फिल्म और टीवी की बदौलत बढ़ रही हिंदी की लोकप्रियता

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फिल्म और टीवी की बदौलत बढ़ रही हिंदी की लोकप्रियता

मुंबई। हिंदी भाषा की बढ़ती लोकप्रियता और व्यापक स्वीकार्यता इस बात का प्रमाण है कि यह सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रही, बल्कि अब वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना रही है। हिंदी को भारत की लोक भाषा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावशाली भाषा बनाने में साहित्यकारों, हिंदी संस्थानों और भाषा प्रेमियों का योगदान बहस का मुद्दा हो सकता है, लेकिन जनसंचार माध्यमों, विशेष रूप से बॉलीवुड और टेलीविजन चैनलों की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता।

बॉलीवुड ने हिंदी को घर-घर तक पहुंचाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हिंदी फिल्मों के संवाद, गाने और कहानियां देश के कोने-कोने में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय हैं। केरल से लेकर असम तक हिंदी फिल्मों के गाने गाए और सुने जाते हैं। हिंदी फिल्मों के सुपरस्टार सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में पसंद किए जाते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि हिंदी एक मजबूत सांस्कृतिक माध्यम बन चुकी है।

फिल्मों के अलावा, टीवी धारावाहिकों ने भी हिंदी को लोकप्रिय बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है। सास-बहू के ड्रामे से लेकर अपराध और ऐतिहासिक धारावाहिकों तक, हिंदी भाषा में बने कार्यक्रमों ने लोगों को इस भाषा से जोड़े रखा। ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के उदय के बाद हिंदी कंटेंट की पहुंच और भी अधिक बढ़ गई है, जिससे यह वैश्विक स्तर पर भी पसंद की जाने लगी है।

आज हिंदी केवल एक सरकारी भाषा नहीं, बल्कि एक जनभाषा बन चुकी है। टेलीविजन, रेडियो, अखबार, पत्रिकाएं और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने हिंदी को हर व्यक्ति तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है। हिंदी पत्रकारिता का भी तेजी से विकास हुआ है, जिससे इस भाषा का दायरा और मजबूत हुआ है।

बड़ी संख्या में यात्रा करने वाली भारतीय जनता के लिए हिंदी एक ऐसा माध्यम बन गई है, जिसके सहारे वे संवाद स्थापित कर सकते हैं। हिंदी पूरे देश को एक सूत्र में बांधने वाली भाषा साबित हो रही है। इस भाषा ने न केवल भारत की सांस्कृतिक एकता को बनाए रखा है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

तमिलनाडु में कुछ राजनीतिक कारणों से हिंदी का विरोध जरूर होता रहा है, लेकिन अब यह धीरे-धीरे कम हो रहा है। देश की नई पीढ़ी समझ चुकी है कि हिंदी के बिना आगे बढ़ना मुश्किल है। तकनीकी युग में हिंदी का महत्व बढ़ता जा रहा है, और अब यह अंग्रेजी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है।
ट्रांसलेशन ऐप्स और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की मदद से अब हिंदी सीखना, समझना और बोलना आसान होता जा रहा है। “जब लोग ट्रैवल करते हैं घूमने के लिए, या व्यापार और शिक्षा के लिए, तो एक लिंक भाषा, बेसिक संवाद के लिए, चाहिए होती है, इस जरूरत को हिंदी भाषा बेहतरीन तरीके से पूरा कर रही है,” ये कहना है बैंगलोर में रह रहे साथी राम किशोर का।

आज के युवा हिंदी अंग्रेजी को लोकल भाषा के साथ mix करके नए प्रयोग कर रहे हैं और हिंग्लिश, पिंग्लिश, टिमलिश और बिंग्लिश जैसी नई शैलियों को अपना रहे हैं। भाषा में यह परिवर्तन बताता है कि हिंदी किसी भी रूप में हो, लोग इसे अपनाने से हिचकिचा नहीं रहे हैं। यह प्रवृत्ति दिखाती है कि हिंदी अब केवल एक भाषा नहीं, बल्कि एक व्यवहारिक संचार माध्यम बन गई है।

एक समय था जब हिंदी केवल साहित्य और संचार तक सीमित थी, लेकिन अब यह व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में भी तेजी से अपनी जगह बना रही है। हिंदी की वजह से फिल्म उद्योग हजारों करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है, जबकि टीवी, अखबार और पत्रिकाओं का प्रिंट मीडिया उद्योग लगभग 15,000 करोड़ रुपये का हो गया है।

अब कॉर्पोरेट सेक्टर भी हिंदी को अपनाने लगा है। बड़ी-बड़ी कंपनियां हिंदी में विज्ञापन बना रही हैं, सरकारी और निजी क्षेत्र में हिंदी के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है, और स्टार्टअप्स भी हिंदी को प्राथमिकता देने लगे हैं।

