नमो बुद्धाये और अंबेडकरवाद की राजनीति निरर्थक क्यों बन गई ?

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आचार्य श्रीहरि

दिल्ली विधान सभा चुनावों के दौरान नमो बुद्धाए और अंबेडकरवाद की राजनीति का बहुत शोर था, एनजीओ टाइप के नमो बुद्धाए और अंबेडकरवाद की राजनीति ने बहुत बवाल काटा था, सक्रियता और अभियान बहुत ही शोरपूर्ण था, इनका दावा था कि नमो बुद्धाए और अंबेडकर को मानने वाले लोग ही जीत तय करेंगे, किसकी सरकार बनेगी यह निर्धारण करेंगे। लेकिन ये दोनों की विसंगतियां यह थी कि इनमें एक मत नहीं था, वे कनफ्यूज भी थे और विभाजित भी थे। नमो बुद्धाए और अंबेडकरवादी दो धु्रवों पर सवार थे। इनके एक वर्ग अरिवंद केजरीवाल को समर्थन दे रहा था जबकि दूसरे वर्ग कांग्रेस को समर्थन दे रहा था। दोनों वर्गो का समर्थन देने के तर्क बहुत ही विचित्र थे और फर्जी थे। अरविंद केजरीवाल ने दलित छा़त्रवृति और दलित कल्याण की योजनाओं का बंदरबांट किया था, ईमानदारी पूर्वक लागू नहीं किया था, कोई विशेष सुविधाएं नहीं लागू की थी फिर अरविंद केजरीवाल को समर्थन देने की घोषणा की थी जबकि दूसरे वर्ग उस कांग्रेस को समर्थन दिया और जीत की कामना की थी जिस कांग्रेस ने भीमराव अंबेडकर को लोकसभा में एक बार नहीं बल्कि दो-दो बार नहीं पहुंचने दिया था और अंबेडकर के सपनों का संहार किया था, नेहरू की दलित और संविधान विरोधी भावनाओं से आहत अंबेडकर की पीडा को भी दरकिनार कर दिया। कांग्रेस का समर्थन देते समय नमो बुद्धाए और अबेडकर वादियों ने यह याद तक नहीं किया कि अंबेडकर ने भारतीय संविधान को खुद ही जलाने की इच्छा या विछोह क्यों प्रकट की थी। सबसे बडी बात यह थी कि नमो बुद्धा और अंबेडकरवादियों के निशाने पर भाजपा थी और ये भाजपा के खिलाफ में खडे थे, भाजपा को किसी भी परिस्थिति में दिल्ली नहीं जीतना देना चाहते थे, इसलिए भाजपा के खिलाफ वोट डालने के लिए आह्वाहन भी किया था, इनका एक गुप्त एजेंडा दलित और मुस्लिम समीकरण के बल पर भाजपा का संहार करने के था।

दिल्ली विधान सभा का चुनाव परिणाम क्या कहता है? नमोबुद्धाए और अंबेडकर वादियों की केजरीवाल और कांग्रेस को जीताने की इच्छाए नहीं पूरी हुई। जाहिर तौर पर नमो बुद्धाए और अंबेडकरवादियों की इच्छाएं पूरी तरह असफल साबित हुई, और इनकी राजनीति शक्ति कमजोर होने का प्रमाण भी मिला। न तो अरविंद केजरीवाल जीत पाया और न ही कांग्रेस अपनी खोयी हुई राजनीतिक शक्ति हासिल कर सकी। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की जबरदस्त पराजय हुई है। भाजपा को अरविंद केजरीवाल से दोगुनी से भी ज्यादा सीटें मिली हैं। जबकि कांग्रेस को मात्र दो प्रतिशत वोटो की वृद्धि हुई है। साढे चार प्रतिशत वोट से बढकर साढे छह प्रतिशत वोट कांग्रेस के हुए हैं। लेकिन कांग्रेस के वोट प्रतिषत बढने के कारण जाति है। खासकर कांग्रेस के जाट प्रत्याशियों ने कांग्रेस के वोट प्रतिशत बढाने का काम किया है। कांग्रेस ने जहां-जहां पर जाट प्रत्याशी उतारे थे वहां-वहां पर कांग्रेस को ठीक-ठाक और इज्जत बचाने लायक वोट मिले हैं। जबकि आरक्षित सीटो पर भी भाजपा की सफलता दर अप्रत्याशित है और आश्चर्यचकित करने वाले हैं। कहने का अर्थ यह है कि दिल्ली मे भी दलितों का एक बडा भाग भाजपा को समर्थन दिया है और उनके सामने नमो बुद्धाए या अबेडकरवाद की राजनीतिक पैंतरेबाजी काम नहीं आयी और उन्हें भाजपा को समर्थन देने से रोक भी नयी पायी।

