हाथों में कलावा बांधकर आये थे आतंकवादी : कुछ प्रश्न आज भी अनुत्तरित

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भारतीय इतिहास पन्नों पर 26 नवम्बर 2008 का एक काला अध्याय है इस दिन देश की औद्योगिक राजधानी समझी जाने वाली मुम्बई पर एक भीषण और सुनियोजित हमला हुआ था । इस हमले में प्रत्यक्ष हमलावर तो केवल दस थे पर पूरा देश तीन दिनों तकआक्रांत रहा । इस हमले को सोलह वर्ष बीत गये, मुम्बई भी पहले की भाँति भागने लगी लेकिन कुछ रहस्य हैं जिनपर आज भी परदा पड़ा हुआ है । हमले का एक सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि एएसआई तुकाराम आँवले ने गोलियों से छलनी होकर भी आतंकवादी कसाब को जिंदा पकड़ लिया था । उनके प्राणों ने भले शरीर को छोड़ दिया, पर तुकाराम ने कसाब को नहीं छोड़ा था । कसाब की पकड़ से ही भारत यह प्रमाणित कर पाया कि इस हमले के पीछे पाकिस्तान का हाथ है । सभी हमलावर हाथ में कलावा बाँधकर और भगवा दुपट्टा गले में डालकर आये थे ।

आतंकवादी हमलों से तो कोई देश नहीं बचा, आधी से ज्यादा दुनियाँ आक्रांत है । इन दिनों भी हम हमास के आतंकी हमले से इस्राइल को जूझता हुआ देख रहे हैं । अमेरिका इंग्लैंड और फ्राँस जैसे देशों ने भी आतंकवादी गतिविधियों के समाचार आते हैं । इन सबके पीछे कौन सी मानसिकता काम कर रही है, यह भी दुनिया से छिपा नहीं है। यह एक ऐसी मानसिकता है जो पूरी दुनियाँ को केवल अपने रंग में रंगना चाहती है, अपनी शैली में जीवन जीने के लिये विवश कर रही है। मुम्बई का यह हमला भी इस मानसिकता की उपज था । जो आधुनिकतम तकनीक और सटीक व्यूह रचना के साथ हुआ था । कोई कल्पना कर सकता है कि केवल दस आदमी सवा सौ करोड़ देशवासियों की दिनचर्या जाम कर दें और तीन दिनों तक पूरा समाज और सरकार दोनों हलाकान रहें ? ये दस हमलावर एक विशेष आधुनिकतम नौका द्वारा समुद्री मार्ग से मुम्बई पोर्ट आये थे । वे रात्रि सवा आठ बजे कुलावा तट पर पहुँचे थे । सभी के हाथों में कलावा बंधा था । कुछ के गले में भगवा दुपट्टा भी दिख रहा था । सभी के पास बैग थे । ये जैसे ही पोर्ट पर उतरे मछुआरों ने देखा । मछुआरे इन्हें देखकर चौंके। उनके चौंकने का कारण था । उन्हें ये लोग सामान्य न लगे थे । चूँकि इनकी कद काठी और न वेशभूषा थोड़ी भिन्न थी । सामान्यतः भगवाधारियों की टोली ऐसी नाव से कभी नहीं आती । नाव भी विशिष्ठ थी । इसलिये मछुआरों को वे कुछ अलग लगे । मछुआरों ने इसकी सूचना वहां तैनात पुलिस पाइंट को भी दे दी थी। किंतु पुलिस को मामला गंभीर न लगा और सभी आतंकवादी सरलता के साथ पोर्ट से बाहर आ गये । वे वहां से दो टोलियों में निकले । बाद में दो दो सदस्यों के रूप में पाँच टोलियों में बँटे । इन्हें पाँच टारगेट दिये गये थे । प्रत्येक टारगेट पर दो दो लोगों को पहुँचना था । ये टारगेट थे होटल ताज, छत्रपति शिवाजी टर्मिनल, नारीमन हाउस, कामा हास्पीटल, और लियोपोल्ड कैफे । कौन कहाँ कब पहुँचेगा यह पहले से निश्चित था । रात सवा नौ बजे तक सभी अपने निर्धारित स्थानों पर पहुँच गये । वे सभी किसी अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क से जुड़े थे । इस नेटवर्क से तस्वीरें जा रहीं थीं और संदेश मिल रहे थे। ये सभी लगभग पन्द्रह मिनट अपने अपने स्थान पर घूमे, वातावरण का जायजा लिया और ठीक साढ़े नौ बजे हमला आरंभ किया । इन्हें पाकिस्तान में बैठकर कोई जकीउर रहमान कमांड दे रहा था । जकी की कमांड के अनुसार ही साढ़े नौ बजे यह हमले आरंभ हुये। ये सभी आतंकवादी अपने दिमाग से नहीं अपितु मिल रही कमांड के आधार पर काम कर रहे थे । इसलिये सभी ने अपने टारगेट पर पहुँचकर पहले सूचना दी और कमांड का इंतजार किया । कहाँ बम फोड़ना है, कहाँ गोली चलाना है, कितनी गोली चलाना है, यह भी कमांड दी जा रही थी । ये हमला कितनी आधुनिक तकनीक से युक्त था इसका अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान में बैठा जकीउर रहमान इन सभी को और आसपास के वातावरण को देख रहा था । वह देखकर बता रहा था कि किसे क्या करना है । वह इन्हें आगे बढ़ने, दाँये या बायें मुड़ने का मार्ग भी बता रहा था और आगे पुलिस प्वाइंट कहाँ, यह भी बताता था । यह विवरण कसाब के ब्यान में आया । यह जकीउर रहमान कसाब को निर्देशित कर रहा था । इन पाँचों टीम को कमांड देने वाले अलग अलग लोग थे। बाकी हमलावर मारे गये थे इसलिये वह रहस्य आजभी रहस्य ही बना हुआ है। ये सभी अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठन लश्करे तयैबा से जुड़े थे । सभी के पास एके-47 रायफल, पिस्टल, 80 ग्रेनेट और विस्फोटक, टाइमर्स और दो दो हजार गोलियाँ थीं । हमला 26 नवम्बर को आरंभ हुआ और 28 नवम्बर की रात तक चला । 29 नवम्बर को सरकार ने हमले से मुक्त होने की अधिकृत घोषणा की । तब जाकर पूरे देश ने राहत की सांस ली । इस हमले में कुल 166 लोगों की मौत हूई । जो घायल हुये और जिन्होंने ने बाद में प्राण त्यागे उन्हें मिलाकर आकड़ा दो सौ से ऊपर जाता हैं । घायलों की संख्या तीन सौ अधिक थी । आतंकवादियों से निबटने के लिए सुरक्षा बलों ने ऑपरेशन “ब्लैक टोर्नेडो” चलाया था । यह मुकाबला कोई साठ घंटे चला । अंतिम मुक़ाबला होटल ताज में हुआ। होटल ताज को इन दो आतंकवादियों से मुक्त कराने में सुरक्षा बलों को पसीना आ गया । इसका एक कारण यह था कि सुरक्षा बलों को इनकी लोकेशन का पता देर से लग रहा था लेकिन आतंकवादियों को होटल की गतिविधियों का पता कमांड से चल रहा था । आतंकवादियों ने होटल के कैमरे और लिफ्ट सिस्टम को नष्ट कर दिया था । इसलिये सुरक्षा बलों को कठिनाई आ रही थी जबकि पाकिस्तान में बैठा कमांडर होटल की हर गतिविधि को देख रहा था उसी अनुसार इन्हें कमांड दे रहा था जिससे आतंकवादी सुरक्षाबलों का मूवमेन्ट जा जाते थे और अपनी लोकेशन बदल लेते थे । यही कारण था कि केवल दो आदमियों ने होटल ताज में जन और धन दोनों का कितना अधिक नुकसान किया यह विवरण अब हम सबके सामने है।

