भिवानी परिवार का गौरव कार्यक्रम सम्पन्न

भिवानी परिवार मैत्री संघ दिल्ली द्वारा 8वां भिवानी गौरव सम्मान से कई विभूतियों को सम्मानित किया गया। दिल्ली रोहिणी के क्राउन प्लाजा होटल में रंगारंग कार्यक्रम का शुभारंभ संत हजुर कंवर महाराज, आईएएस मंगतराम शर्मा, नवल किशोर, सीबीएलयू कुलपति आरके मित्तल ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्जवलित कर किया। कार्यक्रम का प्रथम सत्र सूरजभान बगडिय़ा को समर्पित रहा। कार्यक्रम में कलाकारों द्वारा गणेश वंदना की गई। इसके पश्चात चौ. बंसीलाल सम्मान तमिलनाडू कैडर के मंढ़ाणा निवासी आईएएस मंगतराम शर्मा को प्रदान किया गया व बगडिय़ा परिवार को सम्मानित किया। इसी कार्यक्रम में पदमभूषण ओडिसी नृत्यांगना डा. सरोजा वैद्यनाथन के दल द्वारा भगवान राम के जीवन से संबंधित प्रस्तुति दी व अन्य ओडिसी नृत्य के रूप में दिखाए। कार्यक्रम का दूसरा सत्र भग्गनका परिवार को समर्पित रहा। कार्यक्रम में माधव मिश्र सम्मान भिवानी के साहित्यकार आनन्द आर्टिस्ट, पत्रकारिता के क्षेत्र में बाबू बनारसीदास गुप्ता सम्मान प्रैस फोटोग्राफर अशोक शर्मा को प्रदान किया गया। इस अवसर पर हरियाणवी कलाकारों ने अपनी कई प्रस्तुतियां देते हुए हरियाणवी नृत्य तेरी आंख्या का यो काजल के नृत्य पर उपस्थितजनों की खूब तालियां बटोरी। इस अवसर पर भिवानी के शायर विजेन्द्र गाफि़ल द्वारा रचित जिन्दगी ए जिन्दगी पुस्तक का विमोचन किया। महिला सशक्तिकरण को गति देते हुए मैत्री संघ द्वारा नारायणी देवी महावीर प्रसाद भग्गनका ओजस्वनी पुरस्कार बनारसीदास गुप्ता फाऊंडेशन की दर्शना गुप्ता को प्रदान किया गया। पुरस्कार में 31 हजार रूपये की राशि के अतिरिक्त स्मृति चिन्ह एवं श्रीफल भेंट किया। दूसरे सत्र के कार्यक्रम का संचालन आकाशवाणी रोहतक के वरिष्ठ उदघोषक सम्पूर्ण सिंह बागड़ी ने किया। मुख्यअतिथि के रूप में छोटूराम तकनीकि विश्वविद्यालय के कुलपति आरके अनायत एवं दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष रामनिवास गोयल रहे। यह सत्र श्रेष्ठी शिवलाल सर्राफ समर्पित रहा। तीसरे सत्र में मुख्य अतिथि हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन डा. जगबीर सिंह रहे। कार्यक्रम में शिक्षा के क्षेत्र में रामकिशन गुप्ता सम्मान भिवानी के डा. बुद्धदेव आर्य को प्रदान किया गया। यह सत्र मानहेरू के बालूराम पंसारी डॉलर ग्रुप को समर्पित रहा। संगीत के क्षेत्र में पंडित गोपाल कृष्ण सम्मान हंसराज रल्हन को तथा पंडित नेकीराम शर्मा राष्ट्र सेवा का पुरस्कार अग्रवाल पैकर्ज एण्ड मूवर्स के रमेश अग्रवाल को प्रदान किया गया। इस अवसर पर शिवलाल सर्राफ परिवार को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर कंवर हजुर साहब ने संबोधित करते हुए भिवानी परिवार मैत्री संघ की भूरि-भूरि प्रशंसा की तथा उनके कार्यक्रमों को दूरगामी व मूलगामी बताया। भिवानी परिवार मैत्री संघ के अध्यक्ष राजेश चेतन ने संस्था की गतिविधियों पर विस्तार से प्रकाश डाला व भावी योजनाओं की रूपरेखा प्रस्तुत की। विशाल कार्यक्रम को सफलता प्रदान करने में संघ के महासचिव दिनेश गुप्ता, कोषाध्यक्ष सांवरमल गोयल के विशेष योगदान की सराहना की। मंगतराम शर्मा ने भी संबोधित किया। हरियाणवी कवि अनिल अग्रवंशी ने अपनी हास्य कविताएं सुनाकर उपस्थितजनों को लोट-पोट कर दिया। इस सत्र का संचालन सुनीता जैन ने किया। कार्यक्रम में विधायक घनश्याम सर्राफ, वैश्य महाविद्यालय ट्रस्ट के अध्यक्ष शिवरत्न गुप्ता, वैश्य सीनियर सकैण्डरी स्कूल के अध्यक्ष सुरेश गुप्ता, वनवासी कल्याण आश्रम के पदाधिकारी, रामा सेवादल, वैश्य महाविद्यालय ट्रस्ट के सदस्य मौजूद रहे |