दिल्ली विधान सभा चुनाव से पूर्व महराष्ट्र और झारखंड में विधान सभा चुनाव हुए थे। महाराष्ट्र भीमराव अंबेडकर की संघर्षभूमि है। अबेडकर ने महाराष्ट्र के नागपुर में बौद्ध धर्म अपनाया था। इसलिए कहा जाता है कि महाराष्ट्र में अबेडकर वादियों और नमोबुद्धावाद की उर्वरक भूमि है जहां पर दलितों के अंदर राजनीतिक जागरूकता भी आसमान छूती है। महराष्ट्र विधान सभा चुनावो के दौरान भी दिल्ली विधान सभा की तरह ही उबाल और बवाल की राजनीतिक गर्मी पैदा की गयी थी और भाजपा के खिलाफ न केवल आक्रमकता उत्पन्न की गयी थी बल्कि भाजपा का संहार करने की भी कसमें खायी गयी थी। भाजपा विरोधी गठबंधन के साथ नमो बुद्धाएं और अंबेडकरवादी खडे थे। यह घोषणा भी की गयी थी कि दलित किसी भी स्थिति में भाजपा को सत्ता हासिल नहीं करने देंगे, भाजपा की सत्ता को उखाड फेकेंगे, भाजपा की सत्ता का संहार होना निश्चित है। कांग्रेस भी दलितों के समर्थन से उचक-कूद कर रही थी और जोश में थी। महाराष्ट्र विधान सभा का चुनाव परिणाम आया तब इन सभी के उछल-कूछ करने और बवाल की राजनीति पर कुठराघात हो गया, जनता ने इन्हें नकार दिया और भाजपा की जोरदार और अतुलनीय जीत भी दिला दी। झारंखड में भाजपा का रथ जरूर रूका पर भाजपा के रथ को रोकने वाले कोई दलित नहीं थे बल्कि पिछडे थे जो भाजपा के पिछडे विरोधी राजनीति से खफा थे और भाजपा ने पिछडों के आरक्षण का संहार कर दिया था। हालांकि यह करतूत भाजपा का नहीं बल्कि दलबदलू बाबूलाल मरांडी की थी जिसका दुष्परिणाम भाजपा को झेलना पडा था। हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मिल्कीपुर की कहानी भी उल्लेखनीय है।

अब आइये , काशी राम और मायावती की अंबेडकरवाद और नमो बुद्धाएं राजनीति की शक्ति को देख लें और इस कसौटी पर तुलना कर लें। नमो बुद्धाएं और अंबेडकरवाद की राजनीति को सफलता की चरमसीमा पर पहुंचाने का श्रेय मायावती और काशीराम को जरूर है। एक बार पूर्ण बहमुत और कई बार गठबंधन की सरकार बना कर इसका सत्ता सुख भी मायावती और काशीराम ने लिया है। लेकिन इनकी राजनीति शक्ति स्थायी नहीं रह सकी है। आज उत्तर प्रदेश विधान सभा में बसपा का एक मात्र सदस्य है और वह भी राजपूत जाति का है। संसद में बसपा का प्रतिनिधित्व नहीं है। पिछले लोकसभा चुनावों में बसपा की उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश में कोई भी सफलता नहीं मिली थी।

नमो बुद्धाए और अबंडेकरवाद क्या-दोनों अलग-अलग राजनीतिक श्रेणियां हैं? नमो बुद्धाए की अभिव्यक्ति रखने वाले लोग पूरी तरह से बौद्ध धर्म मे दीक्षित और शीक्षित हो चुके है और उन्हें हिन्दू धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। जबकि अंबेडकरवादी पूरी तरह से हिन्दू धर्म से मुक्त नहीं हुए हैं, कुछ न कुछ संबंध हिन्दू धर्म के साथ उनका हैं। पर दोनों हिन्दू धर्म के खिलाफ बोलने और राजनीतिक शक्ति फैलाने में साथ ही साथ हैं। अंबेडकरवादियों को हिन्दू धर्म से विछोह तो समझ आता है, क्योंकि उन्हें प्रताडित किया गया और आज भी कुछ न कुछ प्रताड़ना का वे शिकार हैं। जबकि नमो बुद्धाए कहने वाले लोगों का हिन्दू धर्म से विछोह समझ में नहीं आता है? नमो बुद्धाएं कहने वाले हिन्दू धर्म को गालियां क्यों बकते हैं, हिन्दू धर्म की आलोचना का शिकार क्यों बनाते हैं? नमो बुद्धाए हो या फिर अंबेडकरवादी हमेशा हिन्दुओं की आलोचना और अपमान का शिकार बनाने से पीछे नहीं रहते हैं। उग्र हिन्दू विरोधी की मानसिकता इनकी आत्मघाती हो गयी, ये राजनीति से अलग-थलग पडने लगे। मायावती आज की राजनीति में असहाय और निरर्थक हो गचल। नेश्राम और प्रकाश अंबेडकर जैसे नेता भी अप्रासंगिक हो गये, आज की राजनीति मेे इनकी कोई गिनती तक नहीं है। दलित इन्हें एनजीओ छाप, गिरोहबाज और मुस्लिम समर्थक मान कर खारिज करते हैं? अनसुना करते हैं।

