृद्धि और शौर्य से लोग हतप्रभ है, देश के जनमानस ही नहीं बल्कि पूरा विश्व भारत की इस आध्यात्मिक चेतना और शक्ति को देख कर आश्चर्य है और इसके रहस्यों को लेकर जिज्ञासु है। क्योंकि कोई नागा बाबा अपनी जटा से पेड की टहनी से झूल रहा है तो कोई नागा बाबा अपनी जटा से भारी से भारी वस्तुओं को खीचने और उठाने का शौर्य दिखा रहा है, कोई नागा बाबा विषैले सांपों से खेल रहा है, कोई नागा बाबा तलवारबाजी का चमत्कार और वीरता दिखा रहा है तो कोई नागा बाबा तांडव नृत्य कर रहा है। ऐसी नागा बाबाओेें के दक्षता और वीरता को देख कर आमजनों का आश्चर्य में पडना अनिवार्य है।

जहां तक अखाडों की बात है तो इसकी उत्पति और दायित्व को लेकर कोई रहस्य नही है, कोई आश्चर्य की बात नहीं है। अखाडे सनातन की सुरक्षा परिधि के अंदर आते हैं। सनातन की सुरक्षा के लिए अखाडों का निर्माण हुआ था। आदि शंकराचार्य इसके जनक थे। शस्त्र और शास्त्र के नियमन बनाये थे। उनकी कल्पना थी कि अखाडे के साधु शस्त्र और शास्त्र विद्या मे पूरी तरह दक्ष और निपुण हो। उनके एक हाथ में गीता, रामायण, वेद और पुरान हो तो दूसरे हाथ में उनके पास तलवार, भाला,धनुष भी हो ताकि दानवों और राक्षसों से सनातन की रक्षा संभव हो सके। अखाडे एक प्रकार से सैनिक तैयार करने और विद्यार्थी तैयार करने की जगह होती है, विद्या की कसौटी पर हम इसे सनातन की विरासत और तप का स्कूल कह सकते हैं और सैन्य शक्ति की कसौटी पर सनातन सैनिक छावनी कह सकते हैं। अखाडों में मुख्यत दो प्रकार की शिक्षाएं दी जाती है। एक शिक्षा सनातन की विरासत की जानकरी दी जाती है, तप की प्रेरणा और विधि की शिक्षा होती है। सनातन धर्म की तप की कोई एक नही बल्कि सहस्र विधियां हैं, श्रेणियां हैं जो काफी जटिल और कठिन होती है, सनातन में मान्यता है कि भगवान तप से प्रसन्न होते हैं और मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं, जीवन चक्र से मुक्त होने का वरदान देते हैं। पर तप आसन नहीं होता है। मनुष्य योनी से मुक्ति का वरदान प्राप्त करना कठिन होता है। तप कोई समृद्धि वाले क्षेत्रों में नहीं होता है,आबादी वाले क्षेत्रो में नहीं होता है, कोई दिल्ली, मुबंई और चैन्नई जैसे शहरों में बैठकर नहीं होता है बल्कि इसके लिए नदियों के वीरान तटो, बिहडो और घनघोर जंगलों को चुना जाता है, जहां पर सांप, विच्छु और हिंसक जानवरों के बीच तपस्या करनी पडती है। तप की एक विधि योग भी है। अखाडों का संचालक एक गुरू होता है और शेष शिष्य होते हैं। इन्हें धर्म रक्षा के लिए लडने-भिडने और बलिदान होने की शिक्षा दी जाती है, सिर्फ शारीरिक शिक्षा ही नहीं बल्कि मानसिक शिक्षा भी दी जाती है। विरक्ति पालन की कठिन शिक्षा भी अखाडे देते हैं।

