लातेहार में जनजातीय कृषक पंचायत का हुआ आयोजन

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रांची (झारखंड) : विकास भारती द्वारा एचडीएफ़सी बैंक के सहयोग से लातेहार ज़िले के गारू प्रखंड में विगत 3 वर्षों से चल रही ‘संपोषित समग्र ग्रामीण विकास योजना’ के समाप्ति पर गारू प्रखंड के कोटाम गाँव में 27 सितंबर, 2024 को “जनजातीय कृषक पंचायत” का आयोजन किया गया।जिसमें बतौर मुख्य अतिथि केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास मंत्री,भारत सरकार श्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया। 

इस दौरान कृषि विज्ञान केंद्र गुमला, एचडीएफ़सी बैंक व बीआरएलएफ के द्वारा जीवंत प्रदर्शनी लगायी गई तथा स्वयं सहायता समूह की “लखपति दीदी” को सम्मानित किया गया। 

ज्ञातव्य हो कि इस परियोजना के माध्यम से 3 वर्षों में विकास भारती बिशुनपुर द्वारा लातेहार ज़िले के अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र गारू प्रखंड के 20 गाँव में 30 कुआँ का निर्माण, 10 गाँव में 10 तालाब का निर्माण, 15 गाँव में सोलर आधारित सिंचाई, 6 गाँव में डीज़ल आधारित सिंचाई की व्यवस्था तथा स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर 20 गाँव में 40 स्वास्थ्य कैंप,  हज़ारों फलदार व औषधीय पौधे सहित कई आधारभूत संरचनाओं का निर्माण किया गया।जिसके फलस्वरूप गाँव पूर्ण स्वावलंबन की ओर अग्रसर है।

कार्यक्रम में उपस्थित चतरा लोकसभा के सांसद श्री कालीचरण सिंह, पूर्व सांसद श्री सुनील सिंह, एचडीएफ़सी बैंक के पदाधिकारी, लातेहार ज़िला परिषद की अध्यक्ष श्रीमती पूनम जी सहित अन्य अतिथिगण व गारू प्रखंड के 5000 किसान बंधु उपस्थित रहें.

भारत को समझने के लिए महाभारत को पढ़ने की जरूरत है : चितरंजन त्रिपाठी

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आज संस्कार भारती, दिल्ली प्रान्त द्वारा ‘कला संकुल’ में कला एवं साहित्य को बढ़ावा देने के क्रम में आयोजित मासिक नाट्या संगोष्ठी का कार्यक्रम संपन्न हुआ। ‘आधुनिक रंग-लेखक में भारतीय दृष्टि एवं चुनौतियाँ’ विषय पर बात करने लिए बतौर मुख्य अतिथि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक चितरंजन त्रिपाठी और प्रसिद्ध नाट्य समीक्षक अनिल गोयल मौजूद रहे।

चितरंजन त्रिपाठी ने भारतीय संस्थाओं पर बात करते हुए लेखन सामग्री में भारी कमी को दोष दिया। समाज को गलत तरीके से पेश करने वाले नाट्य लेखनों को जवाब देने के लिए सही नजरिये पर काम नहीं किया गया। उन्होंने आज के लेखकों से भारत को समझने के लिए महाभारत को पढ़ने पर भी जोर दिया क्योंकि आप कला और अपने इतिहास को बेहतर समझ पाएंगे। आज का युवा नाटक देखना चाहता है, उसमें रूचि भी रखता है मगर उसके लिए लेखन भारतीय दिशा में रखना बहुत जरूरी है।


हम जब लोक को समझ जाएंगे तो नाट्य को बेहतर करना हम सीख जाएंगे। लोक नाट्य लोगों के बीच तैयार होता है, लोगों के लिए तैयार होता है, उन्हीं के बीच में चल रहे व्यवहार को ध्यान में रखकर लोक नाट्य लिखे जाते हैं और इसे केवल लोक ही जीवित रख सकता है।

इसी विषय पर बात करते हुए वरिष्ठ नाट्य समीक्षक अनिल गोयल ने भारतीय नाट्य परम्परा पर बात करते हुए कहा कि 90 के दशक में कई नाट्यकारों ने भारतीय इतिहास को गलत तरीके से पेश करने का काम किया। उन्होंने आज की सबसे बड़ी चुनौती के तौर पर भारत में युवा रंग लेखन में कमी को बताया है। नाट्य जगत को हमेशा अच्छे लेखकों की कमी महसूस हुई है। फिल्म क्षेत्र को बेहतर लेखक मिले मगर नाट्य जगत में इसकी कमी देखी गई। 1962 और 71 की लड़ाई पर फिल्मों का लेखन हुआ मगर किसी ने इसपर प्रभावी नाटक नहीं तैयार किया। पॉलिटिकल करेक्ट बनने की कोशिश में हमने सदैव कड़े विषयों को नाटक क्षेत्र से दूर रखा है।