बलिदानी तुकाराम आँवले

होटल ताज के बाद सबसे अधिक आतंक शिवाजी टर्मिनल पर आये दोनों आतंकवादियों ने मचाया । शिवाजी टर्मिनल पर मरने वालों की संख्या 58 और घायलों की संख्या 104 थी । यहीं सड़क पर आठ पुलिस कर्मी भी मारे गये थे। एएसआई तुकाराम ने यहीं आतंकवादी कसाब को जिंदा पकड़ा था। यदि कसाब जिन्दा न पकड़ा जाता तो इस हमले की आँच पाकिस्तान पर कभी न आती और इसे भी “भगवा आतंकवाद” के नाम मढ़ दिया जाता जैसे मालेगाँव विस्फोट, मक्का मस्जिद, अजमेर ब्लास्ट और समझौता एक्सप्रेस के आतंकी हमलों में हुआ था । ये सभी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी विस्फोट थे । लेकिन पता नहीं क्यों भारत में बैठे भारत के ही कुछ लोगों “भगवाआतंकवाद” का शोर मचा दिया । एक उर्दू पत्रकार ने पहले लेख माला चलाई फिर उसका संकलन निकाला और इन लेखों में बाकायदा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की साजिश करार देने की कोशिश की गई यह शोर इतना हुआ कि कुछ गिरफ्तारियाँ करके बल पूर्वक स्वीकार कराने की भी खबरें आईं। इस हमले में भी पहले यही प्रयास हुआ था । लेकिन कसाब जिन्दा पकड़ा गया था और उसने पाकिस्तान में अपने घर का पता भी बता दिया । इसलिये इस बार वह वैचारिक षडयंत्र सफल हो पाया जो गोधरा कांड के बाद से किया जा रहा था ।

कसाब के अनुसार शिवाजी टर्मिनल पर आये उसके साथी आतंकवादी का नाम इस्माइल खान था। अन्य चार स्थानों पर गये आतंकवादियों के नाम क्या थे यह कसाब नहीं जानता था ।