अगर हिंदी के प्रसार की गति इसी तरह बनी रही, तो आने वाले समय में यह वैश्विक स्तर पर अंग्रेजी को कड़ी चुनौती दे सकती है। आज कई विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है, और दुनिया के कई देशों में हिंदी बोलने-समझने वालों की संख्या बढ़ रही है।

मनोरंजन, शिक्षा और तकनीकी उद्योग में हिंदी की उपयोगिता बढ़ने के कारण इसका भविष्य और भी उज्ज्वल दिखाई दे रहा है। अगर हिंदी का यह विकास जारी रहा, तो जल्द ही यह विश्व की प्रमुख भाषाओं में से एक बन जाएगी।

फिल्मों, टेलीविजन, सोशल मीडिया और व्यापार की बदौलत हिंदी भाषा आज तेजी से आगे बढ़ रही है। जहां पहले इसे केवल भारत की भाषा माना जाता था, वहीं अब यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना रही है। बॉलीवुड, टेलीविजन और डिजिटल मीडिया ने इसे हर आम और खास व्यक्ति की भाषा बना दिया है।

भविष्य में हिंदी के बढ़ते प्रभाव को देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि यह भाषा न केवल भारत की एकता का प्रतीक बनी रहेगी, बल्कि दुनिया में भी अपनी खास जगह बनाएगी। अंग्रेजी के वर्चस्व को चुनौती देने की क्षमता अगर किसी भाषा में है, तो वह निस्संदेह हिंदी है।

वनवासियों को ईसाई व मुसलमान बनाने का प्रयत्न हुआ लेकिन उन्होंने धर्म नहीं छोड़ा

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महाकुम्भनगर । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह माननीय दत्तात्रेय होसबाले और अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य श्रीमान सुरेश सोनी जी ने सोमवार को पवित्र संगम में आस्था की डुबकी लगाई। इसके बाद माननीय सरकार्यवाह जी ने सफाई कर्मचारियायें को भेंट दी। साथ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के क्षेत्र प्रचारक श्रीमान अनिल जी और काशी प्रान्त के प्रान्त प्रचारक श्रीमान रमेश जी भी उपस्थित रहे।

**भारतीय संस्कृति विश्व की पोषक व तारक**

महाकुम्भ मेला क्षेत्र के सेक्टर 17 में आयोजित संत समागम को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति विश्व की पोषक व तारक है। हिन्दू संस्कृति की रक्षा व भारत की एकता व एकात्मता के लिए काम करें। शिक्षा, सेवा, संस्कार व धर्म जागरण के द्वारा अपने समाज की एकता को अपने समाज की अस्मिता को बनाए रखने का प्रयत्न करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि वनवासियों को ईसाई व मुसलमान बनाने का प्रयत्न हुआ। उन्होंने हमारे देवी देवताओं, पूजा पद्धति को बदल दिया। वनवासियों का कोई धर्म नहीं है यह प्रचारित किया गया। इन सारे विषयों को पाठ्य पुस्तकों में विश्वविद्यालयों में पढ़ाया पीएचडी करके इसको स्थापित करने का प्रयत्न किया गया। भोले भाले वनवासियों के हाथों में नक्सलियों ने बंदूक थमाया। समस्या का समाधान उनका उद्देश्य नहीं था। प्रेम से रहो हिंसा दो इस नफरत से काम नहीं चलेगा।

सरकार्यवाह ने कहा कि वनवासियों ने अपने पूजा पाठ, मंत्र पारायण से, रीति रिवाज से, तीज त्यौहार से,पर्वों के आचरण से, पर्वों के अनेक संस्कारों से उसको जतन से बनाकर बचाकर रखे हैं। गुरूओं के मार्गदर्शन व संतों की साधना इस धर्म श्रद्धा को आध्यात्मिक चेतना को मूल संस्कार पद्धति को मजबूत रखने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई हैं।

दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि धर्मान्तरण एक प्रमुख चुनौती है। इसे रोकने के लिए हमें आगे आना होगा। अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए एक प्रतिबद्धता चाहिए। आधुनिक काल में विकास के नाम पर इन चीजों पर भी आघात हो रहे हैं। इसलिए वनवासियो के बीच शिक्षा संस्कार देने का बड़ा प्रयत्न होना चाहिए। वनवासियों में नृत्य संगीत की अद्भुत परंपरा है। वनवासी क्षेत्र के साहित्य की रक्षा होनी चाहिए। बनवासी युवाओं को जल जंगल जमीन की पवित्रता और संस्कृति व परम्परा के बारे में बताना होगा।