संगोष्ठी के उद्घाटन में संस्कार भारती के राष्ट्रीय संगठन मंत्री अभिजीत गोखले, चितरंजन त्रिपाठी, अनिल गोयल, कुलदीप शर्मा जी मौजूद रहे थे।

गौभक्त लाला हरदेव सहाय : 64 गाँवों में हिन्दी और संस्कृत विद्यालय खोले : अकाल के समय अन्न भंडार खोला

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भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कुछ सेनानी ऐसे भी हैं जो स्वतंत्रता संग्राम में जितने सहभागी बने उससे कयी गुणा कार्य स्वाभिमान जागरण और स्वत्व बोध जागरण के लिये किया । लाला हरदेव सहाय ऐसे ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे जिनका पूरा जीवन निशक्त जनों और गौरक्षा एवं सेवा में बीता । तीस सितम्बर उनकी पुण्यतिथि है ।

ऐसे संत प्रकृति, समाज सेवी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लाला हरदेव सहाय का जन्म 26 नवम्बर 1892 को हरियाणा प्राँत के हिसार जिला के अंतर्गत ग्राम सातरोड़ में हुआ था । उनके पिता लाला मुसद्दीलाल उस पूरे इलाके के सबसे समृद्ध साहूकार थे जिनका ब्याज पर धन देने और अनाज का कारोबार था । पर घर में भारतीय संस्कृति, परंपरा और संस्कृत का वातावरण था । परिवार आर्यसमाज से जुड़ा था । घर में संतों का आना जाना भी था । उनमें स्वामी श्रृद्धानंद जी प्रमुख थे । इसलिए हरदेव जी को बालपन से ही संस्कृत, वेद, उपनिषद, पुराण आदि भारतीय परंपरा के ग्रन्थों के अध्ययन का अवसर मिला । प्रारंभिक शिक्षा हिसार में हुई और आगे पढ़ने के लिये काशी गये । यहाँ उनका संपर्क पंडित मदनमोहन मालवीय से बढ़ा। उनपर स्वामी श्रृद्धानंद जी द्वारा सनातन परंपरा के प्रति जन सामान्य में जाग्रति उत्पन्न करने का बहुत प्रभाव था । लगभग इसी दिशा में उन्होंने पंडित मदनमोहन मालवीय को काम करते देखा । उन्हें काम करने की एक दिशा मिली । बनारस से लौटे तो दो संकल्प उनके मन में थे । एक मातृभाषा में शिक्षा का प्रबंध और दूसरा भारत को परतंत्रता से मुक्त कराने के संघर्ष में सहभागी बनना । उन्होंने विद्या प्रचारणी नामक संस्था का गठन किया और अपने गाँव में हिन्दी और संस्कृत का विद्यालय खोला । 1921 में असहयोग आंदोलन आरंभ हुआ । वे कांग्रेस के सदस्य बने और उन्होंने इस आँदोलन में हिस्सा लिया और हिसार में बंदी बनाये गये । तीन माह जेल में रहे । लौटकर पुनः समाज सेवा में लग गये । वे अति सेवाभावी और करुणामय भावों से भरे थे । उन्होंने आसपास के गाँवों में हिन्दी संस्कृत के विद्यालय आरंभ किये । उन्हीं दिनों कोई बीमारी फैली जिससे न केवल पशु पक्षी अपितु मनुष्य पर भी मानों मृत्यु अपना शिकंजा कस रही थी । उन्होंने इस असहाय स्थिति से मुक्ति के लिये उपचार आदि का प्रबंध किया और गरीब किसानों को ऋण मुक्ति की घोषणा कर दी और उनके पास गिरवी रखी जमीन लौटा दी । निर्धन किसानों की सहायता और विद्यालय खोलने के लिये अन्य व्यवसायियों को भी तैयार किया और 1938 तक उनके द्वारा आरंभ विद्या प्रचारणी सभा द्वारा संचालित विद्यलयों की संख्या 64 हो गई थी । ये सभी विद्यालय हिन्दी और संस्कृत में संचालित होते थे । अनेक विद्यार्थियों को आगे पढ़ने के लिये काशी जाने में भी सहायता की ।

