एक देश एक चुनाव – लाभ अनेक

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी तीसरी पारी में राष्ट्रहित के संकल्पों को पूर्ण करने के लिए लगातार आगे बढ़ रहे हैं, इसी कड़ी के अंतर्गत उन्होंने बहु प्रतीक्षित “एक देश -एक चुनाव” का संकल्प पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण पहल कर दी है। लगातार तीसरी बार देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के 100 दिन पूर्ण होने के अवसर पर मोदी कैबिनेट ने, “एक देश एक चुनाव” पर उठ रहे प्रश्नों पर विराम लगा दिया है। इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले से अपना सन्देश देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने “एक देश एक चुनाव“ पर आगे बढ़ने के संकेत दिये थे और अब कैबिनेट ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद समिति की अनुशंसा को मंजूरी प्रदान कर दी है।

एक देश एक चुनाव, परिकल्पना को कैबिनेट की मंजूरी प्राप्त हो जाने के बाद राजनैतिक दलों के बीच सहमति बनाने की जिम्मेदारी रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, किरन रिजिजू व कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को दी गई है। एक देश एक चुनाव को लेकर गठित समिति ने इस विषय पर सभी प्रमुख राजनैतिक दलों से विचार विमर्श किया था जिनमें 32 राजनैतिक दल इसके समर्थन में और 15 विरोध में थे। अब इस बात की प्रबल संभावना बन गई है कि संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस हेतु आवश्यक संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत किये जाएंगे और ऐसा माना जा रहा है कि सरकार ने इन सभी विधेयको को पारित करवाने के लिए प्रबंध भी लगभग कर लिया है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में वर्ष 1967 तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते रहे हैं उस समय संपूर्ण भरत मे कांग्रेस व उसके समर्थित दलों की सरकारें ही राज्य विधानसभाओें में हुआ करती थीं। चुनाव आयोग ने वर्ष 1982 में फिर उसके बाद जस्टिस बी. बी. जीवन की अध्यक्षता वाले विधि आयोग ने एक देश एक चुनाव की सिफारिश की थी। वर्ष 2018 में जस्टिस बी एस चौहान की अध्यक्षता वाले विधि आयोग ने एक ड्राफ्ट रिपोर्ट में एक साथ चुनाव की बात करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 83, 85,172, 174 और 356 में संशोधन करने होंगे। वर्ष 2015 में संसद की स्थायी समिति ने भी दो चरणों में लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव कराने की सिफारिश की थी।

राजनैतिक दृष्टिकोण से यह बहुत ही हैरान करने वाली बात है कि कांग्रेस पूर्वज पहले तो एक देश एक चुनाव का समर्थन कर रहे थे किंतु जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने एक कदम आगे बढ़ाया है और उसे लागू करने के लिए पूर्णता की ओर बढ़ रही है तब से कांग्रेस व उसके सहयोगी दल जिन्होंने इंडी गठबंधन बनाया है एक देश एक चुनाव की व्यवस्था का विरोध करने लगे हैं। सभी राजनैतिक दलों का मानना है कि भारत में एक देश एक चुनाव की व्यवस्था अलोकतांत्रिक,असंवैधानिक तथा असंभव है। कई नेता इसे प्रधानमंत्री व भाजपा सरकार का मात्र एक शिगूफा कह रहे हैं । एक देश एक चुनाव की नीति का क्षेत्रीय दलों द्वारा विरोध किए जाने का एक बड़ा कारण यह भी है कि उन्हें आशंका है कि भारत में यह प्रणाली लागू हो जाने के बाद उनका अस्त्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। भारत में कई दलों का अस्तित्व बार बार होने वाले चुनावों के कारण ही संभव है।

वर्ष 1967 के बाद कतिपय राजनैतिक कारणों से कई विधानसभाओं को भंग करना पड़ा और फिर बीच में लम्बे समय तक केंद्र व राज्यों की राजनीति में अस्थिरता का वातावरण रहा । वर्तमान समय में भारत में दो लोकसभा चुनावों के बीच पांच सालों में कहीं न कहीं विधानसभा चुनाव होते रहते हैं जिसके कारण बार- बार आचार संहिता लगती है और जनहित व विकास के कार्यक्रम प्रभावित होते हैं। भारत में नगर निगम, नगर निकाय और ग्राम पंचायतों के चुनाव भी हर वर्ष, हर माह कहीं न कहीं होते ही रहते हैं और बीच- बीच में उपचुनाव भी आते रहते हैं और विकास कार्यों को बाधित करते हैं।

