विभाजन विभीषिका : हिन्दू नरसंहार की त्रासदी

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~कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल

दिल्ली। 15 अगस्त सन् 1947 को भारत की स्वाधीनता के साथ ही बंटवारे के चलते जो विभीषिका झेलनी पड़ी ‌, उसकी अन्तहीन त्रासदी ने समूची मानवता को दहला कर रख दिया था। अक्सर अतीत के उन स्याह अंधकारमय-वीभत्स और क्रूरतम दौर के सामान्यीकरण ( नार्मलाइजेशन) का दौर चलता है। यदि पूर्व के क्रूर बर्बर दौर की चर्चा हो तो उसे साम्प्रदायिक और हिन्दू-मुस्लिम करार कर दिया जाता है। मक्कारी भरे साम्प्रदायिक सौहार्द के तराने गाने की कवायद की जाने लगती है। लेकिन क्या यह सच नहीं है कि धार्मिक आधार ( मुस्लिम देश) के रूप में ही भारत का बंटवारा हुआ है। फिर बंटवारे के समय से लेकर वर्तमान तक पाकिस्तान में गैर मुस्लिमों के साथ क्या हुआ और क्या हो रहा है ? क्या यह किसी से छिपा है? वहां हिन्दुओं पर अत्याचार करने वाले कौन लोग थे ?आखिर! वे कौन लोग हैं जो 1947 से लेकर आज तक पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों पर अत्याचार कर रहे हैं। इस पर चर्चा करना क्या हिन्दू-मुस्लिम करना होता है? पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दुओं (अल्पसंख्यकों) का नृशंस नरसंहार करने वाले, कन्वर्जन कराने वाले, गैर मुस्लिमों स्त्रियों का अपहरण करने वाले, बलात्कार करने वाले जाहिल आतंकी कौन हैं? फिर जिन्हें लगता हो विभाजन विभीषिका के क्रूर पन्नों को पलटना हिन्दू-मुस्लिम करना है तो उन्हें उन लोगों से मिलना चाहिए। जो कई पीढ़ियों से बना अपना घर-बार, दौलत-शोहरत छोड़ने के लिए मजबूर हो गए। जिनके कत्लेआम की सामूहिक घोषणा कर दी गई। फिर दर-दर भटकते , जीवन और मौत के बीच जूझते हुए वे किसी कदर भारत आए। वर्षों तक विस्थापितों की तरह कैंपों में रहे। कोई असल दर्द उनसे पूछो बंटवारे के समय कहीं रास्ते में ही उनके परिवारजनों की हत्या कर दी गई। स्त्रियों की इज्जत लूट ली गई। बच्चों महिलाओं बुजुर्गों के साथ अत्याचारों की पराकाष्ठा पार कर दी गई। जरा! याद करो कुर्बानी की तर्ज़ पर जरा! याद करो हिन्दू नरसंहार की कहानी भी सुनना और सुनाना आवश्यक है। उस वक्त एक ही झटके में भारत के बंटवारे के साथ ही पाकिस्तान के हिस्से में अनगिनत लोगों पर मुस्लिम आतंकियों ने उस वक्त कहर ढाया। आखिर! वह कैसी मानसिकता थी? जो हर हाल में हिन्दुओं ( सिख, जैन , बौद्ध, सिंधी, पारसी) का कत्लेआम कर रही थी। जमीन-जायदाद से लेकर स्त्रियों की आबरु लूट रही थी। ट्रेनों से भर भरकर हिन्दुओं की लाशें आ रही थी। जबकि बंटवारे के समय भारत के हिस्से में मुस्लिम पूरी तरह सुरक्षित थे। उस निर्मम-भयावह दौर की स्मृतियां भारत के अतीत में दर्ज़ हैं जिनको याद किया जाना आवश्यक है। फिर चाहे वो चीजें किसी के चश्मे के हिसाब से फिट हों याकि अनफिट। लेकिन राष्ट्र की एकता के लिए सत्य को देखना ही पड़ेगा और उसका मुखर वाचन करना पड़ेगा। भारत सरकार ने इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 14 अगस्त 2021 को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाने की घोषणा की थी। “उस वक्त उन्होंने कहा था कि -देश के बंटवारे के दर्द को कभी भुलाया नहीं जा सकता। नफरत और हिंसा की वजह से हमारे लाखों बहनों और भाइयों को विस्थापित होना पड़ा और अपनी जान तक गंवानी पड़ी। उन लोगों के संघर्ष और बलिदान की याद में 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के तौर पर मनाने का निर्णय लिया गया है।”