जबकि नागा साधु भगवान शिव के सहचर होते हैं, भगवान शिव के उपासक होते हैं, भगवान शिव के शिष्य होते है। भगवान शिव का अर्थ सत्य होता है। सत्यम शिवम सुंदरम का अर्थ तो आपलोग जानते ही होंगे। भगवान शंकर को सत्यम और सुंदरम कहा गया है। यानी की दुनिया में भगवान शंकर से सत्य और सुंदर कोई हो ही नहीं सकता है। भगवान शंकर की दाढी और जटा निराली होती है, वे फक्खड और निराले होते हैं, उनकी अदाएं और क्रियाएं अद्भुत होती है। भगवान शंकर हिमालय पर राज करते हैं, उनके शरीर पर सांप, विच्छु सहित न जाने कितने जहरीली जीव होते हैं जो साधारण मनुष्य को काट ले तो फिर उसकी मौत निश्चित है, लेकिन भगवान शंकर को कोई फर्क नहीं पडता है। आपने समुंद्र मंथन की कहानी सुनी होगी। समुद्र मंथन में सिर्फ अमृत ही नहीं निकला था बल्कि विष भी निकला था। विष इनता विषैला था कि वह ब्र्रह्मांड को ही विषैला कर सकता था और समस्य जीवों का संहार कर सकता था। देवताओं पर समुद्र मंथन के विष को निष्क्रिय करने को लेकर हाहाकार मच गया था। फिर भगवान शंकर सामने आये थे और विष को पीकर ब्राह्मांड को बचाने का काम किया था। भगवान शंकर में सभी प्रकार के विषों को पचाने की शक्ति है। जब किसी का कोई सहचर होगा, किसी का कोई अनुयायी होगा, शिष्य होगा, किसी का कोई उपासक होगा तो फिर उसकी प्रेरणा भी ग्रहण करेगा, उसका जीवन भी उसी ढंग का होगा, उसका रूप रंग भी उसी तरह का होगा, उसकी क्रियाएं भी उसी तरह का होगा और उसका तप और हट भी उसी प्रकार का होगा। चूंकि नागा साधु भगवान शंकर के शिष्य होते हैं और उपासक होते हैं तो फिर वे उन्ही का रूप रंग ग्रहण करते हैं, वे भगवान शंकर जैसा ही हट भी करते हैं और तप भी करते हैं। यही कारण है कि नागा साधु भगवान शंकर जैसा ही दाढी रखते हैं, जटा भी उसी तरह से रखते हैं, उनके शरीर पर आवरण भी उसी ढंग का होता है, ये सांप और विच्छु से खेलते हैं, अपने शरीर पर जहरीली जीवों को रखते हैं, कठिन और आश्चर्य चकित करने वाले करतब दिखाते हैं। एक भ्रम यह है कि नागा साधु मदिरा का सेवन करते है? यह भ्रम है? आधुनिक मदिरा का सेवन नहीं करते हैं। ये आधुनिक मदिरा के सेवन से काफी दूर है। फिर ये किस प्रकर के मदिरा का सेवन करते है? कई जडी-बूटियां ऐसी होती है जो आधुनिक मदिरा से भी ज्यादा मारक होती है और नशीली होती है, जो साधारण मनुष्य के लिए जहर के सामान होती हैं, जिनके सेवन से साधारण मानव का प्राणघात हो सकता है। लेकिन नागा साधु ऐसी मारक और प्राणघात नशीली जडी’बुटिया का सेवन कर आसानी से पचा लेते है। आप धतूर औषधि का नाम तो सुना ही होगा। भगवान शंकर धतुरा औषधि का संबंध भी उल्लेखनीय है।

नागा साधु आते कहां से है और कुंभ के बाद कहां लुप्त हो जाते हैं? नागा साधु तप और हट के पर्याय होते हैं। इसलिए इन्हें आम आदमी के बीच रहना पसंद नहीं होता है। आम आदमी और मनुष्य क्रियाओं के बीच रहने से इनका ध्यान प्रक्रिया और हट योग साधना से ध्यान भटक सकता है, इनके धार्मिक क्रियाएं बाधित हो सकती है। इसीलिए ये घनघोर नदियों के विरान तटों को चुनते हैं, ये उत्तराखंड के घने जंगलों, नेपाल के घने जंगलों को चुनते हैं, ये हिमालय पर्वत को चुनते हैं, ये मानसरोवर को चुनते हैं, ये ब्रम्हपुत्र नदी के तट को चुनते हैं, जहां पर ये भयानक गर्मी का सामना करते हैं, भयानक बरसात का सामना करते हैं, जहां पर ये भीषण ठंड का सामना करते हैं जहां पर ये बिघ्न रहित साधना करते हैं, इन्हें भीषण गर्मी, भीषण ठंड और भीषण बरसात भी साधना से विरक्त नहीं करती हैं। ये कोई आश्रम बना कर रहते नहीं हैं। ये कोई भोजन के आधुनिक सिद्धांत से जुडे भी नहीं होते हैं, ये सिर्फ गुफाओं में रहते हैं, अपनी धूनी के लिए पत्थर की गुफाएं खोजते हैं या फिर स्वयं गुफाएं बना लेते हैं। ये कठिन योग के सहचर होते हैं। योग से ही भगवान तक पहुंचना अनिवार्य हैं और निश्चित है। भगवान शंकर तक पहुचने के लिए नागा साधु कठिन योग का सहारा लेते हैं।