बार -बार चुनाव होने के कारण राजनैतिक दलों व नेताओं का खर्च भी भी बहुत बढ़ा रहता है जिसके कारण आर्थिक भ्रष्टाचार को बल मिल मिलता है। राजनैतिक दलों के नेता व उनके सामर्थक अपने समाज व मतदाताओ को लुभाने के लिए अनाप -शनाप बयानबाजी करते हैं जिसके कारण सामाजिक वातावरण दूषित होता है। धार्मिक वैमनस्यता भी गहराती है।

बार- बार चुनाव होने के कारण आदर्श आचार संहिता लागू होती है जिसके कारण सरकार आवश्यक नीतिगत निर्णय नहीं ले पाती और विभिन्न योजनाओं को लागू करने में समस्या आती है। यदि देश में एक ही बार में लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराये जायें तो आदर्श आचार संहिता कुछ ही समय तक लागू रहेगी।एक देश एक चुनाव की व्यवस्था लागू हो जाने के बाद चुनावों में होने वाले भारी खर्च में कमी आयेगी। इससे काले धन और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने में सहायता मिलेगी।एक साथ चुनाव कराने से सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षाबलों को बार -बार चुनावी ड्यूटी पर लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। देश में एक साथ चुनाव कराये जाने से देश की जीडीपी में लगभग 1.5 प्रतिशत वृद्धि का भी अनुमान लगाया जा रहा है। आर्थिक विशेषज्ञों का मत है कि “एक देश एक चुनाव से ” सरकारें सही मायने में कम से कम साढ़े चार वर्ष विकास कार्य करा पायेंगी। अभी लगातार अलग -अलग होने वाले चुनावों और आचार संहिता के कारण सरकारों के हाथ 12 -15 महीने बंधे रहते हैं।

एक देश -एक चुनाव पर रामनाथ कोविंद समिति ने कई महत्वपूर्ण सिफारिशें की हैं जिसके अंतर्गत यह योजना देश में दो चरणों में लागू की जायेगी। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव करायें जायें और दूसरे चरण में नगरीय निकायों और पंचायतों के चुनाव कराये जायें लेकिन इन्हें पहले चरण के 100 दिन के भीतर ही कराया जाये । लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होते ही राज्यों की विधानसभा का चुनाव कराया जाये अगर किसी विधानसभा का चुनाव अपरिहार्य कारणों से एक साथ नहीं हो पाता है तो बाद की तिथि में होगा किंतु कार्यकाल उसी दिन समाप्त होगा। यदि किसी राज्य की विधानसभा बीच में ही भंग हो जाती है तो नया चुनाव विधानसभा के बाकी के कार्यकाल के लिए ही कराया जाये। सभी चुनावों के लिए एक समान मतदाता सूची तैयार की जाये। इसे अमल में लाने के लिए एक कार्यान्व्यन समूह का गठन किया जाये।कोविंद समिति ने 18 संविधान संशोधनों की सिफारिश भी की है जिसमें से अधिकांश में राज्य विधानसभाओं के अनुमोदन की जरूरत नहीं होगी जबकि समान मतदाता सूची और समान मतदाता पहचान पत्र से जुड़े कुछ प्रस्तावित बदलावों के लिए आधे राज्यों द्वारा अनुमोदन की जरूरत होगी। मोदी सरकार का दावा है कि समिति की परामर्श प्रक्रिया के दौरान 80 प्रतिशत युवा एक देश व एक चुनाव का समर्थन किया था।

वर्तमान में विपक्ष केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उनकी नीतियों का विरोध करने के लिए ही एक देश -एक चुनाव को लोकतंत्र व संविधान विरोधी बता रहा है जबकि वास्तविकता यह है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 1951 से 1967 तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते ही रहे हैं औैर तब कांग्रेस का ही युग था अतः कांग्रेस को यह भी स्पष्ट करना होगा कि तब देश में क्या संविधान विरोधी सरकार चल रही थी ? उचित तो यही है की सभी विरोधी दलों को एक साथ आकर उन विषयों का समर्थन करना चाहिए जो एक राष्ट्र के रूप में भारत के हित में है और जो भारत को विकसित राष्ट्र की दिशा में आगे बढ़ने में सहायक हैं ।

Silent Bastar’s Roar at Jantar Mantar

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September 19, New Delhi: A group of 50 victims of Naxal violence from Bastar, Chhattisgarh, held a silent protest at Jantar Mantar. The demonstration began at Kartavya Path, and by noon, the group reached Jantar Mantar. Under the banner of the Bastar Shanti Samiti, many of the protestors are victims of Naxalite violence, some of whom have lost limbs in these brutal attacks. They have come to Delhi demanding justice and peace for the Bastar region.