संविधान समाप्त होने का डर फैलाना भी दलितों की संपूर्ण एकता सुनिश्चित नहीं कर सका। मोदी विरोध में संविधान को हथकंडा बनाया गया और नरेन्द्र मोदी को अंबेडकर विरोधी कहने और साबित करने के सभी प्रयास विफल हो गये। लोकसभा चुनावों में धक्का खाने के बाद भी नरेन्द्र मोदी और भाजपा की शक्ति बढी है और वे अनिवार्य तौर पर अपनी शक्ति बनायें रखने की कोशिश की है। इनमें इन्हें सफलता भी मिली है। इसके अलावा भाजपा ने दलितों को कल्याणकारी योजनाओं से जोड कर और आरक्षण मे सिर्फ एक जाति के विकास का प्रश्न बना कर भी अपनी जगह बनायी है।

यादव और मुस्लिम समीकरण का हस्र से नमो बुद्धाए और अंबेडकरवादियों ने कुछ नहीं सीखा है। बिहार में लालू का परिवार पिछले 20 सालों से सत्ता से बाहर है, अखिलेश यादव पिछले दस सालों से सत्ता से बाहर है। यादव और मुस्लिम समीकरण अब सत्ता से बाहर होने का राजनीतिक प्रमाण बन गया है। दलित और मुस्लिम समीकरण भी कैसे जीवंत और शक्तिशाली बन सकता है? मुस्लिम कभी भी अपनी कीमत पर दलित को समर्थन दे नहीं सकते हैं। मुस्लिम संस्थानों जैसे अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया में दलितों का कोई आरक्षण नहीं है। कोई मुस्लिम नेता यह प्रश्न नहीं उठाता कि दलितों और पिछडों को मुस्लिम संस्थानों में आरक्षण क्यों नहीं मिलता है। मुस्लिम वर्ग उसी को समर्थन देते हैं जो भाजपा को हराने के लिए शक्ति रखते हैं। रावन इसीलिए सांसद चुना गया क्योंकि समाजवादी पार्टी का समर्थन था। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का समर्थन नहीं होता तो फिर मुस्लिम कभी भी रावण का समर्थन नहीं करते।

डग्र हिन्दू विरोधी गोलबंदी से एनजीओ छाप दलित राजनीति को नुकसान ही है। मुस्लिमों के साथ समीकरण बनाना नमो बुद्धाए और अबंडकरवादियों के लिए नुकसानकुन और घाटे का सौदा है। जब तक पिछडे मुस्लिम समर्थक नहीं बनेंगे तब तक इनके लिए कोई संभावना नहीं है। पिछडा वर्ग अपने धर्म और भाजपा में समर्थन बनाये रखे हुए हैं। पिछडों की राजनीति का सफल प्रबंधन भाजपा ने किया है। हिन्दू विरोध के उग्र वाद को ये छोडेंगे नहीं और मुस्लिमों के साथ समीकरण की मानसिकता भी छोडेंगे नहीं फिर भारत की सत्ता राजनीति मे इनके निरर्थक रहने की ही उम्मीद बनती है। आज की सत्ता राजनीति में ये निरर्थक ही तो हैं।

भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में प्राप्त की हैं असाधारण उपलब्धियां

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दिनांक 31 जनवरी 2025 को देश की राष्ट्रपति आदरणीया श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने लोक सभा एवं राज्य सभा के संयुक्त अधिवेशन को अपने सम्बोधन में, हाल ही के समय में, भारत में विभिन्न क्षेत्रों में प्राप्त की गई उपलब्धियों के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए कहा है कि “भारत की विकास यात्रा के इस अमृतकाल को आज मेरी (केंद्र) सरकार अभूतपूर्व उपलब्धियों के माध्यम से नई ऊर्जा दे रही है। तीसरे कार्यकाल में तीन गुना तेज गति से काम हो रहा है। आज देश बड़े निर्णयों और नीतियों को असाधारण गति से लागू होते देख रहा है। और, इन निर्णयों में देश के गरीब, मध्यम वर्ग, युवा, महिलाओं, किसानों को सर्वोच्च प्राथमिकता मिली है।” आदरणीया श्रीमती द्रौपदी मुर्मू द्वारा दिए गए उक्त भाषण में अंशों को जोड़कर इस लेख में यह बताने का प्रयास किया गया है कि किस प्रकार भारत में गरीब वर्ग, युवाओं, मातृशक्ति, किसानों, आदि के लिए विभिन्न योजनाएं सफलतापूर्वक चलाई जा रही हैं।

