हिन्दू पर्वों से इतनी नफरत क्यों और उन पर हमले कब तक ?

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हिंदू पर्वों नवरात्र व विजयादशमी के अवसर पर पश्चिम बंगाल से लेकर उत्तर प्रदेश सहित देश के कुछ अन्य हिस्सों में जिस प्रकार दुर्गा प्रतिमाओं को खंडित करके अपमानित किया गया, मूर्ति विसर्जन में बाधा डाली गई, शोभा यात्राओं पर हमले किये गए उससे निंदनीय कृत्य नहीं हो सकते। इससे भी निंदनीय है मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए एकतरफा विकृत बयानबाजी करके उस हिंसा का बचाव किया जाना। स्वतंत्रता के बाद के इतने वर्षों में हिंदू समाज के लोगों ने कभी भी किसी भी मजहब के पर्वों में किसी भी प्रकार का व्यवधान नहीं डाला वरन सदा सहिष्णुता का परिचय देते हुए उनके पर्वो को मनाने में सहयोग ही किया है। इसके विपरीत मुस्लमान कभी भी हिन्दुओं को उल्लास, उत्साह और प्रसन्नता के साथ कोई पर्व मनाने नहीं देते हमेशा पत्थर, बोतल, और बम लेकर हमले के लिए तैयार रहते हैं। ऐसा कब तक चलेगा ?

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आने के बाद से एक भी बड़ा दंगा नहीं हुआ है, प्रदेश की सशक्त कानून व्यवस्था के कारण ही न केवल योगी सरकार पुनः सत्ता में आई है वरन उसका प्रभाव अन्य प्रान्तों की चुनावी राजनीति पर भी पड़ रहा है। दूसरी तरह कुछ राजनैतिक दल और उनका वोट बैंक हर दिन प्रदेश की कानून व्यवस्था बिगाडने का प्रयास कते रहते हैं । समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के इसी वोट बैंक ने दुर्गा प्रतिमा विसर्जन में पूर्व नियोजित रूप से पथराव करके वातावरण बिगाड़ने में कामयाबी पा ली और और निर्दोष राम गोपाल मिश्रा को अपने प्राण गंवाने पड़े।

शांति भंग करने का प्रयास केवल बहराइच में ही नहीं हुआ, विजयादशमी के पूर्व ही समुदाय विशेष ने लखनऊ और आजमगढ़ में देवी प्रतिमाओं को खंडित कर वातावरण बिगाड़ने का प्रयास किया। लखनऊ में प्रतिष्ठित मरी माता मंदिर में देवी प्रतिमा को खंडित किया गया, आजमगढ़ में मां लक्ष्मी की प्रतिमा को खंडित किया गया, गोंडा जिले में दुर्गा पंडाल के बाहर पत्थरबाजी की गई, हरदोई जिले में भी अरजकतत्वों ने नवरात्रि के समय में ही मंदिर में स्थापित देवी की प्रतिमा को खंडित कर दिया गया जिसके कारण तनाव उत्पन्न हुआ किंतु ग्रामीणों व पुलिस की सतर्कता के कारण बड़ा उपद्रव नहीं हो सका। इसी प्रकार रायबरेली जिले के बछरावां में चंद्रिका देवी मंदिर में रखी चार मूर्तियां अराजकतत्वों ने क्षतिग्रस्त कर दीं। इसी प्रकार अंबेडकरनगर के बेताना में और बाराबंकी के कसबा इचौली में विसर्जन जुलूस के दौरान आपत्तिजनक वस्तु फैंकी गई और उपद्रव करने का प्रयास किया गया। आजमगढ़ में दूसरी बार निजामाबाद मे विसर्जन जुलूस के दौरान डीजे बजाने को लेकर विवाद हो गया। यहां पर 48 अज्ञात लोगों पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। वहीं आगरा के बमरौली कटारा के समोगर घाट पर यमुना में मूर्ति विसर्जन में बाधा डालने के उद्देश्य से धर्म विशेष के दो युवकों ने चौकी प्रभारी मुकेश कुमार पर हमला बोल दिया। उनका गला दबाया और जमीन पर गिराकर पीटा। अतिरिक्त पुलिसकर्मियों के आने पर ही वह किसी प्रकार से बच सके किंतु यहां पर भी लापरवाही के कारण वह दोनों युवक भाग निकलने मे सफल हो गये। बिजनौर जिले में मंदिर से रामचरित मानस को चोरी कर जला दिया गया।

