राज ठाकरे को खुला छोड़ना देश के अमन-चैन के लिए खतरा: अनूप पांडेय

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मुंबई में छिड़े भाषा विवाद पर हिंदू संघर्ष समिति के राष्ट्रीय महामंत्री अनूप पांडेय ने राज ठाकरे पर किया कड़ा प्रहार

नई दिल्ली: वरिष्ठ भाजपा नेता और हिंदू संघर्ष समिति के राष्ट्रीय महामंत्री अनूप पांडेय ने मुंबई में छिड़े भाषा विवाद को लेकर महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष राज ठाकरे पर कड़ा प्रहार किया है। उन्होंने कहा कि राज ठाकरे मुंबई में गुंडागर्दी पर उतारू हो गए हैं। वो लगातार भाषा विवाद को हवा दे रहे हैं। इसके कारण मुंबई में रहने वाले उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, उत्तराखंड, हरियाणा और पंजाब से लेकर असम और बंगाल तक के करोड़ों लोग अपने को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। राज ठाकरे के विघटनकारी और विखंडनकारी राजनीतिक षड्यंत्र के कारण मुंबई के साथ पूरे देश में माहौल तनावपूर्ण बना हुआ है। अनूप पांडेय ने कहा कि ऐसी स्थिति में राज ठाकरे को खुला छोड़ना देश के अमन-चैन के लिए खतरा है। उन्होंने कहा कि मुंबई में बाहरी लोगों को सरेआम मारने पीटने का ऐलान करने की गुंडागर्दी करने वाले राज ठाकरे को रासुका के तहत जेल में डालना जरूरी है। अनूप पांडेय ने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस बाल ठाकरे ने हिंदू समाज की एकता और अखंडता को अपने खून पसीने से सींचने का काम किया उन्हीं की संतान और उनके परिवार के लोग आज हिंदुत्व को कटघरे में खड़ा करने का काम कर रहे हैं। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे नफरत फैलाकर और क्षेत्रवाद का हवा देकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने का ख्वाब देख रहे हैं, जबकि उनको मालूम होना चाहिए कि उनका यह सपना अब कभी पूरा नहीं होगा।

मुंबई और पूरे देश की जनता राष्ट्र और समाज के विभाजन की मानसिकता रखने वाले किसी व्यक्ति को कभी सत्ता नहीं दे सकती है। अनूप पांडेय ने कहा कि राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे को यह मालूम होना चाहिए की मुंबई के विकास में बाहरी लोगों का भी अमूल्य योगदान है। मुंबई हमले के दौरान उत्तर प्रदेश बिहार आदि प्रति के लोगों ने ही अपनी जान की बाजी लगाकर मराठी लोगों के जीवन की भी रक्षा की थी उस समय किसी ने नहीं देखा कि कौन किस क्षेत्र, जाति और धर्म का है, सभी ने मानवता का परिचय देते हुए उस त्रासदी में सहयोग करने का काम किया। अनूप पांडेय ने कहा कि राज ठाकरे को यूपी के रहने वाले मरीन कमांडो प्रवीण तेवतिया द्वारा पूछे गए उन सवालों का जवाब देना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा है कि 26/11 को हुए मुंबई हमले में कई लोगों की उन्होंने जान बचाई थी। प्रवीण तेवतिया ने कहा है कि जब 26/11 का आतंकवादी हमला हुआ, तो राज ठाकरे के तथाकथित योद्धा छिप गए और कहीं नहीं मिले। राज ठाकरे खुद गायब रहे। अनूप पांडेय ने कहा कि प्रवीण तेवतिया ने गैर मराठी होते हुए भी मुंबई हमले में कई लोगों की जान बचाई थी और जिनकी जान बची उनमें कई मराठी भी शामिल रहे। लोगों की जान बचाने वाले सैनिक और सेना के काफी अधिकारी यूपी और बिहार के ही थे जिन्होंने मराठियों के प्राणों की भी रक्षा की। अनूप पांडेय ने कहा कि 2008 में भी राज ठाकरे ने इसी तरह की गुंडागर्दी यूपी-बिहार और अन्य राज्यों के लोगों से की थी।