आज आम नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं रोटी, कपड़ा और मकान के साथ साथ स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। समस्त परिवारों को आवास सुविधा उपलब्ध कराने के लिए ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना का विस्तार करते हुए तीन करोड़ अतिरिक्त परिवारों को नए घर देने का निर्णय लिया गया है। इसके लिए 5 लाख 36 हजार करोड़ रुपए की राशि का खर्च किए जाने की योजना है। इसी प्रकार, गांव में गरीबों को उनकी आवासीय भूमि का हक देने के उद्देश्य से स्वामित्व योजना के अंतर्गत अभी तक 2 करोड़ 25 लाख सम्पत्ति कार्ड जारी किए जा चुके हैं। साथ ही, पीएम किसान सम्मान निधि योजना के अंतर्गत लगभग 11 करोड़ किसानों को पिछले कुछ महीनों में 41,000 करोड़ रुपए की राशि का भुगतान किया गया है। जनजातीय समाज के पांच करोड़ नागरिकों के लिए “धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष” अभियान प्रारंभ हुआ है। इसके लिए अस्सी हजार करोड़ रुपये की राशि का प्रावधान किया गया है। आज मध्यम वर्ग को मकान/फ्लैट खरीदने के लिए लोन पर सब्सिडी भी दी जा रही है एवं रेरा जैसा कानून बनाकर मध्यम वर्ग के स्वयं के मकान सम्बंधी सपने को सुरक्षा दी गई है।

देश के नागरिकों को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराए जाने के उद्देश्य से आयुषमान भारत योजना चलाई जा रही है। अब इस योजना के अंतर्गत 70 वर्ष और उससे अधिक उम्र के 6 करोड़ वरिष्ठ नागरिकों को स्वास्थ्य बीमा देने का निर्णय लिया गया है। इन वरिष्ठ नागरिकों को प्रत्येक वर्ष में पांच लाख रुपए का स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराया जाएगा।

केंद्र सरकार द्वारा आज युवाओं की शिक्षा और उनके लिए रोजगार के नए अवसर तैयार करने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। मेधावी छात्रों को उच्च शिक्षा में वित्तीय सहायता देने के लिए पीएम विद्यालक्ष्मी योजना शुरू की गई है। एक करोड़ युवाओं को शीर्ष पांच सौ कंपनियों में इंटर्नशिप के अवसर भी दिये जाएंगे। पेपर लीक की घटनाओं को रोकने और भर्ती में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए नया कानून लागू किया गया है।सहकार से समृद्धि की भावना पर चलते हुए सरकार ने ‘त्रिभुवन’ सहकारी यूनिवर्सिटी की स्थापना का प्रस्ताव स्वीकृत किया है।

जब देश के विकास का लाभ अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को भी मिलने लगता है तभी विकास सार्थक होता है। गरीब को गरिमापूर्ण जीवन मिलने से उसमें जो सशक्तिकरण का भाव पैदा होता है, वो गरीबी से लड़ने में उसकी मदद करता है। स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत बने 12 करोड़ शौचालय, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत निशुल्क दिए गए 10 करोड़ गैस कनेक्शन, 80 करोड़ जरूरतमंदों को राशन, सौभाग्य योजना, जल जीवन मिशन जैसी अनेक योजनाओं ने गरीब को ये भरोसा दिया है कि वो सम्मान के साथ जी सकते हैं। ऐसे ही प्रयासों की वजह से देश के 25 करोड़ लोग गरीबी को परास्त करके आज अपने जीवन में आगे बढ़ रहे हैं। इन्होंने नियो मिडिल क्लास का एक ऐसा समूह तैयार किया है, जो भारत की ग्रोथ को नई ऊर्जा से भर रहा है।

उड़ान योजना ने लगभग डेढ़ करोड़ लोगों का हवाई जहाज में उड़ने का सपना पूरा किया है। जन औषधि केंद्र में 80 प्रतिशत रियायती दरों पर मिल रही दवाओं से, देशवासियों के 30 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा बचे हैं। हर विषय की पढ़ाई के लिए सीटों की संख्या में कई गुना बढ़ोतरी का बहुत लाभ मध्यम वर्ग को मिला है।

केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के चौथे चरण में पच्चीस हजार बस्तियों को जोड़ने के लिए 70,000 करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत की हैं। आज जब हमारा देश अटल जी की जन्म शताब्दी का वर्ष मना रहा है, तब प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना उनके विजन का पर्याय बनी हुई है। देश में अब 71 वंदे भारत, अमृत भारत और नमो भारत ट्रेन चल रही हैं, जिनमें पिछले छह माह में ही 17 नई वंदे भारत और एक नमो भारत ट्रेन को जोड़ा गया है।