आपातकाल विषय कोर्स में शामिल होना चाहिए: ओमप्रकाश कोहली

प्रो. अरुण कुमार भगत के सम्पादित आपातकाल विषय पर तीन पुस्तकों का हुआ लोकार्पण

महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के मीडिया अध्ययन विभाग के डीन एवं विभागाध्यक्ष प्रो. अरुण कुमार भगत द्वारा संपादित आपातकाल विषयक तीन पुस्तकों का साहित्य अकादेमी में लोकार्पण किया गया. ये पुस्तकें हैं, “आपातकाल के काव्यकार”, “आपातकाल के संस्मरण” और “डॉ. देवेन्द्र दीपक का आपातकालीन साहित्य : दृष्टि और मूल्यांकन”. आर्यावर्त साहित्य-संस्कृति-संस्थान, नई दिल्ली द्वारा आयोजित भव्य कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख प्रो. अनिरुद्ध देशपांडे, गुजरात के पूर्व राज्यपाल प्रो. ओमप्रकाश कोहली, मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी, भोपाल के पूर्व निदेशक डॉ. देवेन्द्र दीपक, महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने इन पुस्तकों का लोकार्पण किया.

कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ. इसके बाद अतिथियों का पुस्तक, शाल और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया. दर्शन पाण्डेय ने सभी अतिथियों का स्वागत भाषण दिया और मंच पर उपस्थित सभी गणमान्य अतिथियों का परिचय कराया. इसके बाद सभी मंचस्थ अतिथियों ने तीनों पुस्तकों का लोकार्पण किया. मंच संचालन डॉ. अशोक कुमार ज्योति ने किया.

इस मौके पर प्रो. अरुण कुमार भगत ने कहा कि अपनों के बीच आपातकाल पर तीन सम्पादित पुस्तकों का विमोचन हुआ है. इस विषय पर करीब चौबीस वर्षों के कार्य कर रहा हूँ. आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र का काले अध्याय के रूप में देखा जा रहा है. उस दौर में एक लाख चौबीस हजार लोग गिरफ्तार हुए थे. केवल उनीस महीने के उस कालखंड में भारतीय साहित्यकारों ने अपनी रचना से साहित्य को समृद्ध किया. वामपंथ और कांग्रेस के गठबंधन ने आपातकाल विषय पर विश्वविद्यालयों में शोध नहीं होने दिया और इस कारण अकादमिक कार्य नहीं हुए. अत्याचार पर सत्याचार के विजय के प्रतीक के रूप में हर वर्ष दशहरा मनाते हैं, उसी तरह आपातकाल को हर वर्ष याद किया जाना आवश्यक है.

मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के पूर्व निदेशक और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. देवेन्द्र दीपक ने कहा कि आज के युग में साहित्य प्रेमी हैं और राष्ट्र के बारे में विचार करते हैं. आपातकाल पर बहुत लिखा गया लेकिन बहुत कुछ सामने नहीं आया. अभी तक संस्थान उनके हाथ में था जो आपातकाल के समर्थक थे. उन्होंने आपातकाल के संस्मरण के अलावा अपनी काव्य और नाटक रचनात्मकता को लेकर अपनी बात रखी और कहा कि प्रो. अरुण कुमार भगत का शोध कार्य काफी व्यापक है और वे लगातार कार्य कर रहे हैं.

गुजरात के पूर्व राज्यपाल एवं वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. ओमप्रकाश कोहली ने आपातकाल के अनुभव को साझा किया. आज अधिकार लोग ऐसे हैं जिन्हें बस पता है कि आपातकाल लगा था, इस कारण उन्हें आपातकाल के बारे में पढना चाहिए. आपातकाल के दौर में उन्नीस महीने का सन्नाटा था और सत्ता के लोगों ने शायद ही सोचा था कि इस सन्नाटे का विरोध होगा. आपातकाल का विरोध लिखने के द्वारा, सड़क पर उतर कर, सत्यग्रह के द्वारा और भूमिगत होकर हुआ. जिनका उस समय का अनुभव है, उन्हें आज की पीढ़ियों से साझा करना चाहिए. प्रो. अरूण कुमार भगत का कार्य सराहनीय है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख प्रो. अनिरुद्ध देशपांडे ने कहा कि सत्ता के प्रेमी ने आपातकाल का समर्थन किया. अभी तक किसी भी कोर्स में आपातकाल विषय नहीं लाया गया है. छात्रों को आपातकाल के बारे में पढाना चाहिये. उन्होंने कहा कि प्रो. अरुंक कुमार भगत को आपातकाल की राजनीति को भी पुस्तकों को सामने लाना चाहिए. मेरे अनुसार आपातकाल की लड़ाई भारतीय इतिहास के स्वतंत्रता की दूसरी लड़ाई थी, जो स्वतंत्रता के बाद लड़ी गई. आपातकाल ने भारतीय समाज को जगाने का कार्य किया. सत्तापिपासु लोगों ने आपातकाल का समर्थन किया और लोगों को सताया गया.

महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के कुलपति संजीव कुमार शर्मा ने कहा कि हमारे लिए गौरव की बात है कि हमारे विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर अरुण कुमार भगत की पुस्तकों का लोकार्पण हुआ है. आपातकाल ने हमें दृष्टि दी कि भारतीय समाज अपने लोकतंत्र से कितना प्यार और विश्वास किया है. विश्व में हमारे लोकतंत्र में कैसी छवि बन रही है, इस पर और इसे आपत्काल के सन्दर्भ में देखना आवश्यक है.

इस अवसर पर साहित्यकार डॉ. रामशरण गौड़, डॉ. वेद व्यथित, डॉ. मालती, विनोद बब्बर, हर्षवर्धन, डॉ. सारिका कालरा, डॉ. अशोक कुमार ज्योति, आशीष कंधवे, संजीव सिन्हा, गुंजन अग्रवाल, डॉ. लहरी राम मीना को विभिन्न सम्मानों से सम्मानित भी किया गया. कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन दिया.