राज के उकसावे पर एमएनएस के कार्यकर्ताओं ने बाहरी लोगों को जगह-जगह पर मारा पीटा था। अनूप पांडेय ने कहा कि भाषा और क्षेत्रवाद के नाम पर देश और हिंदू समाज को बांटने की राजनीति हिंदू संघर्ष समिति किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेगी। अगर राज ठाकरे पर तत्काल राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत शिकंजा नहीं कसा गया तो हिंदू संघर्ष समिति इसके लिए सड़क से सदन तक संघर्ष करेगी। अनूप पांडेय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मांग की है कि इस मामले में राज ठाकरे के खिलाफ तत्काल कठोर कार्रवाई की जाए, ताकि मुंबई में रहने वाले बाहरी लोग भय मुक्त होकर रह सकें।

बिहार की राजनीति: अपराध, सत्ता और विवादों का गठजोड़

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पटना। बिहार की राजनीति हमेशा से जटिल और चर्चा का विषय रही है। हाल के दिनों में, राज्य में अपराध के बढ़ते ग्राफ ने एक बार फिर राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है। कई लोगों का मानना है कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और इसके नेता तेजस्वी यादव सत्ता में वापसी के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। आम धारणा है कि अपराध की बढ़ती घटनाएं वर्तमान नीतीश सरकार की नाकामी को उजागर करती हैं, जिसका फायदा राजद उठाने की कोशिश कर रहा है। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि यदि तेजस्वी सत्ता में लौटते हैं, तो यह अपराधियों के लिए स्वर्ण काल होगा, क्योंकि राजद का इतिहास अपराध और भ्रष्टाचार के आरोपों से भरा रहा है।

तेजस्वी यादव और उनके समर्थकों की बयानबाजी इस तरह की हो गई है, मानो बिहार की जनता ने पहले ही उन्हें सत्ता सौंप दी हो। राजद नेताओं के बढ़े हुए आत्मविश्वास और बिहार में अपराधियों के हौसले में इजाफा एक-दूसरे से जुड़ा प्रतीत होता है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि तेजस्वी यादव, जिनके पिता लालू प्रसाद यादव भ्रष्टाचार के कई मामलों में सजायाफ्ता हैं, बिहार को अपराध मुक्त कैसे करेंगे? राजद की छवि एक ऐसी पार्टी की रही है, जिसका नेतृत्व और कार्यकर्ता बार-बार विवादों में घिरे हैं। ऐसे में, अपराध मुक्त बिहार का वादा जनता को खोखला लगता है।पार्टी के भीतर भी तेजस्वी ने अपनी स्थिति मजबूत की है। उनके बड़े भाई तेज प्रताप यादव, जो कभी उत्तराधिकार की दौड़ में बाधा बन सकते थे, को कुशलता से हाशिए पर धकेल दिया गया है।

अब राजद में उत्तराधिकार को लेकर कोई बहस नहीं बची। तेजस्वी ने यह साबित कर दिया कि वे न केवल राजनीतिक रणनीति में माहिर हैं, बल्कि पार्टी पर अपनी पकड़ भी मजबूत रख सकते हैं।

हालांकि, नीतीश कुमार की सरकार भी आलोचनाओं से अछूती नहीं है। अपराध पर नियंत्रण न कर पाने के कारण उनकी छवि को नुकसान पहुंचा है। बिहार की जनता अब यह देख रही है कि क्या मौजूदा सरकार अपराध पर लगाम लगा पाएगी या राजद की सत्ता में वापसी होगी। कुल मिलाकर, बिहार की राजनीति में अपराध और सत्ता का यह खेल जनता के लिए कई सवाल खड़े करता है।