आगे आने वाले समय में देश के आर्थिक विकास में देश की आधी आबादी अर्थात मातृशक्ति के योगदान को बढ़ाना ही होगा। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत 91 लाख से अधिक स्वयं सहायता समूहों को सशक्त किया जा रहा है। देश की दस करोड़ से भी अधिक महिलाओं को इसके साथ जोड़ा गया है। इन्हें कुल नौ लाख करोड़ रुपये से अधिक की राशि बैंक लिंकेज के माध्यम से वितरित की गई है। केंद्र सरकार ने देश में तीन करोड़ लखपति दीदी बनाने लक्ष्य निर्धारित किया है। आज एक करोड़ 15 लाख से भी अधिक लखपति दीदी एक गरिमामय जीवन जी रही हैं। इनमें से लगभग 50 लाख लखपति दीदी, बीते 6 महीने में बनी हैं। ये महिलाएं एक उद्यमी के रूप में अपने परिवार की आय में योगदान दे रही हैं। भारत में सभी के लिए बीमा की भावना के साथ कुछ महीने पूर्व ही बीमा सखी अभियान भी शुरू किया गया है। बैंकिंग और डिजी पेमेंट सखियां दूर दराज के इलाकों में लोगों को वित्तीय व्यवस्था से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। कृषि सखियां नेचुरल फार्मिंग को बढ़ावा दे रही हैं और पशु सखियों के माध्यम से देश का पशुधन मजबूत हो रहा है। आज भारत में बड़ी संख्या में महिलाएं लड़ाकू विमान उड़ा रही हैं, पुलिस में भर्ती हो रही हैं और कॉरपोरेट कंपनियों का नेतृत्व भी कर रही हैं। आज बालिकाओं की भर्ती राष्ट्रीय मिलिट्री स्कूलों में भी प्रारंभ हो गई है। नेशनल डिफेंस अकैडमी में भी महिला कैडेट्स की भर्ती शुरू हो गई है।

पिछले एक दशक में मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत, स्टार्टअप इंडिया, स्टैंड-अप इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसी पहल ने युवाओं को रोजगार के अनेक अवसर प्रदान किए हैं। पिछले दो वर्षों में सरकार ने, रिकॉर्ड संख्या में दस लाख स्थायी सरकारी नौकरियां प्रदान की हैं। युवाओं के बेहतर कौशल और नए अवसरों के सृजन के लिए दो लाख करोड़ रुपए का पैकेज केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृत किया गया है। एक करोड़ युवाओं के लिए इंटर्नशिप की व्यवस्था से युवाओं को ग्राउंड पर काम करने का अनुभव प्राप्त होगा। आज भारत में डेढ़ लाख से अधिक स्टार्टअप हैं जो इनोवेशन के स्तंभ के रूप में उभर रहे हैं। एक हजार करोड़ रुपए की लागत से स्पेस सेक्टर में वेंचर कैपिटल फंड की शुरुआत भी की गई है। आज भारत क्यूएस वर्ल्ड फ्यूचर स्किल इंडेक्स 2025 में पूरे विश्व में दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। अर्थात, फ्यूचर ऑफ वर्क श्रेणी में AI और डिजिटल तकनीक अपनाने में भारत दुनिया को रास्ता दिखा रहा है। ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में भी भारत की रैंकिंग 76 से सुधर कर 39 हो गई है। यह सब भारतीय युवाओं के भरोसे ही सम्भव हो पा रहा है।

देश में आज राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से विद्यार्थियों के लिए आधुनिक शिक्षा व्यवस्था तैयार की जा रही है। कोई भी शिक्षा से वंचित ना रहे, इसीलिए मातृभाषा में शिक्षा के अवसर दिये जा रहे हैं। विभिन्न भर्ती परीक्षाएं तेरह भारतीय भाषाओं में आयोजित कर, भाषा संबंधी बाधाओं को भी दूर किया गया है। बच्चों में इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए दस हजार से अधिक स्कूलों में अटल टिंकरिंग लैब्स खोली गई हैं। “ईज ऑफ डूइंग रिसर्च” के लिए हाल ही में वन नेशन-वन सब्सक्रिप्शन स्कीम लायी गई है। इससे अंतरराष्ट्रीय शोध की सामग्री निशुल्क उपलब्ध हो सकेगी। पिछले एक दशक में भारत में उच्च शिक्षण संस्थाओं की संख्या बढ़ी है। इनकी गुणवत्ता में भी व्यापक सुधार हुआ है। क्यूएस विश्व यूनिवर्सिटी – एशिया रैंकिंग में भारत के 163 विश्वविद्यालय शामिल हुए हैं। नालंदा विश्वविद्यालय के नये कैंपस का शुभारंभ कर शिक्षा में, भारत का पुराना गौरव वापस लाया गया है।