आखिर यह सब मानसिक विकृति नहीं तो और क्या है? नवरात्र और दुर्गापूजा के अवसर पर प्रदेश में जिस प्रकर की घटनाएं घटी हैं यदि विहंगम दृष्टि डाली जाए तो सबका पैटर्न लगभग एक समान है। यह सभी घटनाएं देखने व सुनने में छुटपुट जरूर हैं किंतु इनका उद्देश्य सामूहिक है। केंद्र सरकार ने पीएफआई जैसे कुख्यात संगठनों को प्रतिबंधित अवश्य कर दिया है किंतु ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उनके स्लीपर सेल लगातार अपना कार्य कर रहे हैं।
दुर्गा पूजा, विजयदशमी, रामनवमी, गणेशोत्सव भारतीय संस्कृति और पंरपरा के महत्वपूर्ण पर्व हैं, पहचान हैं हमारी संस्कृति के इनसे या इनको मनाने वालों से किसी को क्या शत्रुता हो सकती है? बहराइच जिले में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान एक बाईस वर्षीय हिन्दू युवक राम गोपाल मिश्र बलिदान हो गया, मुसलमानों ने अत्यंत क्रूरता से उसकी हत्या कर दी किंतु प्रदेश में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले इस अवसर पर भी अपने वोट बैंक को साधते दिखाई दिए।

ये मुस्लिम तुष्टिकरण वाले दल पहले सरकार और प्रशासन की विफलता को दोष दे रहे थे और अब जब सख्ती बरती जा रही है तब ख रहे हैं कि प्रदेश सरकार एकतरफा कार्यवाही कर रही है। अब उन्हें केवल योगी का इस्तीफा चाहिए क्योंकि अब पत्थरबाजों के हिसाब किताब का समय है । जब दुर्गापुजा और गणेशोत्सव पर ऐसे ही एकतरफा हमले होंगे तो कभी न कभी हिन्दू समाज का धैर्य भी जवाब देगा, यदि हिन्दू समाज भी ऐसा ही करने लगे तो?

बहराइच की घटना में एक निर्दोष 22 वर्षीय हिंदू युवक की बर्बरता पूर्ण हत्या कर दी जाती है तो मीडिया का एक वर्ग भी अल्पसंख्यकों के पक्ष में मौन धारण कर लेता है लेकिन बाबा सिद्दीकी नाम केअपराधी जो तुष्टिकरण करने वालों की कृपा सफेदपोश हो गया उसके लिए आंसू बहा रहा है । ये यह एकतरफा सेकुलरिज्म अब बहुत दिनों तक चलने वाला नहीं है। दूसरी ओर अब हिंदुओं को भी यह बात समझनी होगी कि अपनी सुरक्षा के लिए आप किसी पर निर्भर नहीं रह सकते, अपने आपको इतना सशक्त बनाना होगा कि कोई भी आपके पर्वों को दुःख के पर्व में बदलने का दुस्साहस करने के बारे में सोच भी न सके।

नरेंद्र ना जाने कब बड़ा हो गया

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अनिल पुसदकर

रायपुर: फोटोग्राफी की दुनिया के बेताज बादशाह,कैमरे के बेमिसाल कलाकार नरेंद्र बंगाले का आज जन्म दिन है,बधाई नहीं दीजिएगा उसे!

नरेंद्र पता नहीं कब बड़ा हुआ,कब रिटायर भी हो गया,लेकिन फोटोग्राफी की दुनिया में तहलका मचा गया,बेमिसाल फोटोग्राफर और उससे भी ज्यादा शानदार इंसान।