सी-सेक्शन का बढ़ता चलन: आधुनिकता, संवेदनशीलता और प्रकृति से दूरी

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सिद्धार्थ ताबिश

भारत के बड़े शहरों में सी-सेक्शन (ऑपरेशन से बच्चे का जन्म) का आंकड़ा 50% से अधिक हो चुका है। बड़े प्राइवेट अस्पतालों में यह 70-80% तक पहुंच गया है, जबकि सरकारी अस्पतालों में यह बहुत कम है। निम्न आय वर्ग की महिलाएं सहज और प्राकृतिक रूप से बच्चे को जन्म देती हैं, लेकिन उच्च वर्ग में ऑपरेशन को प्राथमिकता दी जाती है। ऐसा क्यों?कुछ सामाजिक कार्यकर्ता और नारीवादी दावा करते हैं कि मेहनतकश महिलाएं शारीरिक रूप से मजबूत होती हैं, इसलिए वे प्राकृतिक प्रसव में सक्षम हैं, जबकि संपन्न घरों की महिलाएं मेहनत नहीं करतीं। यह दलील उतनी ही सतही है, जितना यह कहना कि आधुनिक पुरुषों का टेस्टोस्टेरॉन प्रदूषण और तनाव के कारण कम हो रहा है।

हकीकत यह है कि ऐशो-आराम और अत्यधिक पढ़ाई-लिखाई ने लोगों को अति-संवेदनशील और अप्राकृतिक बना दिया है। संपन्न घरों की महिलाएं और पुरुष मानसिक व शारीरिक रूप से नाजुक हो जाते हैं। छोटी-छोटी बातें उन्हें ठेस पहुंचाती हैं, और वे अपने रिश्तों की जटिलताओं में उलझे रहते हैं। ग्रामीण पुरुष के लिए पत्नी की शिकायत कि “तुम मुझे KFC या Starbucks नहीं ले गए” बेतुकी लगती है, लेकिन शहरी पुरुष इसे गंभीर अपराध मानकर माफी मांगने लगता है। शहरी जीवन ने पुरुषों को इतना संवेदनशील बना दिया है कि वे पत्नी की हर बात मानने लगते हैं।

बच्चे के जन्म के समय भी यही होता है। प्राइवेट अस्पतालों में डॉक्टर “कॉम्प्लिकेशन” का हवाला देकर ऑपरेशन का सुझाव देते हैं, और डरे हुए दंपत्ति तुरंत हामी भर देते हैं। कई महिलाएं पहले से ही ऑपरेशन के लिए मानसिक रूप से तैयार रहती हैं, क्योंकि वे प्रसव पीड़ा से बचना चाहती हैं।

दूसरी ओर, छोटे शहरों या गांवों के जच्चा-बच्चा केंद्रों में अनुभवी दाइयां महिलाओं को प्राकृतिक प्रसव के लिए प्रेरित करती हैं। अगर कोई महिला दर्द से बचने के लिए खुद को रोकती है, तो दाइयां सख्ती या गुस्से से उसे प्रेरित करती हैं, जिससे प्रसव आसान हो जाता है। शहरी समाज प्रकृति से इतना दूर हो चुका है कि प्राकृतिक प्रसव को क्रूर और टेस्टोस्टेरॉन से भरे पुरुषों को हैवान मानने लगा है।

मैं पुरुषों और महिलाओं को उनके प्राकृतिक स्वभाव में लौटने के लिए प्रेरित करता हूं, क्योंकि जीवन कविताओं और फिल्मों की काल्पनिकता से नहीं, प्रकृति के नियमों से चलता है।

(सिद्धार्थ ताबिश के सोशल मीडिया पेज से। श्री ताबिश के मूल लेख को संक्षिप्त और स्पष्ट करने के लिए कुछ हिस्सों को संशोधित किया गया है, ताकि यह अधिक प्रभावी और पढ़ने में आसान हो, बिना मूल संदेश को बदले। असंपादित लेख पढ़ने की इच्छा हो तो उनके पेज https://www.facebook.com/pageoftabish पर जाकर पढ़ सकते हैं)

इन नंगे नेता पुत्रों के भरोसे मराठी मानुस का दिल जीतेगा मनसे ?