केन्द्र सरकार ने तो 2021 में विभाजन विभीषिका दिवस घोषित कर दिया। लेकिन क्या इतिहास के वे पन्ने सही ढंग से जन-जन तक पहुंचे हैं? यह प्रश्न प्रत्येक देशवासी को ख़ुद से पूछना पड़ेगा। क्योंकि जो अपने इतिहास से सबक नहीं लेते वे अक्सर मिट जाया करते हैं। भारत के इतिहास पर विभाजन की विभीषिका एक ऐसे ही क्रूर-वीभत्स- भयावह दौर के रूप दर्ज हुई जिसकी मर्मांतक चीखें अब भी सुनाई देती हैं। फ्लैशबैक के सहारे तथ्यात्मक ढंग से बंटवारे के दौर पर चलेंगे। सत्य और तथ्य का अवलोकन करेंगे। भारत विभाजन के उस दौर में अंग्रेज भारत विभाजन के लिए किस प्रकार से अपनी चाल चल रहे थे। मुस्लिम लीग किस प्रकार से दंगों के आतंकी क्रूर चेहरे के रूप में उभर रही थी। हम इन सब पर चर्चा करेंगे। ठीक उसी समय पंडित जवाहरलाल नेहरू, भारत विभाजन के लिए आए माउंटबेटन और उसकी पत्नी एडविना के साथ 10 मई 1947 से कई दिनों तक शिमला में पार्टियां कर रहे थे। इतना ही नहीं माउंटबेटन ने एलिजाबेथ द्वारा दी गई महंगी कार ‘रोल्स रॉयल्स ‘ पंडित नेहरू को दी थी। नेहरू इसी में यात्राएं करते थे। फिर शिमला में माउंटबेटन -नेहरू और एडविना की छुट्टियों के दौरान ही माउंटबेटन के भारत विभाजन संबधी मसौदे को पंडित नेहरू ने स्वीकार कर लिया था। इससे संबंधित घटनाक्रमों का सविस्तार वर्णन तत्कालीन ब्रिटिश पत्रकार और इतिहासकार लियोनार्ड मोसली ने अपनी पुस्तक ‘ द लास्ट डेज ऑफ द ब्रिटिश राज’ में किया है। यानी भारत विभाजन के लिए मुस्लिम लीग और जिन्ना तो उतावले थे ही साथ ही पंडित नेहरू की भी भूमिका संदिग्ध और विभाजन के पक्ष में ही स्पष्ट प्रतीत होती है।

उस समय कांग्रेस कार्यसमिति द्वारा भारत विभाजन की माउंटबैटन योजना को स्वीकार करने की तैयारियों का महात्मा गांधी ने भी विरोध किया था। लेकिन उनकी आगे नहीं चली और 3 जून 1947 को पंडित नेहरू की अगुवाई में कांग्रेस ने अंग्रेजों के विभाजन प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। उन्होंने इस सन्दर्भ में मनु गांधी से 1 जून 1947 को चर्चा की थी। मनु को अपने दिल की बात कहते हुए उन्होंने बताया— “आज मैं अपने को अकेला पाता हूँ। लोगों को लगता है कि मैं जो सोच रहा हूँ वह एक भूल है। भले ही मैं कांग्रेस का चवन्नी का सदस्य नहीं हूँ लेकिन वे सब लोग मुझे पूछते है, मेरी सलाह लेते है। आजादी के कदम उलटे पड़ रहे हैं, ऐसा मुझे लगता है। हो सकता है आज इसके परिणाम तत्काल दिखाई न दे, लेकिन हिन्दुस्तान का भविष्य मुझे अच्छा नहीं दिखाई देता। हिन्दुस्तान की भावी पीढ़ी की आह मुझे न लगे कि हिंदुस्तान के विभाजन में गांधी ने भी साथ दिया था।
(गांधी सम्पूर्ण वांग्मय, खंड 88, पृष्ठ 43-44)

तत्पश्चात महात्मा गांधी ने 2 जून 1947 को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक को संबोधित करने के दौरान कहा कि – “मैं भारत विभाजन के सम्बन्ध में कार्यसमिति के निर्णयों से सहमत नहीं हूँ।”
( गांधी सम्पूर्ण वांग्मय, खंड 88, पृष्ठ 53)