इफको ने पेश किए भारत के पहले नैनो प्रौद्योगिकी उत्पाद

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दुनिया की सबसे बड़ी उर्वरक क्षेत्र की सहकारी संस्था इफको ने आज अपनी मातृ इकाई कलोल, गुजरात में आयोजित एक समारोह में नैनो प्रौद्योगिकी आधारित उत्पादों – नैनो नाइट्रोजन, नैनो जिंक व नैनो कॉपर का क्षेत्र परीक्षण शुरू करने की घोषणा की। केन्द्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री सदानंद गौड़ा,  पोत परिवहन (स्वतंत्र प्रभार) तथा रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री मनसुख मांडविया, पंचायती राज और कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री पुरूषोत्तम रूपाला, गुजरात के उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल, गुजरात सरकार के खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले, कुटीर उद्योग, प्रिंटिंग व स्टेशनरी मंत्री जयेश रदाड़िया, इफको के अध्यक्ष बी.एस. नकई,  इफको के उपाध्यक्ष दिलीप संघाणी तथा इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. उदय शंकर अवस्थी एवं अन्य गणमान्य अतिथियों की मौजूदगी में इन नैनो उत्पादों को क्षेत्र परीक्षण हेतु लॉन्च किया गया।   देश के अलग-अलग राज्यों से आमंत्रित 34 प्रगतिशील किसान इस कार्यक्रम में शामिल हुए। इनमें से कई पद्मश्री से सम्मानित हैं। इन किसानों को नैनो उत्पादों की इस नई शृंखला से परिचित कराया गया और उनके देशव्यापी क्षेत्र परीक्षण के बारे में जानकारी दी गई। इन उत्पादों को कलोल स्थित इफको के अत्याधुनिक नैनो बायोटेक्नोलौजी रिसर्च सेंटर (एनबीआरसी) में देसी तकनीक से विकसित किया गया है। नैनो संरचना से निर्मित ये उत्पाद पौधों को असरदार पोषण प्रदान करते हैं। इन नैनो उत्पादों के अन्य फायदे इस प्रकार हैं:   1. परंपरागत रासायनिक उर्वरकों की तुलना में 50 प्रतिशत तक कम खपत। 2. 15-30 प्रतिशत अधिक पैदावार। 3. मिट्टी की सेहत में सुधार। 4. ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी। 5. पर्यावरण हितैषी।   इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. उदय शंकर अवस्थी ने उद्घाटन वक्तव्य में कहा कि “इन उत्पादों के लॉन्च के प्रथम चरण में आईसीएआर/ कृषि विज्ञान केन्द्र के सहयोग से नियंत्रित स्थितियों में इनका क्षेत्र परीक्षण किया जाएगा। इस चरण के लिए इफको ने तीन प्रकार के नैनो उत्पाद विकसित किए हैं। पहला इफको नैनो नाइट्रोजन है जिसे यूरिया के विकल्प के रूप में विकसित किया गया है। सही तरीके से प्रयोग करने पर यह यूरिया की खपत को 50 प्रतिशत तक कम कर सकता है। दूसरा उत्पाद इफको नैनो जिंक है जिसे मौजूदा उपलब्ध जिंक उर्वरक के विकल्प के रूप में विकसित किया गया है। इस उत्पाद का केवल 10 ग्राम एक हैक्टेयर भूमि के लिए पर्याप्त है और इससे एनपीके उर्वरक की खपत 50 प्रतिशत तक कम हो जाएगी । तीसरा उत्पाद इफको नैनो कॉपर है जो पौधे को पोषण और सुरक्षा दोनों प्रदान करता है। यह पौधे में हानिकारक कीटों के विरूद्ध प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित करता है। इससे पौधे में ग्रोथ हारमोन की सक्रियता बढ़ती है जिससे पौधे का विकास तेजी से होता है।”     