गिरफ्तारी के बाद कसाब ने इस आतंकवादी टीम को मिले प्रशिक्षण का भी विवरण दिया। कसाब के अनुसार ये सभी आतंकवादी लश्कर के फिदायीन दस्ते के सदस्य थे । कसाब के ब्यानों के अनुसार सभी को मुजफ्फराबाद के पहाड़ पर बने कैम्प ट्रेनिंग में दी गयी थी। इसमें तैरने, नौकायन, हथियार चलाने के साथ कमांडो ट्रेनिंग भी दी गयी थी । इन्हें शस्त्र संचालन, हमला करने और हमले से बचाव की ही नहीं धार्मिक और मनौवैज्ञानिक प्रशिक्षण भी दिया गया था । इसके लिये प्रतिदिन क्लास लगती थी । अपनी गिरफ्तारी के पहले क्षण से फाँसी होने तक कसाब को अपने किये पर कोई अफसोस न था । उसे इस बात का संतोष था कि वह अपने काम में कामयाब रहा बस इस बात का मलाल रहा कि वह जिन्दा पकड़ा गया ।

अपनी योजना के अनुसार कसाब और इस्माइल ने शिवाजी टर्मिनल पर सबसे पहले वेटिंग लाउंच में बैठे लोगों पर बम फोड़ा । इससे भगदड़ मची तो भागते लोगों पर गोलियाँ चलाई वे लगभग पन्द्रह मिनिट तक यही सब करते रहे फिर सुरक्षित बाहर निकले और कार से डीबी मार्ग की और गये । सूचना मिलने पर पुलिस ने जगह जगह वेरीकेटिग कर दी । वेरीकेटिग के लगभग पचास मीटर पहले ही गाड़ी रुकी । गाड़ी इस्माइल चला रहा था और कसाब बगल में था । पुलिस को देखकर गाड़ी मुड़ने लगी, पुलिस ने रोकने की कोशिश की तो कसाब ने गोलियां चलाना शुरु करदी । पुलिस ने जबाबी गोलियाँ चलाई, गोली गाड़ी चला रहे इस्माइल को लगी, गाड़ी तिरछी होकर रुक गयी, कसाब ने उसे सरका कर ड्राइविंग संभालने की कोशिश करने लगा । मौके का लाभ एएसआई तुकाराम आंवले ने उठाया । उन्होने कार के पास दौड़ लगाई और कसाब को पकड़ने की कोशिश की। जैसे ही वे करीब पहुंचे कसाब ने स्टेनगन से गोलियाँ चलाना आरंभ कर दीं । तुकाराम ने बंदूक की नाल पकड़ ली। गोलियां उनके सीने और शरीर को बेधने लगी । गोलियों की बौछार के बीच उन्होंने उछलकर कसाब के ऊपर गिरने की कोशिश भी की । लेकिन स्टेनगन पकड़े रहे, गोलियां चल रहीं थीं, उनके सीने को छलनी कर रहीं थीं । पर उन्होंने पकड़ न छोड़ी । उनकी पीठ के पीछे अन्य पुलिस टीम थी इसका लाभ दो सिपाहियों को मिला । वे फुर्ती से निकले और कसाब को जिन्दा पकड़ लिया । बलिदानी तुकाराम को कुल 23 गोलियाँ लगीं थीं । बाद में उन्हें मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया ।

