स्मृति शेष .. संकठा जी: आदर्श शिक्षक,संवेदना से भरे मनुष्य

6-6.jpeg
-प्रो.संजय द्विवेदी
भरोसा नहीं होता कि मेरे पूज्य गुरुदेव श्री संकठा प्रसाद सिंह अब इस दुनिया में नहीं रहे। बस्ती (उप्र) के सरस्वती शिशु मंदिर, रामबाग के प्रधानाचार्य रहे संकठा जी में ऐसा क्या था, जो उन्हें खास बनाता है? क्या कारण है कि वे अपने विद्यार्थियों के लिए हमेशा प्रेरणा देने वाली शख्सियत बने रहे। बहुत बालपन में उनके संपर्क में आनेवाला शिशु अपनी प्रौढ़ावस्था तक उनकी यादों और शिक्षाओं को भूल नहीं पाता।
      शिशु मंदिर व्यवस्था के इस पक्ष का अध्ययन किया जाना चाहिए कि  पारिवारिक और आत्मीय संवाद बनाकर यहां के आचार्य गण जो आत्मविश्वास नयी पीढ़ी को देते हैं,वह अन्यत्र दुर्लभ क्यों है? निम्न और मध्यम वर्गीय परिवारों से आए विद्यार्थियों में जो भरोसा और आत्मविश्वास संकठा जी जैसे अध्यापकों ने भरा, वह मोटी तनख्वाहें पाने वाले पांच सितारा स्कूलों के अध्यापक क्यों नहीं भर पा रहे हैं? हमने अपने सामान्य से दिखने वाले आचार्यों से जो पाया, उससे हम दुनिया में कहीं भी जाकर अपनी भूमिका शान से निभाते हैं, वहीं दूसरी ओर विद्यार्थी डिप्रेशन, अवसाद से घिरकर आत्महत्याएं भी कर रहे हैं। हमारी उंगलियां पकड़कर जमाने के सामने ला खड़े करने वाले संकठा जी जैसे अध्यापकों की समाज को बहुत जरुरत है।
  गुरुवार 28 मार्च ,2024 को   अपने गृहग्राम वनभिषमपुर, पोस्ट-मुसाखाडं, चकिया,जिला -चंदौली (उप्र) में अपनी अंतिम सांसें लीं, तो उनकी बहुत सी स्मृतियां ताजा हो आईं। उनके मानवीय गुण, कर्मठता, अध्यापन और प्रबंधन शैली सब कुछ। कच्ची मिट्टी से शिशुओं में प्रखर राष्ट्रीय भाव, नेतृत्व क्षमता, सामाजिक संवेदनशीलता भरते हुए उन्हें योग्य नागरिक बनाना उनका मिशन था। वे ताजिंदगी इस काम में लगे रहे। बाद में शिशु मंदिर योजना के संभाग निरीक्षक गोरखपुर,काशी,प्रयाग संभाग का दायित्व भी उन्होंने देखा। सतत् प्रवास करते हुए मैंने उनके मन में कभी कड़वाहट और नकारात्मक भाव नहीं देखे।
रक्षामंत्री श्री राजनाथ सिंह छात्र जीवन में उनके सहपाठी रहे। वे दिल्ली जब भी आते माननीय रक्षा मंत्री जी से लेकर हम जैसे तमाम विद्यार्थियों से खोजकर मिलते। कोई चाह नहीं , बस हालचाल जानना और अपनी शुभकामनाएं देना। ऐसे अध्यापक का आपकी जिंदगी में होना भाग्य है। भोपाल में अपने पूज्य दादाजी की स्मृति में होने वाले पं.बृजलाल द्विवेदी स्मृति साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान समारोह में मैंने उन्हें अध्यक्षता के लिए आमंत्रित किया। मेरे तत्कालीन कुलपति प्रोफेसर बृजकिशोर कुठियाला इस बात से बहुत खुश हुए कि मेरा अपने स्कूल जीवन के अध्यापक से अभी तक रिश्ता बना हुआ है। मैंने सर को बताया कि इसमें संकठा जी का नियमित संपर्क और स्नेहिल व्यवहार बहुत बड़ा कारण है।