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महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के नाम पर मराठी मानुस का गौरव और स्वाभिमान बढ़ाने का दावा करने वाली पार्टी आज एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार वजह उसका मराठी अस्मिता का झंडा नहीं, बल्कि एक शर्मनाक घटना है। मनसे के राज्य उपाध्यक्ष जावेद शेख के बेटे राहिल जावेद शेख ने मुंबई के अंधेरी में एक ऐसी हरकत की, जिसने न केवल मनसे की छवि को धक्का पहुंचाया, बल्कि यह सवाल भी उठाया कि क्या ऐसी हरकतों के बावजूद राज ठाकरे मराठी मानुस का दिल जीत पाएंगे? यह घटना न सिर्फ एक सड़क हादसे की कहानी है, बल्कि सत्ता के दुरुपयोग, नशे में धुत अहंकार और मराठी अस्मिता के नाम पर चल रही राजनीति की पोल खोलती है।

घटना का विवरण: नशे में धुत, अर्धनग्न और अभद्र व्यवहार

7 जुलाई 2025 की देर रात, मुंबई के अंधेरी पश्चिम में वीरा देसाई रोड पर एक सफेद इनोवा कार ने नेल आर्टिस्ट और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर राजश्री मोरे की कार में जोरदार टक्कर मारी। यह टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि राजश्री की कार क्षतिग्रस्त हो गई। लेकिन यह हादसा केवल गाड़ी की टक्कर तक सीमित नहीं रहा। टक्कर मारने वाला शख्स, जो मनसे नेता जावेद शेख का बेटा राहिल जावेद शेख निकला, नशे में धुत और अर्धनग्न अवस्था में था।

राजश्री ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर इस घटना का वीडियो शेयर किया, जिसमें राहिल न केवल अभद्र भाषा का इस्तेमाल करता दिखा, बल्कि उसने अपने पिता के रसूख का हवाला देते हुए राजश्री को धमकाया।

वीडियो में राहिल कहता सुनाई देता है, “भ**चोद पैसा ले,” और “जा, पुलिस को बता कि मैं जावेद शेख का बेटा हूं, फिर देख क्या होता है।”

राजश्री, जो राखी सावंत की पूर्व मित्र रही हैं, ने इस घटना को न केवल एक सड़क हादसे के रूप में देखा, बल्कि इसे राजनीतिक प्रतिशोध का मामला भी बताया। उन्होंने कहा कि कुछ समय पहले उन्होंने मराठी भाषा के जबरन थोपने के खिलाफ आवाज उठाई थी, जिसके बाद मनसे कार्यकर्ताओं ने उन्हें ऑनलाइन निशाना बनाया था। राजश्री ने अपने बयान में कहा, “मुझे निशाना बनाया गया क्योंकि मैंने महाराष्ट्र में अलग-अलग पृष्ठभूमि से आए लोगों के लिए आवाज उठाई थी। मैंने कहा था कि उन्हें काम करने की आजादी दी जाए, लेकिन मुझे ‘विभीषण’ कहा गया।”

पुलिस की कार्रवाई और मनसे का रवैया

घटना के बाद राजश्री ने अंबोली पुलिस स्टेशन में राहिल के खिलाफ प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज की। एफआईआर में शराब के नशे में गाड़ी चलाने, महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने और लापरवाही से वाहन चलाने जैसे आरोप शामिल हैं। पुलिस ने जांच शुरू की और राहिल को हिरासत में लिया गया, हालांकि कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, उसे जल्द ही नोटिस देकर रिहा कर दिया गया। मनसे ने इस घटना से खुद को अलग करते हुए बयान जारी किया कि “यह घटना पार्टी से संबंधित नहीं है। यह जावेद शेख के बेटे का व्यक्तिगत मामला है, और पुलिस को उचित कार्रवाई करनी चाहिए।”