Manguram Kawade, the coordinator of the Bastar Shanti Samiti leading the protest, said, “We have been suffering from Naxalite violence for decades. Many villages in our area have been affected by this violence, and due to Naxalism, the entire Bastar region is far from any development. Our demand is that the voice of Bastar be heard and that the people there be freed from this Naxal violence.”

Gudduram Lekam, from Kachilwar village in Bijapur district of Bastar, is part of the group and shared his story with the media. He said, “On March 11, 2024, I was returning home after picking chilies from the fields when I stepped on a landmine planted by Naxals in the forest. The bomb exploded, and I lost my leg in the incident. I don’t want anyone else to suffer the same fate, so it is crucial to eliminate Naxalism from our region. This is why we have come to protest here today.”

The participants, all victims of Naxal violence, carried banners and placards during the protest. These placards bore slogans like “I am Silent Bastar, but Today I Speak!” expressing their pain and determination.

According to the Bastar Shanti Samiti, these protestors plan to use various platforms in Delhi to raise awareness, so that people in metropolitan cities like Delhi and across other major states can understand their plight and hear their voices.

Agra, a city without safe PavementsPedestrians at risk

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Agra : Agra is a city without safe and convenient pathways or pavements for pedestrians. In past few years there have been so many accidents of foot marchers and cyclists crushed to death by speeding trucks or buses and cars.

The lack of safe and convenient pathways and pavements poses a serious threat to pedestrians. Tourists and locals alike face constant danger from reckless drivers and attacks by stray animals due to the absence of well-marked pathways in busy markets and around tourist attractions. The Agra Municipal Corporation must prioritize the safety and convenience of pedestrians who should be able to move freely and without fear in their own city.

It is essential for the authorities to address this issue urgently to prevent further harm to individuals on foot. Pedestrians deserve better infrastructure and protection to ensure their well-being and enjoyment of the city. Taking action to improve pathways and pavements will not only enhance the overall pedestrian experience but also contribute to a safer and more vibrant urban environment in Agra.
Not only Agra, neighbouring cities of Mathura and Vrindavan are struggling to provide safe and accessible pathways for its residents and millions of tourists and pilgrims. The lack of secure pavements and cycle tracks has become a major concern, with pedestrians and cyclists facing numerous hazards on the city’s roads. It’s time for the municipal bodies to take action and construct safe pathways, adhering to the guidelines of the Indian Road Congress, which recommend a width of 1.5 to 2.5 meters.

The city’s exponential growth in human and motor vehicle population over the past 25 years has significantly compromised pedestrian and cyclist safety. Residents and visitors alike face daily challenges from stray animals, inadequate parking, and pollution from heavy vehicle emissions. Each year, hundreds of pedestrians and cyclists fall victim to speeding vehicles, with many more injured or intimidated.

Green activists have been advocating for a more pedestrian and cyclist-friendly Agra, highlighting the need for safe walking spaces and cycle tracks. The Yamuna Kinara road, a picturesque stretch running from the Taj Mahal to Water Works, is a prime example of a route that could be transformed into a safe and enjoyable walking space. MG Road, the lifeline of the city, does not have safe pavements in most stretches. Even new colonies and layouts have not made provision for pedestrian mobility.
Environmentalist Dr devashish bhattacharya laments, “Sadly, the Agra municipal corporation does not have a clear policy on pavements. In most areas that once had pavements, the space has been usurped by encroachers, illegal parking slots have been created, or the space is used by cows and buffaloes.”

Activist Padmini Iyer says, “Crowded markets like Hospital Road, Raja Ki Mandi, or even Sanjay Place have no pathways for pedestrians. In some bazaars, shop owners have extended their reach, denying free mobility to the humble foot marchers. In most European cities, enough safe space is provided for pedestrians and cyclists, but our Agra thinks it’s a waste of space.”

What can be done? Protected intersections can be designed to prioritize pedestrians and cyclists, with features like bikeway setbacks, corner islands, and pedestrian islands. Raised crossings can be created to give physical priority to pedestrians and cyclists, forcing drivers to slow down. Compact corners can be implemented to reduce crosswalk distances and minimize pedestrian exposure to moving vehicles. A comprehensive mobility plan focusing on human needs rather than vehicles and accommodation is essential.