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के मेरे विद्यार्थियों को भी यह बात बहुत अच्छी लगी। अध्यापक और छात्र के इस जीवंत रिश्ते की ऐसी तमाम कथाएं संकठा जी के लिए सामान्य थीं। छात्र जीवन में हम कुछ दोस्त ‘चाचा नेहरू अखिल भारतीय बाल मित्र सभा’ नाम से एक संगठन चलाते थे। तब हम शिशु मंदिर से पढ़कर निकल चुके थे। चाचा नेहरू का नाम जुड़ा होने के कारण हमें लगता था, आचार्य जी इससे नहीं जुड़ेंगे, किंतु जब हम पूर्व विद्यार्थियों ने उन्हें इस संगठन का अध्यक्ष बनाया तो सहर्ष तैयार हो गए। उस समय बस्ती से इसी संगठन से एक बाल पत्रिका ‘बालसुमन’ नाम से हमने निकाली। इसके कुछ अंक हमने बस्ती से छापे। बाद थोड़ी अच्छी छपाई हो इसलिए संकठा जी ने इसके कुछ अंक वाराणसी से छपवाए। शिशु मंदिर से निकलकर मेरा प्रवेश मुस्लिम समुदाय द्वारा संचालित कालेज ‘खैर कालेज, बस्ती ‘ में हो गया।
वहां के मेरे सहपाठियों शाहीन परवेज, एहतेशाम अहमद खान आदि से भी संकठा जी काफी दोस्ती हो गयी। कारण था चाचा नेहरु अखिल भारतीय बाल मित्र सभा। इसकी गतिविधियां भी बढ़ीं। संकठा जी बस्ती से स्थानांतरित होकर गाजीपुर गये, तो हम वहां शाहीन परवेज के गांव में भोजन के लिए गए। रिश्ते को अटूट बना लेना और लोकसंग्रह उनकी वृत्ति थीं। यहीं गाजीपुर में उन्होंने मेरी मुलाकात श्री अजीत कुमार से करवाई, जो बाद वाराणसी में छात्र आंदोलन में में मेरे वरिष्ठ साथी रहे। आज वे नेशनल बुक ट्रस्ट के बोर्ड के सदस्य और सक्रिय राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। मैं याद करता हूं तो ढेर सी यादें घेरती हैं। मेरी शादी में वे सपरिवार आए। मां की मृत्यु पर, भाई की मृत्यु पर । हर सुख -दुख की घड़ी में उनका हाथ मेरे कंधे पर रहा।
दिल्ली में आखिरी मुलाकात  हुई ,तब मैं भारतीय जन संचार संस्थान में कार्यरत था। वे आए दो दिन साथ रहे। शरीर कमजोर था, पर आंखों की चमक और अपनी सींची पौध पर उनका भरोसा कायम था। ऐसे शिक्षक दुर्लभ ही हैं, जो आपको आपके सपनों, दोस्तों, परिवार के साथ स्वीकार करता हो। आप अपनी जिंदगी में व्यस्त और मस्त हैं और उन्हें फोन भी करने का वक्त नहीं निकाल पाते। किंतु संकठा जी फोन आता रहेगा, आपको आपकी जड़ों से जोड़ता रहेगा। उनका हर फोन यह अपराधबोध देकर जाता था कि क्या हमें अभी और मनुष्य बनना शेष है? इतनी उदारता, संवेदनशीलता और बड़प्पन लेकर वे आए थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पाठशाला ने संकठा जी जैसे तमाम अनाम योद्धाओं के माध्यम से यह दुनिया रची है।
मैं शब्दों में नहीं कह सकता कि मैंने क्या खोया, पर अपने विद्यार्थियों के लिए उनका पचास प्रतिशत भी कर पाऊं तो स्वयं को उनका शिष्य कह पाऊंगा।‌ संकठा जी की कहानी विद्या भारती के महान अभियान की सिर्फ एक कहानी है। हमारे आसपास ऐसे अनेक हीरो हैं। जो अनाम रहकर पीढ़ियां गढ़ रहे हैं। उन सबका मंत्र है “एक समर्थ, आत्मविश्वास से भरा भारत!” संकठा जी एक व्यक्ति नहीं हैं, प्रवृत्ति हैं। जो समय के साथ दुर्लभ होती जा रही। जिनके लिए ‘शुद्ध सात्विक प्रेम अपने कार्य का आधार है।’ भावभीनी श्रद्धांजलि!!
(लेखक भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी), नयी दिल्ली के पूर्व महानिदेशक हैं)

मैथिली लोक रंग (मैलोरंग) ने किया दो दिवसीय आयोजन.