सरकार्यवाह ने कहा कि वनवासी क्षेत्रों में संतों ने जो प्रयत्न अभी तक किया है। वह अदभुत है। इसलिए तो जनजाति बची है। वहां राम का नाम लेने वाले हैं। वहां धर्म की बात बोलने वाले अभी भी बचे है।। जनजाति संस्कृति के जीवन में आचरण करने के लिए लाखों कुटुम्ब आज भी बचे हैं। वनवासी कल्याण आश्रम,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद इस क्षेत्र में कार्य कर रहा है।
हम सब एक होकर एकता के साथ काम करेंगे तो हिंदू शक्ति कम नहीं है हमको मिलकर प्रयत्न करना होगा। अलग-अलग हम बंट जाते हैं तो हमारी शक्ति क्षीण हो जाती है। विदेशी आतताइयों से अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए वनवासियों ने संघर्ष किया है।

वनवासी कल्याण आश्रम के अध्यक्ष सत्येन्द्र सिंह ने कहा कि अनुसूचित जनजाति समाज पहले प्रताड़ित किया जाता था। वनवासी कल्याण आश्रम के द्वारा सुधार हुआ है आगे भी समाज और आश्रम के लोगों को वनवासी समाज की चिंता करना पड़ेगा। अनुसूचित जनजातियों को गले लगाना पड़ेगा। संगठन के द्वारा मंचों पर दिखावा नहीं करते हुए सम्मान देना पड़ेगा। हिंदू समाज को संगठित करने के लिए प्रत्येक हिन्दू को मान सम्मान देना होगा।
कार्यक्रम में उपस्थित सभी संतों का स्वागत व सम्मान किया गया।

प्रमुख रूप से वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय संगठन मंत्री अतुल जोग,वनवासी कल्याण आश्रम के उपाध्यक्ष एसके नागो, सह संगठन मंत्री भगवान सहाय, अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख महेश काले,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक अनिल,प्रान्त प्रचारक रमेश, वनवासी कल्याण आश्रम के अखिल भारतीय सम्पर्क प्रमुख मनीराम पाल,संत शिरोमणि दिगंबर महाराज, उमाकांत महाराज, विपुल भाई पटेल, अनंत दोहरी आलेख पंथ, बलराम दास प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

ब्रिटेन के एक सुप्रसिद्ध बैरिस्टर खालिद उमर द्वारा महाकुंभ के अवसर पर (अनुभव के बाद )दिया गया वक्तव्य

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प्रयाग: कोई पशु वध नहीं, कोई रक्तपात नहीं, कोई वर्दी नहीं, कोई हिंसा नहीं, कोई राजनीति नहीं, कोई धर्मांतरण नहीं, कोई संप्रदाय नहीं, कोई अलगाव नहीं, कोई व्यापार नहीं, कोई व्यवसाय नहीं।

यह हिंदू धर्म है

कहीं भी मनुष्य इतनी संख्या में किसी एक कार्यक्रम के लिए एकत्रित नहीं होते हैं; चाहे वह धार्मिक हो, खेल हो, युद्ध हो, अंतिम संस्कार हो या उत्सव हो। यह हमेशा कुंभ मेला रहा है और इस वर्ष यह महाकुंभ है, जो हर 144 साल में मनाया जाता है।

आंकड़ों की दुनिया आंकड़ों को हैरत से देखती है; 44 दिनों में 400 मिलियन लोग, 15 मिलियन से अधिक लोगों ने पहले दिन पवित्र स्नान किया, 4,000 हेक्टेयर में एक अस्थायी शहर, 150,000 तंबू, 3,000 रसोई, 145,000 शौचालय, 40,000 सुरक्षा कर्मियों के साथ, 2,700 एआई-सक्षम कैमरे, आदि। ये हैं दिमाग चकरा देने वाले आँकड़े लेकिन यह वह नहीं है जो मुझे आश्चर्यचकित करता है।

मेरा विस्मय इस घटना के भौतिकवाद, सांख्यिकी या भौतिक पहलुओं के बारे में नहीं है।

यह इस बारे में नहीं है कि हमारी आंखें क्या देख सकती हैं। यह आकार या संख्या के बारे में नहीं है। जो चीज़ मुझे आश्चर्यचकित करती है वह है (जिसे हम प्राचीन कहते हैं) ब्रह्मांड के साथ मानवता के संबंध का ज्ञान।

यह कहना पर्याप्त नहीं है, कि हिंदू धर्म प्रकृति के साथ जुड़ा हुआ है, बल्कि प्रकृति ही हिंदू है और हिंदू ही प्रकृति है।

पूरा विश्व आश्चर्यचकित है, ये कैसी श्रद्धा है

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अनीश श्रीवास्तव लाल

कैसा विश्वास है
कैसी परंपरा है,
कैसा ज्ञान है
कैसा संस्कार है
कैसी संस्कृति है

प्रयाग। माँ गंगा की गोद में बैठने को सभी आतुर हैं। माँ की शुद्ध व पवित्र आंचल में गोद में बैठकर स्नान कर पापों से मुक्ति व मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा विश्व के समस्त व्यक्तियों को महाकुंभ की दिशा में जो विशेष योग व नक्षत्रों के कारण 144 वर्ष बाद आता है, की ओर बढ़ने को प्रेरित कर रही है और आज की भागमभाग भरी जीवनशैली के बावजूद लोग बच्चों व बुजुर्गों सहित