अनुत्तरित प्रश्न

इस घटना को अब सोलह साल बीत गये हैं । कसाब को 21 नवम्बर 2012 यवरदा जेल में फाँसी दी गयी । लेकिन इस पूरे हमले में कुछ प्रश्न हैं जिनका उत्तर आज तक न मिला । हो सकता है जाँच के दौरान में कोर्ट के सामने कुछ तथ्य आये हों । पर वे सार्वजनिक न हो सके । सबसे पहले तो यही कि इन सबका कलावा बाँध कर आना । दूसरा इनके पास फर्जी आईडी कार्ड होना सभी के पास फर्जी आईडी भारतीय पते की थी और हिन्दु नामों की । कसाब के पास जो फर्जी आई डी अजमेर के जितेन्द्र चौधरी नाम की थी । ये सभी फर्जी दस्तावेज पाकिस्तान में ही तैयार हुये थे । लेकिन नाम पते सही था । यह माना गया कि अन्य आतंकवादियों के पास भी ऐसी फर्जी आई डी होगी । लेकिन वह मिल न सकीं । कसाब पहली बार भारत आया था । आखिर वह कनेक्शन क्या था जिससे सही नाम पते पर फर्जी आई डी पाकिस्तान में तैयार हुई । दूसरा कलावा और भगवा दुपट्टा। भारत में गोधरा कांड के बाद से एक योजनाबद्ध शब्द आया भगवाधारी आतंकवाद । ऐसे शब्द मालेगाँव विस्फोट, मक्का मस्जिद विस्फोट, समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट आदि के समय भी आये थे । उन सब घटनाओं में मौके पर कोई न पकड़ाया । भगवा आतंकवाद के शोर के बाद में कुछ लोगों को पकड़ा गया उनमें असीमानंद, भावानंद, साध्वी प्रज्ञा भारती प्रमुख थीं । इन सब को कितनी यातनाये देकर अपराध कबूल कराने और कूटरचित सुबूत जुटाने की कोशिश भी हुई इन सबका खुलासा इस जाँच में लगे एक अधिकारी ने अपनी सेवानिवृत्ति के बाद कर दिया है । तो क्या घटनाओं को भगवा रंग और कलावा संस्कृति से जोड़ने का लाभ पाकिस्तान में बैठे लश्कर के आतंकवादी संगठन ने उठाने की कोशिश की या जो लोग भगवा आतंकवाद का नारा लगा रहे थे उनके बीच कोई छद्म भेदी घुस गया था जो पूरे देश को भटका कर भगवा आतंकवाद का शोर मचाकर पाकिस्तान से ध्यान हटाने का षड्यंत्र कर रहा था ? इस प्रश्न का उत्तर आज तक न मिला । पर इतना तय है कि पूर्व में घटित आतंकवादी घटनाओं में उठे भगवा आतंकवाद के शोर ने असली अपराधियों को खुलकर खेलने का मौका दिया । 7 जनवरी 2009 को पाकिस्तान ने स्वीकार किया कि अजमल कसाब पाकिस्तान का रहने वाला है । अंतर्राष्ट्रीय दबाब के चलते पाकिस्तान ने जकीउर रहमान को भी गिरफ्तार किया लेकिन जमानत पर छोड़ दिया ।

तीसरा और सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि पाकिस्तान से आने वाले क्या केवल दस आदमी थे ? क्या कोई ऐसी टीम पहले आ गई थी जिसने इन सबको अपने अपने टारगेट पर पहुँचाया । कसाब के साथ जो गाड़ी पकड़ी गयी, वह गाड़ी इन लोगों ने हाइजैक की थी । कसाब सहित सारी टीमें ठीक समय पर अपने अपने स्थान पर कैसे पहुँची, किसने सही मार्ग बताये, वह माध्यम क्या थे, जिससे ये सभी समय पर अपने अपने टार्गेट पर पहुँचे। कुछ अपुष्ट समाचार ऐसे भी आये थे कि यह कुल सत्रह लोगों की टीम थी । सात लोग तीन दिन पहले आ गये थे जिन्होनें गाइड किया। लेकिन इस समाचार की पुष्टि न हो सकी और न उनका कोई सुराग लग सका । इसका कारण यह था कि कसाब ने केवल अपने बारे में बताया । बाकी सबके वह नाम भी नहीं जानता था । उनके ट्रेनिंग कैंप में व्यक्तिगत बात करना, परिचय पूछना मना था, सबको कोड नाम से बुलाया जाता था । और वही नाम एक दूसरे का जानते थे ।

एक चौथा सबाल जो राजनैतिक आरोप प्रत्यारोप में खो गया । वह है हैमंत करकरे की शहादत का । हेमन्त करकरे को उस दिन कंट्रोल रूम पर सिचुएशन कोआर्डिनेट करनी थी फिर वे टीम लेकर मैदान में क्यों पहुंचे वह भी साधारण हथियारों के साथ ।

बहरहाल मुम्बई ने हमलों का सबसे अधिक गहरा दंश झेला है । 1983 के सीरियल ब्लास्ट के बाद 2008,के इस हमले तक कुल तेरह बड़ी घटनाएँ हुईँ जिनमें 257 मौतें और 700 से अधिक लोग घायल हुये । इस बड़ी घटना के बाद कुछ विराम सा लगा । पर समाज और राजनेताओं को राजनैतिक हित और राष्ट्र हित में अंतर अवश्य रखना होगा । आक्रमण यदि राष्ट्र पर है तो राजनीति आड़े नहीं आना चाहिए । हो सकता है गोधरा कांड के बाद हमलों पर राजनीति न होती तो शायद यह घटना न घटती या पाकिस्तान को इतना मौका न मिलता ।