लेकिन यह बयान कई सवाल उठाता है। अगर मनसे मराठी मानुस की अस्मिता और संस्कृति की रक्षा का दावा करती है, तो उनके नेता के बेटे का ऐसा व्यवहार क्या इस दावे को खोखला नहीं करता? शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) के नेता संजय निरुपम ने इस घटना की कड़ी निंदा की और कहा, “मनसे के नाम पर गुंडागर्दी हो रही है। राहिल ने न केवल एक महिला के साथ दुर्व्यवहार किया, बल्कि शराब पीकर मराठी संस्कृति को भी शर्मसार किया।” निरुपम ने यह भी सवाल उठाया कि क्या मनसे अपने मुस्लिम नेताओं के इशारे पर हिंदुओं के खिलाफ अभियान चला रही है।

मराठी मानुस और मनसे की राजनीतिमनसे की स्थापना 2006 में राज ठाकरे ने मराठी अस्मिता और हिंदुत्व के आधार पर की थी। पार्टी ने हमेशा मराठी भाषा, संस्कृति और स्थानीय लोगों के हितों को प्राथमिकता देने का दावा किया। लेकिन हाल की घटनाएं, जैसे कि थाणे में एक दुकानदार को मराठी न बोलने के लिए पीटना और अब राहिल जावेद शेख का यह कृत्य, मनसे की इस छवि पर सवाल उठाते हैं। क्या मराठी मानुस का गौरव ऐसी हरकतों से बढ़ेगा? क्या राज ठाकरे की अगुवाई में मनसे वाकई मराठी लोगों के हितों की रक्षा कर रही है, या यह केवल सत्ता और रसूख की राजनीति बनकर रह गई है?

राजश्री ने अपने दर्द को व्यक्त करते हुए कहा, “मैं एक मराठी महिला हूं, फिर भी मुझे मनसे कार्यकर्ताओं द्वारा निशाना बनाया जा रहा है। मैंने केवल इतना कहा था कि महाराष्ट्र में सभी को काम करने की आजादी मिलनी चाहिए। क्या यह गलत है?” उनकी यह बात महाराष्ट्र की उस समावेशी संस्कृति की ओर इशारा करती है, जो मुंबई को देश की आर्थिक राजधानी बनाती है। लेकिन मनसे का आक्रामक रवैया और इस तरह की घटनाएं इस समावेशी छवि को धूमिल कर रही हैं।

मराठी अस्मिता या सत्ता का नशा?

राहिल जावेद शेख की इस हरकत ने एक बार फिर यह सवाल उठाया है कि क्या मनसे की राजनीति वाकई मराठी मानुस के लिए है, या यह केवल सत्ता और प्रभाव के प्रदर्शन का जरिया बन गई है? जब एक नेता का बेटा अपने पिता के रसूख का हवाला देकर कानून को चुनौती देता है, तो यह न केवल कानून-व्यवस्था की विफलता को दर्शाता है, बल्कि उस पार्टी की विचारधारा पर भी सवाल उठाता है, जो मराठी गौरव की बात करती है।शिवसेना (UBT) और मनसे के बीच हाल में आई नजदीकियों ने भी इस घटना को राजनीतिक रंग दे दिया है। कुछ समय पहले उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने हिंदी थोपने के खिलाफ एक संयुक्त रैली की थी। लेकिन क्या इस तरह की घटनाएं इस एकता को कमजोर करेंगी? क्या मराठी मानुस ऐसी हरकतों को बर्दाश्त करेगा?

मराठी मानुस का भरोसा कैसे जीतेगा मनसे?

राहिल जावेद शेख की इस शर्मनाक हरकत ने न केवल मनसे की छवि को धक्का पहुंचाया है, बल्कि यह सवाल भी उठाया है कि क्या राज ठाकरे इस तरह के नेताओं और उनके परिजनों की हरकतों के बावजूद मराठी मानुस का भरोसा जीत पाएंगे? मराठी अस्मिता का झंडा उठाने वाली मनसे को पहले अपने घर को दुरुस्त करने की जरूरत है। अगर पार्टी के नेता और उनके परिजन ही ऐसी हरकतें करेंगे, तो मराठी मानुस का दिल जीतना तो दूर, मनसे अपनी विश्वसनीयता खो देगी।

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