पूरे परिवार सहित खींचा हुआ सा बढ़ता जा रहा है। लगता है मानो कोई अदृश्य उर्जा, सभी को चाहे वा सनातनी हो या अन्य धर्म व पंथ को लोग, महाकुंभ की ओर खींच रही हो और सब कुछ शुद्ध, शांत व पवित्र कर देना चाहती हो, सबको उर्जामय कर देना चाहती हो, लोग बरबस ही जाने-अंजाने में प्रयागराज की ओर खिंचे चले जा रहे हैं।

प्रयागराज जैसे सीमित भूभाग पर भी 40-50 करोड़ लोगों का आकर स्नान करना अपने आपमें दैवीय चमत्कार से कम नहीं है लोगों का आने का प्रवाह अभी थमा नहीं है अनवरत जारी है जैसे प्रतियोगिता चल रही हो कि कि तुम्हारी ही नहीं, मेरी भी माँ वही है, तुम्हारा ही नहीं मेरा भी अधिकार है कि माँ की गोद में बैठकर कुछ समय बिताऊँ। अपने पूर्वजों को भी तृप्त कर देने की चाहत लोगों में बलवती है ऐसे कि जैसे प्रयागराज मानव कल्याण का नाभि क्षेत्र हो, तीव्र उर्जा का स्रोत हो, सभी स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़ों मे एक ही भूख कि बस इस उर्जा क्षेत्र में एक बार मैं डुबकी लगा लूँ और मेरे साथ मेरे मातृगण व पुतृगण सभी तृप्त हो जायें।

आधुनिक विश्व व विज्ञान को ही सब कुछ मानने वाले इससे भी परेशान व आश्चर्य से भरे है कि लोगों ने ना कोई मास्क पहना हैं, ना ही कोई सावधानियाँ हैं, बिना हाइजीन व सैनिटाइजर्स के कैसे करोड़ो लोग बिना बीमारी महामारी की चिंता किये बग़ैर एक ही नदी में सीमित जगह पर स्नान कर रहे हैं। ना ही जाति-पांत का, ना ही ग़रीबी-अमीरी का, ना ही ऊंच-नींच का भेदभाव है ना शिक्षित-अशिक्षित का ना ही देशी-विदेशी का ना ही गोरे-काले का अंतर, गौर से ध्यान से मनन व मंथन करें तो पता चलेगा कि यही वास्तविक भारत है, यही भारतवर्ष है, यही भारत की विशिष्टता व पहचान है, यही भारत की परंपरा व संस्कृति है, जहाँ ना कोई छोटा बड़ा है ना ही सवर्ण व शूद्र है ना ही ज्ञानी या अज्ञानी है बल्कि सभी धर्मों व जातियों के लोग बिना भेदभाव के एक ही मां की संतान हैं और एक ही ध्यान व आस्था से बँधे हुए भाई बंधु हैं।

श्रद्धा आस्था के इस सैलाब/सुनामी व नक्षत्रों के योग ने जैसे विज्ञान व इससे जुड़े पहलुओं को जैसे बहा दिया हो और पूरा विश्व निरुत्तर हो गया हो जैसे अर्जुन ने कृष्ण जी को भगवान योगेश्वर के रूप को देख लिया हो जिसके मुख में पूरा ब्रह्मांड व लाखों करोड़ों मंदाकिनियों को देख लिया हो।
सभी भक्तिभाव से भरे हुए हैं, उन्हें ना ही किसी ज्ञान से मतलब ना ही किसी विज्ञान व प्रौद्योगिकी से मतलब है।

हम सबको पुनः अपने अंदर झांकना चाहिए यही सही समय है जब भारत भूमि में बवंडर रूप में मौजूद दैवीय उर्जा का अत्यधिक उपयोग कर लिया जाये और हर परंपरा, संस्कार व संस्कृति पर अनुचित प्रश्नचिह्न लगाये बिना उन्हें आधुनिक विश्व के अनुकूल आवश्यकतानुसार परिष्कृत व परिमार्जित करते हुए आत्मसात् करें और अखंड भारतवर्ष के भविष्य निर्माण के लिए परिवार जैसी संस्था के माध्यम से अखिल विश्व के कल्याण के लिए मूल्यों व चरित्रनिर्माण पर विशेष ध्यान दें।

आज आस्था ही विज्ञान है, आस्था ही पहचान है,
आस्था ही हमें उचित मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है और
आस्था ही हमको आपको संस्कारित व संवर्धित करता है।

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