अखाडे और नागा साधु एक दूसरे के पर्याय हैं। सनातन के अंदर अभी तक 13 प्रमुख अखाडे हैं, जिनमें जूना, निरंजन, अटल, आव्हान, आनंद, अग्नि, नागपंथी गोरखनाथ, वैष्णन, उदासीन,निर्मोही अखाडे प्रमुख हैं जो नागा साधुओं को तैयार करते है। नागा साधु बनने के लिए स्वयं का पींडदान करना होता है और उन्हें निर्वस्त्र रहना पडता है। कई-कई साल की कठिन परीक्षाओं के बाद कोई नागा साधु बनता है। नागाओ की वीरता और सनातन धर्म की रक्षा का एक महान वर्णण गोकुल युद्ध में दर्ज है। 111 नागा साधुओं ने अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली की बर्बर सेना को हराया था और मंदिरो तथा सनातन की रक्षा की थी। नागा साधुओं केे दो योध्याओं शंभू और अजा ने 4000 हजार अफगान सैनिकों और 200 घुडसवार सैनिको तथा तोपों के सामने मजबूत दीवार के रूप में डट गये थे, अब्दाली के सेना यह सोची कि ये नग्न लोग उनसे क्या लडेंगे, इन्हें तो मिनटों में मिटा दिया जायेगा। भयानक युद्ध में अब्दाली की सेना की पराजय हुई थी और गोकुल नगरी की रक्षा कर भगवान कृष्ण की विरासत बचायी थी। मुगल काल के दौरान सनातन की रक्षा में अखाडों और नागा साधुओ की भूमिका बेमिसाल थी।

भारत -अमेरिका मैत्री के नये युग का प्रारम्भ

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पूरा विश्व जिन दो नेताओं की परस्पर भेंट की प्रतीक्षा कर रहा था, वह हो चुकी है, यानि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भेंट। इस भेंट के साथ ही विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संबंधों तथा भारत और अमेरिका के मध्य द्विपक्षीय संबंधों को लेकर जो तरह- तरह के संदेह व्यक्त किये जा रहे थे वे भी दूर हो चुके हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिवसीय अमेरिका यात्रा और उनके परम मित्र अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ उनकी बहु प्रतीक्षित वार्ता भी संपन्न हो चुकी है। प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति की मित्रता किसी से छिपी नही है और इन दोनों के मिलने के बाद यदि कहीं सबसे अधिक घबराहट का वातावरण बना है तो वह डीप स्टेट है जो अमेरिका में बैठकर भारत विरोधी गतिविधियों का संचालन करता रहा है। दूसरे नंबर पर पाकिस्तान है जहां भारत विरोधी आतंकवादी गतिविधियां बेधड़क संचालित हो रही हैं। मोदी – ट्रम्प के मिलने से जो व्यक्तिगत रूप से घबरा रहा होगा वो बांग्लादेश का नया तानाशाह मोहम्मद यूनुस है, जिसके शासनकाल में अल्पसंख्यक हिंदुओं तथा राजननैतिक विरोधियों पर घोर अत्याचार हो रहा है। बांग्लादेश का भाग्य अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर छोड़ दिया है।