विकसित भारत के निर्माण में किसान, जवान और विज्ञान के साथ ही अनुसंधान का बहुत बड़ा महत्व है। भारत को भारत को ग्लोबल इनोवेशन पावरहाउस बनाने के लक्ष्य निर्धारित किया गया है। देश के शिक्षण संस्थाओं में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए पचास हजार करोड़ रुपए की लागत से अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउन्डेशन स्थापित किया गया है। 10,000 करोड़ रुपए की लागत से “विज्ञानधारा योजना” के तहत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में इनोवेशन को बढ़ावा दिया जा रहा है। आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में भारत के योगदान को आगे बढ़ाते हुए “इंडिया ए आई मिशन” प्रारम्भ किया गया है। राष्ट्रीय क्वांटम मिशन से भारत, इस फ्रंटियर टेक्नॉलाजी में दुनिया के अग्रणी देशों की पंक्ति में स्थान बना सकेगा। देश में “बायो – मैन्यूफैक्चरिंग” को बढ़ावा देने के उद्देश्य से BioE3 Policy लायी गई है। यह पॉलिसी भविष्य की औद्योगिक क्रांति का सूत्रधार होगी। बायो इकॉनामी का उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों का कुशल उपयोग करना है जिससे पर्यावरण को संरक्षित करते हुए रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।

भारत के छोटे व्यापारी गांव से लेकर शहरों तक, हर जगह आर्थिक प्रगति को गति देते हैं। केंद्र सरकार छोटे उद्यमियों को अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानते हुए उन्हें स्वरोजगार के नए अवसर दे रही है। MSME के लिए क्रेडिट गारंटी स्कीम और ई-कॉमर्स एक्सपोर्ट हब्स सभी प्रकार के उद्योगों को बढ़ावा दे रहे हैं। मुद्रा ऋण की सीमा को दस लाख रुपए से बढ़ाकर बीस लाख रुपए करने का लाभ करोड़ों छोटे उद्यमियों को हुआ है। केंद्र सरकार ने क्रेडिट एक्सेस को आसान बनाया है। इससे वित्तीय सेवाओं को लोकतांत्रिक बनाया जा सका है। आज लोन, क्रेडिट कार्ड, बीमा जैसे प्रोडक्ट, सबके लिए आसानी से सुलभ हो रहे हैं। दशकों तक भारत के रेहड़ी-पटरी पर दुकान लगाकर आजीविका चलाने वाले भाई-बहन बैंकिंग व्यवस्था से बाहर रहे। आज उन्हें पीएम स्वनिधि योजना का लाभ मिल रहा है। डिजिटल ट्रांजेक्शन रिकॉर्ड के आधार पर उनको बिजनेस बढ़ाने के लिए और लोन मिलता है। ओएनडीसी की व्यवस्था ने डिजिटल कॉमर्स यानी ऑनलाइन शॉपिंग की व्यवस्था को समावेशी बनाया है। आज देश में छोटे बिजनेस को भी आगे बढ़ने का समान अवसर मिल रहा है।

अमर बलिदानी सोहनलाल पाठक

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गिरीश सक्सेना

भारत की स्वतन्त्रता के लिए देश ही नहीं विदेशों में भी प्रयत्न करते हुए अनेक वीरों ने बलिदान दिये हैं। सोहनलाल पाठक इन्हीं में से एक थे। उनका जन्म पंजाब के अमृतसर जिले के पट्टी गाँव में सात जनवरी, 1883 को श्री चंदाराम के घर में हुआ था। पढ़ने में तेज होने के कारण उन्हें कक्षा पाँच से मिडिल तक छात्रवृत्ति मिली थी। मिडिल उत्तीर्ण कर उन्होंने नहर विभाग में नौकरी कर ली। फिर और पढ़ने की इच्छा हुई, तो नौकरी छोड़ दी। नार्मल परीक्षा उत्तीर्ण कर वे लाहौर के डी.ए.वी. हाईस्कूल में पढ़ाने लगे।

एक बार विद्यालय में जमालुद्दीन खलीफा नामक निरीक्षक आया। उसने बच्चों से कोई गीत सुनवाने को कहा। देश और धर्म के प्रेमी पाठक जी ने एक छात्र से वीर हकीकत के बलिदान वाला गीत सुनवा दिया। इससे वह बहुत नाराज हुआ। इन्हीं दिनों पाठक जी का सम्पर्क स्वतन्त्रता सेनानी लाला हरदयाल से हुआ। वे उनसे प्रायः मिलने लगे। इस पर विद्यालय के प्रधानाचार्य ने उनसे कहा कि यदि वे हरदयाल जी से सम्पर्क रखेंगे, तो उन्हें निकाल दिया जाएगा। यह वातावरण देखकर उन्होंने स्वयं ही नौकरी से त्यागपत्र दे दिया।