1939 में हिसार क्षेत्र में भीषण अकाल पड़ा। भूख ने मानों पशु पक्षी और मनुष्य दोनों को जकड़ लिया । भूख से मौते होने लगीं। ऐसे विषम समय में लाला जी ने अपने अन्न भंडार खोल दिये और पूरे क्षेत्र में गायों के लिये के चारे पानी का प्रबंध किया । यह काम उन्होंने न केवल अपने गाँव और आसपास अपितु पूरे हिसा जिले में किया । अकाल की इस विभीषिका ने उन्हें गौसेवक भी बना दिया था । उन्होंने कर्मशील महिलाओं के लिए सूत कताई केन्द्र खोलने में सहायता की ताकि इस विषम परिस्थिति में कुछ आय की व्यवस्था हो सके । उन्होंने स्वयं भी इस देशी सूत से बने कपड़े पहनने का संकल्प लिया और इसके लिये समाज का वातावरण भी बनाया । अकाल पीड़ितों की सेवा और समाज की शैक्षणिक और आर्थिक उन्नति के कार्य में लगे रहने के साथ 1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो आँदोलन में हिस्सा लिया और जेल गये । जेल से लौटकर वे शिक्षा के प्रसार और गौसेवा के काम में लग गये । स्वतंत्रता की पृष्ठभूमि में हुये भारत विभाजन की विभीषिका में आने वाले शरणार्थियों की सेवा सहायता में जुटे ।

उन्हें आशा थी कि स्वतंत्रता के बाद गौहत्या पर प्रतिबंध लगेगा । पर ऐसा न हो सका । अपितु स्वतंत्रता के बाद जैसे ही हिसार बूचड़खाने खुलने की घोषणा हुई । उन्होंने इसका विरोध किया और प्रधानमंत्री नेहरू जी से भेंट की पर बात न बनी तो उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी । और ‘भारत सेवक समाज’ से जुड़कर गोसेवा का कार्य आगे बढ़ाया । 1954 में उनका सम्पर्क सन्त प्रभुदत्त ब्रह्मचारीजी और करपात्री जी महाराज से हुआ। और गौरक्षा आँदोलन से जुड़ गये । और देशव्यापी जन जागरण अभियान आरंभ किया । 1955 में प्रयाग में आयोजित कुम्भ में ‘गोहत्या निरोध समिति’ का गठन हुआ । लाला जी इस संस्था के संस्थापक सदस्य थे । उन्होंने इसी कुँभ मेले में प्रतिज्ञा की कि जब तक देश में गोहत्या बन्द नहीं होती, तब तक चारपाई पर नहीं सोऊंगा तथा पगड़ी नहीं पहनूंगा”। उन्होंने गाय की महत्ता और सामाजिक उपयोगिता पर अनेक पुस्तकें लिखीं। ‘गाय ही क्यों’ नामक उनकी एक पुस्तक की भूमिका तो तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद जी ने लिखी थी।

31 जुलाई 1956 को लाला जी की अध्यक्षता में एक प्रतिनिधि मंडल ने राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद से भेंट की गौहत्या रोकने के लिये कानून बनाने का आग्रह किया । उनके आग्रह को स्वीकार कर राजेंद्र प्रसाद जी ने गौवध बंद करने पर विचार करने के लिये एक संवैधानिक बोर्ड का गठन करने की पहल की । इस बोर्ड में सेठ गोविंददास (संसद सदस्य), पं. ठाकुरदास भार्गव, सत्गुरु प्रतापसिंह जे.एन. यंगराज और आनंदराज सुराणा सदस्य बनाये गये । लेकिन यह सभी कार्यवाही तो चलती रही पर गौहत्या पर प्रतिबंध का कानून न बन सका तब उन्होंने डाक्टर राजेंद्र प्रसाद जी को एक लंबा पत्र लिखा जिसमें यहाँ लिखा कि ” यदि गौवध निषेध कानून नहीं बन पाई रहा तो आपको पद छोड़ देना चाहिए” ।

समाज और गाय की सेवा में अपना जीवन समर्पित करने वाले गृहस्थ संत लाला हरदेव सहाय की निधन 30 सितम्बर, 1962 को हुआ । उनका प्रिय वाक्य ‘गाय मरी तो बचता कौन, गाय बची तो मरता कौन’ आज भी प्रासंगिक है।

वन नेशन वन इलेक्शन आज के भारत की आवश्यकता

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स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में लोकसभा एवं विभिन्न प्रदेशों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही होते रहे हैं। परंतु केंद्र सरकार द्वारा कुछ विधानसभाओं को 1950 एवं 1960 के दशक में इनकी अवधि समाप्त होने के पूर्व ही भंग करने के चलते कुछ विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा से अलग कराने की आवश्यकता पड़ी थी, उसके बाद से लोकसभा, विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं एवं स्थानीय स्तर पर नगर निगमों, निकायों एवं पंचायतों के चुनाव अलग अलग समय पर कराए जाने लगे। आज स्थिति यह निर्मित हो गई है कि लगभग प्रत्येक सप्ताह अथवा प्रत्येक माह भारत के किसी न किसी भाग में चुनाव हो रहे होते हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि पिछले पांच वर्षों के दौरान प्रत्येक वर्ष केवल 65 दिन ऐसे रहे हैं जब भारत के किसी स्थान पर चुनाव नहीं हुए हैं।