6-3-2.jpeg

दिल्ली । मैलोरंग यानी मैथिली लोक रंग, दिल्ली द्वारा विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर दो दिवसीय मिथिला रंग महोत्सव (27 एवं 28 मार्च, 2024) का आयोजन किया गया । प्रथम दिवस यानी 27 मार्च को आयोजन का शुभारम्भ एल.टी.जी. सभागार मण्डी हाउस, नई दिल्ली में सायं 6.30 बजे अतिथियों को पुष्पगुच्छ देकर किया गया । अतिथि के रूप में गाँधी स्मृति एवं साहित्य सदन के निदेशक डॉ. ज्वाला प्रसाद, श्री राकेश कुमार मिश्रा (आई.पी.एस.), श्री ऋषि कुमार शर्मा (उपसचिव, हिंदी अकादमी), वरिष्ठ वस्त्र सज्जाकार श्रीमती अनिला सिंह (रानावि स्नातक) एवं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेशक प्रो. देवेंद्र राज अंकुर उपस्थित थे । आयोजन की शुरुआत महाकवि भास रचित नाटक अभिषेकनाटकम् के मंचन से हुआ ।

इस नाट्य प्रस्तुति की परिकल्पना एवं निर्देशन रमण कुमार ने किया है । रमण कुमार भारतेंदु नाट्य अकादमी से प्रशिक्षित रंगकर्मी हैं तथा वर्तमान में आप मैलोरंग रेपर्टरी के प्रमुख के रूप में कार्यरत हैं । मैलोरंग और धनार्या आर्ट्स ने संयुक्त रूप से नाट्य प्रस्तुति अभिषेकनाटम् का मंचन किया । नाटक रामचंद्र जी द्वारा सीता हरण के पश्चात, रावण वध कर जब अयोध्या में वापस लौट कर आते हैं तो उनका राज्याभिषेक किया जाता है । इसी मूल कथ्य को लेकर इसे महाकवि भास द्वारा रचा गया है । सभी रंगकर्मियों ने अपने पात्र के साथ न्याय किया है । नाट्य प्रस्तुति की प्रकाश व्यवस्था अत्यंत दृश्यानुकूल था तथा भेषभूषा भी पात्रानुकूल ।

दूसरी नाट्य प्रस्तुति राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सम्मुख सभागार, नई दिल्ली में प्रयागराज की संस्था समानांतर संस्था द्वारा राही मासूम रज़ा के उपन्यास पर आधारित टोपी शुक्ला नाम से किया गया । इस उपन्यास का नाट्यरूप अख्तर अली ने तैयार किया है तथा नाटक के लिए संगीत परिकल्पना रवि नागर द्वारा किया गया है । सम्पूर्ण नाट्य प्रस्तुति की परिकल्पना एवं निर्देशन सुप्रसिद्ध रंगकर्मी अनिल रंजन भौमिक ने किया है । दिनांक 28 मार्च, 2024 को पुन: इस नाटक का मंचन सम्मुख सभागार में किया गया । नाटक ‘टोपी शुक्ला’ ऐसे हिंदुस्तानी नागरिक का अप्रतीक है जो राष्ट्रवादी सिद्धांत और भारत विभाजन के बावजूद आज भी अपने को विशुद्ध भारतीय समझता है । मैलोरंग द्वारा इस दो दिवसीय आयोजन में तीनों नाट्य प्रस्तुति में अपार दर्शक उमड़ी ।  मैलोरंग द्वारा दो दिवसीय मिथिला रंग महोत्सव के लिए संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार; राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, एन.सी.जेड.सी.सी; धनार्या आर्ट, सम्भव तथा समानानंतर संस्था ने सहयोग दिया दिया था ।

“Forgetting History wouldn’t destroy the PAST”

6-2-2-e1711723624220.jpeg

Exploring the Unbreakable Bond Between Hindu Dharma and Sikkhi: An eye-opening Talk at the Centre for Hindu Studies, Delhi University

New Delhi: The Centre for Hindu Studies, University of Delhi organised a talk on the topic “Hindu Dharma tatha Sikkhi ka atoot rhishta” or “The Inseparable Relationship between Hindu Dharma and Sikh Dharma” on March 4th, 2024. This event was a remarkable endeavour to unravel the profound ties between Hindu Dharma and Sikh Dharma, two pillars of Bharat’s spiritual heritage.