ठीक इसी दिन महात्मा गांधी ने एक पत्र लिखकर भी अपना विरोध प्रकट किया,— “भारत के भावी विभाजन से शायद मुझसे अधिक दुखी कोई और न होगा। मैं इस विभाजन को गलत समझता हूँ, और इसलिए मैं इसका भागीदार कभी नहीं हो सकता।”
(गांधी सम्पूर्ण वांग्मय, खंड 88, पृष्ठ 55)

वहीं इसी संदर्भ में माउंटबेटन के प्रेस सलाहकार रहे एलन कैंपबेल-जोहानसन की पुस्तक ‘मिशन विद माउंटबैटन’ से भी गम्भीर तथ्य उभरकर सामने आते हैं। जोहानसन ने पं. जवाहरलाल नेहरू का जिक्र करते हुए लिखा कि — “नेहरु कहते हैं मोहम्मद अली जिन्ना को पाकिस्तान देकर वह उनसे मुक्ति पा लेंगे। वह कहते हैं कि ‘सिर कटाकर हम सिरदर्द से छुट्टी पा लेंगे।’ उनका यह रुख दूरदर्शितापूर्ण लगता था क्योंकि अधिकाधिक खिलाने के साथ-साथ जिन्ना की भूख बढ़ती ही जाती थी।”

जोहानसन की उपरोक्त टिप्पणी से कई प्रश्न उभरते हैं।क्या जवाहरलाल नेहरू के लिए विभाजन सिर्फ एक खेल के रूप में था? क्या उन्होंने जिन्ना से छुटकारा पाने के लिए देश के विभाजन को स्वीकार कर लिया? फिर विभाजन विभीषिका में पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान में लाखों-करोड़ों हिन्दुओं/ सिखों को मरने के लिए छोड़ दिया। आखिर ऐसा क्यों हुआ कि— भारत की स्वतंत्रता का जो स्वप्न असंख्य वीर हुतात्माओं ने देखा, उसे कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने अंग्रेजों के साथ मिलकर नष्ट कर दिया। क्या पंडित नेहरू ब्रिटिश एजेंट के रूप में काम कर रहे थे?अगर नहीं तो नेहरू – माउंटबेटन और एडविना के साथ शिमला क्या करने गए थे?

वहीं विभाजन के समय अंग्रेजों की शब्दावलियों एवं तत्कालीन परिदृश्य से कई पहलू उभरकर सामने आते हैं।उस समय अंग्रेज स्वाधीनता को सत्ता हस्तांतरण के रुप में घोषित कर रहे थे। विभाजन के एकदम निकट इतिहास के सन्दर्भ को देखें तो 20 फरवरी 1947 को ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स में भारत की स्वतंत्रता को लेकर चर्चा हुई थी। तत्पश्चात ठीक इसी दिन ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने कहा था कि – जून 1948 से पहले हिंदुस्तानी सरकार को सत्ता सौंप दी जाएगी। अंग्रेजों ने जिसे ‘डोमेनियन स्टेट’ के रूप में ब्रिटेन के प्रभुत्व पर संचालित करने की योजना बनाई थी। जो आगे चलकर 15 अगस्त 1947 से लेकर 25 जनवरी 1950 तक यानि संविधान लागू होने के पूर्व तक ‘डोमेनियन स्टेट ‘ के रूप में लागू रहा। यह तथ्य भी ध्यान रखा जाने योग्य है कि 15 अगस्त 1947 से लेकर 21 जून 1948 तक लार्ड माउंटबेटन स्वतंत्र भारत के गर्वनर जनरल रहे। इतना ही नहीं गवर्नर जनरल के रूप में लार्ड माउंटबेटन का अनुमोदन पंडित जवाहरलाल नेहरू की अस्थायी सरकार वाली कैबिनेट ने ही किया था।