By implementing these changes, Agra can become a safer and more enjoyable environment for both residents and tourists. The city can preserve its historical charm while addressing modern challenges, making it an attractive destination for visitors from around the world. The Agra Corporation must take immediate action to address the city’s mobility issues. This includes clearing encroachments and repairing pavements, constructing safe cycle tracks and walking paths, implementing traffic management systems that prioritize pedestrians and cyclists, and coordinating with multiple departments to develop a comprehensive mobility plan. It’s time for Agra to prioritize the safety and well-being of its citizens and visitors. By doing so, the city can reclaim its reputation as a vibrant and welcoming destination for all.

ब्याज दरों को कम करने का चक्र हुआ प्रारम्भ

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अमेरिकी फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष जर्मी पोवेल ने दिनांक 19 सितम्बर 2024 को यूएस फेड दर में 50 आधार बिंदुओं की कमी करने की घोषणा करते हुए यूएस फेड दर को 5.5 प्रतिशत से घटाकर कर 5 प्रतिशत कर दिया है। 4 वर्ष पूर्व पूरे विश्व में फैली कोविड महामारी के खंडकाल के पश्चात मुद्रा स्फीति की दर में, पिछले 4 दशकों में, सबसे अधिक वृद्धि दर्ज हुई थी और मुद्रा स्फीति की दर को नियंत्रण में लाने के उद्देश्य से विकसित एवं अन्य कई देश ब्याज दरों को लगातार बढ़ा रहे थे ताकि उत्पादों की मांग बाजार में कम हो तथा उत्पादों की आपूर्ति इस मांग के अनुरूप हो जाए। पिछले 4 वर्षों के दौरान यूएस फेड दर 0 प्रतिशत से बढ़कर 5.50 प्रतिशत तक पहुंच गई थी परंतु अब 4 वर्ष पश्चात यूएस फेड दर को कम करने की घोषणा की गई है।

कई विकसित एवं विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाएं अमेरिका में लागू ब्याज दरों से अत्यधिक प्रभावित होती हैं। जब भी अमेरिका द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि की घोषणा की जाती है तो अन्य देशों में अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों के संस्थानों एवं नागरिकों द्वारा किया गया निवेश इन देशों से निकलकर अमेरिका में वापिस आने लगता है क्योंकि अमेरिकी वित्तीय संस्थानों एवं अमेरिकी सरकार द्वारा जारी किए जाने बां ड पर उन्हें आकर्षक ब्याज दर मिलने लगती है। इसके विपरीत जब भी अमेरिका द्वारा यूएस फेड दर में कमी की घोषणा की जाती है तो अन्य विकासशील देशों में अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों के संस्थानों एवं नागरिकों का निवेश बढ़ने लगता है क्योंकि इन्हें अमेरिकी वित्तीय संस्थानों एवं सरकार द्वारा जारी किए जाने बांड पर तुलनात्मक रूप से कम आय होने लगती है। इसी विशेष कारण के चलते कई देशों को अमेरिकी फेड रिजर्व के निर्णय को ध्यान में रखते हुए ही अपने देश में भी ब्याज दरों को कम अथवा अधिक करना होता है ताकि उनके देश में अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों के संस्थानों एवं नागरिकों द्वारा किया जा रहा निवेश बहुत अधिक प्रभावित नहीं हो।

चूंकि अब यूएस फेड दर में 50 आधार बिंदुओं की कमी की गई है अतः अन्य कई देश भी ब्याज दरों में कमी की घोषणा कर सकते हैं। इससे पूरे विश्व में ही ब्याज दरों को कम करने का चक्र प्रारम्भ हो सकता है। हालांकि इसकी शुरुआत यूरोपीयन देशों एवं ब्रिटेन द्वारा पूर्व में की जा चुकी है तथा अब विकासशील देश भी ब्याज दरों में कमी की घोषणा शीघ्र ही कर सकते हैं। भारत में भी हालांकि पिछले कुछ समय से मुद्रा स्फीति की दर लगातार नियंत्रण में बनी हुई है परंतु भारतीय रिजर्व बैंक यदि पूर्व में ही ब्याज दरों में कमी की घोषणा करता तो भारत में अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों के संस्थानों द्वारा अमेरिकी डॉलर में किये गए निवेश के भारत से निकलने की सम्भावना बढ़ जाती। आज विश्व के कई देश, विशेष रूप से आर्थिक क्षेत्र में, आपस में इतने अधिक जुड़ चुके हैं कि किसी एक देश के आर्थिक क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन अन्य देशों के आर्थिक क्षेत्र को भी प्रभावित करते हैं।

अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा यह भी कहा गया है कि केलेंडर वर्ष 2024 में यूएस फेड दर में 25 आधार बिंदुओं की दो बार और कमी की घोषणा की जा सकती है तथा केलेंडर वर्ष 2025 में 100 आधार बिंदुओं की कमी की जा सकती है। इस प्रकार यूएस फेड दर घटकर 3.50 प्रतिशत तक नीचे आ सकती है। यूएस फेड दर में 50 आधार बिंदुओं की कमी की घोषणा के साथ ही 10 वर्षों के लिए जारी अमेरिकी बांड की यील्ड घटकर 3.73 प्रतिशत के स्तर पर आ गई है एवं डॉलर इंडेक्स भी 100.37 के निचले स्तर पर आ गया है। अब अमेरिकी डॉलर पर अंतरराष्ट्रीय बाजार में दबाव बढ़ेगा जिससे अमेरिकी डॉलर का अवमूल्यन हो सकता है। इससे अमेरिकी बाजारों से अब पूंजी निकलकर अधिक आय की तलाश में अन्य इमर्जिंग देशों के शेयर बाजार में जाएगी। इसका सबसे अधिक लाभ भारत को हो सकता है क्योंकि भारत पूर्व में ही MSCI Emerging Market IMI (Investible Market Index) Index में चीन से आगे निकलकर प्रथम स्थान पर आ गया है। इस इंडेक्स में भारत के शेयरों का भार चीन के शेयरों के भार से अधिक हो गया है। विश्व के वित्तीय संस्थान, सोवरेन फंड, पेंशन फंड एवं अन्य निवेशक MSCI के इंडेक्स पर अधिक विश्वास करते हैं एवं अपने निवेश भी इस इंडेक्स में शामिल शेयरों में करते हैं।

दूसरे, अब बहुत सम्भव है कि भारतीय रिजर्व बैंक भी रेपो दर में कमी की घोषणा शीघ्र ही करे क्योंकि अब अमेरिका में अधिक ब्याज दरों का दौर समाप्त हो रहा है। अमेरिका में बढ़ी हुई ब्याज दरों का विपरीत प्रभाव न केवल भारतीय रुपए पर हो रहा था बल्कि अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों से भारत में अमेरिकी डॉलर में होने वाले विदेशी निवेश पर भी दबाव बना हुआ था। अब अमेरिका में यूएस फेड दर के कम करने से भारतीय रुपए पर दबाव एवं भारत से विदेशी निवेश के बाहर जाने का डर भी कम हो जाएगा। साथ ही, यदि भारत में भी ब्याज दरों को कम करने का दौर शुरू होता है तो इससे भारतीय उद्योग जगत को फायदा होगा और उनकी लाभप्रदता में वृद्धि होगी जो विदेशी निवेश को भारत में आकर्षित करने में सहायक होगी। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार पहिले से ही अपने उच्चत्तम स्तर 68,900 करोड़ अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया है। अब बदली हुई परिस्थितियों में भारत का शेयर बाजार यदि और अधिक विदेशी निवेश की राशि भारत में आकर्षित करता है तो भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 100,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर सकने की क्षमता रखता है। तीसरे, भारत में ब्याज दरों के कम होने से उद्योग जगत द्वारा भारत में उत्पादित वस्तुओं की लागत भी कम हो सकती हैं और भारत में निर्मित उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी बन सकेंगे, इससे भारतीय उत्पादों के निर्यात में वृद्धि होने की सम्भावना बन सकेगी। चौथे, अमेरिकी बाजार में ब्याज दरों के कम होने से विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्यरत बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की लाभप्रदता में वृद्धि के चलते इन कम्पनियों द्वारा नवाचार के लिए रीसर्च पर खर्च में बढ़ौतरी की जा सकती है, जिसका सीधा सीधा लाभ भारत में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्य करने वाली कम्पनियों को होने जा रहा है।

आम जनता द्वारा बैकों से लिए गए ऋण की किश्तें भी अब कम हो सकती हैं इससे विशेष रूप से मध्यमवर्गीय परिवारों द्वारा खर्च करने योग्य राशि में वृद्धि होगी जो विभिन्न उत्पादों की मांग निर्मित करने में सहायक होगी। कुल मिलाकर, अब यह कहा जा सकता है कि अमेरिका में यूएस फेड दर के कम करने का अच्छा प्रभाव आगे आने वाले समय में विकसित देशों एवं भारत सहित विश्व की अन्य इमर्जिंग अर्थव्यवस्थाओं पर भी दिखाई देने लगेगा।

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