केन्द्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री सदानंद गौड़ा ने इफको के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि ‘‘इफको के इस कदम से वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सपनों को साकार करने में मदद मिलेगी।’’ इस क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास करने तथा भारत में पहले पहल नैनो उत्पाद लाने की घोषणा करने के लिए उन्होंने इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. उदय शंकर अवस्थी और उनकी पूरी टीम को बधाई दी। उन्होंने यह भी कहा कि “इफको द्वारा गुजरात के कलोल में स्थापित    विश्वस्तरीय प्रयोगशाला में विकसित किए गए इन तीन उत्पादों से मिट्टी, किसान और पर्यावरण को फायदा मिलेगा और परंपरागत उर्वरकों की खपत में 50 प्रतिशत तक की कमी आएगी। इससे निवेश लागत भी कम होगा।” इफको के प्रयासों की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि ‘‘भारत सरकार द्वारा किसानों के लिए अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। उर्वरक क्षेत्र में डीबीटी प्रणाली, नीम लेपित यूरिया और बिक्री हेतु पीओएस मशीन की शुरुआत की गई है ताकि हरेक किसान को उर्वरक उपलब्ध कराया जा सके। मुझे यह कहते हुए खुशी है कि इफको ने भारत सरकार की इन सभी पहल में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है।’’ उन्होंने यह भी कहा कि यद्यपि यह नैनो उत्पादों का ट्रायल है लेकिन मेरा विश्वास है कि ये उत्पाद असरदार सिद्ध होंगे और मैं उम्मीद करता हूँ कि जल्द ही भारत के किसान इनका इस्तेमाल शुरू कर सकेंगे।”   ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गॉव, गरीब और किसान को केन्द्र में रखकर ही 5 ट्रिलियन अमरीकी डालर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य रखा है। किसानों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए वे हमेशा चिंतित रहते हैं। इफको भारत सरकार की तीनों प्राथमिकताओं पर काम कर रही है तथा इन उत्पादों को लॉन्च करके इफको ने विकास की दिशा में एक बड़ी छलांग लगाई है। इससे किसानों का पैसा, पानी और समय बचेगा’’। देशभर से आए किसानों और प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि ‘‘भारत की प्राथमिकता उत्पादन की बजाए अब किसान केन्द्रित हो गई है और अन्य पहलुओं के साथ-साथ कृषि उत्पादन में सुधार तथा निवेश लागत में कमी करके 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। इस तरह के उत्पाद हमारे सपनों को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे’’।    अपने संबोधन में पोत परिवहन (स्वतंत्र प्रभार) रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री मनसुख मांडविया ने कहा कि ‘‘संसाधनों की कमी तथा उर्वरकों की कम उपयोग दक्षता के कारण किसानों की लागत कई गुना बढ़ गई है। नैनो प्रोद्योगिकी के माध्यम से हम अपेक्षित रासायनिक संरचना के साथ उर्वरक उत्पादन की संभावनाओं और पोषक तत्वों की उपयोग क्षमता में वृद्धि कर सकते हैं । इससे पैदावार बढ़ाने के साथ-साथ पर्यावरण पर होने वाले कुप्रभावों को कम करने में मदद मिलेगी। यह भविष्य की प्रोद्यागिकी है और उर्वरक क्षेत्र में की गई इस नई पहल के लिए मैं इफको की प्रशंसा करता हूँ।”    