आगे 14/15 अगस्त 1947 को भारत के विभाजन के साथ ही पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में हिंसा और नरसंहार खुलेआम शुरू हो गया। पाकिस्तान के हिस्से में गैर मुस्लिमों की संपत्तियां तो लूटी ही जा रही थीं। इसके साथ ही महिलाओं की इज्ज़त लूटी जा रही थी। बलात्कार किया जा रहा था। मासूमों तक को मौत के घाट उतारा जा रहा था। हिन्दुओं को काफ़िर कहकर खुलेआम उनकी हत्या के लिए खूंखार मुस्लिम आतंकियों की भीड़ चौतरफ़ा आतंक मचा रही थी। वर्षों से अपनी संपत्ति और अपनी जमीन के मालिक बेघर किए जा रहे थे। उनकी दौलत-शोहरत और इज्जत सबकुछ लूटी जा रही थी। विस्थापन के लिए सैकड़ों किलोमीटर की लाइनें आम बात हो चुकीं थी। उस समय विभाजन के एक निर्णय ने लाखों-करोड़ों लोगों की ज़िन्दगी को मौत और आतंक के साये में बदल दिया था। पाकिस्तान से हिन्दुस्तान के लिए भागते लोग अपनी जमीं और आसमां नाप रहे थे लेकिन किस पल क्या हो जाए इसका कोई भरोसा नहीं था। किन्तु हिन्दुस्तान के हिस्से में मुस्लिम पूरी तरह सुरक्षित थे। जो पाकिस्तान जा रहे थे उन्हें भी कोई समस्या नहीं थी और जो भारत में रुके उन्हें भी नहीं हुई। विभाजन की त्रासदी के शिकार हिन्दू/सिख हुए।

तत्कालीन परिदृश्य में विभाजन विभीषिका के समय जो वीभत्स दृश्य दिख रहे थे उसका अनुमान डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने बहुत पहले लगा लिया था। उन्होंने ‘पाकिस्तान ऑर द पार्टीशन ऑफ इंडिया’ किताब (1945) में लिखा था कि – “अगर भारत का विभाजन होता है तो पाकिस्तान में हिन्दुओं और सिखों का भविष्य सुरक्षित नहीं रहेगा।”

इसी संबंध में लियोनार्ड मोसेली अपनी पुस्तक ‘द लास्ट डेज ऑफ द ब्रिटिश राज’ के पृष्ठ 279 पर लिखते हैं— “अगस्त 1947 से अगले नौ महीनों में 1 करोड़ 40 लाख लोगों का विस्थापन हुआ। इस दौरान करीब 6 लाख लोगों की हत्या कर दी गई। बच्चों को पैरों से उठाकर उनके सिर दीवार से फोड़ दिये। बच्चियों का बलात्कार किया गया, बलात्कार कर लड़कियों के स्तन काटे गये। गर्भवती महिलाओं के आतंरिक अंगों को बाहर निकाल दिया गया।”
वहीं विभाजन के मात्र पांच दिन बाद ही यानी 20 अगस्त को माउंटबेटन के प्रेस सलाहकार एलन कैंपबेल-जोहानसन ने अपनी पुस्तक ‘मिशन विद माउंटबैटन’ में लिखा कि — “2 लाख लोग अस्थाई विस्थापित कैम्पों में भरे हुए हैं और ऐसी परिस्थितियों में रह रहे हैं कि किसी भी समय बड़े पैमाने पर हैजे का प्रकोप हो सकता है। ”

इन तमाम तथ्यों के बीच प्रश्न उठता है कि विभाजन को स्वीकार करने वाले पंडित नेहरू उस समय क्या कर रहे थे? क्या वे पाकिस्तान के हिस्से में जीवन और मौत के बीच जूझने वाले हिन्दू/ सिखों के लिए कोई प्रबंध कर रहे थे? पंडित नेहरू जब जान रहे थे और स्वीकार कर रहे थे कि हिन्दुओं का नरसंहार पाकिस्तान सरकार के संरक्षण में ही किया जा रहा। तब वे उस समय पाकिस्तान को सिर्फ़ पत्र ही क्यों लिख रहे थे? क्यों वे ठोस कदम नहीं उठा रहे थे? पंडित नेहरू ने स्वयं देश की प्रोविजनल संसद में 23 फरवरी 1950 को अपने वक्तव्य में कहा था— “पिछले कुछ समय से, पूर्वी पाकिस्तान में लगातार भारत विरोधी और हिंदू विरोधी प्रचार हो रहा है। वहां प्रेस, मंच और रेडियो के माध्यम से जनता को हिंदुओं के खिलाफ उकसाया जा रहा है। उन्हें काफिर, राज्य के दुश्मन और न जाने क्या-क्या कहा गया है। हिन्दुओं के साथ घृणा और हिंसा का ऐसा ही व्यवहार पश्चिमी पाकिस्तान में भी हो रहा है।”