कनाडा एवं अमेरिका से भारत में रिवर्स ब्रेन ड्रेन की सम्भावना बढ़ रही है

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वैश्विक स्तर पर लगातार कुछ इस प्रकार की परिस्थितियां निर्मित होती दिखाई दे रही हैं, जिससे विशेष रूप से कनाडा एवं अमेरिका से भारत की ओर रिवर्स ब्रेन ड्रेन की सम्भावना बढ़ती जा रही है। कनाडा में खालिस्तानियों द्वारा चलाए जा रहे भारत विरोधी आंदोलन के चलते वहां निवासरत भारतीयों एवं मंदिरों पर लगातार हमले हो रहे हैं एवं भारतीयों एवं मंदिरों पर हो रहे इन हमलों पर लगाम लगाने में कनाडा की वर्तमान सरकार असफल सिद्ध हो रही है एवं इन हमलों को, राजनैतिक कारणों के चलते, रोकने की इच्छा शक्ति का अभाव भी दिखाई दे रहा है। इसके चलते भारत एवं कनाडा के राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक रिश्तों पर अत्यधिक विपरीत प्रभाव पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। स्थिति तो यहां तक पहुंच गई है कि भारत ने कनाडा में अपने दूतावास में प्रतिनिधियों की संख्या को कम कर दिया है तथा भारत ने कनाडा को निर्देशित किया था कि वह भी भारत में अपने दूतावास में प्रतिनिधियों की संख्या को कम करे। भारत एवं कनाडा के बीच आज कूटनीतिक रिश्ते आज तक के सबसे निचले स्तर पर आ गए हैं। साथ ही, कनाडा में आज सुरक्षा की दृष्टि से भी स्थितियां तेजी से बदल रही हैं तथा इसका कनाडा के आर्थिक विकास पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। जिसके चलते भारतीय आज कनाडा में अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और भारत की ओर रूख कर रहे हैं।

दूसरी ओर, अमेरिका में डोनल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने के पश्चात वहां पर अवैध रूप से रह रहे अन्य देशों के नागरिकों को अमेरिका से निकाले जाने की सम्भावनाएं बढ़ गई हैं। हालांकि अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे भारतीयों की संख्या लगभग नगण्य सी ही है परंतु ट्रम्प प्रशासन द्वारा अब वीजा, एच1बी सहित, जारी करने वाले नियमों को और अधिक कठोर बनाया जा सकता है। अमेरिका में प्रतिवर्ष जारी किए जाने वाले कुल एच1बी वीजा में से 60 प्रतिशत से अधिक वीजा भारतीय मूल के नागरिकों को जारी किए जाते हैं। यदि इस संख्या में भारी कमी दृष्टिगोचर होती है तो अमेरिका में पढ़ रहे भारतीय छात्रों को, उनकी पढ़ाई सम्पन्न करने के पश्चात यदि एच1बी वीजा जारी नहीं होता है तो उन्हें भारत वापिस आने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। इस प्रकार अमेरिका से भी भारतीयों का रिवर्स ब्रेन ड्रेन दिखाई पड़ सकता है।

भारत आज पूरे विश्व में सबसे अधिक तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया है, अतः भारत में तेज गति से हो रहे आर्थिक विकास के कारण सूचना प्रौद्योगिकी, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, उच्च तकनीकी क्षेत्रों, वाहन विनिर्माण उद्योग, फार्मा उद्योग, चिप विनिर्माण उद्योग, स्टार्ट अप, आदि क्षेत्रों में भारी मात्रा में रोजगार के नए अवसर निर्मित हो रहे हैं और भारत को इन क्षेत्रों में उच्च टेलेंट की आवश्यकता भी है। यदि कनाडा एवं अमेरिका से उच्च शिक्षा प्राप्त एवं उक्त क्षेत्रों में प्रशिक्षित इंजीनीयर्स भारत को प्राप्त होते हैं तो यह स्थिति भारत के लिए बहुत फायदेमंद होने जा रही है।

उक्त कारणों के अतिरिक्त आज अन्य देशों से भारत की ओर रिवर्स ब्रेन ड्रेन इसलिए भी होता दिखाई दे रहा है क्योंकि, भारत में आज मूलभूत सुविधाएं पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। किसी भी दृष्टि से भारत का आधारभूत ढांचा आज किसी भी विकसित देश की तुलना में कम नहीं है। साथ ही, भारत में, विकसित देशों की तुलना में, मुद्रा स्फीति की दर कम होने से, सामान्य रहन सहन की लागत तुलनात्मक रूप से भारत में बहुत कम है। अतः भारत में अमेरिका एवं कनाडा की तुलना में शुद्ध बचत दर भी अधिक है। हाल ही के समय में भारत में स्वास्थ्य सेवाओं में भी पर्याप्त सुधार हुआ है। आज बैंगलोर, मुंबई, हैदराबाद जैसे शहरों में बहुत ही कम लागत पर अमेरिकी अस्पतालों की तुलना में (अमेरका की तुलना में तो 1/10 लागत पर) अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हैं। भारत के ग्रामीण इलाकों में तो शुद्ध हवा एवं शुद्ध पानी, जो स्वास्थ्य को ठीक बनाए रखने में सहायक होता है, पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। वरना, महानगरीय इलाकों में तो आज सांस लेना भी बहुत मुश्किल हो रहा है। विभिन्न देशों से उच्च शिक्षा प्राप्त एवं टेलेंटेड भारतीय जो भारत वापिस लौटे हैं, उन्होंने अपने नए प्रारम्भ किए गए स्टार्ट अप के कार्यालय दक्षिण भारत के ग्रामीण इलाकों में स्थापित किए हैं।