Renowned scholar, Professor Jagbir Singh, Chancellor of Central University of Punjab, graced the occasion as the keynote speaker. With profound erudition, he illuminated the intricate connections and shared values between Hindu Dharma and Sikkhi and their connection to Sanatan, captivating the audience with his insightful discourse. He talked about why Hindus and Sikhs share an unbreakable bond. He also shed light on the Colonial strategy of Divide and Rule to understand the whole conflict of separate identity creation. He said, “Forgetting History won’t destroy our past…we have to remove and revisit what has happened”. Talking about the brutal and politically driven history, he related the present scenario to that and said no one can separate Hindu and Sikh as they both are part of Sanatan Dharma. Both embrace each other. The Postmodernist thinking of rejecting meta-narrative won’t work as courses like Hindu studies will offer the study of Dharma and Darshana as an academic discipline which has not been done in the last 75 years. He also said how we are inclusive and talk about universal welfare. He said Sanatan Dharma is a worldview and view of life which believes in realising reality and not following imagination. He ended the speech with motivational lines about the meditative vision and wisdom we had and will always embrace. The audience gave him a standing ovation.

Accompanying Prof. Singh, esteemed scholar Prof. N.K. Kakkar also shared his views on the topic.

Dr. Prerna Malhotra, Joint Director, and the Convener of the Programme summed up many points and proposed the vote of thanks. The programme was attended by Prof. Om Nath Bimali, Director of, Centre for Hindu Studies, Prof. Ravi Ravindra, Dean, Culture, University of Delhi and many professors from Departments and colleges of the University of Delhi.
The session was extremely enriching and it enforced a nuanced understanding of the enduring bond between these two venerable traditions of Bharat. It also burst the myth of considering Sikh Dharma as an independent entity, having no roots in the Vedic tradition of Hindu Dharma. The talk served as a testament to the rich spiritual tapestry of India and the timeless wisdom embodied in Hindu Dharma and Sikh Dharma.

The event attracted a diverse audience comprising scholars, students, and enthusiasts eager to engage in meaningful dialogue. Prof. Jagbir Singh patiently answered all the doubts of the audience.
Such endeavours reaffirm the Centre for Hindu Studies’ commitment to advancing knowledge and fostering dialogue on the multifaceted dimensions of Hindu Dharma and its synergies with other spiritual paths.

भारत को पुनः विश्व गुरु बनाना ही संघ का मुख्य लक्ष्य

2021_4image_22_12_35184948200-ll.jpg

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक नागपुर में दिनांक 15 से 17 मार्च 2024 को सम्पन्न हुई है। इस बैठक में पूरे देश से 1500 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया और “श्रीराम मंदिर से राष्ट्रीय पुनरुत्थान की ओर” विषय पर एक प्रस्ताव भी पास किया गया।

जैसा कि सर्वविदित ही है कि गौरवशाली हिन्दू सनातन संस्कृति विश्व में सबसे पुरानी संस्कृति मानी जाती है और इसी हिंदू सनातन संस्कृति का अनुपालन करते हुए भारत का इतिहास वैभवशाली रह पाया है तथा हिंदू सनातन संस्कृति का विस्तार इंडोनेशिया तक एवं सुदूर अमेरिका तक रहा है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में अक्सर यह कहा जाता है कि संघ एवं इसके स्वयंसेवक करते क्या हैं? इसके उत्तर में अक्सर यह जवाब दिया जाता है कि संघ को यदि समझना है तो आपको संघ की शाखा में आना होगा। संघ, मां भारती को एक बार पुनः विश्व में गौरवशाली स्थान दिलाने के पवित्र लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए गम्भीर प्रयास कर रहा है। इस पवित्र लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लाखों की संख्या में स्वयंसेवक आज संघ के साथ जुड़ चुके हैं। आज भारत के 45,600 स्थानों पर संघ की 73,117 शाखाएं, 27,717 साप्ताहिक मिलन एवं 10,567 संघ मंडली लगाई जा रही हैं। इन शाखाओं, साप्ताहिक मिलनों एवं संघ मंडलियों में स्वयंसेवकों में राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव (राष्ट्र प्रथम) जागृत किया जाता है ताकि वे समाज में जाकर समाज की सज्जन शक्ति को साथ लेकर भारत में समाज परिवर्तन का कार्य दक्षतापूर्वक कर सकें। संघ की शाखा सामान्यतः 60 मिनट की लगती है एवं इसमें शारीरिक व्यायाम, योग, प्राणायाम, खेल, बौद्धिक एवं प्रार्थना शामिल रहती है। बौद्धिक में सनातन संस्कृति एवं भारत के गौरवशाली इतिहास की जानकारी के साथ साथ भारतीय संतो, महात्माओं एवं महापुरुषों की जानकारी प्रदान की जाती है।