गौर कीजिए यह पंडित नेहरू कब कह रहे हैं वर्ष 1950 में….तब तो 1947 से शुरू हुई विभाजन की त्रासदी का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। वो दौर कितना क्रूर और भयावह रहा होगा।
इतना ही नहीं पंडित नेहरू उस भयावह दौर में भी मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए पूरी तन्मयता के साथ जुटे थे। वे विभाजन का दंश झेलकर किसी तरह भारत आने वाले हिन्दुओं / सिखों के लिए राहत और पुनर्वास की चिंता नहीं कर रहे थे। अपितु पंडित नेहरू ने मंत्रिमंडल की 18 सितम्बर 1947 को हुई बैठक में कहा था कि — भारत से जो मुसलमान पाकिस्तान गए हैं, उनके घरों को पाकिस्तान से आने वाले हिन्दुओं को नहीं दिया जाएगा। यानी स्पष्टतया उनका मानना था कि भारत से मुसलमानों के पलायन के बाद खाली हुए उनके घरों का स्वामित्व और उनमें स्थित संपत्ति किसी अन्य को नहीं दी जाएगी। जबकि पाकिस्तान में स्थिति इसके ठीक उलट थी। हिन्दू नरसंहारों की जो त्रासदी विभाजन विभीषिका के क्रूरतम वीभत्स दौर में देखी गई। उसकी कल्पना मात्र से पीड़ा की कारुणिक ज्वाला ह्रदय में सुलगने लगती है। इसके पीछे इस्लामिक मानसिकता ही है जिसके उदाहरण भारत के अतीत में पड़े हुए हैं। मोपला नरसंहार, बंगाल दंगे, जिन्ना का हिन्दुओं के कत्लेआम वाला ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ सहित देशभर में होने वाले मजहबी दंगे विभाजनकारी मानसिकता के पर्याय के रूप में उभरते रहे हैं। हाल ही में उस बांग्लादेश में जिसे हिन्दुस्तान की सरकार ने बनाया। वहां हिन्दुओं के साथ जो निरंतर होता रहा है और जो हो रहा है। वह विभाजन विभीषिका की एक छोटी नज़ीर पेश करता है। स्पष्ट है जहां-जहां हिन्दू घटे, वे हिस्से देश से कटे।

विभाजन विभीषिका के उस भयावह दौर को याद करने का अभिप्राय है। अपने अतीत को अच्छी तरह से झांकना- उसके कारणों, मानसिकता का पता लगाना। राष्ट्र में नई चेतना जागृत करना। सशक्त – सतर्क – समर्थ बनना। ताकि फिर कोई जिन्ना जैसा आतंकी न पैदा होने पाए और ऐसे विभाजनकारी संपोलों के फन कुचले जा सकें। जो राष्ट्र के विभाजन का मंसूबा पाले हुए हों। क्योंकि सत्ताओं और राजनीति बस से देश नहीं चलता है। देश चलता है सशक्त समाज से, उसकी बौध्दिक चेतना से। देश सबल बनता है – सामूहिक एकत्व के सूत्र के साथ शक्तिमान बनकर राष्ट्रीय चेतना के सतत् जागरण से और राष्ट्र को शक्तिशाली बनाने से। फिर राष्ट्र चलता है अखंडता और एकात्मता के साथ नवीन सृजन और ‘स्व’ बोध के साथ गतिमान रहने से। अतएव आवश्यक है कि समाज में राष्ट्रबोध, शत्रुबोध की भली-भांति जानकारी हो। संकल्पों में दृढ़ता हो। ताकि भारत विभाजन के गुनहगारों से लेकर वर्तमान की विभाजनकारी मानसिकता का समूल नाश किया जा सके। इसी सन्दर्भ में यह स्मरण भी आवश्यक है कि भारत केवल 15 अगस्त 1947 को ही ही नहीं बंटा। बल्कि इसके पहले अफगानिस्तान, नेपाल, ब्रम्हदेश(म्यांमार), भूटान, श्रीलंका, तिब्बत और फिर पाकिस्तान, बांग्लादेश से होते हुए , पीओके, अक्षय चीन( 1962) के क्षेत्र अखंड भारत के मानचित्र से क्रमशः दूर होते चले गए। 1857 में भारतभूमि का जो क्षेत्रफल लगभग 83 लाख वर्ग किलोमीटर था । शनैः-शनैः उसका एक बड़ा भू-भाग 50 लाख वर्ग किलोमीटर गवाँकर देश के पास वर्तमान में 33 लाख वर्ग किलोमीटर का ही क्षेत्रफल बचा हुआ है। कुछ अंतिम प्रश्न देशभक्तों से कि – क्या अखंड भारत आपके ह्रदय में है ? क्या आपको विभाजन विभीषिका के कभी न भरने वाले घाव रुलाते हैं? क्या आपके पूर्वजों की पीड़ा आपको झकझोरती है?