किसी भी देश में चुनाव कराए जाने पर न केवल धन खर्च होता है बल्कि जनबल का उपयोग भी करना पड़ता है। जनबल का यह उपयोग एक तरह से अनुत्पादक श्रम की श्रेणी में गिना जाना चाहिए क्योंकि इस प्रकार के श्रम से किसी प्रकार का उत्पादन तो होता नहीं है परंतु एक तरह से श्रमदान जरूर करना होता है। यह श्रम यदि बचाकर किसी उत्पादक कार्य में लगाया जाय तो केवल कल्पना ही की जा सकती है कि इस श्रम से देश के सकल घरेलू उत्पाद में अतुलनीय वृद्धि दर्ज की जा सकती है। अमेरिकी थिंक टैंक के एक अर्थशास्त्री के अनुसार, देश में बार बार चुनाव कराए जाने के चलते उस देश का सकल घरेलू उत्पाद लगभग एक प्रतिशत से कम हो जाता है। चुनाव कराने के लिए होने वाले खर्च पर भी यदि विचार किया जाय तो भारत में केवल लोकसभा चुनाव कराने के लिए ही 60,000 करोड़ रुपए का खर्च किया जाता है। आप कल्पना कर सकते हैं इस राशि में यदि विभिन्न प्रदेशों की विधानसभाओं, नगर निगमों, निकायों एवं ग्राम पंचायतों के चुनाव पर किए जाने वाले खर्च को भी जोड़ा जाय तो खर्च का यह आंकड़ा निश्चित ही एक लाख करोड़ रुपए के आंकडें को पार कर जाएगा।

उक्त बातों के ध्यान में आने के पश्चात केंद्र सरकार ने विचार किया है कि भारत में “वन नेशन वन इलेक्शन” के नियम को लागू किया जाना चाहिए। इस विचार को आगे बढ़ाने एवं इस संदर्भ में नियम आदि बनाने के उद्देश्य से भारत के पूर्व राष्ट्रपति माननीय श्री रामनाथ कोविंद जी की अध्यक्षता में एक विशेष समिति का गठन किया गया था। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट हाल ही में राष्ट्रपति/केंद्र सरकार को सौंप दी है। इसके बाद, केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल की समिति ने इस रिपोर्ट को स्वीकृत कर लिया है एवं इसे अब लोकसभा एवं राज्यसभा के सामने विचार के लिए प्रस्तुत किया जाएगा।

किसी भी देश की लोकतंत्रीय प्रणाली में समय पर चुनाव कराना एक महत्वपूर्ण कार्य होता है। चुनाव किस प्रकार हों, समय पर हों एवं सही तरीके से हों, इसका बहुत महत्व होता है। परंतु देश में चुनाव बार बार होना भी अपने आप में ठीक स्थिति नहीं कही जा सकती है। विश्व के कई देशों, यथा स्वीडन, ब्राजील, बेलजियम, दक्षिण अफ्रीका, आदि में समस्त प्रकार के चुनाव एक साथ ही कराए जाने के नियम का पालन सफलतापूर्वक किया जा रहा है। चुनाव एक साथ कराने के कई फायदे हैं जैसे इन देशों में चुनाव कराने सम्बंधी खर्चों पर नियंत्रण रहता है। दूसरे, सुरक्षा हेतु पुलिसकर्मियों एवं चुनाव करवाने के लिए स्थानीय कर्मचारियों की बड़ी मात्रा में आवश्यकता को कम किया जा सकता है। तीसरे, देश में चुनाव एक साथ कराने से अभिशासन पर अधिक ध्यान दिया जा सकता है एवं चौथे विभिन्न स्तर के चुनाव एक साथ कराने से चुनाव में वोट डालने वाले नागरिकों की संख्या में निश्चित ही वृद्धि होती है क्योंकि नागरिकों को मालूम होता है कि पांच साल में केवल एक बार ही वोट डालना है अतः वह अन्य कार्यों को दरकिनार करते हुए अपने वोट डालने के अधिकार का उपयोग करना पसंद करता है। इसी प्रकार यदि कोई नागरिक किसी अन्य नगर यथा दिल्ली में कार्य कर रहा है और उसके मुंबई का निवासी होने चलते उसे वोट डालने के लिए मुंबई जाना होता है तो पांच वर्ष में एक बार तो इस महान कार्य के लिए वह दिल्ली से मुंबई आ सकता है परंतु पांच वर्षों में पांच बार तो वह दिल्ली से मुंबई नहीं जा पाएगा। इसके अलावा लोकसभा, विधानसभाओं, स्थानीय निकायों एवं पंचायतों के चुनाव अलग अलग होने से विभिन्न पार्टियों के पदाधिकारी, इनमें केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों के मंत्री आदि भी शामिल रहते हैं, अपना सरकारी कार्य छोड़कर चुनाव प्रचार के लिए अपना समय देते हैं। जबकि, यह समय तो उन्हें देश एवं प्रदेश की सेवा में लगाना चाहिए। इससे देश में अभिशासन की गुणवत्ता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।