समय के साथ साथ संघ ने अपनी कार्यप्रणाली में परिवर्तन भी किया है एवं कई नए आयाम एवं कार्य अपने साथ जोड़े हैं। जैसे समाज के किन किन क्षेत्रों में क्या क्या काम करना है यह संघ के स्वयंसेवकों को बहुत स्पष्ट रूप से सिखाया जाता है। संगठन श्रेणी के साथ ही संघ में जागरण श्रेणी भी कार्यरत है। संगठन श्रेणी में शाखाओं के विस्तार, इसे सुचारू रूप से चलाने सम्बंधी कार्य, स्वयसेवकों का प्रशिक्षण एवं गुणवत्ता विकास आदि कार्य शामिल रहते हैं जबकि जागरण श्रेणी में समाज में जाकर किन क्षेत्रों में जागरण करना है, का निर्धारण किया जाकर इस क्षेत्र में स्वयसेवकों द्वारा कार्य किया जाता है। जैसे वर्तमान में जागरण श्रेणी में शामिल कार्य हैं – सेवा, सम्पर्क एवं प्रचार सम्बंधी कार्य। इसके अलावा 6 गतिविधियां भी हैं जो स्वयसेवकों द्वारा समाज के सहयोग से चलाई जाती हैं। इनमे शामिल हैं – धर्म जागरण समन्वय, गौ सेवा, ग्राम विकास, कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता एवं पर्यावरण संरक्षण।

22 जनवरी 2024 को अयोध्या धाम में प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर में श्रीराम लला के श्रीविग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा के पूर्व दिनांक 1 से 15 जनवरी 2024 तक श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र के आह्वान पर संघ के स्वयंसेवकों एवं समाज के विविध संस्थानों तथा संगठनों के कार्यकर्ताओं द्वारा चलाया गया गृह सम्पर्क अभियान अभूतपूर्व सफल रहा था। देश के समस्त प्रांतों के 578,778 गांवों एवं 4727 नगरों के कुल 19.38 करोड़ से अधिक परिवारों से स्वयंसेवकों सहित 44.98 लाख से अधिक व्यक्तियों ने सम्पर्क किया था। यह भारतीय समाज में संघ की गहरी पहुंच और समाज में उसकी स्वीकार्यता को दर्शाता है।

संघ के 40 से अधिक अनुशांगिक संगठन भी भारत में विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं, जो हिंदू सनातन संस्कृति एवं भारतीय परम्पराओं के आधार पर समाज में अपने कार्य को आगे बढ़ाते हैं। विश्व में वामपंथी विचारधारा के आधार पर चल रहे विभिन्न मजदूर संगठन अपने श्रमिक सदस्यों को संस्थान के केवल लाभ में हिस्सा लेने की प्रेरणा देते हैं और अपनी मजदूरी में वृद्धि के लिए अक्सर हड़ताल आदि का सहारा लेते हैं। उद्योग संस्थान में हड़ताल होने से न केवल उस विशेष उद्योग संस्थान का बल्कि देश की अर्थव्यवस्था का भी नुक्सान होता है।जबकि, भारतीय मजदूर संघ, जो कि संघ का ही एक अनुशांगिक संगठन है, अपने श्रमिक सदस्यों को हड़ताल करने के लिए निरुत्साहित करता है और उसका नारा है कि ‘संस्थान के लिए करेंगे पूरा काम और काम के लेंगे पूरे दाम’। यह अंतर है वामपंथी विचारधारा और राष्ट्रीय विचारधारा के संगठनों में। इसी प्रकार संघ के अन्य अनुशांगिक संगठनों में शामिल हैं – (1) सेवा के क्षेत्र में कार्य करने वाले संगठन – आरोग्य भारती, राष्ट्रीय सेवा भारती, भारत विकास परिषद, राष्ट्रीय चिकित्सा संस्थान, आरोग्य भारती, सक्षम (दिव्यांग नागरिकों के लिए), दीन दयाल शोध संस्थान। (2) सामाजिक संगठन – विश्व हिंदू परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम, जनजाति सुरक्षा मंच, क्रीड़ा भारती, राष्ट्रीय सेविका समिति। (3) शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाले संगठन – विद्या भारती, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय शिक्षण मंडल, अखिल भारतीय शेक्षिक महासंघ, संस्कृत भारती, शिक्षा संस्कृत उत्थान न्यास। (4) आर्थिक क्षेत्र में कार्य करने वाले संगठन – भारतीय किसान संघ, लघु उद्योग भारती, भारतीय मजदूर संघ, स्वदेशी जागरण मंच, सहकार भारती, ग्राहक पंचायत। (5) वैचारिक समूह में कार्य करने वाले संगठन – प्रज्ञा प्रवाह, विज्ञान भारती, संस्कार भारती, इतिहास संकलन, साहित्य परिषद, अधिवक्ता परिषद। (6) सुरक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाले संगठन – सीमा जागरण मंच, हिंदू जागरण मंच, अखिल भारतीय रक्षा परिषद। उक्त समस्त संगठनों को पूर्ण स्वायत्तता प्रदत्त है एवं संघ की ओर से किसी भी प्रकार का बंधन इन संगठनों पर नहीं रहता है। हां, इन संगठनों की कार्य प्रणाली को भारतीय संस्कारों के अनुरूप ढालना आवश्यक रहता है।