( लेखक साहित्यकार, स्तम्भकार एवं पत्रकार हैं)

विहिप ने बांग्लादेश में हिंदुओं के लिए हेल्प लाइन जारी करते हुए हमलावरों के खिलाफ कठोर कार्यवाही तथा पीड़ितों की सहायतार्थ रखी मांग

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विहिप ने आज एक हेल्प लाइन नंबर + 9111-26103495 जारी किया है जिसके तहत कोई भी व्यथित बांग्लादेशी हिंदू हमसे संपर्क कर सकता है और हम केंद्र सरकार के साथ समन्वय में उनकी हर संभव तरीके से मदद करने का प्रयास करेंगे।

कल्लाकुरिची, तमिलनाडु। विश्व हिन्दू परिषद ने आज एक हेल्प लाइन जारी करते हुए बंग्लादेश में पीड़ित अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, मुआवजा तथा अतिवादियों के विरुद्ध अविलंब कठोर कार्यवाही की मांग की है। उत्तर तमिलनाडु में विश्व हिंदू परिषद की राज्य और जिला कार्यकारिणी की बैठक के दौरान संवाददाताओं से बातचीत करते हुए श्री. आलोक कुमार, विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यक बहुत चुनौतीपूर्ण समय से गुजर रहे हैं। उन पर लक्षित हमले हुए हैं जिनमें वीभत्स हत्याओं, अत्याचारों और उनके पूजा स्थलों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और घरों में तोड़फोड़ की गई है।

उन्होंने यह भी कहा कि हमने बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार श्री मुहम्मद यूनुस का बयान देखा है जिसमें अल्पसंख्यकों के खिलाफ शत्रुता को समाप्त करने का आह्वान किया गया है और अगर यह नहीं रोका गया तो वह इस्तीफा दे देंगे। हम उम्मीद करते हैं कि बांग्लादेश इस बात पर कायम रहेगा।

श्री आलोक कुमार ने यह भी कहा कि विहिप ने यह भी देखा है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने श्री मुहम्मद यूनुस को अपने पहले संदेश में बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर जोर दिया था। हम केवल यह उम्मीद कर सकते हैं कि उनकी सलाह पर भी ध्यान दिया जाएगा।

बांग्लादेशी हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के बीच शांति और विश्वास की बहाली के लिए, विहिप की मांग है कि

1. बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित किया जाए,

2. उन लोगों के परिवारों को मुआवजा दिया जाए जहां परिवार के किसी सदस्य की हत्या कर दी गई हो या उन्हें नुकसान पहुंचाया गया हो, और;

3. दोषी व्यक्तियों को कानून के अनुसार कानून के दायरे में लाया जाए, मुकदमा चलाया जाए और दंडित किया जाए।

विहिप ने आज एक हेल्प लाइन नंबर + 9111-26103495 जारी किया है जिसके तहत कोई भी व्यथित बांग्लादेशी हिंदू हमसे संपर्क कर सकता है और हम केंद्र सरकार के साथ समन्वय में उनकी हर संभव तरीके से मदद करने का प्रयास करेंगे।

उन्होंने कहा कि हम बांग्लादेश में पीड़ित अल्पसंख्यकों के लिए एक शब्द भी नहीं बोलने वाले तथाकथित मानवाधिकारवादी संस्थाओं और व्यक्तियों की विचित्र खामोशी को देखकर आश्चर्यचकित हैं।

श्री आलोक कुमार ने कल्लाकुरिची में अवैध जहरीली शराब त्रासदी में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि शराब और नशीली दवाओं की बुराइयों को खत्म करना सरकार और नागरिक समाज दोनों की जिम्मेदारी है, विहिप शराब और नशीली दवाओं की बुराइयों के खिलाफ अभियान को तेज करेगी। तमिलनाडु के युवाओं में बजरंग दल इसका नेतृत्व करेगा। इस अभियान में पारिवारिक मूल्यों को मजबूत करना और नशे से दूर सद्गुणी हिंदू जीवन जीना शामिल होगा।