भारत में बहुत लम्बे समय से मजबूत लोकतंत्र बना हुआ है एवं केंद्र में एक मजबूत सरकार, उद्योग एवं व्यापार को भारत में प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से उद्योग एवं व्यापार के मित्रवत आर्थिक नीतियों को सफलतापूर्वक लागू कर रही है। इससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की मात्रा में अपार वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है। विकसित देशों में नागरिकों की औसत आयु 50 वर्ष से अधिक हो रही है जिससे श्रमिकों की संख्या इन देशों में लगातार कम हो रही है एवं श्रम लागत में भी भारी मात्रा में वृद्धि हुई है जिसके कारण इन देशों में उत्पादन लागत बहुत अधिक बढ़ गई है। हाल ही के समय में चीन भी इस समस्या से ग्रसित पाया जा रहा है। केवल भारत एवं दक्षिणी अफ्रीकी देशों में ही श्रम लागत तुलनात्मक रूप से बहुत कम है। इसके कारण विश्व की कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपनी विनिर्माण इकाईयों की स्थापना भारत में करना चाहते हैं। भारत में उत्पादों का निर्माण कर इन उत्पादों को विश्व के अन्य देशों को निर्यात किया जा रहा है। भारत में आटोमोबाईल उद्योग, मोबाइल उद्योग एवं फार्मा उद्योग इसके जीते जागते प्रमाण हैं। इन्हीं कारणों से आज भारत से कई उत्पादों का निर्यात बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है एवं भारत का विदेशी व्यापार घाटा लगातार कम हो रहा है। विदेशी व्यापार घाटे में सुधार होने के चलते भारत में विदेशी मुद्रा भंडार में भी वृद्धि दृष्टिगोचर है जो हाल ही के समय में 70,000 अमेरिकी डॉलर के आंकड़े को भी पार कर गया था। हालांकि, इसके बाद से इसमें कुछ गिरावट देखी गई है।

आज विश्व के कई विकसित देशों में सामाजिक तानाबाना छिन्न भिन्न हो गया है एवं इन देशों के नागरिकों में मानसिक असंतोष की भावना लगातार बढ़ रही है एवं इन देशों की आधे से अधिक आबादी आज मानसिक बीमारीयों से ग्रसित है। जबकि इसके ठीक विपरीत भारत में हिंदू सनातन संस्कृति के संस्कारों के अनुपालन से एवं संयुक्त परिवार की जीवनशैली के चलते भारतीय नागरिक मानसिक बीमारियों से लगभग पूर्णत: मुक्त रहे हैं एवं सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। विकसित देशों के नागरिकों ने भौतिक विकास तो अधिक किया है परंतु मानसिक शांति खोई है। जबकि इस धरा पर जन्म लेने का उद्देश्य ही सुखी जीवन व्यतीत करना है न कि अपने आप को मानसिक बीमारियों से ग्रसित कर देना। इन्हीं कारणों के चलते आज विश्व के कई देशों के नागरिक हिंदू सनातन संस्कृति को अपनाने की ओर लालायित दिखाई दे रहे हैं और वे भारत में बसने के बारे में गम्भीरता से विचार कर रहे हैं। अतः विकसित देशों से भारत में रिवर्स ब्रेन ड्रेन आने वाले कल की सच्चाई है।

एडवांस्ड स्टडी में जनजातीय गौरव दिवस पर भगवान बिरसा मुंडा को किया याद

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शिमला : भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (आईआईएएस) ने जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर एक भव्य आयोजन कर भगवान बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि अर्पित की। संस्थान के सेमिनार कक्ष में आयोजित इस कार्यक्रम में प्रतिष्ठित विद्वान, फेलो, एसोसिएट्स और अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया और भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर में जनजातीय समुदायों के योगदान पर विचार-विमर्श किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्थान के नेशनल फेलो प्रो. आर. सी. सिन्हा ने की। अपने संबोधन में प्रो. सिन्हा ने भगवान बिरसा मुंडा की विरासत को न्याय, समानता और सांस्कृतिक संरक्षण को बढ़ावा देने में उनकी भूमिका को रेखांकित किया।

कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण प्रो. सचिदानंद मोहंती द्वारा दिया गया विशेष व्याख्यान रहा। प्रो. मोहंती, जो आईआईएएस के नेशनल फेलो और सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ ओडिशा के पूर्व कुलपति हैं, ने *“औपनिवेशिक दृष्टिकोण से परे: जनजातीय लेखन की झलकियां (बियॉन्ड द कोलोनियल गेज: विग्नेट्स ऑफ ट्राइबल राइटिंग टुडे)”* विषय पर व्याख्यान दिया।

अपने व्याख्यान में प्रो. मोहंती ने जनजातीय कथाओं की समृद्धता पर प्रकाश डाला और न्याय, समानता और स्थिरता पर उनके समकालीन विमर्शों को आकार देने में उनकी भूमिका पर चर्चा की। उन्होंने जनजातीय साहित्य और मौखिक परंपराओं को औपनिवेशिक पूर्वाग्रहों से परे जाकर नए दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता पर बल दिया।