प्रेस जगत में मेरी एंट्री थोड़ा लेट हुई थी,और भास्कर जब नव भास्कर हुआ करता था तब मुझे वहां मिला था नरेंद्र बंगाले।उस समय फोटोग्राफी की दुनिया के भीष्म पितामह स्व बसंत दीवान भी भास्कर में थे।बड़े बड़े बरगदो का जंगल था फोटोग्राफी की दुनिया,और उसमे एक बिल्कुल नया नवेला,बच्चा भी कह सकते है,वो अंकुरित हुआ और ऐसा अंकुरित हुआ कि बड़े बड़े बरगदो के जाल को चीरता हुआ ऊपर उठता ही चला गया और अपना परचम फहराता चला गया।कुछ ही सालों में नरेंद्र बंगले फोटोग्राफी की दुनिया में न केवल जाना माना नाम बन गया बल्कि उसकी शान बन गया।उसकी तस्वीरें बोलती थी।उसकी तस्वीर पर खबर लिखने की भी जरूरत नहीं होती थी,उसकी तस्वीर ही अपने आप में एक कंप्लीट खबर होती थी।
गजब का कलाकार था कैमरे का।वो जमाना फिल्मों को खुद डेवलप करने का था,और नरेंद्र ने कुछ ही समय में उसमें महारथ हासिल कर ली थी।सही मायने में वो कैमरे का जादूगर है।
और इंसान तो बेहद शानदार। मेरे साथ सालो काम किया।मेरा सर्विस रिकॉर्ड बहुत खराब था।हर छह महीने में इस्तीफा देता था और महीने दो महीने बाद वापस बुला लिया जाता था।मगर मजाल नरेंद्र ने कभी संपर्क तोड़ा हो।वो चाहे में भास्कर में रही या न रहूं,हमेशा फोन करता था।

अब बात निकली है तो उसका किस्सा भी सुना ही देता हूं।नरेंद्र की आदत थी लेट नाईट ड्यूटी पर रहते हुए जब फ्री होता तो मुझे फोन लगा देता था।और गहरी नींद से उठकर उसका फोन उठाओ तो उधर से उसकी मीठी हसी के साथ आवाज थी,अरे आप को लग गया क्या भैया?क्या कर रहे थे?अब क्या करूंगा सो रहा था,अरे कोई बात नहीं सो जाओ।और खटाक से फोन कट।और ये एक दो दिन की बात नहीं आए दिन होता था और सालों ये सिलसिला चला।बेहद गुस्सैल होने के बावजूद पता नहीं क्यों नरेंद्र पर कभी गुस्सा नहीं आया। उस पर हमेशा प्यार ही आया।

स्वतंत्रता के बाद सामाजिक जागरण के लिये जीवन समर्पित

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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कुछ ऐसे सेनानी भी सामने आये जिन्होंने स्वतंत्रता संघर्ष के साथ समाजिक जागरण का कार्य भी किया और स्वतंत्रता के बाद अपना जीवन इसी लक्ष्य केलिये समर्पित कर दिया । संत आनन्द स्वामी सरस्वती ऐसे विलक्षण संत और पत्रकार थे जिनके जीवन का प्रत्येक क्षण भारत के स्वाभिमान जागरण केलिये समर्पित रहा ।

ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी और संत आनंद स्वामी जी का जन्म 15 अक्टूबर 1882 को पंजाब के जलालपुर जट्टा गाँव में हुआ था । अब यह क्षेत्र पाकिस्तान में है । उनके पिता मुंशी गणेशराम आर्य समाज से जुड़े थे । वे स्वामी दयानन्द सरस्वती के शिष्य थे । उन दिनों पंजाब में मतान्तरण का मानो कोई अभियान चल रहा था । मुंशी गणेशराम सामाजिक जागरण में लगे थे ताकि सनातन परंपराओं में भ्रांति फैलाकर मतांतरण का षड्यंत्र सफल न हो। उनके यहाँ जब बालक ने जन्म लिया तो उन्होंने अपने बालक का नाम खुशहालचन्द रखा । बालक खुशहालचन्द को संस्कृत की शिक्षा परिवार की परंपराओं से मिली । घर का वातावरण वेदान्त के ज्ञान से ओतप्रोत था और घर में आर्यसमाज के संतों का आना जाना था । एक दिन संत नित्यानंद घर पधारे । वे बालक खुशहालचन्द की प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुये । उन्होंने बालक को वैदिक शिक्षा देने की सलाह दी । बालक खुशहालचन्द की वैदिक शिक्षा आरंभ हुई और गायत्री की साधना भी । समय के साथ उनका विवाह मालादेवी से हुआ । युवा अवस्था आते तक खुशहाल चन्द जी की गणना वेदान्त के विद्वानों में होने लगी । समय की आवश्यकता देखकर उन्होंने स्वयं को वेदान्त के प्रचार के लिये समर्पित कर दिया । एक बार महात्मा हंसराज जलालपुर आये । उनके सम्मान में आयोजित कार्यक्रम में स्वागत वक्तव्य युवा खुशहालचन्द ने दिया । साथ ही आर्य गजट में प्रकाशन के लिये कार्यक्रम की एक संक्षिप्त रिपोर्ट भी तैयार की । महात्मा हंसराज युवा खुशहालचन्द के संबोधन और इस रिपोर्ट से बहुत प्रभावित हुये । उन्होंने खुशहालचन्द को लाहौर आने का आमंत्रण दिया ।