श्री आलोक कुमार ने तमिलनाडु सरकार से यह भी अनुरोध किया कि वह किसी भी तरह से हस्तक्षेप न करे. विहिप अंडाल भक्तरगल पेरावई द्वारा हर महीने पूर्णिमा के दिन तिरुचेंदूर में आयोजित की जाने वाली कदल (समुद्र) आरती और अन्नदानम आयोजकों को परेशान करने के खिलाफ हिंदू बंदोबस्ती और धर्मार्थ न्यास के अधिकारियों को सलाह देती है और लगातार बढ़ते तीर्थयात्रियों को उचित सुरक्षा और सुविधाएं प्रदान करे, जो भगवान मुरुगा का आशीर्वाद चाहते हैं। हिंदुओं के पवित्र स्थान भक्तों के लिए एक शांत वातावरण बनाते हैं।

VHP issued Helpline and seeks action against attackers and Compensation to victimised minorities of Bangladesh

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Kallakurichi, Tamilnadu, 10/08/2024. Speaking to the press during the North Tamilnadu, Vishwa Hindu Parishad State and District Executive Meeting, Shri. Alok Kumar, International President of Vishwa Hindu Parishad. Stated that the minorities in Bangladesh are going through very challenging times. There have been targeted attacks on them including videographed gruesome murders, atrocities and vandalizing their places of worship, business establishments and homes.

He also stated that, we have seen the statement of Shree Muhammad Yunus, Chief Advisor of Bangladesh calling for a cessation of hostilities against minorities and if not stopped, he would resign. We hope Bangladesh would walk the talk.
Shri. Alok Kumar, also stated that V.H.P have also noticed that Prime Minister Shri Narendra Modi in his first message to Shri Muhammad Yunus emphasized the urgency of safeguarding Hindus and other minorities in Bangladesh. We can only hope that the advice would be heeded. For restoration of peace and confidence amongst Bangladeshi Hindus and other minorities, VHP demands that,

• Peace and welfare of minorities in Bangladesh is assured,

• The families of those where any family member is killed or suffered damages are compensated, and

• Guilty persons are brought to book, tried and punished as per the law.
The *VHP today released a Help line No. +9111-26103495* whereby any distressed Bangladeshi Hindu can approach us and we in coordination with the Central Govt. shall try to help them out in every possible way.

We are surprised to see the grotesque silence of so-called human right bodies and persons who have not spoken a word for the suffering minorities in Bangladesh, he said.
Shri Alok Kumar, also paid obeisance to the dead in the illicit hooch tragedy in Kallakurichi, stated that to eradicate the evils of liquor and drugs, is the responsibility of both government and the civil society, The VHP shall accelerate the campaign against the evils of liquor and drugs. The Bajrang Dal shall lead it in the youths of Tamilnadu. The campaign would include the strengthening of the family values and living the virtuous Hindu life away from Intoxication.

Shri. Alok Kumar, also requested the Tamilnadu Government to not interrupt in anyway. the Kadal (Samudhra) Aarathi and Annadhanam being conducted on Purnima day every month at Thiruchendur by Andal Bhaktargal Peravai and advice its officers of Hindu Endowments and Charitable Trust against harassing the organizers and provide appropriate security and facilities to the ever-increasing pilgrims, who are seeking Lord Muruga’s blessings and create a tranquil atmosphere for the devotees at the holy place of Hindus.

Kolkata Rape & Murder case: आरोपी की तिलक लगाए तस्वीर मीडिया की पसंद क्यों बना

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एम एस डेस्क

कोलकाता के ट्रेनी डॉक्टर बलात्कार कांड के आरोपी संजय राय की तिलक लगाए तस्वीर सभी मीडिया हाउस चला रहे हैं।

क्या पश्चिम बंगाल सरकार और कांग्रेस आईटी सेल यह करवा रही है?


संजय राय की कोई एक तस्वीर होगी, जिसमे उसने तिलक लगाई है, उसे ही मीडिया हाउस में प्रचारित प्रसारित क्यों कराया गया

जबकि वह कोलकाता पुलिस द्वारा जब गिरफ्तार किया जाता है तो उसने कोई तिलक नहीं लगाया था।

तिलक वाली तस्वीर को प्रचारित करने वाला गिरोह वही तो नहीं जो भगवा के साथ आतंकवाद शब्द को जोड़ने की पहले नाकाम कोशिश कर चुका है?

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