अपने आचरण, आचार विचार एवं कार्य पद्धति के आधार पर भारतीय मूल के नागरिक हिंदू सनातन संस्कृति के संवाहक के रूप में अन्य कई देशों में कार्यरत हैं एवं वहां निवास कर रहे हैं और इन देशों की अर्थव्यवस्था में अपने योगदान को दिनोदिन मजबूती प्रदान कर रहे हैं। इन देशों के विभिन्न क्षेत्रों यथा सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक आदि में भारतवंशियों के योगदान को इन देशों मूल नागरिकों ने पहचाना एवं स्वीकारा है। इसके चलते लाखों की संख्या में विदेशी मूल के नागरिक हिंदू सनातन संस्कृति की ओर आकर्षित हुए हैं एवं अब ऐसा माना जाने लगा है कि हिंदू सनातन संस्कृति पूरे विश्व में भविष्य का विश्व धर्म होने जा रही है। अतः आज विश्व के 53 देशों में “हिंदू स्वयंसेवक संघ” की स्थापना की जा चुकी है एवं इन देशों में 1480 शाखाएं एवं 112 मिलन चलाए जा रहे हैं। हाल ही में आस्ट्रेलिया एवं अमेरिका के कई नगरों में संघ शिक्षा वर्ग आयोजित किए गए थे तथा इसी प्रकार विश्व के अन्य देशों को मिलाकर कुल 17 हिंदू हेरिटेज कैम्प भी आयोजित किए गए थे। अमेरिका में सेवा दीवाली बहुत धूमधाम से मनाई जाती है, इस शुभ मौके पर स्थानीय गरीब वर्ग को उपहार प्रदान किए जाते हैं।

पूरे विश्व में आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को विश्व का सबसे बड़ा संगठन माना जाता है जो पिछले 99 वर्षों से सतत रूप से हिंदू सनातन संस्कृति एवं भारतीय परम्पराओं तथा संस्कारों का अनुपालन सुनिश्चित करते हुए मां भारती की सेवा में अपने आप को समर्पित किए हुए है। आज समाज की सज्जन शक्ति संघ की विचारधारा के अनुरूप सोचने लगी है अतः विभिन्न श्रेणी विशेष के नागरिक यथा चिकित्सक, शिक्षक, प्रोफेसर, अभिभाषक, श्रमिक, सेवा निवृत्त अधिकारी एवं कर्मचारी, युवा उद्यमी आदि बड़ी संख्या में संघ के साथ जुड़ रहे हैं एवं समाज परिवर्तन में अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं। आज भारत में विभिन्न मत पंथ को मानने वाले नागरिकों के बीच यदि आपस में भाईचारा स्थापित होता है तो निश्चित ही मां भारती को उसके पुराने वैभव को प्राप्त करने से कोई रोक नहीं सकता है। यही संघ का मुख्य लक्ष्य भी है।

scroll to top