प्रो. मोहंती ने यह भी बताया कि कैसे औपनिवेशिक मानवशास्त्र और जातीय अध्ययन ने जनजातीय आवाजों को हाशिये पर धकेल दिया, जिससे उनकी सांस्कृतिक पहचान समाप्त हो गई। उन्होंने ऐतिहासिक अन्यायों को सुधारने और जनजातीय संस्कृति की बेहतर समझ के लिए एक नई आलोचनात्मक दृष्टि अपनाने का आग्रह किया।

कार्यक्रम के दौरान, जनजातीय गौरव दिवस का महत्व भी रेखांकित किया गया, जिसे हर साल भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर मनाया जाता है। प्रो. सिन्हा ने अपने वक्तव्य में स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय नेताओं के योगदान और बलिदानों को याद करते हुए समाज से जनजातीय संस्कृतियों के संरक्षण और सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को दूर करने का आह्वान किया।

कार्यक्रम का समापन संस्थान के जनसंपर्क अधिकारी अखिलेश पाठक द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। उन्होंने प्रो. सिन्हा, प्रो. मोहंती और सभी उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों का आभार व्यक्त किया और कार्यक्रम को सफल बनाने में उनके योगदान की सराहना की।

कार्यक्रम को सिस्को वेबेक्स और आईआईएएस के फेसबुक पेज पर लाइव स्ट्रीम किया गया, जिससे बड़ी संख्या में दर्शक इस चर्चा में शामिल हो सके। कार्यक्रम की पूरी रिकॉर्डिंग यहां देखी जा सकती है: https://fb.watch/w3-zR1xynL/।

यह आयोजन जनजातीय गौरव दिवस के प्रति आईआईएएस की सांस्कृतिक समावेशिता को बढ़ावा देने और भारत की विविध धरोहर पर अकादमिक संवाद को प्रोत्साहित करने की प्रतिबद्धता का हिस्सा है।

भारतीय दर्शन एवं चिंतन का आधार है विद्याधन – पद्मश्री प्रो. चमू कृष्ण शास्त्री

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दिल्ली। राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान ने विज्ञान भवन में अपना 35वाँ स्थापना दिवस समारोह आयोजित किया। कार्यक्रम सुबह 10:30 बजे शुरू हुआ। समारोह के मुख्य अतिथि पद्मश्री प्रोफेसर चमू कृष्ण शास्त्री रहे। कार्यक्रम का आरंभ श्रीमद दयानंद कन्या गुरुकुल महाविद्यालय, चोटीपुरा की छात्राओं ने वैदिक मंत्रों के उच्चारण, सरस्वती वंदना और अतिथियों के दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। अतिथियों का स्वागत एनआईओएस के अध्ययन केंद्र अमर ज्योति स्कूल, कड़कड़डूमा के दिव्यांग शिक्षार्थियों ने स्वागत गीत से किया। जिसे सभी अतिथियों ने करतल ध्वनि से सराहा। तत्पश्चात एनआईओएस का ध्येय गीत प्रस्तुत किया गया।

समारोह में उपस्थित अतिथियों का स्वागत एनआईओएस के अध्यक्ष प्रोफेसर पंकज अरोड़ा ने स्वागत उद्बोधन कर किया और स्मृति चिन्ह भेंट कर उन्हें सम्मानित किया। प्रोफेसर अरोड़ा ने अपने उद्बोधन में राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला और वर्तमान में इसकी प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए बताया कि एनआईओएस ने भारतीय ज्ञान परंपरा और देशज ज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य किया है और सभी विषयों में उत्कृष्ट विषयवस्तु को समाहित किया जा रहा है। एनआईओएस सुदूर स्थानों तक शिक्षा पहुँचाने के लिए प्रतिबद्ध है।

एनआईओएस के स्थापना दिवस समारोह में नए पाठ्यक्रम नाट्यकला का विमोचन किया गया। मुख्य अतिथि पद्मश्री प्रो. चमू कृष्ण शास्त्री ने बटन दबाकर इलेक्ट्रॉनिकली उल्लास से निओस कार्यक्रम का उद्घाटन किया। इस कार्यक्रम के तहत 15 वर्ष से अधिक उम्र के निरक्षर व्यक्तियों को शिक्षित कर उनके प्रमाणन का कार्य एनआईओएस करेगा। इसके तहत 2027 तक 5 करोड़ शिक्षार्थियों को शिक्षित करने का लक्ष्य है।

सम्मानित अतिथि प्रो. (डॉ) निर्मलजीत सिंह कलसी (भा.प्र.से.) पूर्व अध्यक्ष, एनसीवीईटी ने बताया कि शिक्षक देश की सबसे बड़ी संपदा है और इन्होंने एनआईओएस के शिक्षार्थियों की प्रतिभा और कौशल को विश्वस्तर का बताया। इन्होंने एनआईओएस की इन्क्लूसिव शिक्षा प्रणाली की सराहना की।