खुशहालचन्द लाहौर आये । महात्मा हंसराज जी ने उन्हें साप्ताहिक’आर्य गजट’ साप्ताहिक के सम्पादकीय विभाग से जोड़ा । यहाँ से उनका पत्रकारीय जीवन आरंभ हुआ । इसके साथ उनका संपर्क वैदिक विद्वानों से भी बढ़ा। जिससे वैदिक ऋचाओं के जनोपयोगी भाष्य परंपरा से भी जुड़े। 1921 में असहयोग आंदोलन आरंभ हुआ । वे युवकों की टोली के साथ बंदी बनाये गये । इस गिरफ्तारी ने उन्हें सामाजिक जागरण के साथ राष्ट्रीय जागरण के अभियान से भी जोड़ दिया ।

इसी बीच मालाबार से साम्प्रदायिक हिंसा का समाचार आया । यह हिंसा सनातन धर्म के अनुयायियों के विरुद्ध थी । कुछ इलाकों में कत्लेआम हुआ था । स्त्रियों के हरण बलात्कार और बच्चों के साथ घटे पाशविक अत्याचार के समाचार रोंगटे खड़े कर देने वाले थे । हिंसा के समाचार से उन दिनों स्वतंत्रता आँदोलन में सक्रिय काँग्रेस में मतभेद उभरे । दरअसल असहयोग आँदोलन में मुस्लिम समाज का सहयोग लेने की दृष्टि से खिलाफत आँदोलन को असहयोग आँदोलन से जोड़ दिया गया था । इस पक्ष के लोगों ने इस हिंसा के प्रति तटस्थता का भाव अपनाया लेकिन आर्यसमाज ने इस घटना के प्रति जन जागरण का बीड़ा उठाया । उनके साथ काँग्रेस के भी कुछ लोग साथ आये । अंत में स्वामी श्रृद्धानंद, डा मुंजे, स्वातंत्र्यवीर विनायक सावरकर आदि नेता मालाबार पहुँचे। पंजाब से युवाओं की टोली रवाना हुई जिसमें खुशहालचन्द भी थे । उन्होंने लौटकर न केवल आर्य गजट में अपितु पंजाब के अन्य समाचार पत्रों में भी मालाबार हिंसा का विवरण भेजा और आशंका जताई कि जो मालाबार में हुआ वैसा देश के अन्य भागों में भी हो सकता है । तब कौन जानता था कि पच्चीस साल बाद मुस्लिम लीग के डायरेक्ट एक्शन काॅल से उत्पन्न ऐसी हिंसा से पूरा देश काँप उठेगा ।

राष्ट्रीय जागरण तथा वैदिक धर्म के प्रचार के उद्देश्य से उन्होंने 13 अप्रैल 1923 को वैशाखी पर्व पर दैनिक उर्दू ‘मिलाप’ का प्रकाशन शुरू किया। उस समय वे खुशहालचन्द ‘खुरसंद’ के नाम से अपने लेख लिखा करते थे । पंजाब की पत्रकारिता में 1942 के बाद राष्ट्रीय जागरण की जो धारा उत्पन्न हुई उसका बीज खुशहालचन्द जी ने 1923 में रौप दिया था । इसलिए उन्हें पंजाब की राष्ट्रीय पत्रकारिता का पितामह भी कहा जाता है । इसके साथ वे सत्यार्थ प्रकाश के संपादक भी बने ।