पंचायती राज और कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री पुरूषोत्तम रूपाला ने अपने भाषण में कहा कि ‘‘भारतीय कृषि में आधुनिक प्रौद्योगिकी को अपनाकर ही हरित क्रांति 2 लाई जा सकती है। देश के किसानों को आधुनिक प्रौद्योगिकी का फायदा उपलब्ध कराने के लिए भारत सरकार ने अनेक योजनाएं शुरू की हैं। मुझे इस बात की खुशी है कि इफको ने भारत सरकार की प्राथमिकताओं पर अमल करते हुए आधुनिक और उन्नत उत्पाद विकसित करने की पहल की है। मैं पर्यावरण हितैषी कृषि उत्पादों के विकास की दिशा में सकारात्मक कदम बढ़ाने के लिए इफको को मुबारकबाद देता हूँ।’’   गुजरात के उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल ने इस अवसर पर कहा कि ‘‘कलोल इकाई ने अपने स्थापना वर्ष 1967 से ही उर्वरक क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। मुझे यह देखकर खुशी होती है कि इफको नैनो बायोटेक्नोलौजी रिसर्च सेंटर (एनबीआरसी) द्वारा विकसित इन अत्याधुनिक उत्पादों के माध्यम से यह संयंत्र अब भी अग्रणी भूमिका अदा कर रहा है। इफको और गुजरात की ओर से भारतीय किसानों के लिए यह एक अनोखा उपहार है। मेरा विश्वास है कि इन उत्पादों से गुजरात सहित पूरे भारत के किसानों को काफी लाभ मिलेगा’’।   गुजरात सरकार के खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले, कुटीर उद्योग, प्रिंटिंग व स्टेशनरी मंत्री तथा इफको के निदेशक  जयेश रदाड़िया ने इस अवसर पर बोलते हुए कहा कि “इफको सदैव किसानों के फायदे के बारे में सोचती है और उनके लिए सर्वोत्तम उत्पाद लाने के लिए हर संभव कोशिश करती है। ये नैनो उत्पाद ऐसे ही उदाहरण हैं। इस उपलब्धि के लिए मैं इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. उदय शंकर अवस्थी और इफको की पूरी टीम को बधाई देता हूँ।”   नैनो उत्पादों के शुरूआती परीक्षण के पश्चात इफको का लक्ष्य नैनो उत्पाद शृंखला मे नए उत्पादों को जोड़ना है। इफको नैनो बायोटेक्नोलौजी रिसर्च सेंटर (एनबीआरसी) प्रयोगशाला भविष्य में एकल पोषक उत्पाद के साथ-साथ बहुपोषक उत्पाद विकसित करने की प्रक्रिया में कार्यरत है।     इफको के बारे में   इफको पूर्ण सहकारी स्वामित्व वाली दुनिया की सबसे बड़ी सहकारी समिति है जो उर्वरकों का उत्पादन, वितरण और विपणन करती है। वर्ष 1967 में मात्र 57 सदस्य सहकारी समितियों के साथ अपनी यात्रा शुरू करने वाली इस संस्था से आज 35000 से अधिक सहकारी समितियॉं जुड़ी हैं। विविध व्यावसायिक हितों को ध्यान में रखकर संस्था ने साधारण बीमा से लेकर खाद्य प्रसंस्करण तक विभिन्न क्षेत्रों में कारोबारी पहल की है। भारत से बाहर ओमान, जॉर्डन, दुबई और सेनेगल में भी इफको की उपस्थिति है।   भारत में अपने पांच संयंत्रों और विस्तृत देशव्यापी मार्केटिंग नेटवर्क के जरिये इफको देश में बिकने वाले फॉस्फैटिक उर्वरक के हर तीसरे और यूरिया के हर पांचवें बोरे का विपणन करती है। वर्ष 2018-19 के दौरान इफको ने 8.14 मिलियन टन उर्वरकों का उत्पादन किया और लगभग 11.55 मिलियन टन उर्वरक किसानों को बेचा।   भारतीय कृषि और भारतीय कृषक समुदाय के समावेशी और समग्र विकास में इफको का अटूट विश्वास रहा है। कोरडेट, आईएफएफडीसी और आईकेएसटी जैसी संस्थाएं इस दिशा में विशेष रूप से कार्य कर रही हैं।

