दक्षिण से आई एक फिल्म എംപുരാൻ को लेकर इन दिनों खूब बवाल कट रहा है। अब विरोध प्रदर्शन के बाद सेंसर बोर्ड ने फिल्म में एक दर्जन से अधिक कट लगाने के निर्देश दिए हैं। बताया जा रहा है कि फिल्म आतंकवादियों से सहानुभूति रखती है, युवाओं को स्टेट के खिलाफ भड़काती है। अब प्रश्न यह है कि इतना कुछ यदि फिल्म में था तो सेंसर में बैठे लोगों ने पहले इसे भांग खाकर पास किया या माल खाकर!
എംപുരാൻ मलयाली का शब्द है। जिसका आज के समय में भावानुवाद करें तो अर्थ होगा, प्रधानमंत्री अथवा मुख्यमंत्री से बड़ी सत्ता। मतलब जिसकी शक्ति स्टेट से अधिक और जिसस (ईश्वर) से कमतर है।
सेंसर बोर्ड से यह फिल्म UA certificate लेकर पास हुई है। मतलब इस फिल्म को कोई भी देख सकता है। । फिल्म में एक दर्जन से अधिक कट लगाने की जो बात सेंसर बोर्ड को विरोध के बाद समझ आई, फिल्म को पास करते समय वे क्यों नहीं समझ पाए?
एक संवैधानिक व्यवस्था से गुजर कर रिलीज हुई फिल्म में पर्दे पर आने के बाद एक दर्जन से अधिक कट लगाना पड़ रहा है तो चिंता की बात है। इसका मतलब है कि देश का सेंसर बोर्ड ईमानदारी से अपना काम नहीं कर रहा। फिल्म प्रदर्शित होने के बाद सेंसर बोर्ड द्वारा कट लगाए जाने से समाज के बीच सही संदेश नहीं जाता। समाज तो यही सोचेगा कि यदि फिल्म में इतनी खामियां थी तो सेंसर बोर्ड को पहले नजर क्यों नहीं आई?
इस घटना का सबक यही है कि सेंसर बोर्ड में जो लोग बैठे हैं, ऐसे मामलों में उनकी जवाबदेही तय हो। क्या अब तक इस संबंध में सेंसर बोर्ड का पक्ष कहीं सामने आया है!