वन नेशन वन इलेक्शन के लिए गठित उक्त विशेष समिति ने यह सलाह दी है कि शुरुआत में लोकसभा एवं समस्त प्रदेशों की विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा सकते है। यदि ऐसा होता है तो यह भी सही है कि देश में लोकसभा एवं विधान सभा चुनाव एक साथ कराने के लिए संसाधनों की भारी मात्रा में आवश्यकता पड़ेगी, इसका हल किस प्रकार निकाला जाएगा इस पर भारतीय संसद में विचार किया जा सकता है। साथ ही, भारत में 6 राष्ट्रीय दल, 54 राज्य स्तरीय दल एवं 2000 से अधिक गैर मान्यता प्राप्त दल हैं जिनके बीच में सामंजस्य स्थापित करने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही, भारत में अंतिम बार लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनाव एक साथ 1960 के दशक में कराए गए थे। आज भारतीय नागरिकों को भी शिक्षित करने की आवश्यकता होगी कि लोकसभा, विधान सभाओं एवं स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ किस प्रकार कराए जा सकते हैं ताकि उन्हें वोट डालने में किसी प्रकार की परेशानी नहीं हो। इन समस्याओं का हल भारतीय संसद में चर्चा के दौरान निकाला जा सकता है। यदि किसी कारण से केंद्र में लोकसभा अथवा किसी प्रदेश में विधानसभा पांच वर्ष की समय सीमा के पूर्व ही गिर जाती है तो लोकसभा अथवा उस प्रदेश की विधान सभा के चुनाव शेष बचे हुए समय के लिए पुनः कराए जा सकते हैं, ऐसे प्रावधान को कानूनी रूप प्रदान दिया जा सकता है। इससे विभिन्न राजनैतिक दलों के सांसदों एवं विधायकों पर भी यह दबाव रहेगा कि वे लोकसभा अथवा विधानसभा को समय पूर्व भंग कराने अथवा गिराने का प्रयास नहीं करें।वन नेशन वन इलेक्शन के सम्बंध में कुछ संशोधन तो देश के वर्तमान कानून में करने ही होंगे और फिर पूर्व में भी विभिन्न विषयों पर अलग अलग खंडकाल में (समय समय पर) 100 बार से अधिक संशोधन कानून में किए ही जा चुके हैं।

यह तर्क भी सही नहीं है कि देश में एक साथ चुनाव कराने से भारत के नागरिक केंद्र एवं राज्यों में एक ही राजनैतिक दल की सरकार चुनने को प्रोत्साहित होंगे। परंतु, भारत का नागरिक अब पूर्ण रूप से परिपक्व एवं सक्षम हो चुका है कि वह लोकसभा एवं विधान सभा चुनाव एक साथ कराए जाने पर केवल एक ही दल की सरकार को नहीं चुनेगा। देश में ऐसा कई बार हुआ है कि लोकसभा एवं विधान सभा के एक साथ हुए चुनवा में लोकसभा में एक दल के सांसद को चुना गया है एवं विधान सभा में किसी अन्य दल के विधायक को चुना गया है।

भारत आज एक विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है, ऐसे समय में भारत को अपने संसाधनों का उत्पादक कार्यों के लिए उपयोग करना आवश्यक होगा न कि रक्षा एवं सरकारी कर्मचारी देश में बार बार हो रहे चुनाव के कार्यों में व्यस्त रहें। कुल मिलाकर वन नेशन वन इलेक्शन, देश के हित में उठाया जा रहा एक मजबूत कदम है। इस विषय पर, भारत के हित में, देश के समस्त राजनैतिक दलों को गम्भीरता से विचार कर इस नियम को भारत में लागू किया जाना चाहिए।

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