पत्रकारों के हत्यारों को सजा दिलाने को लेकर गंभीर नहीं सरकारें

पत्रकारों पर दुनिया भर में हमले बढ़ रहे हैं और चौंकाने वाली बात ये है कि दोषियों को सजा दिलाने को लेकर सरकारें भी गंभीर नहीं हैं। अंतर्राष्ट्रीय संगठन ‘कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट (CPJ)’  ने पिछले एक दशक के आंकड़ों के आधार पर उन 13 देशों की एक सूची तैयार की है, जहां पत्रकारों की हत्या से जुड़े मामले अभी भी अनसुलझे हैं या फिर कमजोर जांच के चलते आरोपित आजाद हो गए। गौर करने वाली बात ये है कि इस सूची में भारत को भी शामिल किया गया है, हालांकि पिछले 12 सालों में भारत की स्थिति में यदि सुधार नहीं हुआ, तो बद से बदतर भी नहीं हुई है।

CPJ के मुताबिक, पत्रकारों के हत्यारों पर मुकदमा चलाने के मामले में सोमालिया की स्थिति बेहद खराब है। यह लगातार पांचवें साल दुनिया का सबसे खराब देश बना है। यानी कहां, पत्रकारों के हत्यारों को अदालत तक लाया तो जाता है, लेकिन पुलिस की कमजोर तैयारी के चलते वो आजाद हो जाते हैं। फिलहाल सोमालिया में पत्रकारों की हत्या से जुड़े 25 मामले अनसुलझे पड़े हैं। वैसे अनसुलझे केस के मामले में फिलीपींस पहले स्थान पर है। यहां पत्रकारों की हत्या के करीब 41 मामले अपने अंजाम तक नहीं पहुंच सके हैं। इसके बाद, मैक्सिको (30), सीरिया (22), इराक (22), भारत (17), पाकिस्तान (16), अफगानिस्तान (11), ब्राजील (15), बांग्लादेश (7), रूस (6), नाइजीरिया (5) और दक्षिण सूडान (5) का नंबर है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 1992 से लेकर 2019 तक 35 पत्रकारों को मौत के घाट उतारा गया। जिसमें से सितंबर 2009 से लेकर अगस्त 2019 के बीच के 17 मामले अनसुलझे हैं। गौरी लंकेश और सुजात बुखारी हत्याकांड इसमें सबसे प्रमुख हैं।  
     
पिछले 10 सालों के आंकड़ों के आधार पर ‘कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट’ ने यह लिस्ट तैयार की है। CPJ का कहना है कि पिछले एक दशक में आतंकी संगठनों द्वारा पत्रकारों को बड़े पैमाने पर निशाना बनाया गया है, लेकिन स्थानीय आपराधिक गिरोह पत्रकारों के लिए फ़िलहाल सबसे बड़ा खतरा बन गए हैं। पत्रकारों को अपने काम के चलते जान गंवानी पड़ रही है।  प्रेस की आजादी के मामले में रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने भारत को 180 देशों में से 140 स्थान दिया था। रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया था कि सांप्रदायिकता के खिलाफ बोलने वाले पत्रकारों को कई तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है। उनके विरुद्ध सोशल मीडिया अभियानों में भी तेजी आई है।  

 CPJ के मुताबिक, 31 अगस्त, 2019 को समाप्त हुए 10-वर्षीय सूचकांक की अवधि के दौरान, दुनिया भर में 318 पत्रकारों की उनके काम के लिए हत्या कर दी गई और 86% मामलों में किसी भी आरोपी पर सफलतापूर्वक मुकदमा नहीं चलाया गया। CPJ की इस बार की सूची में शामिल भारत सहित सभी देश हर साल इसका हिस्सा बनते रहे हैं। CPJ का इंपुनिटी इंडेक्स प्रत्येक देश की आबादी के प्रतिशत के रूप में पत्रकारों की हत्या के अनसुलझे मामलों की संख्या की गणना करता है। इस सूचकांक के लिए, CPJ ने एक सितंबर, 2009 और 31 अगस्त, 2019 के बीच हुई पत्रकारों की हत्या और अनसुलझे मामलों का डेटा जमा किया। केवल उन देशों को इस सूची में शामिल किया गया, जहां पांच या उससे अधिक केस अनसुलझे हैं। CPJ किसी पत्रकार की हत्या को उसके काम के चलते जानबूझकर की गई हत्या के रूप में परिभाषित करता है। इस सूचकांक में उन पत्रकारों को शामिल नहीं किया गया है, जिनकी मौत युद्ध या खतरनाक असाइनमेंट जैसे विरोध प्रदर्शन की कवरेज के दौरान हुई।

‘कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स’ का कहना है कि पिछले एक दशक में आतंकी संगठनों द्वारा पत्रकारों को बड़े पैमाने पर निशाना बनाया गया है, लेकिन स्थानीय आपराधिक गिरोह पत्रकारों के लिए फिलहाल सबसे बड़ा खतरा बन गए हैं। यही कारण है कि पत्रकारों को अपने काम के चलते जान गंवानी पड़ रही है।

गौरतलब है कि इस साल अप्रैल में प्रेस की आजादी के मामले में रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने भारत को 180 देशों में से 140वां स्थान दिया था। रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया था कि सांप्रदायिकता के खिलाफ बोलने वाले पत्रकारों को कई तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है। उनके विरुद्ध सोशल मीडिया अभियानों में भी तेजी आई है। हालांकि, भारत में मीडिया की आजादी दूसरे देशों के मुकाबले बेहतर है, लेकिन पत्रकारों पर लगातार बढ़ते हमले चिंता का विषय जरूर है।

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