मुख्य अतिथि पद्मश्री प्रो. चमू कृष्ण शास्त्री, अध्यक्ष भारतीय भाषा समिति, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार ने अपने व्याख्यान में कहा कि एनआईओएस के शिक्षार्थियों का अनुभव कथन सुनना अद्भुत और भाव विभोर करने वाला है। उन्होंने दिव्यांग शिक्षार्थियों की प्रतिभा और जीवटता को सराहा। उन्होंने कहा कि आज एनआईओएस के 35वें स्थापना दिवस पर तीन स्तरों पर सिंहावलोकन, विहंगमावलोकन और दूरअवलोकन करने की आवश्यकता है। उन्होंने एनआईओएस के ध्येय वाक्य विद्याधनं सर्वधनप्रधानम की व्याख्या करते हुए कहा कि विद्या ही मनुष्य का सर्वांगीण विकास करती है। उन्होंने विभिन्न संस्थानों के ध्येय वाक्य भी जानने का आग्रह किया और कहा कि यदि ध्येय वाक्य का अर्थ जान लिया जाय तो भारतीय संस्कृति से परिचय स्वतः ही हो जाएगा। विद्या से ही मनुष्य का सर्वांगीण विकास संभव है क्योंकि विद्या के माध्यम से ही मनुष्य के अंदर सही और गलत को समझने की शक्ति उत्पन्न होती है। तीन तरह की शक्तियां होती हैं ज्ञान, क्रिया और इच्छा शक्ति। जब देश को भव्य बनाने की इच्छा शक्ति जागृत होती होगी तभी देश विश्व गुरु बनेगा। इस तरफ देश के शिक्षार्थियों का ध्यान दिलाने की आवश्यकता है। संस्कार से लोग सनातन धर्म के संस्कार का तात्पर्य लेते हैं जबकि इसका एक और अर्थ है, संस्कार का अर्थ है दोष को मिटाकर गुणों का विकास करना।

राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान के 35वें स्थापना दिवस समारोह के मंच पर बतौर विशिष्ट अतिथि प्रो. प्रेम नारायण सिंह, निदेशक, आईयूसीटीई, बीएचयू, वाराणसी और अभिलाषा झा मिश्र, सदस्य सचिव, एनसीटीई मौजूद रहीं।

राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान की स्थापना 23 नवंबर 1989 को हुई थी। एनआईओएस ने देश को लाखों प्रतिभाशाली शिक्षार्थियों को उनका सपना पूरा करने के लिए उन्हें एक आधार प्रदान किया है। यही वजह है कि देश के बहुत से प्रोफेशनल्स की पहली पसंद एनआईओएस बना हुआ है। एनआईओएस विश्व की सबसे बड़ी मुक्त विद्यालयी शिक्षा प्रणाली है और यह बीस क्षेत्रीय केंद्रों, तीन प्रकोष्ठों एवं दस हजार से ज्यादा अध्ययन केंद्रों के माध्यम से देश भर में सभी तक शिक्षा की सहज पहुंच को सुनिश्चित कर रहा है।

समारोह में एनआईओएस के पूर्व शिक्षार्थियों ने अपना अनुभव साझा किया और बताया कि उनके जीवन को एक सही दिशा देने में एनआईओएस ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है उन्होंने कहा कि एनआईओएस के कारण ही वो अपने लक्ष्य की तरफ अग्रसर रहते हुए साथ ही साथ अपनी पढ़ाई भी पूरी की। इससे उनके सपनों को एक नई उड़ान मिली। समारोह में तैराकी में स्वर्ण पदक विजेता तेजस एन, तायक्वोंडो में 3 स्वर्ण पदक और 1 रजत विजेता मोइत्री सरमा, मोटिवेशनल स्पीकर ट्रांसजेंडर मधु, वेंट्रीलोक्विजम कलाकार एन निरंजना, एयर पिस्टल में जूनियर विश्व रिकॉर्ड धारक भक्ति शर्मा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता में पेटेंट धारक उदय शंकर रवि कुमार सहित अन्य एनआईओएस के पूर्व शिक्षार्थी समारोह में शामिल हुए।

समारोह में एनआईओएस ने अपने 35 वर्षों की विकास यात्रा के विभिन्‍न पड़ावों को रेखांकित करते हुए एक वृत्तचित्र का प्रदर्शन किया। इसके साथ ही एनआईओएस के विभिन्‍न पाठ्यक्रमों और पाठ्यपुस्‍तकों की प्रदर्शनी भी लगाई गई जिसका अवलोकन सभी अतिथियों ने किया।

फादर एग्नेल स्कूल के एनआईओएस शिक्षार्थियों ने राष्ट्रगान गाया और निदेशक शैक्षिक के धन्यवाद ज्ञापन के बाद समारोह के औपचारिक समापन की घोषणा की गई। समारोह में एनआईओएस के सचिव, सभी विभागाध्यक्ष, क्षेत्रीय केंद्रों के निदेशक, अधिकारी व कर्मचारी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

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