निसंदेह भारत का विभाजन 1947 में हुआ किन्तु इसकी वर्षों पहले आरंभ हो गई थी । हैदराबाद के निजाम ने हिन्दु आबादी को बाहर करने और आसपास से मुस्लिम आबादी को बुलाकर बसाने का अभियान छेड़ दिया था । इसका विरोध आर्यसमाज ने किया और 1939 में सत्याग्रह आरंभ किया । देश भर सत्याग्रही जत्थे हैदराबाद पहुंचे । खुशहालचन्द जी के नेतृत्व में सत्याग्रहियों का एक बड़ा जत्था हैदराबाद पहुँचा। वे गिरफ्तार कर लिये गये और सात महीने जेल में रहे संघर्ष किया। राष्ट्रीय जागरण, षड्यंत्र पूर्वक किये जाने वाले मतान्तरण और देश विभाजन की भावी आशंका के प्रति सत्यार्थ प्रकाश ने जागरण अभियान छेड़ा तो सिंध प्रांत में सत्यार्थ प्रकाश पर प्रतिबंध लगा दिया गया । खुशहालचन्द जी सिन्ध पहुंचे, संघर्ष किया और गिरफ्तार कर लिये गये । रिहाई के बाद पुनः अपनी पत्रकारिता और सामाजिक जागरण में लग गये । दरअसल खुशहालचन्द जी और उनकी टीम सिंध और पंजाब के उन क्षेत्रों में सक्रिय थी जिन क्षेत्रों पाकिस्तान के लिये मुस्लिम लीग का सबसे सघन अभियान था । विभाजन और उससे उत्पन्न हिंसा में पत्रकारिता के साथ उन्होंने पीड़ितों के लिये सेवा सुरक्षा के प्रबंध भी किये ।

1949 में उन्होंने संन्यास ग्रहण किया । तब उनकी पहचान ‘महात्मा-आनंद स्वामी सरस्वती’ के रूप में हुई । संन्यास लेकर उन्होंने वैदिक धर्म के प्रचार के लिये पूरे भारत की यात्रा की और विदेश भी गये । संन्यास लेने के बाद उन्होंने अपनी घर गृहस्थी से भी अंतर बना लिया । और बहुत सादा जीवन सीमित भोजन से दिनचर्या आरंभ की और अंत में देश, धर्म और समाज की सेवा में अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले महात्मा आनन्द स्वामी सरस्वती ने 24 अक्टूबर 1977 को इस संसार से विदा ली ।

पप्पू यादव को आज याद आया कानून, उसने कब की कानून की परवाह

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पप्पू यादव को कानून से इजाजत चाहिए, लॉरेंस विश्नोई का नेटवर्क 24 घंटे में खत्म करने के लिए। यह इजाजत कानून की किस धारा से उन्हें मिल सकता है, कोई बताएगा?

पप्पू यादव का अपना इतिहास हत्या, लूट पाट, मारपीट, बूथ कैप्चरिंग से भरा हुआ है लेकिन क्राइम की दुनिया में लॉरेंस का इतिहास अधिक काला है। यदि वे लॉरेंस को दो टके का अपराधी कह रहे हैं फिर एक अपराधी के तौर पर वे अपना भी आंकलन सही-सही कर लें। उनकी क्राइम की टेरिटरी पांच सात जिलों की रही है बिहार में। इस हिसाब से वे कितने टके का अपराधी खुद को मानते हैं, यह नहीं बताया उन्होंने!

इसलिए उन्हें लेकर यह सवाल है कि अपराधी से नेता बने पप्पू यादव कानून इजाजत दे का ढोंग किसके लिए कर रहे हैं? उन्हें कानून की परवाह कब से होने लगी?

राजद, सपा, कांग्रेस से लेकर पप्पू यादव और रवीश पांडेय तक क्या मुसलमानों को मूर्ख समझते हैं, जो उनके इस तरह के धूर्ततापूर्ण बयानों पर ताली बजाने लगेगा।

दुख के साथ लिखना पड़ रहा है कि वे ऐसा सोचते हैं तो गलत नहीं सोच रहे। मदरसे से पढ़ कर निकले बच्चे वास्तव में ऐसे बयानों पर इन्हें अपना हमदर्द मान लेते हैं, इसीलिए दशकों से भारतीय मुसलमानों को अच्छा-अच्छा भाषण ही मिला है, उनकी जिंदगी में कोई सुधार नहीं आया।

पप्पू और रवीश जैसे लोग अपने बच्चों को कॉन्वेंट में पढ़ाएंगे और मुसलमानों के बच्चों को मदरसा का हक दिलवाने की लड़ाई लड़ेंगे।

यदि पप्पू में कुवत होती लॉरेंस से लड़ने की तो वे कानून का बहाना नहीं बनाते। कानूनी तौर पर कुछ ठोस लड़ाई लड़ कर दिखाते।

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