जब लाला लाजपतराय जी को यह पता लगा, तो उन्होंने सोहनलाल पाठक को ब्रह्मचारी आश्रम में नियुक्ति दे दी। पाठक जी के एक मित्र सरदार ज्ञानसिंह बैंकाक में थे। उन्होंने किराया भेजकर पाठक जी को भी वहीं बुला लिया। दोनों मिलकर वहाँ भारत की स्वतन्त्रता की अलख जगाने लगे; पर वहाँ की सरकार अंग्रेजों को नाराज नहीं करना चाहती थी, अतः पाठक जी अमरीका जाकर गदर पार्टी में काम करने लगे। इससे पूर्व वे हांगकांग गये तथा वहाँ एक विद्यालय में काम किया। विद्यालय में पढ़ाते हुए भी वे छात्रों के बीच प्रायः देश की स्वतन्त्रता की बातें करते रहते थे।

हांगकांग से वे मनीला चले गये और वहाँ बन्दूक चलाना सीखा। अमरीका में वे लाला हरदयाल और भाई परमानन्द के साथ काम करते थे। एक बार दल के निर्णय के अनुसार उन्हें बर्मा होकर भारत लौटने को कहा गया। बैंकाक आकर उन्होंने सरदार बुढ्डा सिंह और बाबू अमरसिंह के साथ सैनिक छावनियों में सम्पर्क किया। वे भारतीय सैनिकों से कहते थे कि जान ही देनी है, तो अपने देश के लिए दो। जिन्होंने हमें गुलाम बनाया है, जो हमारे देश के नागरिकों पर अत्याचार कर रहे हैं, उनके लिए प्राण क्यों देते हो ? इससे छावनियों का वातावरण बदलने लगा।

पाठक जी ने स्याम में पक्कों नामक स्थान पर एक सम्मेलन बुलाया। वहां से एक कार्यकर्ता को उन्होंने चीन के चिपिनटन नामक स्थान पर भेजा, जहाँ जर्मन अधिकारी 200 भारतीय सैनिकों को बर्मा पर आक्रमण के लिए प्रशिक्षित कर रहे थे। पाठक जी वस्तुतः किसी गुप्त एवं लम्बी योजना पर काम कर रहे थे; पर एक मुखबिर ने उन्हें पकड़वा दिया। उस समय उनके पास तीन रिवाल्वर तथा 250 कारतूस थे। उन्हें मांडले जेल भेज दिया गया। स्वाभिमानी पाठक जी जेल में बड़े से बड़े अधिकारी के आने पर भी खड़े नहीं होते थे।

यद्यपि उन्होंने किसी को मारा नहीं था; पर शासन विरोधी साहित्य छापने तथा विद्रोह भड़काने के आरोप में उन पर मुकदमा चला। उनके साथ पकड़े गये मुस्तफा हुसैन, अमरसिंह, अली अहमद सादिक तथा रामरक्खा को कालेपानी की सजा दी गयी; पर पाठक जी को सबसे खतरनाक समझकर 10 फरवरी, 1916 को मातृभूमि से दूर बर्मा की मांडले जेल में फाँसी दे दी गयी।

मिल्कीपुर विजय से भाजपा को राहत व सपा की राह कठिन

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जून 2024 के लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद सबसे अधिक चर्चा फैजाबाद संसदीय क्षेत्र में भाजपा की पराजय की हुई, जहाँ श्री रामजन्मभूमि पर दिव्य, भव्य राम मंदिर का हिन्दू समाज का 500 वर्ष पुराना सपना पूरा होने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा। फैजाबाद जीत से विपक्ष का आत्मविश्वास इतना बढ़ गया कि इसके बाद हुई अपनी गुजरात रैली में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने, भाजपा के राजनीति से विश्राम ले चुके वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी जी के राम मंदिर आंदोलन को ही हरा देने का दंभ भरा। लोकसभा में सपा सांसद अवधेश प्रसाद की तो मानो प्रदर्शनी लगा दी गई बड़बोले नेताओं ने उनको अयोध्या का रजा तक कह दिया।

फैजाबाद संसदीय सीट की हार और अवधेश प्रसाद को अयोध्या का राजा कहे जाने से सनातन समाज में दुःख, निराशा और क्षोभ था। मिल्कीपुर को सनातनी हिन्दुओं ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था क्योंकि सनातनधर्मी प्रभु राम को ही अयोध्या का एकमात्र राजा मानते हैं । यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि जब से सपा मुखिया और कांग्रेस ने अवधेश प्रसाद को अयोध्या का राजा कहना आरम्भ किया तभी से इनकी राजनीति गड़बड़ाने लगी।अब तक प्रदेश में 11 विधानसभा उपचुनाव हो चुके हैं जिसमें भाजपा को आठ सीटों पर सफलता मिली है और प्रदेश में सपा ओैर कांग्रेस गठबंधन भी बिखर रहा है।