नरेन्द्र मोदी की इस अमेरिका यात्रा के दौरान भारत और अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए एकजुट हुए हैं जिसका उल्लेख साझा पत्रकार वार्ता में किया गया तथा पाकिस्तान,जैश- ए- मोहम्मद और लश्कर ए तैयबा जेसे खतरनाक आतंकवादी संगठनों का नाम भी लिया गया है । यह इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि पूर्ववर्ती बाइडेन प्रशासन ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में बहुत ही ढुलमुल रवैया अपनाया था।

प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा का एक अप्रत्याशित क्षण वह था जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ अपने गर्मजोशी भरे संबंधों को याद करते हुए अपनी भारत यात्रा पर लिखी एक पुस्तक भेंट की, उस समय भी ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक महान नेता बताया।

अमेरिकी राष्ट्रपति से मुलाकात के पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने अमेरिकी प्रशासन के कई महत्वपूर्ण लोगों के साथ बैठकें करीं जिनमें द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा हुई। प्रधानमंत्री मोदी ने तुलसी गबार्ड तथा एलन मस्क से लेकर अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइकल वाल्ट्ज तक से मुलाकात की। एलन मस्क के साथ जहाँ व्यापारिक हितों व समझौतों को लेकर वार्ता हुई, वहीं अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइकल वाल्ट्ज के साथ हुई बैठक में रक्षा ,तकनीक हस्तांतरण और सुरक्षा क्षेत्रों जैसे गंभीर विषयों पर चर्चा हुई है। बैठक के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाल्ट्ज को “भारत का एक महान मित्र“ कहा है जिसके कई मायने निकाले जा रहे हैं। वाल्ट्ज के साथ हुई बैठक में दोनो देशों की वैश्विक रणनीतिक साझेदारी को और गहरा करने के तरीकों पर चर्चा हुई है। इसमें रणनीतिक साझेदारी के साथ साथ आतंकवाद के खिलाफ लडाई, रक्षा औद्योगिक सहयोग और नागरिक परमाणु ऊर्जा पर बल दिया गया। प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिका में भारतीय मूल के विवेक रामास्वामी के साथ भारत अमेरिका संबंधों इनोवेशन, बायो तकनीक और भविष्य को आकार देने में उद्यमिता की भूमिका पर गहन चर्चा हुई।

प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की वार्ता के बाद आयोजित साझी प्रेसवार्ता ने पूरे विश्व का ध्यान आकृष्ट किया जहाँ दोनों नेताओं की एक और एक ग्यारह वाली मित्रता एक बार फिर देखने को मिली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति ने वर्ष 2030 तक व्यापार को 500 अरब डालर तक बढ़ाने का लक्ष्य तय किया है। वार्ता के दौरान रक्षा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने का संकल्प लिया है जिसमें अमेरिका भारत को एफ- 35 लड़ाकू विमान बहुत जल्द देने पर सहमत हो गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने मुंबई हमले के सरगना तनव्वुर राणा को भारत भेजने के लिए अनुमति प्रदान कर दी है। साथ ही भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान को मिलाकर 2017 मे बनाए गये क्वाड समूह को फिर मजबूत व सक्रिय करने पर बल दिया गया है। पत्रकार वार्ता में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहाकि भारत और अमेरिका के मध्य मित्रता बहुत मजबूत है इस समय दोनों देशों के सम्बन्ध सबसे अच्छे दौर में है। दोनों नेताओं ने कहा कि हम आतंकवाद के मुद्दे पर एक दूसरे के साथ दृढ़ता से खड़े हैं। दोनो नेताओं ने सीमा पार आतंकवाद के उन्मूलन के लिए ठोस कार्रवाई पर बल दिया। भारत और अमेरिका सबसे बेहतर व्यापार मार्ग के विकास के लिए संकल्पबद्ध दखे ओैर इसकी घोषणा भी कर दी गई है। यह व्यापार मार्ग भारत मध्य पूर्व- यूरोप आर्थिक गलियारा होगा जिसमें अमेरिका भी एक साझेदार होगा ।

स्पष्ट है कि अब भारत और अमेरिका के मध्य दोस्ती का एक नया दौर प्रारम्भ हो रहा है।आगामी समय में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप भी भारत दौरे पर आने वाले हैं तब तक दोनों देशों के मध्य टैरिफ सहित विभिन्न विवादित मुद्दों का हल भी निकल आयेगा।

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