राजनैतिक दल के रूप में भाजपा ने मिल्कीपुर चुनाव जीतने के लिए बेहद आक्रामक रणनीति तैयार की और स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कई बार मिल्कीपुर का दौरा किया। जब योगी जी मिल्कीपुर जाते थे तब सपा सांसद का बयान आता था कि योगी जी जितनी बार मिल्कीपुर आयेंगे भाजपा का वोट प्रतिशत उतना ही घटेगा और सपा का उतना ही वोट प्रतिशत बढ़ता जायेगा जबकि परिणाम उसके विपरीत आये हैं । मिल्कीपुर की जनता के बता दिया है कि अयोध्या के एकमात्र राजा प्रभु राम ही है।

मिल्कीपुर की जनता ने विपक्ष के नकारात्मक विचारों के एजेंडे को नकारते हुए विकास और सुशासन का साथ दिया। मिल्कीपर की जनता को अच्छी तरह से समझ में आ गया कि स्थानीय विकास के लिए सत्तारूढ़ भाजपा का विधायक ही आवश्यक है । मिल्कीपुर की जनता ने सपा के परिवारवाद और जातिवाद को नकार दिया है। परिणाम से यह भी साफ हो गया है कि योगी का बटेंगे तो कटेंगे का नारा जातिवाद के विरुद्व हिंदुत्व की राजनीति को ताकत दे रहा है। इस विजय से भाजपा के लिए एकजुट हिंदुत्व की राजनीति के पथ पर आगे बढ़ना आसान हो गया है।

मिल्कीपुर सीट पर भाजपा को तीसरी बार जीत मिली है ।इससे पहले 1991 और 2017 में जीत मिली और अब 2025 में चंद्रभानु पासवान ने सपा के गढ़ में भगवा परचम लहराने में सफलता हासिल की है।मिल्कीपुर सीट का गठन 1967 में हुआ था और 1969 में तत्कालीन जनसंघ हरिनाथ तिवारी विधायक चुने गये थे।इसके बाद 1974 से 1989 तक यह विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी का अभेद्य किला बन गया।1991 में राम लहर में मथुरा प्रसाद तिवारी ने भाजपा से जीत दर्ज की फिर 2012 तक यहां पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 2017 में मोदी लहर में भाजपा के बाबा गोरखनाथ विजयी रहे। यह अलग बात है कि इसके बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा के अवधेश प्रसाद ने बाबा को पराजित किया। 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा ने अवधेश प्रसाद को अपना उम्मीदवाबर बनाया था और वह जीत गये। तभी से भाजपा पर लगातार दबाव बनता जा रहा था कि किसी न सिकी प्रकार से यह सीट हर हाल में जीतकर दिखानी है और योगी जी की टीम ने यह काम कर दिखाया है।

मिल्कीपुर चुनाव से पूर्व प्रयागराज महाकुम्भ -2025 में योगी कैबिनेट ने एक साथ गंगा में पवित्र डुबकी लगाकर मीडिया जगत और जनमानस में इस बात का संदेह पूरी तरह से दूर कर दिया कि योगी कैबिनेट व भाजपा में आपस में कोई मतभेद व मनभेद है। मिल्कीपुर विधानसभा चुनाव में भाजपा भदरसा दुष्कर्म कांड के बहाने सपा पर हमलावर रही। चुनावों के बीच ही वहां पर एक बालिका के साथ दुष्कर्म के बाद हत्या का एक मामला सामने आया उसके बाद विपक्षी दलों ने भाजपा को घेरने का असफल प्रयास किया। इस घटना को लेकर सभी दलों के नेताओं ने सोशल मीडिया पोस्ट करके राजनीतिक तापमान को गरमाने का असफल प्रयास किया था किंतु आरोपियों के पकड़े जाते ही यह मामला अपने आप गायब हो गया। इस प्रकरण में अवधेश प्रसाद के आंसू भी निकले और खूब निकले यहां तक की मीडिया में बार- बार दिखाया भी गया, मतदान के दिन अवधेश प्रसाद ने एक वीडियो बनवाकर चलवाया जिसमें वह हनुमान चालीसा पढ़ रहे थे, किन्तु ऐसी कोई भी ट्रिक इस चुनाव में नहीं चली। मिल्कीपुर की जनता ने इस बार लोकसभा की गलती को ठीक करने का मन बना लिया था ।

मिल्कीपुर में अबकी बार संघ ने भी काम संभाला और मजबूत किलेबंदी के साथ हर बूथ पर संघ के पदाधिकारी मोर्चा पर डटे रहे। इसका असर मतदान के दिन दिखा भी। संघ ने मतदाता को मतदान केंद्र तक पहुंचाने में पर्याप्त श्रम किया। मिल्कीपुर जीत से भाजपा का विश्वास बढ़ा है, योगी जी की प्रतिष्ठा बढ़ी है और उनके नारे की लोकप्रियता भी बढ़ रही है। महाकुंभ- 2025 के समापन के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री येगी आदित्यनाथ जी का एक नया अवतार देखने को मिल सकता है। हिंदुत्व की राजनीति में काशी, मथुरा के साथ संभल का अध्याय भी जुड़ चुका है।

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